तो चलिए मिलते हैं फिर...
मुझे लगता था कि तुम कोई मिस्टर इंडिया की तरह हो जिसकी केवल आवाज ही सुनाई देती है लेकिन आज जब तुम से मिली तो लगा कि ये मिस्टर इंडिया चाहे कितना भी गायब रहे लेकिन है, सभी के साथ।
चलिए अब तो मुलाकात हो ही गई। उनसे ही जिसे कभी देखा नहीं था लेकिन हाँ सुना बहुत था।
बचपन से बहुत सी आवाजे़ कानों में गूंजती रहती थी। कभी गीत संगीत तो कभी सूचना, कभी चर्चा परिचर्चा और जानकारी भी। ऐसा लगता था कि उस छोर पर कोई अपना बैठा है जिसे हम एक एक धातु के डब्बे की सुइयों को ऊपर नीचे करके सुन रहे हैं। और अपने अलग अलग अंदाज़ से हम सभी के दिलों को आपस में जोड़ रहा है। सच कहूँ तो जनमानस के जीवन का एक अनूठा हिस्सा है, रेडियो। कल (28अप्रैल 23) उसी रेडियो यानी आकाशवाणी से मिली जहाँ मैंने अपना पहला आलेख प्रस्तुत किया।
आकाशवाणी में मेरा यह पहला अनुभव था जिसनें मुझे ध्वनियों के संसार का केंद्र बिंदु दिखाया। एक ध्वनिरोधी (साउंडप्रूफ) कमरे में केवल अपनी आवाज को सुनना अपने लिए तो बहुत अच्छा था लेकिन जब इसे लाखों लोगों ने सुनना हो!! तब तो थोड़ी घबराहट होना सामान्य है।
मेरे लिए यह अनुभव ऐसा ही था जैसे किसी विधार्थी का परीक्षा के समय होता है वो भी जो पहली बार नये विषय कि परीक्षा में बैठा हो। लेकिन जिसकी तैयारी पूरी होती है न उसकी घबराहट केवल परीक्षा आरंभ होने से पहले तक की ही होती है, परीक्षा हाल में बैठते ही चिंता, दुविधा, शंका, घबराहट सब गायब हो जाता है। ऐसे ही यहाँ के शांत सरल और मधुर वातावरण से सब शंकाएं छू मंतर हो गई थी।
वैसे मैंने देखा है कि जब भी कुछ नया या कुछ जरूरी काम हो तो अमूमन कुछ न कुछ छोटी मोटी गड़बड़ तो हो ही जाती है।
अब जैसे कल की ही बात है। कल मेरे जीवन का एक नया अनुभव था और मैं पिछले दो दिन से अपने गले का ध्यान भी रख रही थी लेकिन कल सुबह जैसे ही अपनी टेबल पर तरह तरह के चीज स्नैक देखे तो उनका स्वाद लिए बिना रहा नहीं गया। थोड़ी सी चूक ये रही कि उसके बाद ठंडा पानी भी पी लिया। बस होना क्या था, गले में खराश आरंभ हो चुकी थी।
तीन बजे से रिकॉर्डिंग थी और यहाँ हाल ये था कि थोड़ी देर बात करने के बाद मुझे अपना गला साफ करना पड़ रहा था। डर तो था ही क्योंकि आपको लेख पूरा पढ़ना होता है और रिकॉर्डिंग स्टूडियो इतना संवेदनशील होता है कि वहाँ साँस लेने की भी आवाज़ रिकॉर्ड हो जाती है।
लेकिन जब कुछ अच्छा होना होता है तो वो होता ही है। बस गर्म पानी का सहारा तो था ही लेकिन कल ये भी जाना कि बचपन से जिस विज्ञापन को देखा या सुना था वो आज भी काम कर रहे हैं। इसलिए जो याद आया वो था..."विक्स की गोली लो, खिच खिच दूर करो" । वही विक्स की गोली जिसे मैंने आज तक कभी भी पूरी नहीं खाई थी। कल मैंने एक घंटे में तीन खा लीं और सच में मेरे गले को बड़ा आराम मिला। मैं तीन बजे आकाशवाणी में थी और मेरी पहली रिकॉर्डिंग बिना किसी तनाव के पूरी हो गई।
आज एक बार फिर लगा कि जीवन में कुछ नया करने से खुशी और संतुष्टि तो मिलती ही है साथ ही आत्मविश्वास भी एक कदम और आगे बढ़ता है। नई जगह, नया क्षेत्र, नए लोग, नई तकनीक और एक नए दृष्टिकोण से कितना कुछ सीखने को मिलता है।
इसीलिए इस जीवन यात्रा में आगे बढ़ते रहिये। आप भी चल पड़े किसी नए सफर पर किसी नई सोच के साथ। तो चलिए मिलते हैं फिर....आकाशवाणी 100.5FM (6May, दोपहर 12.30-1.00)
एक- Naari
Dheron shubhkamnaye 😇🙏🏻
ReplyDeleteCongratulations
ReplyDeleteWow, many more to come 🌺🌺🌺
ReplyDeleteCongratulations for this wonderful opportunity 💞 wish you all the best for future endeavours.
ReplyDeleteCongratulations 💕💕💕💕
ReplyDeleteCongratulations 👏👏👏
ReplyDeleteCongratulations dear
ReplyDeleteबहोत शुभ कामनाएं आपकी जीवन के नए सफर के लिए
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