International Women's Day

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस International Women's Day  सुन्दर नहीं सशक्त नारी  "चूड़ी, बिंदी, लाली, हार-श्रृंगार यही तो रूप है एक नारी का। इस श्रृंगार के साथ ही जिसकी सूरत चमकती हो और जो  गोरी उजली भी हो वही तो एक सुन्दर नारी है।"  कुछ ऐसा ही एक नारी के विषय में सोचा और समझा जाता है। समाज ने हमेशा से उसके रूप और रंग से उसे जाना है और उसी के अनुसार ही उसकी सुंदरता के मानक भी तय कर दिये हैं। जबकि आप कैसे दिखाई देते हैं  से आवश्यक है कि आप कैसे है!! ये अवश्य है कि श्रृंगार तो नारी के लिए ही बने हैं जो उसे सुन्दर दिखाते है लेकिन असल में नारी की सुंदरता उसके बाहरी श्रृंगार से कहीं अधिक उसके मन से होती है और हर एक नारी मन से सुन्दर होती है।  वही मन जो बचपन में निर्मल और चंचल होता है, यौवन में भावुक और उसके बाद सुकोमल भावनाओं का सागर बन जाता है।  इसी नारी में सौम्यता के गुणों के साथ साथ शक्ति का समावेश हो जाए तो तब वह केवल सुन्दर नहीं, एक सशक्त नारी भी है और इस नारी की शक्ति है ज्ञान। इसलिए श्रृंगार नहीं अपितु ज्ञान की शक्ति एक महिला को विशेष बनाती है।   ज्...

महिलाओं का अवकाश: मायका

महिलाओं का अवकाश: मायका

   महिलाएं हमेशा से ही बिना रुके बिना थके घर परिवार को संभालती हैं। मौसम चाहे जैसा भी हो, दिन चाहे कोई भी हो, उनकी छुट्टी नहीं होती लेकिन हाँ, बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों में कुछ दिन का अवकाश उन्हें भी मिलता है...उनके मायके में। अब इन छुट्टियों में वें कहीं और गई कि नहीं ये तो आवश्यक नहीं लेकिन अधिकांश महिलाएं अपने मायके का एक फेरा तो अवश्य लगा आई होंगी।
 बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां खत्म हो चुकी हैं और अब विद्यालय खुल चुके हैं। साथ ही साथ महिलाओं के भी सुबह के दैनिक कार्यक्रम बंध गए हैं। वैसे तो महिलायें हमेशा ही अपने काम में बंधी ही रहती हैं, उनके लिए कभी छुट्टी तो नहीं बनती है, हाँ लेकिन बच्चों की छुट्टियों से मिले दो चार दिन मायके में गुजारने का अर्थ है, पूरी छुट्टियों का वसूल हो जाना और पूरे वर्ष भर के लिए चार्ज हो जाना।
   घर के काम, बच्चों की पढ़ाई, परिवार की देखरेख और जाने तरह तरह के तनाव के बीच मायके में बिताए दो चार दिन भी महिलाओं के लिए एक चार्जर की तरह काम करते हैं जो पूरे वर्ष भर के लिए उनको चार्ज कर देते हैं।
  सच में, मायका न महिलाओं के लिए चार्जिंग पॉइंट जैसा होता है। अपने घर में चाहे कितना भी आराम से रहे लेकिन मायके का सुख महिलाओं को सबसे बढ़कर लगता है। 
 और हो भी क्यों न क्योंकि वहाँ माँ बाबू जी का प्यार होता है, भाई बहनों का स्नेह मिलता है, भाभी बहुओं की हंसी ठिठोली होती है, घर और पड़ोस के बच्चों का शोरगुल होता है और इन सबके साथ बचपन की गलियों की रौनक भी याद आती है। 
   अब जब इतना सब कुछ जब इन दो चार दिन में ही मिल जाता है तो फिर लगता है कि ये दो चार दिन वर्ष के सबसे हल्के दिन हैं जो पूरे वर्ष की थकान को गायब कर देते हैं। कभी कभी ऐसा लगता है कि शायद अभी भी हम बचपन के किरदार में हैं, 'न चिंता न फिकर', बस मायके में सबके साथ खूब सारी गप्पें, खाना खिलाना और उनके साथ माँ बाबू जी की सेवा। इन सबमें आवश्यक है कि जब तक माँ बाबू जी की सेवा कर सकते हैं तब तक तो अवश्य ही वहाँ जाएं क्योंकि उसके बाद मायके में केवल स्मृति शेष रह जायेगी। 

    अब इस वर्ष का कोटा तो शायद अधिकांश महिलाओं का खत्म हो गया हो इसलिए अब बस अगले वर्ष के अवकाश की प्रतिक्षा में।

एक -Naari
 

  

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