शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

गांधीवादी से गांधीगिरी तक!!

गांधीवादी से गांधीगिरी तक!!
  गांधी जी के बारे में इतना लिख और पढ़ चुके हैं लोग कि अब और कुछ बचा नहीं है बताने को तभी तो आज अगर पूछा जाए कि ऐसा कौन है जो गांधी को सुनना, देखना या पढ़ना पसंद करता हो तो जवाब में बहुत कम ही लोग हामी भरेंगे। उनके विषय में आज शायद सबके अपने अपने विचार और तर्क होंगे लेकिन राष्ट्रपिता तो वही हैं।
   अब भले ही लोग गांधी से प्रेम करें या न करें लेकिन गांधी जयंती से प्रेम तो करते ही हैं क्योंकि इस दिन अवकाश का आनंद जो मिलता है और अवकाश का आनंद तो दोगुना तब हो जाता है जब अगले दिन भी शनिवार या रविवार हो। 
  इस बार भी ऐसा ही योग बना है कि अब छुट्टी का मजा दो दिन तक रहेगा लेकिन क्या हम भी गांधी जयंती में गांधी जी को याद करेंगे?? ये भी सोचना पड़ेगा न!!

    आज समय के साथ भले ही बहुतों के मन से गांधीवादी विचार धुल रहे हों लेकिन उनकी अहिंसक छवि मिटी नहीं है और आज भी जब बच्चा उनके चित्र के सामने खड़े होकर पूछता है कि ये कौन है?? तो हमारे मुंह से एक सुर में निकलता है 'राष्ट्रपिता महात्मा गांधी'। इसलिए ये तो मानना ही पड़ेगा कि हमारे अंदर किसी कोने में गांधी नाम न भी हो लेकिन गांधीवाद तो है ही। 
   और इसी गांधीवाद के लिए दो अक्टूबर के दिन उनके चरित्र के लिए, विचार के लिए, सत्य के लिए, समर्पण के लिए, सेवा के लिए, त्याग के लिए, सादा जीवन के लिए घंटो नहीं लेकिन कुछ मिनट के लिए महात्मा गांधी जी को याद करना चाहिए। 
   भले ही उनकी कोई किताब (सत्य के साथ मेरे प्रयोग, मेरे सपनों का भारत, हिन्द स्वराज)पढ़ी जाए, या फिर उनका प्रिय भजन (वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे )सुना जाए या गुनगुनाया जाए, या फिर गांधी आश्रम की कोई वस्तु ली जाए या खादी पहनी जाए और कुछ नहीं तो लगे रहो मुन्नाभाई या मुन्नाभाई एमबीबीएस ही देखी जाए जहां मुन्ना भाई भी गांधीवादी को अपनाकर गांधीगिरी तक पहुंच गया था और अपनी हर मुश्किल का हल उसनेे निकाल ही लिया था। इसलिए इस गांधी जयंती के अवकाश में भले ही कुछ समय लेकिन गांधीदर्शन के लिए या तो गांधीवाद नहीं तो गांधीगिरी अपनाई जाए।


एक - Naari

Comments

  1. Too Relatable...Munnabhai ki Gandhigiri yaad hai... isliye movie dekhkar hi Gandhi Jayanti mana lenge...

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  2. This is true that we celebrate this day just as a Mandatory Holiday, which is so wrong. One must celebrate it to remember not just Mahatma Gandhi but everyone like him. Jai Hind .

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