अमृत महोत्सव में जन्माष्टमी
देश को कृष्ण चाहिए...
भारत अपनी समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक गौरव और विवधता में एकता के लिए जाना जाता है। यहाँ पर्व त्यौहार, गीत संगीत मेले समय समय पर आकर हमें आपस में जोड़ते रहते हैं और इस बार अगस्त का जो यह समय है वो तो लगता है अपने साथ पर्वों की गठरी बांधे आया है। रक्षा बंधन आया, घी संक्रांत आया, ७६वां स्वतंत्रता दिवस आया और साथ ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी भी। अब इन सब त्योहारों के चलते तो बस एक ही विचार आता है कि हमारे लोक पर्व हो या राष्ट्रीय पर्व सभी के लिए उल्लास, ख़ुशी, उमंग और सम्मान एक जैसा ही है। हमारे सारे पर्व ही भारत कि संस्कृति और सभ्यता को समेटे हैं।
भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो चुके हैं और इसकी ख़ुशी इस वर्ष के स्वतंत्रता दिवस पर सभी के चेहरों से लेकर घर तक नज़र आई। सरकार ने तो इन 75 वर्षों कि खुशी आज़ादी का अमृत महोत्सव नाम से मार्च 2021 से ही आरम्भ कर दी थी लेकिन हर हिन्दुस्तानी के लिए ये महोत्सव तो 15 अगस्त 1947 से ही आरम्भ हो गया था क्योंकि हमें आज़ादी यूं ही नहीं मिली। इसके लिए हमारे स्वतंत्रता सैनानियों ने अपने लहू को इस धरती का अमृत बनाने के लिए बहा दिया था।
इन पिचहत्तर वर्षों में हमनें खोया पाया जो भी हो सबसे जरूरी है सीख। हमने पिछले अनुभवों से क्या सीखा और आने वाले समय के लिए हम क्या सीख रहे हैं यह बहुत आवश्यक है क्योंकि तरक्की का मूल मंत्र ही सुधार है और किसी भी सुधार के लिए जरूरी है, विश्लेषण। फिर जब विश्लेषण कर ही लिया तो हमें सीख भी मिल ही जायेगी।
भारत कोई छोटा देश नहीं है, विश्व कि सबसे अधिक जनसँख्या वाले देश में हम ही हैं इसलिए तो अपने को विकसित देशों कि पंक्ति में खड़ा करना चुनौतीपूर्ण है। ये किसी सपने जैसा तो लगता है लेकिन सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने से चुनौती को पूर्ण भी किया जा सकता है। यहाँ भले ही विभिन्न जाति, धर्म, पंथ, सम्प्रदाय के साथ साथ सामाजिक और आर्थिक विभिन्न्तायं भी है लेकिन एक दुसरे के सम्पूर्ण सामंजस्य से स्थितियों को संभाला भी जा सकता है।
शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, जाति, लिंग भेदभाव, अपराध, महिला सशक्तिकरण और भी बहुत से विषय हैं जहाँ पर निरंतर सुधार की आवश्यकता है और इसके लिए केवल सरकार ही नहीं सभी को एक सामान रूप से सोचना और कार्य करना भी होगा। हमने जो कुछ भी सीखा, जो सीख रहे है और जो सीखेंगे वो हमारे देश के विकास और सुधार में महत्वपूर्ण हो इसका हमें ध्यान देना होगा.
जिस प्रकार से हम अपनी जरूरतों को समझते हैं और उनको पूरा करते हैं ठीक उसी प्रकार से देश कि जरूरतों को समझाना भी जरूरी है. जैसे मासलो कि थ्योरी (Maslow Hierarchy of Needs) हमें आगे बढ़ने कि प्रेरणा देती है
उसी प्रकार देश कि जरूरत को समझने और उसके अनुरूप कार्य करने के लिए ऐसा ही कुछ मॉडल बनाने और समझने कि जरूरत है और इसे समझने के लिए नीतिबद्ध सोच भी आवश्यक है।
चूंकि मेरा देश त्योहारों का देश है तो इस कृष्ण जन्माष्टमी के त्योहार में भी मैं अपने देश के लिए एक कृष्ण की कामना करती हूँ।
इसी लिए इस कृष्ण जन्मोत्सव में यही सोचती हूँ कि मेरे देश को आज भी एक कृष्ण चाहिए. वही कृष्ण जो कितने ही असुरों का वध करके हमारी रक्षा करता है, वही कृष्ण जो तटस्थ का पाठ पढाता है, वही कृष्ण जो प्रेम भी सिखाए और समय आने पर अपने कर्तव्य भी, वही कृष्ण जो विषम परिस्थितियों का भी सकारात्मक रूप प्रस्तुत करे, वही कृष्ण जो किसी के लिए छलिया हो तो किसी का परम मित्र, वही कृष्ण जो साधारण योद्धा को भी अर्जुन बना दे, वही कृष्ण जो पूरे देश का रथ चला सके और भारत को वहां तक ले जाए जहाँ हर एक नागरिक अपने अन्दर एक कृष्ण को पाए.
आज़ादी के अमृत महोत्सव में...
श्री कृष्ण जन्मोत्सव की बधाई...
(नोट: यह मेरे अपने विचार हैं, इसका किसी से व्यक्तिगत कोई संबंध नहीं है, अन्यथा न लें)
एक - Naari
Radhe Radhe , jai shree krishna
ReplyDeleteNice observation,,,Hare Krishna Ma'am
ReplyDeleteMadam Director Jai Shree Krishna
ReplyDeleteAgain Ma'am you reiterated The Best of Your Pen. God Bless
जय श्री कृष्ण
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