थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

प्रकृति और मानव

प्रकृति और मानव 
Nature and Human


आखिर तुम्हारे दर्शन हो ही गए। लगभग तीन साढ़े तीन साल से इंतज़ार कर रही थी कि कब तुम्हारे दर्शन होंगे और एक तुम थे कि जिसे देखकर लग रहा था कि अपनी जिद्द में अड़े हो और मेरी प्रतिक्षा की परीक्षा ले रहे हो। खैर! जो भी था लेकिन अब तो मैंने भी मान लिया है कि "सब्र का फूल लाल होता है।"
   अक्सर में यही सोचा करती थी कि जिसके लोग दीवाने हैं उसमें आखिर ऐसा है क्या?? क्योंकि मेरे लिए तो सभी फूल खुशी, प्यार, शांति का प्रतीक है लेकिन फिर भी दुनिया के 10 खूबसूरत फूलों में से एक फूल को अपने सामने खिलता हुआ देखना भला किसे पसंद नहीं। अब भले ही चाहे वो शुद्ध लिलि के स्थान पर उसका एक प्रतिरूप लाल लिलि (Amaryllis lily/ लाल कुमुदनी) क्यों न हो। इसके खिलने के साथ ही मेरा इंतज़ार खत्म हो गया और एक नई सीख भी दे गया। 
  इस एक छोटे से पौधे को तीन - साढ़े तीन साल पहले अपने ऑफिस के एक गमले में लगाया गया था। लेकिन साल भर बाद भी इसमें कोई अच्छी वृद्धि नहीं हो पाई थी। फिर माली को लगा कि जब इसमें कोई फूल नहीं आ रहा है तो इसे हटा कर इस गमले में कोई अच्छा सा फूल लगाना चाहिए सो उसने उस समय के हिसाब से फूल का पौधा लगा दिया। और लिलि के पौधे को घास की क्यारी के एक कोने में लगा दिया। इस पौधे की पत्तियाँ तो हरी भरी थी लेकिन फूल का कोई नामोनिशान नज़र नहीं आ रहा था। कुछ और महीने बीते फिर भी बात नहीं बनी। इसके बाद अगस्त- सितंबर में माली ने घास की इस छोटी सी क्यारी को और भी सुंदर बनाने के लिए इसके चारों ओर बाड़ (बॉर्डर) बनाने की बात कही। जिसके लिए हेज़ पौधे मंगवाए गए और अब इस पौधे के लिए कोई जगह शेष नहीं थी सो इस बार तो इसे अपनी जगह से उखाड़ कर बाहर का रास्ता दिखा दिया। 
  मन बहुत हताश था और लग रहा था कि इतनी प्रतिक्षा के बाद भी कोई फल नहीं मिला। अब ऐसे एक दिन तो गुजर गया लेकिन अगले दिन फिर से उम्मीद जगी और कटे छटे घास के ढे़र से इस पौधे को उत्सुकता वश घर ले ही आई क्योंकि मैं इतने लंबे समय से इसके फूल की प्रतिक्षा कर रही थी और इसकी लंबी लंबी हरी पत्तियाँ देखकर लग रहा था कि शायद अब फूल आ ही जायेंगे। (जिसका भरोसा मुझे पिछले लंबे समय से था।) 
  सितम्बर 2021 से 2022 पूरा निकल गया लेकिन बस लिलि के पौधे से फूल नहीं निकला। बस किसी तरह से इसकी हरी और लंबी पत्तियों की संख्या वृद्धि से आस थी कि फूल तो आयेगा ही। लेकिन कब और किस रंग का ये पता नहीं! 
  इस दौरान कई बार घर वालों ने बोला कि इस घास (लिलि) को हटा दो और इस गमले में फूल वाला पौधा लगा दो। कई बार संशय भी हुआ लेकिन पता नहीं मन क्यों नहीं माना। शायद एक बच्चे जैसी जिद्द थी या उत्सुकता या फिर बड़ों जैसा विश्वास। लेकिन इस अप्रैल 2023 में इसके खोखले तनों में फूल और कलियाँ देखकर अनायास ही मुख से निकल गया कि सब्र का फूल लाल होता है। 
  अब चाहे इस पौधे में फूल न आने के बहुत से कारण रहे हो( खाद, पानी, रोशनी इत्यादि) लेकिन मुझे तो सीख मिली है कि स्थिति चाहे कितनी भी विषम क्यों न हो लेकिन हर परिस्थिति में आगे बढ़ने का रास्ता ढूँढना चाहिए। साथ ही एक विश्वास होना चाहिए कि दुनिया चाहे कुछ भी बोले हमें सकारात्मक सोच के साथ अपना कर्म करते रहना चाहिए। 

   सच कहूँ तो प्रकृति हमारी प्रेरणा है। प्रकृति और मानव का पहले से ही संबंध रहा है और इस बात के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमारे तो पुराणों में भी कहा गया है कि एक वृक्ष सौ पुत्रों के समान है। यहाँ तक कि वृक्ष, वायु, जल, भूमि, आकाश को किसी न किसी रूप में उत्सव, पर्व, पूजा, व्रत इत्यादि में समय समय पर पूजा भी जाता है। मनुष्य को भी मानना चाहिए कि प्रकृति एक माता है जो बिना किसी भेदभाव के सभी को अपने संसाधनों से युक्त कराती है और सीख भी देती है। इसका हर रूप, हर रंग हम मनुष्यों को कुछ न कुछ सिखाता है। बस इसको समझने की देर है। 
जैसे कि अब मुझे भी समझ आया कि सब्र के इस लाल फूल (लिलि)का अर्थ मेरे लिए केवल प्यार और शांति ही नहीं है अपितु आत्मविश्वास, आशा और सकारात्मक संकल्पनाओं (positive concept) का प्रतीक है। 

एक -Naari

Comments

  1. I also experienced the same when I brought a stem of winka from someone's plant and the flowers appeared after the wait of complete one year.

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  2. You have a beautiful heart. It shows in your articles..

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