थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

लीव नो ट्रेस (LEAVE NO TRACE)

लीव नो ट्रेस (LEAVE NO TRACE) 

   उत्तराखंड में बारहों मास पर्यटन के अवसर हैं किंतु तीर्थ यात्रा यानी कि चार धाम यात्रा के समय (अप्रैल - अक्टूबर) पर्यटन अपने चरम पर होता है। सप्ताहांत वाला सिद्धांत (वीकेंड थ्योरी) अब केवल मेट्रो या महानगरों का ही नहीं अपितु हर स्थान के यात्री को भाता है तभी तो जहाँ अन्य दिन केवल भीड़ होती है वहीं वीकेंड पर कुछ स्थान पर कुंभ होता है। 
   जब से यातायात की सुविधा और तकनीकी ज्ञान ने अपनी उड़ान भरी है तभी से पर्यटन को भी नए पंख मिल गए हैं। इसीलिए उत्तराखंड में यात्रा के समय पर्यटकों की भीड़ होना अब सामान्य हो गया है। हजारों लाखों लोग इस समय उत्तराखंड की यात्रा पर निकलते हैं। 
  खैर! समय चाहे जो भी हो यात्रा तो सभी करते ही हैं और करनी भी चाहिए। और जब उत्तराखंड देव स्थान और अपने नैसर्गिक एवं प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर् है तो यहाँ यात्रियों/सैलानियों का आना सामान्य है। 
  अगर आप उत्तराखंड में किसी भी तरह की यात्रा या फिर कैंप करने की सोच रहे हैं तो Leave No Trace (LNT) लीव नो ट्रेस को अपनाएं। वैसे इस थ्योरी को बाहर के देशों में एक अभ्यास की तरह किया जाता है जिसका उद्देश्य कैंपिंग के दौरान अपने जंगल, जंगली जीव, उद्यान, जमीन, पानी आदि को स्वच्छ और संरक्षित रखने के लिए किया जाता है। ऐसे ही इसका उपयोग हिमालयी क्षेत्र में आने वाले पर्यटक भी कर सकते हैं। उत्तराखंड ही क्यों घर से बाहर अगर किसी भी यात्रा पर जाना हो तो LNT पर जरूर ध्यान दे। 
   लीव नो ट्रेस के ये सिद्धांत बाहर जाने वाले हर उस व्यक्ति पर लागू होती हैं जो जंगल, बाग बगीचे या किसी भी खाली स्थान पर अपनी गतिविधियां करता है। ये सिद्धांत एक यात्री को पृथ्वी और उसके जीवों के प्रति जिम्मेदार बनाते हैं और प्रकृति के शिष्टाचार का पाठ पढ़ाते हैं। 
उसी पर आधारित है लीव नो ट्रेस के ये 7 सिद्धांत... 7 principles of Leave No Trace

1: Plan ahead and prepare (आगे की योजना बनाएं और तैयारी करें) 
किसी भी यात्रा के लिए एक उचित और निर्धारित प्लान बहुत जरूरी है। यात्रा का स्थान, मौसम, संसाधन, लक्ष्य, नियम कानून इत्यादि की उचित जानकारी लेकर ही अपनी यात्रा सुनिश्चित करना LNT की पहला सिद्धांत है। एक अच्छी प्लानिंग के साथ की गई तैयारियां यात्रा को सुखद और सफल बनाती हैं। बिना प्लान और बिना तैयारी के आगे बढ़ना जोखिम भरा होता है जिससे कि प्राकृतिक और सांस्कृतिक संसाधनों का ह्रास होता है और साथ ही जान माल का नुकसान भी। एक विश्वसनीय और अनुभवी संस्था या गाइड ही यात्रा और स्थान दोनों को सफल बना सकता है। 
2: Travel and camp on durable surface (टिकाऊ सतह पर यात्रा और शिविर) 
 कैंप के समय या अपनी पैदल यात्रा के समय अपने मार्ग का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है। मार्ग में चलते समय बहुत सी वनस्पतियों और पादपों को नुकसान पहुँचता है। इस क्षेत्र में ऐसी कई दुर्लभ और कीमती प्रजातियाँ भी होती हैं जो अकारण ही मानव कदमताल से नष्ट हो जाती हैं। इसलिए कंकण, रेत, पत्थर वाले मार्ग को ही उपयुक्त माना जाता है। उन्हीं रास्तों को अपनाना चाहिए जहाँ अन्य लोगों के द्वारा मार्ग बना होता है। किसी भी शॉर्ट कट के चक्कर में प्रकृति को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। इसी तरह से कैंप के लिए भी किसी दृढ़ स्थान का ही चुनाव करना चाहिए। 
3: Dispose of waste properly (कचरे का निस्तारण ठीक से करें) 
किसी भी स्थान पर जाकर अपना व्यर्थ सामान वहीं खुला छोड़कर आना बहुत ही गलत है। हम अपना कैंप तो कर लेते हैं लेकिन अपना कितना सामान वहाँ छोड़कर वापस आ जाते हैं जिसका नुकसान हमारे वातावरण को भरना होता है। जंगल या उद्यान में अपनी इन अपशिष्ट से वहाँ की धरती, पानी और वायु दूषित होते है। 
        pic source: google (art of manliness) 

  मानव अपशिष्ट (human waste) का उचित निपटान बहुत आवश्यक है। क्योंकि इससे तरह तरह के संक्रमण या बीमारी फैलने की आशंका बनी रहती है। इसके लिए सबसे उचित है मानवीय मल मूत्र को दफन करना। मानवीय अपशिष्ट को डिकॉम्पोज करने के लिए हमें ध्यान यह रखना है कि मल मूत्र का त्याग पानी की धाराओं या नदी से 200 फीट दूरी पर ही करें। कैंप के दौरान कैट होल (cat hole) 6-8 इंच गहराई और 4-6 इंच की गोलाई का गड्ढ़ा करके ही मानव मल का त्याग करना होता है। ऑर्गनिक मिट्टी और सूरज की गर्मी से मल जल्दी डिकॉम्पोज हो जायेगा। 
 सफर या कैंप के समय मूत्र विसर्जन के लिए चट्टान या सूखी चीड़ की पत्तियाँ या फिर कंक्रीली सतह का चुनाव करना चाहिए। या जिस जगह मूत्र विसर्जन हो वहाँ थोड़ा पानी डाल देना चाहिए इससे एक तो जंगली जानवरों से भी बचाव होगा और साथ ही पादपों के नुकसान से भी राहत मिलेगी। 
 टॉइलेट पेपर, टिशू पेपर, टैंपून या अन्य समान को भी यहाँ वहाँ नहीं फेकना चाहिए न ही इन्हें जलाना उचित है। बेहतर है इन सभी को एक जगह इकठ्ठा करके वापस लाना या उसी जगह पर निस्तारण करना जहाँ इस तरह के अपशिष्ट के निपटान का प्रबंधन हो। वैसे इनके स्थान पर प्राकृतिक संसाधन के विकल्प का चुनाव करना अधिक समझदारी है। जैसे टॉइलेट पेपर के स्थान पर (natural toilet paper) पत्थर, पत्ते या बर्फ का प्रयोग। 
  खाने पीने का सामान भी पूरी योजना के साथ ही लाना चाहिए। बचा हुआ समान, कचरा, प्लास्टिक, कागज सभी को एकत्रित करके कुड़ेदान में ही डालना चाहिए। 

4: Leave what you found (जो मिला उसे छोड़ दो) 
  यात्राओं पर जाना अपने आप में एक अनुभव है। यह आपके द्वारा खोजा जाने वाला आनंद है। इस आनंद को सभी के लिए रखना चाहिए इसलिए जो जैसा मिला उसे वैसे ही छोड़ना चाहिए। यात्रा के समय बहुत सी अनोखी और नई चीजों का अनुभव मिलता है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि उन सभी चीजों को अपने साथ लाया जाए या केवल अपने आनंद और सुविधा के लिए उनका नुकसान किया जाए। वहाँ पेड़, पौधे, पशु, पक्षी, जल, जंगल, भूमि पर किसी भी प्रकार से ह्रास नहीं होना चाहिए। जैसे कि फूल न तोड़े, पेड़ों की छाल या तनों पर नाम न लिखें, पशुओं का शिकार न करें। 

5: Minimize campfire impacts (कैम्प फायर के प्रभावों को कम करें) 
  अब अगर कैंप में है तो कैंप फायर भी होगा ही। लेकिन कोशिश यही करनी चाहिए कि ये कम से कम हो। सबसे पहले तो उस स्थान पर अग्नि संबंधित नियम कानून का पालन आवश्यक है। उसके बाद कैंप में केवल उतनी ही लकड़ी का प्रयोग करें जितनी की आवश्यकता है। हो सके तो खाना बनाने के लिए लकड़ी जलाने के स्थान पर किसी छोटे गैस स्टोव को प्रयोग में लाएं। 
जगह जगह लकड़ी जलाने का स्थान न बनाए, अगर किसी स्थान पर पहले से ही स्थान बना हुआ है तो उसी स्थान को प्रयोग करें। आग का स्थान छोटा ही रखें और लकड़ियों का चुनाव भी। आग का प्रयोग तभी तक करें जब तक आप सामने हैं। आग या चिंगारी खुली न छोड़े। जरा सी लापरवाही खतरनाक आग का स्वरूप ले लेती है। उपयोग में न आने पर आग को पानी से पूरी तरह बुझा दें। 

6:Respect wildlife (वन्यजीवन का सम्मान करें) 
  प्रकृति का संतुलन बनाने के लिए वन्यजीव महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए अपनी यात्रा के दौरान या अपने कैंप के समय वन्यजीवों का भी ध्यान रखना होता है। यहाँ के जीव जंतुओं को परेशान नहीं करना चाहिए। अपने भ्रमण के समय इन्हें किसी भी प्रकार से छेड़ना गलत है। वन्य जीव शांति से अपना विचरण करते हैं किसी भी प्रकार की दखलअंदाज़ी इन्हें भ्रमित और उग्र बना सकती है। न फोटो लेने की कोशिश करें, न उन्हें छूने या पकड़ने की, न ही तेज आवाज करके उन्हें परेशान करने की और न ही अपना खाना देने की क्योंकि ये खाना उनके लिए बीमारी या संक्रमण का कारण बन सकता है। तभी कहा गया है कि अपना टैंट भी पानी से 200 मीटर की दूरी पर हो और खाना भी 12 फीट की ऊँचाई पर बँधा हो। साथ ही टैंट का रंग भी चटक या भड़काऊ न हो। 

7:Be considerate of others (दूसरों का ख्याल रखें) 
 सबसे जरूरी है कि दूसरों के प्रति संवेदनशीलता रखना। हमें केवल अपना ही नहीं अपितु आने जाने वाले अन्य यात्रियों का भी ध्यान रखना है। ये जंगल, वन, भूमि, झरने, पहाड़ केवल आपके लिए ही नहीं हैं, सभी के लिए है इसलिए अन्य कैंप का भी ध्यान रखें। लोग एकांत में प्रकृति का आनंद लेने के लिए आते हैं इसलिए दूसरों की निजता का भी ध्यान रखें। यहाँ प्रकृति प्रेमियों का स्वागत है, अकारण शोर शराबा या अनुचित गतिविधियों का यहाँ कोई स्थान नहीं है। 
  अपनी इस तरह की यात्रा को भीड़भाड़ से परे शांत और सुखद बनाने के लिए सप्ताहांत वीकेंड के स्थान पर अन्य दिनों को चुने या फिर उन दिनों को चुनाव करें जब भीड़भाड़ कम (off season) हो।  (जानकारी स्त्रोत: lnt.org) 

   
  हम सभी को ध्यान में यही रखना है कि Leave No Trace की एक छोटी से छोटी कोशिश भी हमारे हिमालय और उसके पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने का काम कर सकती है। सरकार, शासन प्रशासन तो अपना काम कर ही रही होंगी लेकिन आप और हम अपनी यात्राओं पर LNT का प्रयोग जरूर करें। 
   केवल उत्तराखंड ही नहीं जम्मू कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा, असम भी हिमालयी क्षेत्र है और हिमालय केवल प्राकृतिक सौंदर्य या आध्यात्मिक शक्तियों का केंद्र मात्र ही नहीं है अपितु पूरा का पूरा एक विशाल पारिस्थितिकी तंत्र है। 
   "हिमालय एक है इसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है।" "Save Himalaya" यहाँ हिम शिखर, दर्रे, पर्वत, पहाड़, पठार, जल, जंगल, पशु पक्षी, खनिज और उनके साथ तालमेल बैठाते यहाँ की संस्कृति और समुदाय भी हैं। जिनके प्रति संवेदनशीलता प्रत्येक की नैतिक जिम्मेदारी है। इसीलिए आप यहाँ घूमने और कैंप करने के लिए आते हैं तो थोड़े जिम्मेदार और शिष्टाचारी पर्यटक भी बनिये। 

एक -Naari

Comments

  1. Where do you find such a great topics...I appreciate your thoughts and writing

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  2. बहुत उपयोगी जानकारी ।

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