थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

हिमालय बचाओ... ये हमारा है।

हिमालय बचाओ... ये हमारा है। 
   4 सितम्बर को एक खबर छपी थी कि गंगोत्री ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है। 
  "वर्ष 1935 से 2022 के बीच 87 साल में देश के बड़े ग्लेशियरों में से एक उत्तराखंड का गंगोत्री ग्लेशियर 1.7 किमी पीछे खिसक गया है।"
  चौकनें वाली खबर तो थी ही लेकिन सबसे अधिक तो ये हमारे लिए चिंता की बात है। ये केवल एक ग्लेशियर की बात नहीं है ऐसा ही कुछ हाल लगभग हिमालयी राज्यों के ग्लेशियर के साथ भी है। अब तो लगभग हर साल कभी बाढ़ तो कभी सूखा और वनाग्नि की घटनाएं हो रही है। 
   हिमालय हमारे देश का ताज है। इसके अंगों (ग्लेशियर, पहाड़, नदी, जंगल, जमीन) को गलने से बचाना है क्योंकि यह केवल अध्यात्मिक केंद्र, या साहसिक खेल या केवल फिर रोमांच का स्थान भर ही नही है यह हमारी जीवन रेखा है क्योंकि इसके अथाह प्राकृतिक संसाधनों के चलते ही हम अपना जीवन यापन कर रहे हैं। मनुष्य प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हिमालय पर निर्भर है। देश के 65 प्रतिशत लोगों के लिए पानी की आपूर्ति यही हिमालय करता है और साथ ही रोज रोटी का प्रबंध भी। 
   लेकिन हम अपनी धरोहर और अपने प्राकृतिक संसाधनों का बे लगाम दोहन कर रहे हैं जिसके कारण हमारा हिमालय अपने अस्तित्व के लिए हमारे ताज से अधिक चिंता का विषय बन गया है। इस प्रकार के दोहन से हिमालय के पारितंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 
   उत्तराखंड के साथ ही हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नगालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, पश्चिम बंगाल का दार्जलिंग जिला भी हिमालय क्षेत्र में है जो देश का 16.3 प्रतिशत भौगलिक क्षेत्रफल है। इन इलाकों में दुनियाभर की वन्य और पादप प्रजातियां पाईं जाती है। मनुष्य के अलावा 1280 वन्य जीव प्रजातियाँ, 8000 पादप प्रजातियां, 816 वृक्ष प्रजातियां, 675 वन्य खाद्य प्रजातियां, 1,740 औषधीय प्रजातियां हैं।अब अगर हिमालय को नुकसान पहुंचेगा तो ये कहाँ जायेंगे?? इनका संरक्षण भी तो जरूरी है! 

हिमालय को नुकसान पहुंचाने वाले कारक
हिमालय को नुकसान पहुंचाने में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से केवल मानव ही है। हिमालयी क्षेत्र में बढ़ रही मानवीय गतिविधि हो या शहरी क्षेत्रों से निकलता प्रदूषण। ये सब हमारे हिमालय को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार है ही। हिमालयी क्षेत्र में अंधाधुंध बांध परियोजनाएं, सड़क चौडीकरण, पर्यटन के नाम पर 5 सितारा होटल या फिर 
अंधाधुंध कैंपिंग, जंगलों की कटाई, वनाग्नि, प्राकृतिक संसाधनों का बे लगाम दोहन और भी बहुत कुछ है जो हिमालय के अंगों को खराब कर रहे हैं वहीं शहरी क्षेत्रों से पैदा होने वाला प्रदूषण भी तो हिमालय के लिए खतरनाक है। प्रदूषण से ब्लैक कार्बन उत्सर्जन होता है जो धीरे धीरे हिमालय के ग्लेशियरों तक पहुंच रहा है। याए ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों के लिए खतरनाक है जो कि ग्लेशियर के साथ साथ दुर्लभ वनस्पतियों पर भी दुष्प्रभाव डाल रहा है। ब्लैक कार्बन सूर्य की रोशनी से उष्मा लेकर रात में इलेक्ट्रो मैगनेटिक के रुप में रेडिएशन करते हैं जिसके कारण रात में भी हिमालय की बर्फ 
पिघलती रहती है। मानसूनी हवाएं भी हिमालय पर विपरीत असर डाल रही हैं और वर्षा के कारण भी बर्फ पिघल रही है और ग्लेशियर पीछे खिसक रहे हैं। फिर ये ग्लोबल वार्मिंग भी तो है जिसनें हिमालय ही क्या पूरे विश्व में हलचल पैदा कर दी है। 
हमारा सहयोग 
   मैंने कहीं पढ़ा था कि उत्तराखंड के चमोली गढ़वाल में पढ़ने वाला एक गांव द्रोनागिरी जो हिंदू सनातन धर्म होने के बाद भी गांव शवों को जलाने की बजाय उसे जमीन में दफना देता है केवल पर्यावरण के लिए। उन्हें लगता है कि शव जलाने पर एक तरफ पेड़ भी कटते हैं और दूसरी तरफ धुआं भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है।
  अब इनका अपना तरीका हो सकता है लेकिन हर किसी की अपनी सोच होती है और अपना तरीका और तर्क भी। लेकिन जब बात अपने हिमालय और पर्यावरण की हो तो किसी न किसी पहलू से संवेदनशील होना ही होगा। 

सरकार जहाँ विकास के नाम पर अपनी गतिविधियों और हिमालय से जुड़ी नीतियों पर गौर फरमा सकती है वहीं एक साधारण या आम जनता भी अपने छोटे बड़े सहयोग से हिमालय बचा सकती है। 
 सरकार लघु या सूक्ष्म जल विद्युत परियोजनाओं पर काम करें या बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम या फिर पर्यटन के लिए उचित कदम। सभी नीतियाँ पर्यावरणविद, बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक और आम जन के सहयोग से ही तय करें। 
  एक आम नागरिक को सबसे पहले तो हिमालय के प्रति संवेदनशील बनना पड़ेगा। कचरा, प्लास्टिक, आग, प्रदूषण जैसी समस्याओं को समझना होगा। मुझे तो लगता है कि अगर हम अपनी स्वयं की उन गतिविधियों पर भी अंकुश लगा लें जो हम हिमालय दर्शन के दौरान करते हैं जैसे,, बोतल, प्लास्टिक, कचरा छोड़ कर आना या शांत बैठे पहाड़ों पर डीजे पर फूहड़ गीत संगीतों का बजाना या फिर अपनी मस्ती में आग लगाना इत्यादि। अपनी छोटी छोटी आदतों को बदलकर भी हम हिमालय बचाने में अपना सहयोग कर सकते हैं। 

9 सितम्बर: हिमालय दिवस 

हिमालय हमारा पारिस्थितिकी, आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक धरोहर है। हिमालय के नदी वन ग्लेशियर भूमि सभी के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सरकार के साथ साथ स्थानीय लोगों की जरूरत है। इसकी रक्षा स्थानीय ही क्या हर नागरिक की भागीदारी होनी चाहिए। इसीलिए उत्तराखंड में 9 सितंबर को हिमालय दिवस मनाया जाता है जिसका आरंभ वर्ष 2010 से हुआ। जिसका उद्देश्य ही हिमालय क्षेत्र और पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण है जिसमें विभिन्न कार्यक्रमों के चलते लोगों को हिमालय के प्रति जागरूक किया जाए और जनमानस की भागीदारी को इसके संरक्षण के प्रति बढ़ाया जाए जिसकी नैतिक जिम्मेदारी को उठाना हम सभी का कर्तव्य होना चाहिए तो फिर हिमालय क्षेत्र की हर छोटी बड़ी गतिविधियों पर विचार करें और एक प्रतिज्ञा लें... 

हिमालय दिवस पर हिमालय प्रतिज्ञा
हिमालय हमारे देश का मस्तक है। विराट पर्वतराज दुनिया के बड़े भूभाग के लिए जलवायु, जलजीवन और पर्यावरण का आधार है। इसे गगनचुंबी शिखर हमें नई ऊँचाई छूने की प्रेरणा देते हैं। मैं प्रतिज्ञा करती हूँ/करता हूँ कि मैं हिमालय की रक्षा का हरसंभव प्रयत्न करूँगी/ करूँगा। ऐसा कोई काम नहीं करूँगी/ करूँगा जिससे हिमालय को नुकसान पहुँचता हो। 


एक -Naari



Comments

  1. हम प्रतिज्ञा लेते हैं।

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  2. Very thoughtful...we take the pledge....

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