प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव

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प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव    चूंकि अब कई परीक्षाओं का परिणाम आ रहा है तो बच्चों और अभिभावकों में हलचल होना स्वभाविक है। हाल ही में ऐसे ही एक परीक्षा जेईई (Joint Entrance Test/संयुक्त प्रवेश परीक्षा) जो देशभर में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण इंजिनयरिंग परीक्षा है उसी का परिणाम घोषित हुआ है। इसी परीक्षा की एक खबर पढ़ी थी कि जेईई मेन में 56 बच्चों की 100 पर्सन्टाइल, है...कितने गर्व की बात है न। एक नहीं दो नहीं दस नहीं पूरे 56 बच्चों के अभिभावक फूले नहीं समा रहे होंगे।    56 बच्चों का एक साथ 100 परसेंटाइल लाना उनके परीक्षा में आये 100 अंक नहीं अपितु ये बताता है कि पूरी परीक्षा में बैठे सभी अभ्यार्थियों में से 56 बच्चे सबसे ऊपर हैं। इन 56 बच्चों का प्रदर्शन उन सभी से सौ गुना बेहतर है। अभी कहा जा सकता है कि हमारे देश का बच्चा लाखों में एक नहीं अपितु लाखों में सौ है।    किसी भी असमान्य उपलब्धि का समाज हमेशा से समर्थन करता है और ये सभी बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं इसलिए सभी बधाई के पात्र हैं। परसेंटेज जहाँ अंक बताता है वही परसेंटाइल उसकी गुणवत्ता बताता है।

थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं... भाग -3

थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं... भाग - 3




   पिछले लेख में हमारे पास नैनीताल घूमने का केवल आधा दिन था जिसे हमने खूब अच्छे से व्यतीत किया और कहा था कि आगे का रास्ता लंबा नहीं है क्योंकि अब हमें नैनीताल से कैंची धाम जाना था। 10 मार्च की सुबह हम अब नैनीताल के
पहाड़ी मार्ग से आगे कुमाऊँ की पहाड़ियों के और निकट जा रहे थे। 

 कैंची धाम: 

   कैंची धाम जिसे नीम करौरी आश्रम के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह कुमाऊँ के सुरम्य, शांत वातावरण के मध्य कैंची गाँव में स्थित एक अध्यात्मिक आश्रम है जिसे संत नीम करौरी बाबा जी ने बनाया था। बाबा जी स्वयं हनुमान जी के बहुत बड़े उपासक थे इसलिए इनके कई भक्त इन्हें चमत्कारी मानते हैं एवं हनुमान जी की तरह ही पूजते हैं।    

     कैंची धाम, 10 मार्च 2024
 
 नैनीताल से कैंची धाम की दूरी 20 किलोमीटर के आसपास है जो कि 40-50 मिनट में पूरी की जा सकती है लेकिन कई बार ये दूरी घंटे भर से कई अधिक भी हो जाती है क्योंकि कैंची धाम एक लोकप्रिय धाम है तो दर्शनार्थी हमेशा बने रहते हैं और दूसरा यह नैनीताल अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित है और यह मार्ग आगे चलकर कुमाऊँ के मुख्य स्थानों को जोड़ता है इसलिए इस मार्ग पर वाहनों की आवाजाही लगातार बनी रहती है और तीसरा जो बहुत स्वाभाविक है कि पहाड़ों की घुमावदार सड़क में थोड़े से भी अधिक वाहन जाम की स्थिति बना देते हैं। 

     हालांकि हमने सोचा था कि जाम से बचने के लिए सुबह जल्दी ही नैनीताल से निकल जायेंगे लेकिन बच्चों के साथ निकलते निकलते थोड़ी देर तो हो गई थी। फिर भी नीम करौरी बाबा के आशीर्वाद से हमें किसी भी जगह जाम नहीं मिला। 

   पार्किंग स्थल पर गाड़ियों का रेला तो था लेकिन व्यवस्था के साथ। आश्रम के बाहर अन्य मन्दिर की भाँति प्रसाद की दुकाने थी और साथ साथ कंबल भी बेचे जा रहे थे। चूंकि नीम करौली बाबा के पास हमेशा कंबल रहता था और उनकी फोटो में भी उन्हें कम्बल ओढ़े ही देखा गया है तो भक्तजन मालपुए, लड्डू के प्रसाद के साथ साथ कंबल भी बाबा के आशीर्वाद स्वरूप इस धाम से लेते हैं। भक्त जनों को एक व्यवस्थित कतार में ही चलकर आश्रम के अंदर बने नीम करौली बाबा, हनुमान जी और देवी मन्दिर के दर्शन करने होते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ भी परिसर के अंदर शांति से बैठ कर कर सकते हैं। 

   15 जून 1964 में कैंची धाम की स्थापना की गई थी इसीलिए हर वर्ष 15 जून को स्थापना दिवस पर यहाँ बहुत बड़ा आयोजन किया जाता है जिसमें दूर दूर से भक्त नीम करौली महाराज के दर्शन करने पहुँचते हैं। केवल भारतीय ही नहीं मार्क जुकारबर्क, स्टीव जॉब्स, जूलिया रॉबर्ट्स आदि गणमान्य विदेशी भी नीम करौली महाराज जी का आशीर्वाद लेने यहाँ आये हैं या यूँ कहें कि यहाँ की सकारात्मक ऊर्जा को गृहण करके धन्य हुए हैं। और जब से अनुष्का शर्मा विराट कोहली जैसे और भी अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों ने यहाँ आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है तब से कैंची धाम की लोकप्रियता अधिक बढ़ गई है। यहाँ आकर आभास होता है कि कैंची धाम में हनुमान जी का वास है और उन्हीं की कृपा से स्वयं नीम करौली बाबा जी का आशीर्वाद भक्तों को मिलता है और सभी के काम बन रहे हैं। 


  उन्हीं की कृपा के चलते हमारे दर्शन भी अच्छे से हो गए। बाहर आते आते अब लग रहा था कि भक्तों की कतार भीड़ में बदल रही है और पार्किग भी रंग बिरंगी गाड़ियों से भर गई है। इतनी कि हमारी गाड़ी को बाहर निकालने के लिए सारी 'ड्राइविंग स्किल' को बाहर निकालना पड़ा। (पता नहीं लोग क्यों भगवान के दर्शन के चक्कर में अपनी बुद्धि भी चप्पलों के साथ गाड़ी में ही छोड़ जाते हैं। तभी तो बिना बुद्धि के इतने शांत व ठंडे वातावरण में भी गरम हो जाते हैं!!) 

  खैर जो भी हो, यहाँ के एकांत में आपकी जितनी भी थकान होगी वो कुछ ही समय में दूर हो जायेगी। किसी भी प्रकार की चिन्ता, तनाव या नकारात्मकता का यहाँ पर असर नहीं होता है क्योंकि यहाँ का वातावरण मन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है इसलिए एक ठहराव स्वत: ही मन में शांति का भाव देता है। तभी तो जय जैसा नटखट बच्चा भी यहाँ आकर शांत था। वैसे ये मेरा अपना अनुभव है कि उत्तराखंड देवों की भूमि है इसलिए यहाँ पर विशेषकर कि हमारे पहाडों पर बने हर छोटे बड़े देव-देवी स्थानों में सकारात्मक ऊर्जा का संचरण रहता है। इन स्थानों में शांति के साथ साथ शक्ति का अनुभव होना सामान्य है। 

जिम कॉर्बेट: 
  अब हमें अपने अगले पड़ाव की ओर जाना था इसलिए बिना किसी देरी किये हम जिम कार्बेट की ओर बढ़ गए। हमारे दो दिन यहीं की सैर के लिए बुक थे। यहाँ जाने का रास्ता वही था जिससे हम आये थे यानी की वापस नैनीताल होकर ही जिम कार्बेट जाना था। इस समय वापसी में अब थोड़ा जाम का सामना करना पड़ा। पहले भुवाली में फिर नैनीताल बाज़ार में गाड़ियों से झूझना मसूरी के लाइब्रेरी चौक की याद दिला रही थी लेकिन उसके बाद चौड़ी सड़कों पर हरे भरे पेड़ों की ठंडी हवाओं के बीच गाड़ी चलाना आनंददायक था। हम कालाढूंगी से होते हुए लंबे चौड़े खेतों की हरियाली से होते हुए खेमपुर स्थित अपने रिजॉर्ट में थे। 
     त्रिनंतारा रिज़ॉर्ट, खेमपुर, जिम कॉर्बेट (10 मार्च 2024) 

  रिजॉर्ट छुट्टियां बिताने का एक बेहतर विकल्प है जहाँ आप भागदौड़ की जिंदगी से दूर केवल आराम करना चाहते हैं। चूंकि रिज़ॉर्ट प्रकृति माँ की गोद में स्थित होते हैं तो मन अपने आप शांति का अनुभव करता है। दूसरा जब इन स्थानों में सारी सुविधाएं जैसे कि खाने रहने के साथ साथ मनोरंजन के लिए स्विमिंग पूल, जिम, चिल्ड्रेन पार्क, स्पा, बुटिक जैसी लग्जरी सुविधाएं भी हो तो छुट्टियां का मज़ा दुगना हो जाता है। हाँ, यह बात तो है कि इन सभी सर्विस या सुविधाओं के लिए भी अच्छा खासा शुल्क देना पड़ता है जो कि स्वाभाविक भी है। 

 इसी तरह के खूबसूरत और हरियाली से भरे पूरे त्रिनंतारा रिज़ॉर्ट में हम भी ठहरे थे। मखमली घास की बगिया के साथ लगे हरे भरे पेड़ और छोटे छोटे फूलों के गुच्छों से बंधे पौधे हमारी आँखों को ठंडक दे रहे थे। वहीं रिज़ॉर्ट के बीच में बने स्विमिंग पूल को देखते ही जय की बैटरी तो जैसे डबल चार्ज हो गई। वो दौड़ते हुए उस पूल के आस पास चक्कर तो लगाता लेकिन नहाने की हिम्मत नही जुटा पाता इसलिए बस किनारे के पानी को हाथ से ही सहलाते हुए ठंडक लेता। लेकिन हाँ, लग्जरी कॉटेज रूम के साथ बने निजी (प्राईवेट) पूल में जाने पर उसने क्षण भर का भी समय नहीं लिया। साफ सुथरे, सारी सुविधाओं से पूर्ण स्वीट रूम जो बहुत ही व्यवस्थित था, जिया जय की मस्ती से उसका हाल भी क्षण भर में अस्त व्यस्त हो चुका था। हमारी थकान वहाँ के वातावरण से दूर हो चुकी थी लेकिन भूख बढ़ रही थी क्योंकि जब बाहर का वातावरण अच्छा हो और अंदर कोई तनाव भी न हो तो भूख लगना स्वाभाविक जो जाता है। ऐसे में चाहे 56 भोग की थाली हो या एक छोटा चाय का प्याला, परम संतुष्टि देता है।



  बच्चे अपनी पूल की मस्ती में थे और विकास उनकी मस्तियों को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे। जो जरूरी भी था क्योंकि जब बच्चे बड़े हो जायेंगे और अपनी जिम्मेदारियों में खो जायंगे तो यही खूबसूरत पल हम सभी को फिर से इन मस्ती भरे दिनों की ओर ले जायेंगे। लेकिन माँ को तो यहाँ भी चिंता थी अपने नातियों की, खासकर कि जय की क्योंकि जितना वो चंचल है उतना ही नाजुक भी। बहुत जल्दी ही उसे सर्दी खाँसी हो जाती है इसलिए माँ उनकी शरारतों की देख रेख में ही व्यस्त थी। और चूंकि मैं होस्पिटैलिटि क्षेत्र से ही संबंध रखती हूँ तो इस पूरे रिजॉर्ट का मुआईना (निरीक्षण) किये बिना चैन आना कठिन था। 



    मस्ती के लिए स्विमिंग पूल, जिम, चिल्ड्रेन पार्क, गेम ज़ोन तो था ही सबसे अच्छा था स्पा की सर्विस जहाँ आप रेलक्स, रिफ्रेश और रेजुविनेट (आराम करते हैं, तरो ताज़ा,होते हैं और फिर से युवा होते हैं)। शरीर थकान से दूर होकर हल्का लगता है और मन ताजगी से भर जाता है। और ऐसी सेवाओं की आवश्यकता तो इस यात्रा के दौरान हम सभी को थी (बच्चों को छोड़कर) खासकर कि माँ को इसलिए आज की सेवाएं केवल माँ ने ली।   
    जिसके लिए उन्होंने सीधे मना कर दिया क्योंकि माँ एक साधारण और घरेलू महिला रही हैं इसलिए 'स्पा' उनके लिए एक नया शब्द और नई जगह थी। साथ ही स्पा संचालिका जो उत्तर-पूर्वी भारतीय बहन थी उनके नैन नक्श और भाषा के कारण भी माँ का मना करना थोड़ा स्वाभाविक था लेकिन मुझे लगता है कि अगर आप के पास इस तरह का विकल्प हो जहाँ शुल्क तो देना पड़े लेकिन उसका लाभ आपके शरीर और मन दोनों पर हो तो संकोच नहीं करना चाहिए और जीवन में अनुभव भी तो आवश्यक हैं!! बहुत ही संकुचित भाव से माँ ने जाना स्वीकार किया लेकिन स्पा की सेवाओं के बाद बड़े ही आत्मविश्वास के साथ स्पा बहनों को धन्यवाद किया। 
    चूंकि रात के आठ बज चुके थे तो हमारा नंबर अब कल आना था। और कल सुबह 6 बजे हमारी जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के लिए सफ़ारी की भी बुकिंग थी इसलिए समय से खाना और सोना भी आवश्यक था लेकिन बच्चों के साथ ये एक चुनौती है इसलिए उनकी भागा दौड़ी अपने कमरे से होती हुई कभी पूल के आस पास तो कभी लॉन के चक्कर लगाती तो कभी जय की लेज़र लाइट एक जगह से दूसरी जगह दिखाई देती। लेकिन अब किसी भी चुनौती से परे अपने मन को स्वछंद कर दिया गया। 



   खुले आकाश के नीचे, साथ में पूल का पानी जिसमें आस पास की जगमगाते बल्ब एक तरफ और चंद्रमा का प्रकाश एक तरफ, हल्की ठंडी ठंडी हवा और कहीं कहीं पर झिंगुरों की झीं झीं। बहुत लंबे समय के बाद इस तरह रात में सैर की जा रही थी क्योंकि देहरादून में तो जगह जगह सड़कों की खुदाई अब आम बात है, जहाँ सैर पर ताज़ी हवा के स्थान पर केवल धूल मिलती है। (लगता है सरकार और अधिकारी देहरादून को मेट्रो बना कर ही छोड़ेंगे !!) सोच रही थी कि हम तो फिर भी उत्तराखंड में हैं लेकिन जो मेट्रो वाले शहरों में हैं उनके लिए न तो सर्दियों में खिली धूप का आनंद है और न तो गर्मियों में खुली हवा, बस दिन भर की भागा दौड़ी के बाद अपने अपने घरों के डिब्बों में कैद होना कभी उनकी मजबूरी है तो कभी किसी की आदत। 
  मेरे अपने विचारों की उधेड़ बुन शायद रात भर चलती रही और तड़के जाकर नींद आई होगी लेकिन इस बार भी सोने का मौका बहुत कम मिला क्योंकि, छः बजे जंगल सफ़ारी करने जिम कॉर्बेट के फाटो ज़ोन जाना था। 

   सुबह जितनी उत्सुकता हमें थी उससे कहीं अधिक उत्सुक तो बच्चे थे। सच में, जय जिसे सुबह स्कूल जाने के लिए मुझे 20 मिनट लगते हैं वही बच्चा आज सफ़ारी के लिए दो मिनट में ही उठ गया। उसको जंगल का राजा जो देखना था।

फाटो ज़ोन, जिम कॉर्बेट: 


     रिजॉर्ट से फाटो ज़ोन की दूरी थोड़ी अधिक थी लगभग 30-32 किलोमीटर के आसपास जहाँ पहुँचने में हमें लगभग 45 मिनट से 1 घंटा तो लग ही जाता। यानी कि 7 बजे तक हमें फाटो ज़ोन के अंदर प्रवेश करना था। हम जितना जल्दी फाटो ज़ोन पहुँचते उतना अधिक समय जंगल के अंदर रह सकते थे क्योंकि जिम कॉर्बेट के जंगल में प्रवेश करने का समय भी तय होता है। हर सफ़ारी को अपना पूरा विवरण फोटो आई डी के साथ जंगलात के कार्यालय में देना पड़ता है और सफ़ारी का समय भी निश्चित होता है जैसे कि हम जीप सफ़ारी में थे तो हम जंगल के अंदर केवल 3 घंटो तक रह सकते थे जिसमें कि गेट का समय भी मौसम के अनुसार निश्चित होता है जैसे कि गर्मियों में गेट सुबह 5, 5:30 बजे से 9, 9:30 बजे तक ही खुलता है और शाम को 2 बजे से 6 बजे तक, सर्दियों में सुबह 6-9 और शाम 1:30 से 4 बजे तक। वैसे जंगल के अंदर प्रवेश करने वाली हर जीप सफ़ारी का समय 3 घंटे का ही है लेकिन ढिकाला ज़ोन में कैंटर सफ़ारी के लिए 4 घंटे मिलते हैं जिसके लिए ढिकाला ज़ोन के अंदर बने जंगलात के गेस्ट हाउस में ही ठहरना उपयुक्त होता है।

     जीप सफ़ारी, कॉर्बेट (11 मार्च 2024) 


 ढिकाला, बिजरानी, झिरना तो काफी प्रसिद्ध ज़ोन है लेकिन फाटो ज़ोन हमारे लिए एक नया नाम था इसलिए थोड़ा संशय बना हुआ था लेकिन यहाँ तो सुबह रिज़ॉर्ट से एक किलोमीटर ही आगे बढे थे कि सड़क पर बड़ा सा चीतल मिल गया। उसने हमारे सामने से सड़क पार की और सड़क किनारे बड़ी ही तसल्ली से हमें देखने लगा। ऐसा लगा कि वो बोल रहा है कि 'तुम बेकार ही आगे जा रहे हो मेरे पीछे आओ मैं तुम लोगों को जंगल घुमा लाता हूँ।' अब मुझे भी संतुष्टि थी कि फाटो ज़ोन से जाना कोई गलत निर्णय नहीं था। 

 जय तो वैसे ही बहुत रोमांचित था क्योंकि वो खुली जीप में पहली बार बैठा था और जिया भी बहुत उत्सुक थी लेकिन माँ को अभी भी बच्चों की चिंता थी क्योंकि एक तो खुली जीप और फिर सुबह सुबह की ठंडी हवा साथ में मौसम परिवर्तन का समय। इन के कारण बच्चे बीमार भी तो हो सकते हैं यही सोचकर माँ का सारा ध्यान शायद बच्चों को टोपी तो कभी मफलर ओढ़ाने में था। लेकिन हमारा सुबह सुबह रामनगर की सड़क पर खुली जीप में अपनी रफ्तार के साथ जाना कुछ अलग लग रहा था। बाज़ार तो खाली ही थे लेकिन बड़े बड़े खेतों और जंगल के बीच बने मार्ग पर सुबह बहुत कम लोग ही दिखाई दिये। कुछ लोग सैर पर थे, कुछ लोग दूध का बर्तन लेकर जा रहे थे, कोई घास के बड़े बड़े गट्ठर मोटर साइकिल पर बांधे जा रहा था और इक्का दुक्का ट्रैक्टर ट्राली थी। उन कम लोगों के बीच अपनी सफ़ारी में बैठकर ऐसा लग रहा था कि वहाँ के स्थानीय लोग बोल रहे होंगे कि इनका कुछ काम नहीं है, सो कर उठे और सीधे यहाँ इतनी सुबह सुबह घूमने निकल पड़े। वैसे बात में कुछ गलत तो नहीं है, सत्यता तो यही है कि उठ कर सीधे घूमने ही निकल पड़े हैं।

   खैर छोड़ो! यही सोचते हुए सफर की सफ़ारी का आनंद लेना उचित समझा और जंगल की अधिकारिक सीमा से पहले ही कॉर्बेट की छापे वाली गोल टोपी और दूरबीन (बाईनाकुलर) जो कि किराये पर उपलब्ध हो जाता है अपने साथ ले लिया। यहाँ लगा कि सुबह उठकर केवल हम ही नहीं अपितु अन्य लोग भी अपनी अपनी जीप पर बैठे घूमने निकल रहे थे। रिजॉर्ट से लगभग एक घंटे के सफर करने के बाद हम जिम कार्बेट उद्यान के फाटो गेट पर थे। यहाँ से हर सफ़ारी में एक गाइड अनिवार्य होता है। हमारी बुकिंग पहले से ही थी तो केवल फोटो आई डी से मिलान किया और हस्ताक्षर के बाद हमारी सफ़ारी कार्बेट जंगल के अंदर प्रवेश कर चुकी थी। यहाँ से हमारी वन्यजीव यात्रा आरंभ हो रही थी जो कि हम सभी के लिए रोमांचक यात्रा थी और साथ ही साहसिक भी क्योंकि इतने बड़े जंगल में आपको कहीं भी कोई भी जानवर दिखाई दे सकता है। (चिड़ियाघर के बंदी जानवरों और जंगल के खुले जानवरों के स्वभाव में तो अंतर होगा ही!) इसलिए सबसे आवश्यक होता है अपने गाइड की बात सुनना। उसके दिशा निर्देशों को सुनना और जंगल सफ़ारी के नियमों का पालन करना साथ ही शिष्टाचार निभाना। जैसे कि... 



जंगल सफ़ारी के दौरान जरूरी निर्देश, नियम

... सबसे आवश्यक प्रकृति माँ का सम्मान करना और उसमें रहने वाले सभी जीवों का भले ही वो वन्य जीव जन्तु हो। 
.... सफ़ारी के दौरान अपने गाइड की बात को महत्व देना और ध्यानपूर्वक निर्देशों का पालन करना। उस जंगल से संबंधित नियमों का पालन करें। 
.... ऊँची या तेज आवाज़ में बात न करें, तेज आवाज में वन्य जीव परेशान हो जाते हैं ठीक उसी तरह जैसे आप शांति से अपने घर में हो और आपके कान में कोई भोंपू बजाए। 
... किसी भी वंयजीव को देखते ही अचानक से चीखने चिल्लाने जैसी किसी भी हरकत के स्थान पर थोड़ा धैर्य रखें और शांति से उस जीव को देखें। हड़बड़ाहट में जीव कई बार डर के भाग जाता है या फिर उग्र हो जाता है। 
.... सफ़ारी यात्रा के दौरान अपनी गाड़ी से बाहर न निकले जब तक कि गाइड का निर्देश न मिले। 
.... वन्य जीवों को अपना खाना न खिलाएं और न ही जंगल में यहाँ वहाँ बिखेरें। जिम्मेदार पर्यटक बनें। 
.... किसी भी जीव को पास से देखने के लिए उसके पास न जाएं और न ही उन्हें छुयें। दूरबीन या कैमरे की सहायता से देखें वो भी फ्लैश लाइट का प्रयोग न करते हुए क्योंकि लाइट से उनकी आँखों में चुभन हो सकती है और वो परेशान हो सकते हैं। 
    
 ये सभी के लिए है कि जंगल सफ़ारी में केवल बाघ देखकर ही सफल होना नहीं होता अपितु यहाँ के वातावरण को आभास करके भी यात्रा सिद्ध माननी चाहिए। बाघ दिखे तो सोने पे सुहागा समझ लीजिये और न मिले तो जंगल की गहराई, पक्षियों की अनूठी आवाज़ें, पानी के स्त्रोत, तरह तरह के पादप और वृक्षों को देखकर प्रकृति माँ का सुखद अनुभव (good vibes) लें। वैसे मेरे विचार से यहाँ पर्यटक से अधिक जिज्ञासु अधिक आनंद ले सकते हैं। 
   जंगल के अंदर आप ये न सोचें कि आपको बहुत से जानवर दिखाई दे जायेंगे। जिम कॉर्बेट एक वृहद जंगल है यहाँ अगर अभी आपको अपने छोर पर किसी जानवर की झलक दिखाई दी तो आवश्यक नहीं कि आपके साथी को भी दिखाई दे वो पलभर में जंगल के दूसरे छोर पर चला जाता है। जैसे कि मैंने 8-10 फीट की दूरी पर एक सुनहरा चीतल देखा जो शांति से घास खा रहा था लेकिन मैंने जैसे ही उत्सुकतावश बच्चों को दिखाया वैसे ही वो वहाँ से भाग गया। 
  
   सबसे पहले वैसे हमें पशु नहीं पक्षी दिखाई दिया। यहाँ एक जगह बड़ा सा गिद्ध दिखाई दिया। फिर थोड़ा और आगे बढ़ने पक्षियों की आवाज़ से ही गाइड ने सफ़ारी को विराम लगा दिया। ऊँचे ऊँचे पेड़ को देखने पर धनेश पक्षी जिसे इंडियन हॉर्नबिल कहा जाता है दिखाई दिये। वो बहुत समय तक वहाँ बैठे रहे फिर एक साथ उड़ गए। यह विलुप्त हो रहे पक्षियों की श्रेणि में आता है लेकिन इस जगह पर हमें बहुत अच्छे से दिखाई दिया। इसे जंगल का जन्मदाता भी कहा जाता है इसीलिए इस कॉर्बेट जंगल में इसकी उपस्थिति स्वाभाविक थी। इसकी लंबी मुड़ी हुई चोंच के ऊपर एक और छोटी सी चोंच जैसा सींग होता है इसलिए इसे हॉर्नबिल कहा जाता है। धनेश पक्षी ऊँचे पेड़ पर और हमेशा जोड़े में या दल के साथ ही दिखाई देता है। एक और खास बात हमारी गाइड ने बताई... 

धनेश/हॉर्नबिल: प्रेम की अद्भुत मिसाल:



    नर और मादा धनेश पक्षी आपसी प्रेम और जीवन के संघर्ष को व्यक्त करते हैं। ये हमेशा जोड़े में दिखाई देता है और जब मादा धनेश का अंडे देने का समय आता है तो पेड़ पर बने खोडर (तनों पर बने छेद) को अपनी चोंच से गहरा करती है और इसी खोडर में चार महीने तक अपने को बंद रखती है। इस खोडर को वह अपने विसरा और अन्य चीजों से बंद कर देती है, केवल एक छोटा छेद खुला होता है और इस काम में नर धनेश उसकी सहायता करता है। नर धनेश अपनी मादा धनेश के लिए अपनी गर्दन में खाना लाता है और इस छेद से ही मादा धनेश की चोंच में खाना डालता है। 
   मादा धनेश अंडों के साथ ही अंदर रहती है और इस प्रक्रिया में उसके पंख भी निकल जाते हैं। जब अण्डों से नन्हें पक्षी उड़ने के लिए बाहर नहीं निकलते हैं तब तक सभी के पेट भरने की जिम्मेदारी नर धनेश की होती है। फिर जब बच्चे बाहर निकलने के लिए तैयार हो जाते हैं तो मादा धनेश अपनी नुकीली चोंच से बंद खोडर तोड़ती है और बाहर निकलती है। इस समय तक उसके अपने नये और खूबसूरत पंख फिर से बन जाते हैं लेकिन इन 3-4 महीने के दौरान अगर बाहर नर धनेश मर जाता है तो मादा धनेश भी खोडर के अंदर ही मर जाती है क्योंकि उसके पंख नहीं है और उसको खाना देने वाला भी नहीं है। 

 है न अद्भुत प्रेम। ऐसा लगता है कि कोई पक्षी नहीं एक आम पति पत्नी की कहानी हो। तभी तो प्रकृति माँ है जिससे सीखने के लिए बहुत कुछ है। 



   फाटो ज़ोन में कोई नदी तो नहीं है लेकिन पानी के छोटे तालाब हैं जहाँ वन्य जीव अपनी पानी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आते हैं। ऐसा ही एक पिंक वाटर होल भी इस यात्रा में देखा।उसका गुलाबी रंग शायद पानी के अंदर पनपी एल्गी के कारण होगा। वहीं हमने बहुत से हिरणों को उसके पास देखा। हम जंगल के अंदर लगभग ढाई तीन घंटे थे। जिसमें से 30-40 मिनट जंगल के अंदर बने एक कैंटीन में चाय नाश्ते में बीते। इस समय को कम करके जंगल घूमा जा सकता है जो बच्चों के साथ कठिन होता था फिर भी संतुष्टि थी कि हमें दूर से ही सही लेकिन सोने पे सुहागा मिला। 

   हमारी जीप ढाई घंटे के अंदर ही फाटो ज़ोन के मुख्य गेट से बाहर आ चुकी थी और अब हम अपने रिज़ॉर्ट निकल गए। बाहर बस्ती तक आते आते भी बहुत पास में हिरण और जंगली मुर्गे दिखाई दे गए। जो असली में रोमांचक था। लग रहा था कि पूरा रामनगर ही कॉर्बेट बना हुआ है कहीं भी कोई जानवर दिखाई दे जायेगा। बहुत सुंदर और शानदार दृश्य फाटो ज़ोन में दिखाई दिये। अगली बार प्रयास करेंगे कि जंगल के वन विभाग के गेस्ट हाउस में ठहरें और हाथी कि सफ़ारी ली जाए क्योंकि मुझे लगता है इससे और अधिक व्यापक दृश्य दिखाई देंगे, जंगल के अंदर और समय मिलेगा और अलग अनुभव भी। कॉर्बेट जंगल घूमने का उचित समय ऑक्टूबर से फरवरी या मध्य मार्च तक है इसी मौसम में आप यहाँ के वातावरण का अच्छा अनुभव लेंगे। 

  अब सड़क पर हलचल बढ़ चुकी थी, खासकर कि रामनगर बाज़ार में। फिर भी एक घंटे के अंदर हम अपने कमरे में थे। इस दौरान जय ने तो कितनी बार झपकियाँ ले ली थी और अब उसे ही नहीं, हम सभी को भूख लग चुकी थी। बढ़िया नाश्ते के बच्चों के पार्क में बने सुंदर घास के मैदान (लैंडस्केप) में आराम किया जहाँ बच्चे भी झूला झूल रहे थे और मेरा मन भी। सुस्ताने के बाद थोड़ा घूमना उचित था ताकि जितना भी समय बचा है उसमें जिम कॉर्बेट के और भी दृश्य देखें जाएं। यहाँ कॉर्बेट फॉल भी है लेकिन उसका बंद होने का समय निकट था इसलिए जिम कॉर्बेट के संग्रहालय जाना उचित समझा आखिर जिनके नाम पर इतना विशाल जंगल है, उनके बारे में थोड़ा निकट से जाने खासकर कि हमारे बच्चे। 



जिम कॉर्बेट संग्रहालय:

  जिम कॉर्बेट जिनका नाम जेम्स एडवर्ड जिम कॉर्बेट था जो एक आयरिश मूल के एंग्लो इंडियन थे। इनका जन्म 25 जुलाई 1875 में नैनीताल में हुआ। ये एक प्रमुख शिकारी थे इसलिए गढ़वाल कुमाऊँ में कहीं भी नरभक्षी बाघ की खबर होती तो कॉर्बेट जी को बुलाया जाता था। इन्होंने बाघों का शिकार तो किया इसलिए ये शिकारी तो थे लेकिन संग्रहालय में आकर पता चलता है कि वे प्रसिद्ध लेखक, फोटोग्राफर, चित्रकार, बढ़ई और चमड़े के व्यापारी भी थे। कॉर्बेट संग्रहालय जिम कॉर्बेट जी का शीतकालीन घर था। यह घर वैसा ही है जैसा पहाड़ में बने घर होते हैं, चूने और पत्थर से बने कच्चे मकान और लकड़ी के छोटे दरवाजे जैसा। यह बंगला 1922 में बनाया गया था जहाँ वे अपनी बहन मैगी के साथ रहते थे। यह कालाढूंगी में स्थित है जिसे छोटी हलद्वानी के नाम से भी जाना जाता है। कालाढूंगी को छोटी हलद्वानी का नाम भी जिम कॉर्बेट ने ही दिया। यहाँ जिम कॉर्बेट की 40 एकड़ भूमि थी जिसमें उन्होंने 10-15 परिवार खेती के लिए रखे थे। यहाँ पूरा गांव उन्होंने ही बसाया था। इन्होंने 19 बाघ और 14 तेंदुओं का शिकार किया था। लेकिन इनके शिकार के बाद ये वन्यजीव प्रेमी और संरक्षणकर्ता बन गए। आज़ादी के समय 1947 में जिम कॉर्बेट अपनी बहन मैगी के साथ भारत छोड़कर केन्या चले गए और यह बंगला चिरन्जी लाल को बेच दिया जिसे 1965 में वन विभाग ने ले लिया। वो गांव वालों को अपना परिवार ही मानते थे इसलिए जाते समय भी अपना धन गाँव वालों को बाँट कर गए और कृषि भूमि भी। इसका विवरण भी इस संग्राहलय में मिलता है। यहाँ उनका निजी समान संरक्षित है जैसे कि चीनी मिट्टी के बने बर्तन, कपड़े, किताबें, बंदूक, पेंटिंग्स, रेखाचित्र, फर्नीचर, उनके महत्वपूर्ण शिकार की फोटो, पत्र और इन सबके बीच आप जिम कॉर्बेट के रहन सहन और उनके चरित्र का रेखाचित्र आपके सामने खींच देंगे। 

जय द्वारा जिम कॉर्बेट जी को श्रद्धांजलि खास शाहरुख खान वाले अंदाज़ में... 

  कॉर्बेट संग्रहालय आना जिम कॉर्बेट की यात्रा को सार्थक करता है साथ ही पूर्ण करता है। इसके बाद सोचा था कि कॉर्बेट फॉल देखा जाए जो कि 10 मिनट की दूरी में था लेकिन अब देर हो चुकी थी इसलिए इस बार मौका नहीं मिला लेकिन इसका अनुभब मैं बहुत पहले अपने दोस्तों के साथ ले चुकी हूँ। यह एक प्राकृतिक झरना है जो जंगल के बीच में स्थित है और पर्यटकों के लिए एक आकर्षण केंद्र। बच्चे थोड़ा तो मायूस हुए लेकिन थोड़ी देर में स्थिति संभल गई। वैसे बच्चों को एक बहुत बड़े झरने का अनुभव ऋषि गंगा, बद्रीनाथ जी की यात्रा के समय मिल चुका था।

  और दूसरा उनका ध्यान तब भी भटक गया जब पुलिस ने हाथ देकर हमारी गाड़ी सड़क के किनारे लगा दी और सीट बेल्ट न लगाने का चलान हाथ में थमा दिया। इसलिए चाहे आप भीड़ शहर में हो या हिल स्टेशन या कहीं और यातायात के नियमों का पालन सभी जगह करें। 

  पूरा दिन कब बीत गया, पता ही नहीं चला, शाम को स्पा बहनों की सेवाएं ली और इस बार तीन दिन के बाद इस रात को आराम से नींद आई। अगली सुबह वापस देहरादून जाना तो था लेकिन हल्द्वानी होकर लेकिन दिमाग में जल्दी जाने की कोई हलचल नहीं थी। 


  अगली सुबह (12 मार्च 2024) रिज़ॉर्ट से निकलते हुए अपने मित्र श्री रोहित बेलवाल जी का धन्यवाद दिया जिन्होंने जिम कॉर्बेट की यात्रा को सफल बनाया और साथ ही सभी होस्पिटैलिटि के साथियों का भी। जिम कॉर्बेट से देहरादून जाने के लिए हल्द्वानी होकर जाना कान को सीधे के बजाय घुमा कर पकड़ने के समान था लेकिन जब आपके अपने वहाँ आपकी प्रतिक्षा में हों तो सारे काम सीधे ही होते हैं। तीन दिन के बाद पहाड़ी दाल भात खाकर अब छपछपी (तृप्ति) लगी। सुधा चाची ने हमारे लिए स्वादिष्ट खाना बनाया और बड़े प्रेम से परोसा। कुछ भी कहो जो आनंद घर के बने साधारण खाने का है वो कहीं और नहीं मिलता क्योंकि वो मन को संतुष्टि देता है।

   हल्द्वानी से तीन बजे के आस पास देहरादून के लिए वापसी हुई। रास्ते में पड़ने वाले काशीपुर जसपुर के बड़े बड़े लहलहाते हुए खेतों से गुजरते हुए मन खुश हो गया और नगीना धामपुर के तुलाराम के रागुल्लों को खाकर जीभ भी। हालांकि अब हाईवे बनने के कारण या अन्य निजी कारण से प्रसिद्ध तुलाराम की दुकान दो तीन जगह दिखाई देती हैं जो अब दुकान नहीं बड़े बड़े फूड जॉइंट्स की तरह हैं। और अब यहाँ से आगे बढ़ते हुए रात के 9 बजे के आसपास हम देहरादून अपने घर पहुँच गए।

 



   कुमाऊँ की ये यात्रा हमारे लिए सुखद रही। गढ़वाल के विस्तृत क्षेत्र में हम बहुत तो नहीं लेकिन हाँ, कुमाऊँ की अपेक्षा अधिक सफर कर चुके हैं। अभी बहुत छोटा सा कुमाऊँ हमने देखा। ये वे स्थान थे जो उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल हैं।
 
   उत्तराखंड अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहाँ की बोली भाषा से लेकर खान पान, कला, लोक कथाएं और परम्पराएँ आज भी उतराखंडियों की पहचान बताती हैं। इसी उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल की कुमाऊँनी संस्कृति आज भी घर घर में जीवंत है जो हर बार-त्यौहार में उनके पिछौड़ा, छोलिया या एपन कला के रूप में दिखाई देता है जो इनकी विशिष्ट क्षेत्रीय पहचान बताता है। इसी कुमाऊँ को अपनी अगली यात्राओं में देखूंगी।

एक -Naari


Comments

  1. I was waiting for this...your narration always create interest till end and this travelogue is also one of them, full of knowledge and brings smile one my face.

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  2. Jai is a star of your journey... Shahrukh khan pose ..

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  3. Bahut aachi jankari n Mano artical padte hue hum wahi ghum rage ho

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  5. अतिउत्तम, सुंदर अभिव्यक्ति..अच्छी जानकारी..आपका धन्यवाद🙏👌👍🏼💐

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