हिंदू नव वर्ष में रसोई का वित्तीय प्रबंधन...उड़द दाल की वड़ीयां
Kitchen finance management...Urad Daal Wadi
अप्रैल से हिंदू नववर्ष और चैत्र नवरात्र का आरंभ हो गया है साथ ही नए वित्त वर्ष का भी आरंभ है। साल भर में कितना कमाया कितना खर्च किया इसका लेखा जोखा तो होगा ही साथ ही नई वित्तीय चुनौतियों (financial challenge) के लिए भी खुद को तैयार रखना पड़ेगा। एक आम महिला का तो इन चुनौतियों के लिए हमेशा तैयार रहती है क्योंकि वो हर एक दिन अपनी रसोई के बजट से जूझती रहती है।
इसीलिए कितने प्रयोग तो अपनी रसोई से ही कर डालती हैं। अब जैसे अभी की बात ही ले लो होली भी तो मार्च में आती है और इस समय में घर में चिप्स, पापड़, कचरी या नमकीन बनाने का चलन है हालांकि अब थोड़ा कम भी हुआ है लेकिन अभी भी बहुत सी महिलाएं इन सभी को खूब बनाती हैं और आने वाले 3 से 4 महीने तक बच्चों और मेहमान को खूब स्नैक्स की तरह परोसती हैं। ऐसा लगता है कि महिलाएं नए वित्तीय वर्ष की चुनौती से निपटने के लिए तैयारियां आरंभ कर रही हैं।
महंगाई में बचत का स्वाद, घर में करें तैयारी ....
और इसी कड़ी में आती है दाल की बड़ियां। ये भी तो महिलाओं के वित्तीय प्रबंधन का एक स्वादिष्ट तरीका है। मूंग या उड़द दाल की बड़ियां धूप में बनाई जाती हैं और फिर आठ दस महीनों तक के लिए स्टोर कर ली जाती हैं। जब कभी सब्जियों की मंहगाई आसमान को छूती हुई लगें या फिर मौसमी सब्जियों से मन भर जाए या कभी कुछ घर का बना मसालेदार चटपटा साग खाने का मन हो तुरंत स्टोर की हुई वड़ी का ध्यान आना स्वाभाविक हो जाता है। आलू के साथ हो या मामूली लौकी के साथ टमाटर की रस्सेदार तरकारी में वड़ियों का जवाब नहीं!!
मसाला वड़ी जो पंजाब में अमृतसरी बड़ी या मसाला बड़ी के नाम से प्रसिद्ध है इसे आलू या कढ़ी के साथ पकाया जाता है और राजस्थान में तो इन वडियों को पापड़ के साथ बनाकर वर्धमान पापड़ पाली के नाम से खूब चाव से खाया जाता है। ये बड़ियां केवल पंजाब राजस्थान ही नहीं अपितु अन्य हिस्सों में भी खाई जाती है और उत्तराखंड में तो विशेषतः घरों में बनाए जाती हैं और चावल या रोटी के साथ में खूब खाई जाती हैं। उत्तराखंड में तो उड़द बड़ी, मूंग की बड़ी, गहथ की बड़ी, नाल बड़ी भी बनाई जाती है।
इसलिए इसकी हमनें भी तैयारी कर ली और घर में बनाई उड़द दाल की मसाला वड़ी। हालांकि हमनें में केवल मां ही आती हैं मेरा काम तो दाल को मिक्सी में पीसने भर का था जबकि जिया का काम थालियों में तेल मलना और जय का काम थाली को दादी के पास देना और इस तरह से घर की लगभग सभी थालियां बड़ियों में सज गई।
मां के मन में बड़ियां बनाने का उत्साह था और मुझे खाने का लेकिन बड़ी बनने में थोड़ा समय लगता है लेकिन उड़द दाल की पकौड़ी बनाने में नहीं। इसलिए झट से सारी दाल पीस ली। (अब भला उड़द दाल भिगाई हो और गढ़वाली पकौड़े (भूड़े) न बने ऐसा तो मेरी रसोई में कतई नहीं हो सकता!)
उड़द दाल की बड़ियों की विधि तो बहुत आसान है लेकिन इसे बनाना मेहनत का काम है लेकिन एक बार की मेहनत से पूरे साल भर तक भी इसका स्वाद लिया जा सकता है।
मसाला वड़ी बनाने की विधि Recipe of Masala Wadi
वैसे तो हर जगह बड़ी बनाने का तरीका अलग हो सकता है लेकिन उत्तराखंड में बड़ी बनाने के लिए सामान्यतः पेठा या लौकी को मिलाया जाता है जिससे पकाते समय बड़ी मुलायम और स्वादिष्ट बनती हैं।
उड़द दाल की मसाला बड़ी को सुगम बनाने के लिए एक दिन पहले से दली/छिलके वाली उड़द दाल को साफ करके पानी से धोते हैं और रात भर पानी ने भीगने के लिए भगौने में रख देते हैं साथ ही कुम्हड़ा/पेठा के बीज वाला गुदा भाग और छिलका हटा देते हैं हैं फिर बाकी बचे नरम भाग को कद्दूकस करके उसका पानी निथार लेते हैं और सूती कपड़े में बांधकर कोई भारी वस्तु उसके ऊपर रख देते हैं जिससे कि पेठे का पानी अच्छी तरह से निकल जाए।
अगले दिन सुबह दाल का पानी निकालकर मक्सी में पीस लें और एक बर्तन में दाल को निकालकर खूब फेंटे। (एक कटोरी में पानी लेकर इस पिठ्ठी की एक बूंद टपकाएं अगर बूंद पानी के ऊपर तुरंत तैरती है तो दाल तैयार है और अगर नीचे बैठती है तो दाल को कुछ देर और फेंटे।)
इस पिठ्ठी में कद्दूकस किया पेठा मिलाएं और दरदरा कूटा हुआ साबुत धनिया, जीरा, काली मिर्च, हींग मिलाएं। थालियों या प्लेट में तेल लगाएं (सूती धोती या पन्नी पर भी बनाई जा सकती हैं) फिर पानी के हाथ से दाल मिश्रण लेकर छोटी छोटी बड़ियां टपकाएं। कड़क धूप में दो दिन सुखाएं और बड़ियां तैयार हैं। इसका स्वाद अब चाहे सादे चावल के साथ लो, रोटी के साथ या फिर खिचड़ी, पुलाव के साथ।
बस जरा सा फ्राई करने के साथ ही इसकी खुशबू पूरे घर में फैल जाएगी और साधारण तरकारी की तरह बनकर जीभ को खूब तृप्त करेगी।
दाल बड़ी बनाते समय ध्यान रखें Take care while making Urad Daal Wadi
बस कुछ बातें ध्यान रख सकते हैं जैसे कि बड़ियां तोड़ने का समय होली के बाद का रखें, अप्रैल मई में हवा खुश्क होती है और धूप भी तेज पड़ती है इसलिए बड़ियां जल्दी सूख जाती हैं। बड़ियों को एयर टाइट जार में स्टोर किया जाए और गीले हाथों से सूखी बड़ियां न निकाली जाए जिससे नमी न जाए। बरसात में बड़ियों को समय पर एक बार धूप लगा लें ताकि सीलन न आए। अगर एक किलो दाल है तो लगभग दो से तीन किलो पेठा हो क्योंकि पेठा कद्दूकस के बाद बहुत कम हो जाता है और दाल फूल की अधिक। मसाले अपनी आवश्यकता अनुसार डाल सकते हैं बस नमक डालने से परहेज करें।
महंगाई पर तो आम जनता कुछ नहीं कर सकती लेकिन महिलाएं निपुणता से अपनी रसोई पर कुछ हद तक नियंत्रण अवश्य कर सकती है और वैसे भी यहां बात केवल पैसे से संबंधित ही नहीं है। इन सामूहिक कार्यों से परिवार को स्वाद मिलता है और हम लोगों को घर की बनी और साफ सफाई की संतुष्टि।
एक -Naari
Maza aa gaya..padhkar hi..
ReplyDeleteThoda hummare liye bhi rakhna
ReplyDeleteMehnat ka fal chatpata bhi hota hai...
ReplyDeleteआपकी मेहनत एक दिन जरूर रंग लाएगी हमारी संस्कृति की बचाने के लिए! 👌👌👌🙏🙏🙏
ReplyDeleteसच में पढ़ कर मजा भी आ गया और बड़ी मां छोटी मां की यादें भी ताजा हो गई। बहुत बनाते थे हम लोग मूंग दाल बड़ी ,उड़द दाल बड़ी ,गहथ की बड़ी।
ReplyDeleteRecipe share karne kai liye. धन्यवाद।
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