थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

आशाएं: नई सरकार... नई महिला नीति

आशाएं....नई सरकार...नई महिला नीति


  वोट चाहे जिसको भी दिया हो, चुनाव चाहे अब जिस भी पार्टी ने जीता हो, सरकार चाहे अब किसी की पसंद की बनी हो या न हो लेकिन अब जनता के लिए बिना भेदभाव, निष्ठा और ईमानदारी से काम करे बस यही तो एक आम आदमी नई सरकार से चाहता है। 
   एक आम महिला तो अपने परिवार के लिए महंगाई और रोजगार तक ही सीमित हो जाती है और अपने लिए यहां भी भूल जाती है। ऐसे में सरकार और बुद्धिजीवी लोगों से ही उम्मीद की जा सकती है कि वो महिलाओं के विषय में भी सोचे।
  8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया और 10 मार्च को चुनावी परिणाम भी आ गए और इसी के साथ सरकार के प्रति महिलाओं की अपेक्षाएं भी बढ़ गई। जब एक छोटी से छोटी संस्था से लेकर बड़ी बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी भी महिला दिवस को व्यापक रूप से मना रही है तो चुनी हुई सरकार से तो उम्मीद की जा सकती है कि उनके पास भी महिलाओं के लिए कुछ विशेष हो। विशेषकर महिला नीति बनने की उम्मीद की जा सकती है जिसमें कुछ पहलुओं को ध्यान में रखा जाए।

महिलाओं को स्वस्थ रखने के लिए...
  अगर घर की महिला स्वस्थ है तभी घर के अन्य सदस्य भी स्वस्थ रहेंगे। एक महिला पूरे घर का ध्यान रखती है लेकिन अपने स्वास्थ्य के प्रति महिलाओं को हमेशा ही लापरवाह देखा गया है। महिलाओं की स्थिति शारीरिक और मानसिक रूप से सुदृढ़ होनी चाहिए। इसके लिए सरकार जगह जगह स्वास्थ्य जांच केंद्र खोल सकती है महिला स्वास्थ्य जागरूक कार्यक्रम चला सकती है जिनमें निशुल्क परामर्श और चिकित्सा की सुविधा हो।
   केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही नहीं महिला को मानसिक स्वास्थ्य की भी आवश्यकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार15-39 आयु वर्ग में दुनिया भर में आत्महत्या करने वाली महिलाओं में से 36 फीसदी महिलाएं भारतीय हैं। अधिकतर महिलाएं किसी न किसी चिंता या अवसाद से घिरी रहती है या फिर किसी भी मानसिक तनाव से जो एक प्रकार से मानसिक बीमारी का रूप ही हैं। सामाजिक कारणों से वे इन समस्याओं से अपने आप ही जूझती रहती हैं और कई बार आत्महत्या तक कर बैठती हैं इस पहलू पर भी सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए और कठोर नियम कानून भी बनाने चाहिए। ऐसे में सरकार पेशेवर विशेषज्ञों की सहायता लेकर सामाजिक जागरूक कार्यक्रम एवं शिविर लगा सकती है।
  खुले में शौच से हर किसी को बीमारी पकड़ सकती है और फिर महिलाओं को तो इन्फेक्शन पुरुषों की अपेक्षा अधिक होता है ये भी एक बेसिक परेशानी है जो महिलाओं को यात्रा के समय झेलनी पड़ती है। 
   इसलिए जगह जगह टॉयलेट (महिला प्रसाधन) की सुविधा भी सरकार को देनी चाहिए।पहाड़ के लिए तो ये भी बहुत बड़ी चुनौती है क्योंकि वहां तो बेसिक स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं है। समान्य रोगों के लिए तो छोड़ो महिला को प्रसव के लिए भी मीलों चलना पड़ता है। क्या वहां पर महिला स्वास्थ सेल बनाए जा सकते हैं। अंतिम वर्ष के मेडिकल छात्रों की तैनाती ऐसे दूरस्थ गांव में क्यों नहीं की जा सकती जो कम से कम महिलाओं की बेसिक स्वास्थ्य जांच तो कर सके। 

महिलाओं की शिक्षा के लिए...
  शिक्षा तो सभी के लिए अनिवार्य है और शिक्षा से ही समाज और देश का विकास होता है। सरकार का विकास भी तभी संभव है जब उसके राज में सभी शिक्षित हों। जबकि महिलाएं पुरषों के मुकाबले कम पढ़ी लिखी हैं। 
  उत्तराखंड भी इससे अलग नहीं है। लड़कियां पढ़ना तो चाहती हैं लेकिन पहाड़ में स्कूल कॉलेज घर से अधिक दूरी पर होने के कारण वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती क्योंकि उन्हें पढ़ने के साथ ही घर का काम भी करना पड़ता है।
    कुछ ऐसे तकनीकी कोर्स भी होते हैं जिनकी फीस लड़को के लिए तो पूरी भर दी जाती है लेकिन लड़कियों की इच्छा के बावजूद भी 'महंगा कोर्स' बोलकर आगे की पढ़ाई रोक दी जाती है। कभी कभी कुछ कुरीतियों और सामाजिक बंधनों के कारण भी लड़कियों या महिलाओं को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है या फिर वो महिलाएं जो शादी के बाद भी पढ़ने में इच्छुक रहती हैं उन्हें किस प्रकार प्रोत्साहन दिया जाए इसपर भी विचार होना चाहिए। 
  क्या इसके लिए महिलाओं द्वारा संचालित केंद्र काम कर पाएंगे? उनके आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए कुछ लचीले नियम बनाए जा सकते हैं? क्या विद्यालय महाविद्यालय या किसी भी शिक्षण संस्थान में प्रवेश प्रक्रिया महिलाओं के लिए सुगम हो सकती है? क्या उनकी पढ़ाई को सुगम बनाने के लिए कुछ तकनीकी कार्यक्रम सिखाए जा सकते हैं?? क्या गांव कस्बों के निकट महिला विद्यालय की स्थापना कारगर होगी?  महिलाओं के लिए कुछ विशिष्ट निशुल्क शिक्षा कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं जिससे उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाया जा सके। उनकी इच्छा के अनुरूप पढ़ाई का निशुल्क भर हो।

महिलाओं की सुरक्षा के लिए...
 महिलाओं की सुरक्षा भी उतनी जरूरी है जितनी सरकार अपनी कुर्सी की सुरक्षा करना चाहती है। चाहे घर हो या ऑफिस, खेत खलिहान हो या चौक बाजार, गांव की गली हो या शहर का कोई चौराहा स्कूल कॉलेज से लेकर बस स्टैंड तक हर जगह एक ऐसा माहौल की आवश्यकता है जहां महिलाएं बिना किसी डर के अपना काम कर सके। हालांकि ये अलग बात है कि उत्तराखंड को महिलाओं के लिय सुरक्षित माना गया है किंतु सुरक्षा की भावना तो हर महिला को होती है इसलिए कुछ विशेष महिला नीति लागू करने से भी राज्य की महिलाओं को संबल मिलेगा।  
  महिलाओं के लिए शारीरिक, मौखिक, आर्थिक या यौन संबंधी किसी भी प्रकार की प्रताड़ना पर राज्य ही नहीं पूरे देश में ही कड़े प्रतिबंध होने चाहिए और इसके लिए बराबरी का अधिकार भी जरूरी है। ताकि महिला को हर क्षेत्र में समानता मिले। उसे किसी भी क्षेत्र में असुरक्षा की भावना न रहे। आत्मरक्षा का प्रशिक्षण प्रत्येक महिला को बचपन से दिया जाना चाहिए जिससे कि वे किसी भी अप्रिय परिस्थिति में अपनी सुरक्षा करने में सक्षम हो।
   वैसे तो हमारे देश कि महिला सुरक्षा के कानून भी है जैसे चाइल्ड मैरिज एक्ट 1929, हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, हिंदू विडो रीमैरिज एक्ट 1856, इंडियन डाइवोर्स एक्ट 1969, मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन एक्ट 1986, सेक्सुअल हर्रास्मेंट ऑफ़ वुमन एट वर्किंग प्लेस एक्ट 2013 और भी बहुत से कानून हैं जो महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े हैं लेकिन फिर भी आज बहुत सी महिलाएं किसी न किसी खराब स्थिति में हैं। इसका एक कारण जानकारी का अभाव भी है। एक महिला अगर अपने अधिकारों की ही जानकारी प्राप्त कर ले तो उससे भी उन्हें हिम्मत मिल सकती है और इसके लिए उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी होना जरूरी है और साथ ही साथ शिक्षित होना भी। 
   शिक्षित होना तो पूरे समाज के लिए ही आवश्यक है क्योंकि अशिक्षा से रूढ़िवादी विचारों का जन्म होता है और इन विचारों से लैंगिक भेदभाव किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं के प्रति हिंसक भावनाएं भी पैदा होती हैं।

ग्रामीण महिलाओं के लिए
    शहरी महिलाओं में तो फिर भी ग्रामीण महिलाओं की अपेक्षा सामाजिक समर्थन और वित्तीय स्वतंत्रता अधिक है। उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाओं को भी तो आगे ले जाना होगा। अब जैसे उत्तराखंड की ग्रामीण महिलाओं को ही ले लें। पूरा पहाड़ महिलाओं ने ही संभाला हुआ है। घर के काम काज से लेकर खेती बाड़ी तक महिलाओं से संभाली हुई है।
   
    सच कहूं तो अगर पहाड़ की खेती का मुखिया महिलाओं को कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा। अब अगर सरकार इन्हीं महिलाओं को वित्तीय रूप से सशक्त करे तो क्या महिला सम्मान नहीं होगा जैसे कि इन महिला किसानों को बढ़ावा दे, जैविक खेती और आधुनिक कृषि तकनीक कार्यक्रम चलाए, कुछ वित्तीय सुविधा प्रदान करे, उन्हें कृषि व्यवसाय से जोड़े। 
छोटे छोटे समूह बनाकर हैंडीक्राफ्ट या कुटीर उद्योग का प्रशिक्षण देकर उन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है।
  पहाड़ में भौगोलिक विषमताओं के साथ खेती पूर्ण रूप से प्रकृति पोषित है। हालांकि अब पलायन एवं अन्य कारणों से भी पहाड़ में खेती करना भी अब चुनौतीपूर्ण है क्योंकि अब मौसम के ऊपर ही नहीं अपितु खेती अब जंगली जानवरों पर भी निर्भर करने लगी है। जंगली सुअर, बंदर, भालू, तोते आदि खड़ी फसल को भी पल भर में बर्बाद कर देते हैं। इसलिए महिलाओं को कृषि में सहयोग के लिए अनेक पहलुओं को भी ध्यान देना होगा।

   महिला दिवस को महिलाओं की शक्ति के रूप में मनाया जाता है। मेरे विचार से इस दिन महिलाओं को सम्मान देने के स्थान पर महिलाओं के प्रति सम्मान होना ज्यादा जरूरी है। सरकार महिलाओं की शक्ति को समझकर उनके अनुरूप योजनाएं बनाएं और समाज को विकसित करने का काम करें तो बेहतर होगा।
    महिलाओं की मूलभूत सुविधाओं पर ही अगर सरकार गौर फरमा लें तो उन्हीं से काम बन जाएगा। महिला चाहे शहरी हो या फिर ग्रामीण अंचल की सभी की अपने अपने जीवन में अलग अलग चुनौतियां हैं। उनकी चुनौतियों को ही ढंग से समझ लें तो भी समझा जा सकता है कि सरकार महिलाओं के लिए कुछ सोच रही है और कुछ ठोस करने जा रही है।
    एक आम महिला का किसी एक विशेष दिन सम्मान देना बहुत ही हर्ष का विषय है लेकिन प्रत्येक महिला का सम्मान किसी विशेष दिन नहीं अपितु हमेशा ही करना चाहिए और यह सम्मान सरकार केवल चुनावी घोषणाओं, कागजी कार्यवाही या फिर फूल, माला, शाल या केवल फोटो खिंचवाने तक ही सीमित न हो। 
   एक और बात कि महिलाओं की समस्याएं एक महिला ही बहुत अच्छे से समझ सकती है और इस चुनाव में महिलाओं की भागीदारी से उम्मीदें भी लगा दी हैं कि अब महिला दिवस केवल फूल सम्मान, नृत्य गान से ही नहीं अपितु नई महिला नीति के साथ आगे बढ़ेगा हालांकि इसके लिए केवल सरकार ही नहीं समाज की भागीदारी भी उतनी ही आवश्यक होगी। इसलिए सरकार तो अपना काम करेगी ही साथ ही समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
  


एक- Naari

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