सावन नये रूप में!! सावन में हम काले बादलों से घिरे आसमान को देखते हैं। जल से भरी बूंदों को सूखी मिट्टी पर पड़ते ही ढेर होते हुए देखते हैं, फिर इन्हीं बूंदों की तेज धार को नदियों में मिलते देखते हैं। अगर पहाड़ी पर नज़र घुमाएं तो पहाडों की तली पर फैले सफेद कोहरे को देखते हैं, नहाते हुए पेड़ पौधों की शाखों को झूमते हुए देखते हैं। साथ ही देखते हैं धरती के अंदर छुपे जीवों को भी, जो अपने अस्तित्व को जताने के लिए धरती से बाहर निकलते हैं।
ऐसा लगता है जैसे इस मौसम में प्रकृति का कण कण, धरती आसमान, नदी पहाड़, पेड़ पौधें, पशु पक्षी सब के सब नहा धोकर शुद्ध हो गए हैं और अब बस एक नये रूप में आगे बढ़ने की तैयारी में है। प्रकृति के ऐसे सौंदर्य को देखकर लगता है कि पूरे वर्ष का यौवन काल सावन माह ही होता है। प्रकृति तो अपने चरम में होती ही है लेकिन साथ ही मानव को भी तैयार करती है। जिस प्रकार से प्रकृति अपने नये रूप में आती है ठीक इसी प्रकार से मनुष्य के लिए भी सावन माह अपने को एक नये रूप में तैयार करने का समय होता है। यह समय होता है मानसिक शुद्धि, शारीरिक शुद्धि और आत्म शुद्धि का।
मानसिक शुद्धि: आज के समय स्थिति के अनुसार चिंता, तनाव, अनिद्रा जैसी समस्या समानयता सभी के साथ है। इस स्थिति में साफ और शुद्ध वातावरण मन को प्रसन्न रखता है, सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और सभी के प्रति प्रेम और दया की भावना विकसित करता है।
मानव प्रकृति के जितने संपर्क में रहेगा उतना ही कल्याण होगा और सावन माह की हरियाली मानव को अपने से जुड़ने का संदेश देती है।
इस समय सावन माह के समय चहुँ ओर फैली हरियाली मन को सुख की अनुभूति कराती है। इसलिए नकारात्मक विचारों को छोड़कर इस समय प्रकृति से जुड़ना मानसिक शुद्धिकरण का सबसे उत्तम उपाय है। पेड़ पौधे लगाना या देखभाल करना, शुभचिंतकों से मिलना, अपने लोक पर्व मनाना। इस तरह के छोटे छोटे कदम भी सावन काल में मानसिक शुद्धि का काम करते हैं।
मन की हरियाली देता, हरेला पर्व
अब जैसे उत्तराखण्ड के हरेला पर्व को ही ले लो। यह लोक पर्व मुख्य रूप से कुमाऊँ में मनाया जाता है। यह पर्व भी प्रकृति को ही समर्पित है क्योंकि हरेला शब्द पर्यावरण की ओर ही इंगित करता है और मन को भी हरा करता है।
हरेला पर्व श्रावण मास के प्रथम दिन (कर्क संक्रांति) को हरियाली के रूप में मनाया जाता है। पर्व से 10 दिन पहले हरेला यानी कि 5 या 7 तरह का अनाज (धान, मक्की, उड़द, गहत, तिल, भट्ट, गेँहू, चना, सरसों) मन्दिर के एक कोने में बोया जाता है ठीक उसी तरह से जैसे नवरात्र में हरियाली जमाई जाती है। इस हरियाली की देखभाल की जाती है और फिर हरेला के दिन इन अंकुरित हुए हरे पीले हरियाली को अपने देव को अर्पित किया जाता है और साथ ही इस हरियाली को बड़े बुजुर्गों द्वारा आशीर्वाद के रूप में छोटों के सिर पर रखा जाता है। बच्चों को दीर्घायु, बलशाली और बुद्धिमान होने की कामना की जाती है। खिली हुई हरियाली घर परिवार, खेत खलिहान की सुख शांति समृद्धि को इंगित करता है।
आज के समय में जन जागरूक लोग इसे केवल घर तक ही सीमित न रखकर एक व्यापक रूप दे रहे है। इस दिन लोग सांस्कृतिक आयोजन तो कर ही रहे हैं साथ ही हरेला पर्व को एक नए रूप में भी जन जन तक पंहुचा रहे है। हरेला पर्व को पूरे माह तक मनाते हुए जगह जगह पेड़ पौधों का रोपड़ किया जा रहा है। इस क्रम में जुड़ने का अर्थ है प्रकृति के साथ मानव के संबंधों का और भी मजबूत होना जिसका अप्रत्यक्ष लाभ हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है।
शरीरिक शुद्धि: इस समय अपने शरीर की देखभाल करना आवश्यक होता है।
सावन माह संक्रमण काल भी है क्योंकि इस समय जीव परजीवी अपने प्रजनन काल में होते हैं, तरह तरह के जीवाणु विषाणु के संक्रमण का खतरा बना रहता है इसलिए यह माह शारीरिक शुद्धिकरण का समय है तभी तो कहा जाता है कि सावन में माँस, मदिरा, हरी सब्जियां और तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए।
सावन में धूप की कमी से हर ओर नमी अधिक होती है जिससे त्वचा, बाल से लेकर पाचन संबंधी परेशानियाँ हो जाती है। इसीलिए शरीर की बाहरी शुद्धि के साथ साथ आंतरिक शुद्धि पर भी ध्यान करना चाहिए। साथ ही सावन में शारीरिक शुद्धिकरण का सबसे अच्छा विकल्प तो व्रत, उपवास और सुपाच्य भोजन हैं जिनसे शरीर के कई विषैले तत्व बाहर निकलते हैं।
आत्म शुद्धि: सावन माह तप काल भी है। प्रभु की भक्ति तो हर स्थिति और काल में करनी चाहिए लेकिन सावन माह हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह समय भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।
चूंकि यह मास भगवान् शिव को भी प्रिय होता है सो शिव को प्राप्त करने का सबसे उपयुक्त समय श्रावण मास ही है। यह समय तप का है, जप का है, भक्ति का है, दान का है और क्षमा का है। छल, कपट, झूठ, द्वेष, इर्ष्या, चिंता और नकारात्मकता का त्याग ही आत्मा की शुद्धि है जो मन मस्तिष्क और आत्मा का उचित समन्वय रखती है। इसके लिए भगवान शिव का ध्यान सर्वोत्तम उपाय है और श्रावण मास सबसे उत्तम समय।
सावन केवल एक मौसम ही नहीं है जो केवल आसपास की हरियाली और मेघों को दर्शाता है यह एक त्यौहार है जो खुशी के साथ असल में प्रकृति के साथ संतुलन बनाने की सीख देता है और मानव को नया रूप देता है। यह हिंदू मास का एक काल है जो मानव की शुद्धिकरण के लिए उपयुक्त समय है और जो नियम के साथ भक्ति, निस्वार्थ प्रेम, भेदभाव से परे दया और करुणा के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
एक -Naari
Bahut sunder sawan ka vivran
ReplyDeleteSo thoughtful message... really great piece to read
ReplyDeleteBahut sunder jaankari
ReplyDeleteBahut sunder
ReplyDeleteअतिसुन्दर वर्णन......... 🙏🏻
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