सावन में कल्याणकारी: शिव नाम शिव का श्रवण और मनन तो हमेशा ही करना चाहिए लेकिन श्रावण मास में शिव नाम लेना आवश्यक हो जाता है क्योंकि बिना शिव नाम के यह मास कठिन होता है। वैसे देखा जाए तो सावन केवल एक बरसात का मौसम ही है लेकिन शिव नाम से जुड़कर ही यह मास केवल एक मौसम नहीं अपितु पवित्र माह बन जाता है जिससे कि इसकी महत्ता बढ़ जाती है।
सावन मास में शिव नाम का सुमिरन मात्र ही शिव के सम्मुख होने का आभास देगा। यह समय शिव और प्रकृति के मिलन का है और प्रकृति तो स्वयं देवी है साथ ही चंहु ओर का वातावरण भी हमें प्रकृति की ओर ले जाता है इसलिए यह मिलन काल एक अद्भुत समय होता है शिव को प्राप्त करने का एवं स्वयं के कल्याण का।
यह माना जाता है कि सावन में शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव नाम लिया जाता है किंतु मानव हित के लिए भी शिव नाम आवश्यक है, चित्त को शांत, एकाग्र, आगे बढ़ने और लक्ष्य प्राप्ति के लिए भी शिव नाम आवश्यक है जैसे कि ...
इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए :
सावन ऋतु बड़ी ही आनंददायी होती है किंतु साथ ही यह मौसम मन को चंचल भी करता है। इंद्रियों की चंचलता में मनुष्य अपने कार्य में भी पीछे रह जाता है या तो कई बार अपने कर्म से ही विमुख हो जाता है। ऐसे में मनुष्य को शिव का ध्यान सकारात्मक परिणाम देता है।
इंद्रियाँ मनुष्य के शरीर एवं मन का हिस्सा होती हैं जिसका सीधा अर्थ ही आत्म नियंत्रण है। हमारे शरीर मे आत्म नियंत्रण के लिए 14 इंद्रियों (ज्ञानइंद्रियाँ: आँख, नाक, कान, जीभ तथा त्वचा। कर्मइंद्रियाँ: हाथ, पैर, मुख, गुदा और लिंग। अंतःकरण इंद्रियाँ : मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार।) हैं इन पर ध्यान देना आवश्यक है। यही हमारी भौतिक आवश्यकताओं और मानसिक भावनाओ को नियंत्रित करती हैं। इन पर नियंत्रण आवश्यक है और इसके लिए भौतिकता से परे परम शिव की शरण सबसे उचित।
भगवान शिव तो आदियोगी हैं। उनका ध्यान लगाने से जीवन के कठोर समय भी सरलता और सफलता से कट जाता है। इनके नियंत्रण के लिए इस मौसम में शिव का तप, ध्यान, योग, व्रत उपवास, मनन, चिंतन या श्रवण करना एक ऐसा उपाय है जिसका लाभ हमें कार्य पद्धति शैली से लेकर आंतरिक जीवन में होता है और इस प्रभाव से योजनाओं एवं लक्षय की प्राप्ति होगी।
ऊर्जा को केंद्रित करने के लिए: सावन सभी के लिए एक ऊर्जाकाल है।
इस समय प्रकृति अपने चरम में होती है जिससे समस्त जीव ऊर्जावान होता है। इस समय अनंत ऊर्जा का केंद्रीकरण आवश्यक होता है क्योंकि अगर अपनी इन्हीं ऊर्जाओं को एक सही दिशा मिले तो वो सकारात्मक प्रभाव डालती है और सभी काम सफल होते हैं। वहीं अनियंत्रित ऊर्जा का नकारात्मक प्रभाव जीवन में दिखाई देते हैं। इसीलिए सावन में अपनी ऊर्जा का केंद्रीकरण अध्यात्म के रूप में किया जाता है। सावन में भगवान् शिव का सुमिरन का अर्थ है अपनी ऊर्जा को अध्यात्मिक या सांस्कृतिक ऊर्जा के रूप में उपयोग करना। जिसका सकारात्मक परिणाम मनुष्य की कार्य करने की क्षमता से लेकर उसकी सोच पर पड़ता है। हमें ध्यान रखना होगा कि भले ही यह धीरे धीरे हो लेकिन इसका प्रभाव अवश्य पड़ेगा।
मानव जाति के कल्याण के लिए: इंद्रियों के नियंत्रण से और ऊर्जा के केंद्रीकरण से मानव का कल्याण निश्चित है। इसके साथ कार्य सफल होते हैं, मन शांत होता है और साथ ही आगे बढ़ने की प्रेरणा भी मिलती है। यहाँ तक कि यह केवल स्वयं के कल्याण के लिए ही नहीं है अपितु सावन में शिव का सुमिरन जगत कल्याण करता है।
भजन कीर्तन, ग्रंथ वेद पुराण का वचन, पठन पाठन, श्रवण मनन से बुद्धि सत्कर्म की ओर जाती है, अहिंसा का मार्ग मिलता है, अपनी संस्कृति का ज्ञात होता है, दूसरों की सेवा भाव का संदेश मिलता है, अपने धर्म के नियम जान पड़ते हैं, समाजिक सिद्धांत पता चलते हैं और स्वयं के साथ साथ समाज का कल्याण होता है। इसी लिए कहा जाता है कि सावन में कल्याणकारी शिव का पाठ, शिव महापुराण फलदायी होता है ताकि लोग अपना ध्यान शिव पर लगाकर किसी भी अनुचित कार्य करने से बचे तभी तो लोग सावन माह में खान पान, वचन और कर्म में भी शिव का सुमिरन करते हैं जिससे कि किसी का अनर्थ न हो और समाज का कल्याण हो।
शिव परमात्मा हैं, परमेश्वर् हैं, जगत के परमपिता हैं और सावन मास अपने आराध्य शिव के समीप होने का एक काल। इस काल में शिव नाम ही मन को सुख देने वाला एवं जगत कल्याणकारी है।
इसलिए शिव का सुमिरन करते रहिए...
"ॐ नमः शिवाय" !
एक -Naari
om namah shivay
ReplyDeleteॐ नमः शिवाय🙏🙏
ReplyDeleteOm namah shivay🙏
ReplyDeleteGreat thought...Om Namah shivaya
ReplyDeleteHar har Mahadev....Nice Reena
ReplyDelete-Santoshi