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Showing posts from September, 2022

The Spirit of Uttarakhand’s Igas "Let’s Celebrate Another Diwali "

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  चलो मनाएं एक और दिवाली: उत्तराखंड की इगास    एक दिवाली की जगमगाहट अभी धुंधली ही हुई थी कि उत्तराखंड के पारंपरिक लोक पर्व इगास की चमक छाने लगी है। असल में यही गढ़वाल की दिवाली है जिसे इगास बग्वाल/ बूढ़ी दिवाली कहा जाता है। उत्तराखंड में 1 नवंबर 2025 को एक बार फिर से दिवाली ' इगास बग्वाल' के रूप में दिखाई देगी। इगास का अर्थ है एकादशी और बग्वाल का दिवाली इसीलिए दिवाली के 11वे दिन जो एकादशी आती है उस दिन गढ़वाल में एक और दिवाली इगास के रूप में मनाई जाती है।  दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में फिर से दिवाली क्यों मनाई जाती है:  भगवान राम जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 11वें दिन मिली थी इसलिए दिवाली 11वें दिन मनाई गई। वहीं गढ़वाल के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी अपनी सेना के साथ जब तिब्बत लड़ाई पर गए तब लंबे समय तक उनका कोई समाचार प्राप्त न हुआ। तब एकादशी के दिन माधो सिंह भंडारी सेना सहित तिब्बत पर विजय प्राप्त करके लौटे थे इसलिए उत्तराखंड में इस विजयोत्सव को लोग इगास को दिवाली की तरह मानते हैं।  शुभ दि...

चेलुसैन: एक खूबसूरत गांव

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चेलुसैन: एक खूबसूरत गांव    दिन के 11:45 बज  गए थे और अब तो आखिर निकल ही गए हम एक और खूबसूरत जगह के लिए। हालांकि हर बार की तरह इस बार भी निकलना तो जल्दी ही था लेकिन ऑफिस का मोह रह रह कर भी उमड़ ही आता है इसलिए जहाँ 8 बजे जाना था वहाँ 12 बज गए। वैसे तो 8 भी थोड़ा देर ही था लेकिन क्या करें,,, जय की स्कूल वैन जो पौने आठ बजे आती है! उसे स्कूल भेजने के बाद ही निकलना उचित समझा।    हाँ, इस बार की यात्रा में न तो जिया और न ही जय हैं क्योंकि  जिया ने छुट्टी लेने से मना कर दिया था। मनाया तो बहुत जिया को लेकिन उसको तो अपनी कक्षाएं लेनी ही थी ( सच में बेटियां पढ़ाई के प्रति बेटों से थोड़ा अधिक गंभीर होती हैं)। लेकिन जय को तो कभी भी कहीं भी ले चलो,,, हमेशा तैयार मिलता है। लेकिन इस बार नटखट जय को भी घर ही छोड़ना पड़ा। बिना जिया के उसे साथ ले जाना हमारे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी क्योंकि उसे भी अपना साथ अपनी जिया दीदी के साथ ही मिलता है सो इस बार का सफर केवल अपना था।    हम जा रहे थे चैलूसेंण। नाम कुछ अलग सा लगा होगा, शायद किसी ने पहली बार ही सुना होग...

हिमालय बचाओ... ये हमारा है।

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हिमालय बचाओ... ये हमारा है।     4 सितम्बर को एक खबर छपी थी कि गंगोत्री ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है।    "वर्ष 1935 से 2022 के बीच 87 साल में देश के बड़े ग्लेशियरों में से एक उत्तराखंड का गंगोत्री ग्लेशियर 1.7 किमी पीछे खिसक गया है।"   चौकनें वाली खबर तो थी ही लेकिन सबसे अधिक तो ये हमारे लिए चिंता की बात है। ये केवल एक ग्लेशियर की बात नहीं है ऐसा ही कुछ हाल लगभग हिमालयी राज्यों के ग्लेशियर के साथ भी है। अब तो लगभग हर साल कभी बाढ़ तो कभी सूखा और वनाग्नि की घटनाएं हो रही है।     हिमालय हमारे देश का ताज है। इसके अंगों (ग्लेशियर, पहाड़, नदी, जंगल, जमीन) को गलने से बचाना है क्योंकि यह केवल अध्यात्मिक केंद्र, या साहसिक खेल या केवल फिर रोमांच का स्थान भर ही नही है यह हमारी जीवन रेखा है क्योंकि इसके अथाह प्राकृतिक संसाधनों के चलते ही हम अपना जीवन यापन कर रहे हैं। मनुष्य प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से हिमालय पर निर्भर है। देश के 65 प्रतिशत लोगों के लिए पानी की आपूर्ति यही हिमालय करता है और साथ ही रोज रोटी का प्रबंध भी।     लेकिन हम...

Happy Teachers Day

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  Happy Teachers Day    कहते हैं जो सिखाए वही गुरु है और मनुष्य के अंदर सीखने का गुण हो तो उसे जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य अपने पास बहुत से गुरुजन पाता है जहाँ वो दूसरों से कुछ न कुछ सीखता है। घर से, परिवार से, विद्यालय से, साथ से, समाज से, इस प्रकृति से हम हमेशा कभी न कभी किसी न किसी रूप में कुछ तो सीखते ही है इसलिए सम्मान तो सभी के लिए होना चाहिए लेकिन जो शिक्षा गुरुकुल में अक्षर ज्ञान और अनुशासन के साथ हमें अपने शिक्षकों द्वारा मिलती है वो बहुत अनमोल होती है इसीलिए उन शिक्षकों के लिए एक दिन सम्मान के साथ धन्यवाद का भी।      5 सितम्बर को शिक्षक दिवस है तो सभी अपने गुरुजन को प्रणाम करते हैं। अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान और आदर व्यक्त करते हैं। स्कूल कॉलेज में तो शिक्षकों को सम्मानित भी किया जाता है और कई भव्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। कुल मिलाकर आज का दिन समर्पित होता है शिक्षकों के लिए जिन्होंने अपने ज्ञान से हमें एक कोमल पौध से एक वृक्ष बनाया।    भारत में गुरु का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है। भारत की पहचान ही यहाँ की सं...