जंगल: बचा लो...मैं जल रहा हूं!

Image
जंगल: बचा लो...मैं जल रहा हूं!    इन दिनों हर कोई गर्मी से बेहाल है क्या लोग और क्या जानवर। यहां तक कि पक्षियों के लिए भी ये दिन कठिन हो रहे हैं। मैदानी क्षेत्र के लोगों को तो गर्मी और उमस के साथ लड़ाई लड़ने की आदत हो गई है लेकिन पहाड़ी क्षेत्र के जीव का क्या उन्हें गर्मी की आदत नहीं है क्योंकि गर्मियों में सूरज चाहे जितना भी तपा ले लेकिन शाम होते होते पहाड़ तो ठंडे हो ही जाते हैं। लेकिन तब क्या हाल हो जब पहाड़ ही जल रहा हो?? उस पहाड़ के जंगल जल रहे हो, वहां के औषधीय वनस्पति से लेकर जानवर तक जल रहे हों। पूरा का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र संकट में हो!! उस पहाड़ी क्षेत्र का क्या जहां वन ही जीवन है और जब उस वन में ही आग लगी हो तो जीवन कहां बचा रह जायेगा!!      पिछले कुछ दिनों से बस ऐसी ही खबरें सुनकर डर लग रहा है क्योंकि हमारा जंगल जल रहा है। पिछले साल इसी माह के केवल पांच दिनों में ही जंगल की आग की 361 घटनाएं हो चुकी थी और इसमें लगभग 570 हेक्टेयर जंगल की भूमि का नुकसान हो चुका था। और इस साल 2022 में भी 20 अप्रैल तक 799 आग की घटनाएं सामने आ चुकी हैं जिसमें 1133 हेक्टेयर वन प्रभ

संरक्षण: प्रकृति और मानव का (World Nature Conservation Day)

28 July: world nature conservation day
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस


चलो एक ऐसा दिन तो है जहाँ हम प्रकृति के संरक्षण के बारे में भी सोचते हैं। नहीं तो हमें प्रकृति के उपयोग के स्थान पर केवल दोहन करने से ही फुर्सत नहीं मिल पा रही थी। 
  कितने स्वार्थी हो गए हैं न हम!! केवल अपना अपना सोचते सोचते कितने जंगल काट दिये, कितने पशु पक्षी का अस्तित्व खतरे में डाल दिया, कितनी नदियों को खनन से खोखला कर दिया और धरती के गर्भ में प्लास्टिक नाम का कचरा भर दिया। यही नहीं यहाँ तक कि अनियंत्रित चहलकदमी से ग्लेशियर पिघला दिये और तरह तरह के प्रदूषण से अपनी सुरक्षा छतरी यानी कि ओजोन परत को भी छलनी कर दिया। तभी तो मौसम में कभी अति गर्मी तो कभी गर्मियों में सर्दी, सर्दियों में गरम, बरसात में सूखा और कभी तीनों मौसम एक साथ। इससे समझ जाएं कि पृथ्वी का मिजाज़ बदल रहा है। 
   अब इतना सब कुछ करने के बाद भी अगर हम अभी भी प्रकृति के संरक्षण के बारे में नहीं सोचेंगे तो तय मानिये कि आने वाला समय प्रकृति के लिए नहीं मानव जाति के लिए कठिन होगा जिसके गम्भीर परिणाम आगे दिखाई देंगे। । क्योंकि प्रकृति केवल पेड़ पौधे पशु पक्षी नदी पर्वत, वायुमंडल ही नहीं अपितु मानव समाज का भी आधार है। इसलिए यह मानिये कि आज का दिन यानी 28 जुलाई को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस / world nature conservation day प्रकृति और मानव के संबंधों पर आधारित है। इस दिन हम प्रकृति के महत्व और इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझे और उसके संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास करें। 

  वैसे प्रकृति को बचाने के लिए जितनी सरकार जिम्मेदार है उतने ही एक आम नागरिक भी। जन साधारण का एक छोटा सा सहयोग भी प्रकृति के संरक्षण में बड़ा महत्वपूर्ण कार्य करेगा। इसके लिए बस थोड़ी सी सोच और थोड़ी सी आदत बदलनी होगी, बस। जैसे कि... 

प्रकृति संरक्षण के आसान उपाय जिसे कोई भी कर सकता है... 
Save Earth

1- प्लास्टिक का प्रयोग जितना कम हो उतना ही अच्छा। फल सब्जी या अन्य सामान के लिए कपड़े या कागज के बने थैले का प्रयोग करें। 
2- टाफ़ी, कैंडी, सेशे या कोई भी छोटी चीजों के कचरे को एक जगह इकट्ठा करें और तब कुड़ेदान में डालें। 
3- रसोई में प्रयुक्त राशन या दूध के पैकेट को पूरा न काटे। इसके कोने पर छोटा कट लगाए या कटे हुए टुकड़े को उसी पैकेट के अंदर डाले। 
4- पेड़ पौधों से प्रेम करें। बालकनी, छत या आंगन में थोड़ी साग सब्जी लगाए। जिससे कि बाहर की रासायनिक सब्जियों से धरती और हमें भी छुटकारा मिले। 
4- कूड़ा न जलाये  ये मनुष्य और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक है। 
5- अनावश्यक जल का प्रयोग न करें। जल बचाने एवं संचय का सोचे। 
6- जितना हो सके पैदल मार्ग का चयन करें। आसपास के स्थान पर जाने के लिए साइकिल का प्रयोग करें। ये स्वास्थ्य और प्रकृति दोनों के लिए सही है। 
7- बच्चों को प्रकृति से जोड़े। उन्हें इसकी महत्वपूर्णता से अवगत कराएं। 
8- यात्रा के दौरान अपना कचरा साथ लाएं या उचित निस्तारण करें। 
9- जंगल में आग या कोई भी चिंगारी न करें। जिम्मेदारी से काम लें। 
10- सोलर एनर्जी (सौर ऊर्जा) पर अधिक बल दें। 
11- सबसे महत्वपूर्ण काम, संवेदनशील बने। अपने पर्यावरण के प्रति भी और मानव के प्रति भी क्योंकिप्रकृति में मानव और मानव से जुड़ा समाज भी है इसलिए मनुष्य को संवेदनशील बनना होगा, मानवीयता को बचाना होगा। बिना संवेदना के मनुष्य 'मनुष्य' नहीं कहलाता वह जानवर से भी परे है। 

मणिपुर घटना: असंवेदनशीलता का चरम 
  कई बार डर लगता है आगे क्या होगा?? प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य, सामाजिक और सांस्कृतिक बसावटों के साथ शांत हिमालयी क्षेत्र (मणिपुर)में इस तरह से उपद्रव और महिलाओं के साथ इस तरह का कुकृत्य!! वो भी जहाँ पर महिलाएं घर से लेकर व्यापार तक संभालती हैं! 
  मणिपुर एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य है लेकिन यहाँ
 तो जैसे संवेदनशीलता का हरण हो चुका था। मानवता और बेशर्मी की सारी हदें तोड़कर आखिर भीड़ को क्या मिला?? चंद घंटों का उपद्रव उन महिलाओं के लिए ऐसा दर्द बन गया है जो उनके क्या किसी भी महिला के यहाँ तक कि सभ्य समाज के मस्तिष्क में हमेशा कचोटता रहेगा। 
   
   आखिर हम कहाँ से कहाँ जा रहे हैं?? इस पर भी विचार करना आवश्यक हो गया है। प्राकृतिक संसाधन भी सीमित हैं और मानव सभ्यता का भी एक दायरा है। इनका प्रयोग समझदारी से नहीं किया गया तो एक समय के बाद हम शून्य हो जायेंगे और इसके लिए आवश्यक है,,संवेदनशीलता। अगर हम संवेदनशील होंगे तो प्रकृति को माँ की भाँति सेवा करेंगे और फलस्वरूप प्रकृति का लाभ पाएंगे। इसके उलट अगर हम असंवेदनशील हो राक्षस की भाँति आचरण और प्रकृति का भक्षण करेंगे तो अंत में हम स्वयं प्रकृति के कोप का शिकार होंगे। इसलिए मानव संरक्षण के लिए प्रकृति संरक्षण (जल, जंगल, जमीन, मानवता) आवश्यक है। 
   इस विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस यानी 28 जुलाई को प्रकृति संरक्षण के साथ मानव सभ्यता संरक्षण के प्रति भी सजग रहे और अपने घर, मोहल्ला, समुदाय और राष्ट्र को प्राकृतिक और सांस्कृतिक सभ्यता से समृद्ध बनाए। 
  
एक -Naari 


“Earth provides enough to satisfy every man's needs, but not every man's greed.” ― Mahatma Gandhi

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

उत्तराखंडी अनाज.....झंगोरा (Jhangora: Indian Barnyard Millet)

उत्तराखंड का मंडुआ/ कोदा/ क्वादु/ चुन

मेरे ब्रदर की दुल्हन (गढ़वाली विवाह के रीति रिवाज)