थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

जय श्रीराम

जय श्री राम
हनुमान जी का नाम राम नाम के बिना अधूरा है। अगर हनुमान जी का सुमिरन करना है तो भगवान राम का नाम उनकी भक्ति का पूरक है। इसलिए हनुमान  जन्मोत्सव पर... जय श्री राम। 

  कृष्ण जन्माष्टमी में घर घर में नन्हें मुन्ने बाल गोपाल कान्हा   जैसे भगवान कृष्ण का बाल रूप मनमोहक है वैसे ही बलशाली हनुमान अपने बाल हनुमान के रूप में सभी के प्रिय हैं तभी तो हर माता को अपने पुत्र में नटखट कान्हा और बाल हनुमान की छवि दिखाई देती है। और उसे उसी रूप में देखकर मन में अति उत्साही और आनंदित भी होती हैं और हो भी क्यों न, क्योंकि चाहे कान्हा हो या बाल हनुमान ये तो सभी के प्रिय है। वैसे ही राम भी जन जन के प्रिय हैं और घर घर में वंदनीय हैं। बस आज थोड़ा राम की छवि समाज में दिखना भी कम हो गया है। या कहें कि समाज में राम गायब होता नज़र आ रहा है। लेकिन अगर मानो तो राम हर जगह विद्यमान हैं,, “रमंते सर्वत्र इति रामः” (जो सब जगह व्याप्त है, वह राम है) क्योंकि जिसका मन सुंदर है उसके लिए हर जगह राम है। 
  अब भले ही राम का नाम आज कुछेक लोगों ने केवल अपने धर्म से जोड़ दिया है लेकिन वास्तविकता में राम का नाम धर्म से ऊपर उठकर मानव जगत के लिए कल्याणकारी हैं क्योंकि उनका जीवन एक आदर्श समाज की स्थापना करता है।
  राम का नाम अपने आप में अथाह ज्ञान, आनंद, संतुष्टि, सुंदरता को समेटे हुए है। इसलिए अगर हमारा मन भी सुंदर है तो कण कण में राम अपनी उपस्थिति का बोध कराते है। यह केवल हिंदू धर्म का प्रतीक ही नहीं है अपितु एक आम व्यक्तित्व को आदर्श जीवन जीने का धर्म सिखाता है, उच्च मानव मूल्यों के साथ समाज का निर्माण करने की प्रेरणा देता है और साथ ही नैतिकता, मानवता और संस्कार का पाठ पढ़ाता है।
  अब इतने गुणों से युक्त तो केवल भगवान ही हो सकते हैं। इसीलिए उच्च कुलीन मानव श्रेष्ठ मर्यादा पुरुषोत्तम राम भगवान ही तो हैं और सत्य यह भी है कि हम भगवान नहीं बन सकते! लेकिन चाहे राम हो या कृष्ण ये भगवान से पहले तो एक मनुष्य ही थे जो अपने कर्म और आचार विचार से भगवान बने और घर घर पूजे जाने लगे और हनुमान जी के तो प्रिय सखा से लेकर सेवक और प्रभु से लेकर भक्त सभी कुछ राम ही है। 
भगवान राम की सीख
   भगवान राम जन साधारण को बहुत कुछ सिखाते हैं, जैसे कि ज्ञानी बनो अहंकारी नहीं, माता पिता और बड़ों की सेवा, भेदभाव से परे एकसमान व्यवहार, वचनों की रक्षा, सखा का महत्व, सकरात्मक सोच, उत्कृष्ठ नेतृत्व और भी बहुत कुछ। इसलिए अपने प्रिय और वंदनीय राम का अनुसरण तो करना ही चाहिए। अगर हम उन्हें अपने धर्म का अग्रज और अपना आदर्श मानते हैं तो उनके द्वारा दी गई शिक्षा और उनके गुणों का अनुसरण करना भी तो आवश्यक हो जाता है। 
भगवान राम सिखाते हैं कि अपने त्याग, तपस्या, स्नेह, नियम, संयम, संकल्प, निपुणता, धैर्य और सकारात्मक सोच के साथ व्यक्ति, परिवार, समाज और पृथ्वी का कल्याण किया जा सकता है। 
  इसीलिए केवल "जय श्रीराम" बोलकर उनके अनुयायी या धर्म विशेष का परिचय नहीं देना चाहिए अपितु इतना सुंदर, सरल और मीठा राम का नाम उसी भाव से लेना चाहिए जिस क्षमा, शील, विनम्रता, शालीनता और नैतिकता के वे परिचायक है। 

जय श्री राम का भाव
  अगर हम हनुमान जी को अपना प्रिय मानते हैं और उनकी आराधना करते हैं तो ये भी मानेंगे कि हनुमान जी का तो प्रिय जाप ही "जय श्री राम" है जो उन्हें उनकी अनंत ऊर्जा को नियंत्रण में रखता है। जय श्री राम का भाव किसी नारे या उदघोष की भाँति नहीं अपितु अपने अपने कर्मो में "शांत रहो और आगे बढ़ो" का भाव की भाँति लेना चाहिए जो हमें श्री राम के पथ पर चलना सिखलाता है जैसे कि किसी भी प्रतिकूल स्थिति में उत्तेजित न होकर संयम से काम लेना चाहिए और अपने लक्ष्य पर दृढ़ता से चलते रहना चाहिए तभी जीत निश्चित है।
   जय श्रीराम का कथन हमें किसी भी काम की सफलता का मूल मंत्र मानना चाहिए। ये मंत्र भगवान राम की भाँति संयमित और शांत बनाये रखने का है जैसे राम एक राजा के घर पैदा हुए लेकिन कठिन चुनौतियों का भी सामना किया और सफल हुए वैसे ही राम नाम के जाप से हमें बल मिले, ऊर्जा मिले लेकिन एक नियंत्रण के साथ। हम किसी भी परिस्थिति में अपना आपा न खोए/ भावनाओं पर नियंत्रण रखे और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ अपने लक्षय को प्राप्त कर सके। 
    
   "शांत रहो और आगे बढ़ो" की सकारात्मक सोच के साथ  किसी भी काम का आरंभ अब "जय श्री राम" के साथ। 
 हनुमान जन्मोत्सव पर हनुमान जी और राम जी से यही प्रार्थना है कि सभी का कल्याण करें। 

एक - Naari

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