Teej Where Love Meets Devotion and Grace

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    तीज: सुहागनों का उत्सव (प्रेम, तप, समर्पण, श्रृंगार)       छाया: मोनिका ठाकुर, देहरादून   प्रकृति स्वयं माता पार्वती का एक रूप है इसलिए सावन माह में जहाँ हम भगवान् शिव की आराधना करते हैं  वहीं शिवा की पूजा का भी विशेष महत्व है। सावन माह में आने वाली तीज माता पार्वती को ही समर्पित पूजा है। इस दिन सुहागन महिलाएं  माता पार्वती से अपने सुहाग की लम्बी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं।  पार्वती का तप:  पौराणिक कथानुसार माता पार्वती आदिदेव शिव से विवाह करना चाहती थी लेकिन शिव उस समय विरक्त थे। नारद मुनि ने बचपन से ही माता के अंदर शिव नाम के बीज बौ दिये थे इसलिए माता शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप करने का निर्णय लिया।     शिव महापुराण के द्वितीय पार्वतीखंड के बाईसवें अध्याय के अनुसार माता पार्वती ने अपने राजसी वास्त्रों को त्यागकर मौंजी और मृगछाला पहनी और गंगोत्री के समीप श्रृंगी नामक तीर्थ पर शंकर जी का स्मरण कर तप करने के लिए चली। तपस्या के पहले वर्ष माता ने केवल फल का आहा...

जय श्रीराम

जय श्री राम
हनुमान जी का नाम राम नाम के बिना अधूरा है। अगर हनुमान जी का सुमिरन करना है तो भगवान राम का नाम उनकी भक्ति का पूरक है। इसलिए हनुमान  जन्मोत्सव पर... जय श्री राम। 

  कृष्ण जन्माष्टमी में घर घर में नन्हें मुन्ने बाल गोपाल कान्हा   जैसे भगवान कृष्ण का बाल रूप मनमोहक है वैसे ही बलशाली हनुमान अपने बाल हनुमान के रूप में सभी के प्रिय हैं तभी तो हर माता को अपने पुत्र में नटखट कान्हा और बाल हनुमान की छवि दिखाई देती है। और उसे उसी रूप में देखकर मन में अति उत्साही और आनंदित भी होती हैं और हो भी क्यों न, क्योंकि चाहे कान्हा हो या बाल हनुमान ये तो सभी के प्रिय है। वैसे ही राम भी जन जन के प्रिय हैं और घर घर में वंदनीय हैं। बस आज थोड़ा राम की छवि समाज में दिखना भी कम हो गया है। या कहें कि समाज में राम गायब होता नज़र आ रहा है। लेकिन अगर मानो तो राम हर जगह विद्यमान हैं,, “रमंते सर्वत्र इति रामः” (जो सब जगह व्याप्त है, वह राम है) क्योंकि जिसका मन सुंदर है उसके लिए हर जगह राम है। 
  अब भले ही राम का नाम आज कुछेक लोगों ने केवल अपने धर्म से जोड़ दिया है लेकिन वास्तविकता में राम का नाम धर्म से ऊपर उठकर मानव जगत के लिए कल्याणकारी हैं क्योंकि उनका जीवन एक आदर्श समाज की स्थापना करता है।
  राम का नाम अपने आप में अथाह ज्ञान, आनंद, संतुष्टि, सुंदरता को समेटे हुए है। इसलिए अगर हमारा मन भी सुंदर है तो कण कण में राम अपनी उपस्थिति का बोध कराते है। यह केवल हिंदू धर्म का प्रतीक ही नहीं है अपितु एक आम व्यक्तित्व को आदर्श जीवन जीने का धर्म सिखाता है, उच्च मानव मूल्यों के साथ समाज का निर्माण करने की प्रेरणा देता है और साथ ही नैतिकता, मानवता और संस्कार का पाठ पढ़ाता है।
  अब इतने गुणों से युक्त तो केवल भगवान ही हो सकते हैं। इसीलिए उच्च कुलीन मानव श्रेष्ठ मर्यादा पुरुषोत्तम राम भगवान ही तो हैं और सत्य यह भी है कि हम भगवान नहीं बन सकते! लेकिन चाहे राम हो या कृष्ण ये भगवान से पहले तो एक मनुष्य ही थे जो अपने कर्म और आचार विचार से भगवान बने और घर घर पूजे जाने लगे और हनुमान जी के तो प्रिय सखा से लेकर सेवक और प्रभु से लेकर भक्त सभी कुछ राम ही है। 
भगवान राम की सीख
   भगवान राम जन साधारण को बहुत कुछ सिखाते हैं, जैसे कि ज्ञानी बनो अहंकारी नहीं, माता पिता और बड़ों की सेवा, भेदभाव से परे एकसमान व्यवहार, वचनों की रक्षा, सखा का महत्व, सकरात्मक सोच, उत्कृष्ठ नेतृत्व और भी बहुत कुछ। इसलिए अपने प्रिय और वंदनीय राम का अनुसरण तो करना ही चाहिए। अगर हम उन्हें अपने धर्म का अग्रज और अपना आदर्श मानते हैं तो उनके द्वारा दी गई शिक्षा और उनके गुणों का अनुसरण करना भी तो आवश्यक हो जाता है। 
भगवान राम सिखाते हैं कि अपने त्याग, तपस्या, स्नेह, नियम, संयम, संकल्प, निपुणता, धैर्य और सकारात्मक सोच के साथ व्यक्ति, परिवार, समाज और पृथ्वी का कल्याण किया जा सकता है। 
  इसीलिए केवल "जय श्रीराम" बोलकर उनके अनुयायी या धर्म विशेष का परिचय नहीं देना चाहिए अपितु इतना सुंदर, सरल और मीठा राम का नाम उसी भाव से लेना चाहिए जिस क्षमा, शील, विनम्रता, शालीनता और नैतिकता के वे परिचायक है। 

जय श्री राम का भाव
  अगर हम हनुमान जी को अपना प्रिय मानते हैं और उनकी आराधना करते हैं तो ये भी मानेंगे कि हनुमान जी का तो प्रिय जाप ही "जय श्री राम" है जो उन्हें उनकी अनंत ऊर्जा को नियंत्रण में रखता है। जय श्री राम का भाव किसी नारे या उदघोष की भाँति नहीं अपितु अपने अपने कर्मो में "शांत रहो और आगे बढ़ो" का भाव की भाँति लेना चाहिए जो हमें श्री राम के पथ पर चलना सिखलाता है जैसे कि किसी भी प्रतिकूल स्थिति में उत्तेजित न होकर संयम से काम लेना चाहिए और अपने लक्ष्य पर दृढ़ता से चलते रहना चाहिए तभी जीत निश्चित है।
   जय श्रीराम का कथन हमें किसी भी काम की सफलता का मूल मंत्र मानना चाहिए। ये मंत्र भगवान राम की भाँति संयमित और शांत बनाये रखने का है जैसे राम एक राजा के घर पैदा हुए लेकिन कठिन चुनौतियों का भी सामना किया और सफल हुए वैसे ही राम नाम के जाप से हमें बल मिले, ऊर्जा मिले लेकिन एक नियंत्रण के साथ। हम किसी भी परिस्थिति में अपना आपा न खोए/ भावनाओं पर नियंत्रण रखे और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ अपने लक्षय को प्राप्त कर सके। 
    
   "शांत रहो और आगे बढ़ो" की सकारात्मक सोच के साथ  किसी भी काम का आरंभ अब "जय श्री राम" के साथ। 
 हनुमान जन्मोत्सव पर हनुमान जी और राम जी से यही प्रार्थना है कि सभी का कल्याण करें। 

एक - Naari

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