केदारनाथ,,,जहां के कण कण में शिव है।
- Get link
- X
- Other Apps
जय बाबा केदारनाथ ,,The power of Kedarnath
मेरा पिछला लेख भगवान बद्रीनाथ जी को समर्पित था तो इस बार बाबा केदार का सुमिरन किए बिना नहीं रहा जा सकता क्योंकि कहते हैं कि बिना केदारनाथ की यात्रा किए बद्रीनाथ जी के दर्शन अधूरे हैं। यह क्षेत्र भी तो बद्रीनाथ क्षेत्र की भांति केदारखंड ही कहलाता है और केदारखंड में भी लिखा गया है,,,
'अकृत्वा दर्शनम् वैश्वय केदारस्याघनाशिन:, यो गच्छेद् बदरी तस्य यात्रा निष्फलताम् व्रजेत्'
(केदारनाथ जी के दर्शन किए बिना अगर कोई बद्रीनाथ जी की यात्रा करता है तो उसकी यात्रा निष्फल /व्यर्थ होती है।)
भले ही मैं अभी किसी प्रकार की यात्रा नहीं कर रही हूं लेकिन उनके नाम और धाम के सुमिरन करके भी मन को थोड़ा संतोष तो मिल ही रहा है कि अगर मैं धाम की यात्रा नहीं कर सकती तो क्या हुआ! कम से कम बाबा बद्री-केदार की आध्यात्मिक यात्रा पर तो निकल ही सकती हूं और मुझे लगता है कि इस प्रकार से आप भी बहुत यात्राएं कर सकते हैं जैसे मैंने की।।।
Books are the plane, and the train, and the road. They are the destination, and the journey. They are home.....Anna Quindlen
सभी को पता है कि उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। उत्तराखंड में तीर्थ करने के लिए हिमालय के चार धाम के साथ पंच केदार, पंच बद्री, पंच प्रयाग भी है और कितने ही प्राचीन सिद्धपीठ, मंदिर, मठ और कुंड भी है लेकिन बद्रीनाथ और केदारनाथ जी का महात्म्य सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
कहते है कि ईश्वर को अगर देखना है तो मन के अंदर झांको और अगर खोजना चाहते हो तो सृष्टि को ढंग से देखो क्योंकि कण कण में तो ईश्वर विराजमान है। बस प्राणी को उसे देखना मात्र है लेकिन एक सत्य तो यह भी है कि अगर भगवान शिव को अगर जानना है और उसके चरणों में ध्यान लगाना है तो शिवलोक कहे जाने वाले केदारनाथ धाम से बड़ा कोई उचित स्थान नहीं है जहां माना गया है कि भगवान शिव वहां स्वयं विराजते हैं।
केदारनाथ का इतिहास History of kedarnath
मंदिर के विषय में कहा जाता है कि यह लगभग हजार साल पुराना है। कुछ इतिहासकार का मानना है कि आदि गुरु शंकराचार्य जी ने 8वीं शताब्दी में इसका निर्माण किया था और कुछ इतिहासकार मंदिर को पांडव वंश के राजा जन्मयजय द्वारा निर्मित भी मानते हैं। वैसे मंदिर के निर्माण के विषय में कोई उपयुक्त प्रमाण नहीं है लेकिन इसका निर्माण 12वीं से 13वीं सदी में किया गया था ऐसा उल्लेख राहुल सांकृत्यायन (महापंडित साहित्यकार) ने किया है लेकिन साथ ही साथ भोज स्तुति के अनुसार केदारनाथ मंदिर का निर्माण राजा भोज द्वारा 1079 - 1099 में किया गया था।
जाने माने इतिहासकार डॉक्टर शिव प्रसाद डबराल के अनुसार तो यह मंदिर अति प्राचीन है और यहां पर शैव संप्रदाय के लोग या साधक शंकराचार्य के समय से पहले भी जाते रहे हैं।
मैंने एक लेख भी पढ़ा था जिसमें बताया गया था कि वाडिया इंस्टीट्यूट के हिमालयन जियोलॉजिकल के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार तो हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र जिसमें केदारनाथ मंदिर भी था, 400 साल (13 वीं से 17 वीं शताब्दी) तक बर्फ से ढका हुआ था। यह समय यहां पर हिमयुग का था जिसके निशान मंदिर की दीवारों पर भी है किंतु फिर भी मंदिर इतने वर्षों में भी सुरक्षित रहा।
केदारनाथ मंदिर से संबंधित जानकारी Information related to Kedarnath temple
केदारनाथपुरी हिमालय के केदार पर्वत की तलहटी में स्थित ज्योतिर्लिंग है जो सबसे अधिक ऊंचाई पर है जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 3562 मीटर है।
केदारनाथ धाम भी बद्रीनाथ धाम की भांति वर्ष के सिर्फ छः माह ही खुलता है और प्रतिकूल जलवायु के कारण शीत ऋतु में छः माह के लिए कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
कपाट खुलने और बंद करने का भी विधिवत दिन किया जाता है और तब भगवान शिव की पंचमुखी विग्रह डोली को कपाट खुलने (अप्रैल या मई)पर ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर से केदारनाथ और कपाट बंद ( अक्टूबर या नवंबर) होने पर (शीतकालीन गद्दी ऊखीमठ, ओंकारेश्वर मंदिर) इसी स्थान पर विराजमान कर दिया जाता है और यहीं पूजा अर्चना की जाती है।
केदारनाथ के पुजारी भी दक्षिण भारत से आते हैं जो मैसूर के विशेष जंगम ब्राह्मण होते हैं इन्हें ही बाबा केदार की पूजा की अनुमति है, ऐसा कहा जाता है कि आदि गुरुशंकराचार्य के समय से यही प्रथा चली आ रही है और इन्हें भी बद्रीनाथ जी के पुजारी की भांति रावल ही कहा जाता है।
चमत्कारिक अखंड ज्योति Eternal Deepak
बद्रीनाथ की भांति यहां भी अखंड ज्योति जलती है। केदारनाथ जी के कपाट बंद होने के समय मंदिर में साफ सफाई की जाती है और दीपक के साथ ही पूजा अर्चना करके मंदिर के द्वार शीत ऋतु में छः माह के लिए बंद हो जाते हैं। इन छः माह के दौरान केदारनाथ धाम में किसी को भी जाने की अनुमति नहीं है। जब छः माह के बाद कपाट खोले जाते हैं तो मंदिर में अखंड दीपक जलता हुआ ही मिलता है साथ ही साथ पहले की भांति ही मंदिर साफ सुथरा भी होता है। इसे भी लोग बाबा केदारनाथ जी का चमत्कार ही मानते हैं।
केदारनाथ का महत्व Significance of Kedarnath
केदारनाथ का सबसे बड़ा महत्व तो यही है कि यह भगवान शिव की भूमि है क्योंकि यहां भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में उपस्थित है। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयं माता पार्वती को इस भूमि को अति प्राचीन और अपना आवास बताते हैं इसीलिए इसकी महत्ता तो और भी बढ़ जाती है।
केदारनाथ आकर इस दिव्य ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से समस्त पापों का नाश होता है और केदारखंड की यात्रा करने से व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त होता है इस बात का उल्लेख भी शिव पुराण में मिल जाता है,,,
केदारेशस्य भक्ता ये मार्गस्थास्तस्य वै मृता:।
तेऽपि मुक्ता भवन्त्येव नात्र कार्य्या विचारणा।।
तत्वा तत्र प्रतियुक्त: केदारेशं प्रपूज्य च।
तत्रत्यमुदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विन्दति।।
केदारनाथ एक ऐसा स्थान है जहां अविनाशी शिव का अनुभव वहां के कण कण में होता हैं। बाबा केदार के दर्शन स्वयं भगवान शिव के दर्शन के समान हैं। इस ज्योतिर्लिंग के अग्र भाग को देखने पर भगवान गणेश का मुख और माता के श्री यंत्र की आकृति भी दिखाई देती है।
केदारनाथ मंदिर में मुख्य भगवान शिव का ही धाम माना जाता है किंतु यहां भगवान शिव के साथ माता पार्वती, भगवान गणेश, विष्णु, लक्ष्मी, द्रौपदी, कुंती और पांडवों की भी पूजा की जाती है। भैरव मंदिर भी है जिनके बारे में कहा जाता है कि भैरव देव मंदिर के संरक्षक है इसलिए इनके दर्शन करने से बाबा केदार प्रसन्न होते हैं।
यहां भगवान शिव का पूजन, आरती, अभिषेक, के साथ भैरव पूजा, गणेश पूजा, लक्ष्मी पूजा, शिव सहस्त्रनाम, पांडव पूजा भी होती है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के धाम में इन सभी की पूजा से भगवान शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। पूरी श्रद्धा भाव से किए गए पूजन से भक्त भगवान की शरण में समाहित हो जाता है और बाबा केदार अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर कर देते हैं।
केदारनाथ में देश दुनिया के ऐसे साधक, बाबा और योगी भी आते हैं जो कठिन जलवायु में भी बाबा केदार के ध्यान में मग्न रहते हैं और तपस्या करते हैं।
केदारनाथ से जुड़ी अदभुत कथा Amazing story related to Kedarnath
केदारनाथ से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार जब पांडव लोग कुरुक्षेत्र के धर्मयुद्ध में विजयी तो हुए थे किंतु साथ ही भ्रातृहत्या, गुरु और अन्य संबंधियों की हत्या के अपराधबोध से भी ग्रसित थे इसीलिए पापमुक्ति के लिए राज्य त्याग कर भगवान शिव की आराधना करने के लिए निकल पड़े किंतु भगवान शिव नरसंहार से अप्रसन्न थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए केदार आ गए।
जब पांडव इस स्थान पर भगवान शिव का सुमिरन करते हुए आए तो भगवान शिव महिष (भैंस) का रूप लेकर अन्य पशुओं के साथ जा मिले। तब भीम ने अपने विशाल पैरों से दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए और सभी पशु वहां से निकल गए किंतु भैंस के रूप में भगवान शिव को भीम के पैरों से निकल कर जाना उचित नहीं लगा इसलिए वे आगे नहीं बढ़े।
भीम ने भैंस को देखकर तुरंत पहचान लिया और यह भांप कर भैंस भी धरती पर समाहित होने लगे। यह देखकर भीम तुरंत ही उन्हें पकड़ने के लिए झपटे और भैंस की पीठ का ऊपरी तिकोना भाग पकड़ लिया और तब भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें पापमुक्त कर दिया।
यही त्रिकोणात्मक भाग ज्योतिर्लिंग के रूप में केदारनाथ में पूजा जाता है और भैंस के धड़ का ऊपरी भाग सिर नेपाल स्थित काठमांडू में प्रकट हुआ जहां भगवान शिव को पशुपतिनाथ के रूप में पूजा जाता है साथ ही साथ मुख रुद्रनाथ में, शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए और इन्ही चार स्थानों को केदारनाथ के साथ सम्मिलित रूप से पंचकेदार कहा जाता है।
तुंगनाथ मंदिर तो भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है जो समुद्र स्तर से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित शिवालय है।
केदारनाथ से जुड़ी एक और कथा है कि जब भगवान विष्णु के अवतार नर और नारायण ने हिमालय के केदारखंद में जब भगवान शिव की तपस्या की थी तो भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उनकी तपस्या फलीभूत की ओर उनकी प्रार्थनानुसार सदा के लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में केदार श्रृंग में प्रकट हो गए।
युवाओं की विशेष केदारनाथ यात्रा Special Kedarnath Yatra of youth
वैसे तो भगवान सभी के हैं और भगवान के लिए भी सभी एक हैं और केदारनाथ तो भगवान शिव की भूमि है जहां पर बाबा केदार की कृपा सभी पर एक समान है।
केदारनाथ धाम भी एक उच्च तीर्थ स्थान है लेकिन यहां सिर्फ वृद्ध ही नहीं आते अपितु हर आयु वर्ग के लोग आते हैं और अब तो देखा गया है कि युवाओ का केदारनाथ जी की यात्रा के प्रति विशेष आकर्षण है और यहां की यात्रा तो आजकल के युवाओं के बीच एक चर्चित ट्रैक है जहां ट्रैकिंग के लिए सिर्फ युवा ही नहीं अपितु अन्य साहसिक पर्यटक भी आते हैं।
केदारनाथ से 3 किमी आगे गांधी सरोवर (यहां गांधी जी की अस्थियां और राख विसर्जित हुई थी, मूल रूप से इसे कांति सरोवर के नाम से जाना जाता था, चौराबाड़ी ग्लेशियर से इस झील की उत्पत्ति हुई इसलिए इसे चौराबाड़ी ताल भी कहते हैं ) और 6 किमी आगे वासुकी (नागों के राजा, शिव के परम भक्त) ताल (लैंड ऑफ ब्रह्मकमल, श्रावण मास में केदारनाथ जी को यही पुष्प अर्पित किया जाता है जिसे रोज नंगे पांव इस जगह से तोड़कर लाया जाता है)भी है जहां लोग ट्रैक करके भी पहुंचते हैं। कारण चाहे उनकी भगवान शिव के प्रति भक्ति हो या केदारनाथ धाम का अनुपम और नैसर्गिक सौंदर्य जो उन्हें यहां खींच लाता है। लेकिन यह अवश्य है की प्रत्येक यात्री अपनी यात्रा का आनंद अपने अपने हिसाब से ले ही लेता है।
केदारनाथ आपदा,,, प्रकृति द्वारा ईश्वर की चेतावनी Kedarnath disaster,,, Warning by God
16 जून 2013 का दिन किसे याद नहीं है!! दो दिन की लगातार बारिश और बादल फटने के कारण केदारनाथ में शांत दिखने वाली मंदाकनी ने ऐसी भीषण तबाही मचाई कि केदारनाथ धाम का सब कुछ लील लिया सिर्फ केदारनाथ मंदिर को छोड़कर क्योंकि एक बहुत बड़ी शिलाखंड बाढ़ के साथ बहकर ठीक मंदिर के पीछे आकर ठहर गई जिससे की बाढ़ दो हिस्सों में बंटकर मंदिर के दाईं और बाईं ओर से विनाश करती हुई आगे बढ़ गई। अब इस शिला का भी पूजन किया जाता है।
कुछ तो शक्ति विद्यमान रही थी उस समय भी तभी तो मानवनिर्मित सब कुछ नष्ट हो चुका था केवल केदारनाथ का मंदिर ही सुरक्षित था। बाढ़ इतनी भयंकर थी कि केदारनाथ से पहले पड़ने वाले पड़ाव रामबाड़ा का तो लेश मात्र भी पता नहीं चला। कितने ही मरे, कितने ही बिछड़े और कितने ही लापता हुए इसकी सटीक गिनती करना बहुत ही मुश्किल है।
अब कहने को तो यह एक प्राकृतिक आपदा थी लेकिन क्या इस आपदा के पीछे कुछ अन्य कारण भी थे? इतनी शांत जगह में मानव का इतना अधिक हस्तक्षेप क्या उचित है? अनगिनत निर्माण, पहाड़ों और चट्टानों का कटान, अवैज्ञानिक तरीकों से सड़क और बेतरतीब जल विद्युत योजनाओ से कहीं न कहीं तो प्रकृति को नुकसान ही पहुंच रहा है।
मानवनिर्मित विकास के लिए प्रकृति का दोहन करना बहुत महंगा पड़ता है और केदारनाथ की प्रलयकारी बाढ़ एक प्रकार से सभी के लिए चेतावनी भी थी जिसे हमने प्राकृतिक आपदा समझ कर छोड़ दिया। इस विषय को सरकार और प्रशासन के साथ साथ एक आम नागरिक को भी गंभीरता से सोचना होगा।
वैसे तो कहते हैं कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत मिल जाएंगे उस दिन बद्री केदार भी लुप्त हो जाएंगे।
( सोचो तो लगता है कि कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि फिर से ऐसी ही कोई मानवनिर्मित आपदा आ जाएगी और ग्लेशियर पर्वत सब टूट कर एक समतल भूमि बन जाएंगे फिर धाम भी लुप्त हो जाएंगे और गंगा भी। तब ऐसी स्थिति में हम कहां होंगे इसका अनुमान तो लगाया भी नहीं जा सकता।)
इसीलिए बाबा केदारनाथ से प्रार्थना है कि हम मानवों को सद्बुद्धि दे और संपूर्ण जगत का कल्याण करें।
हे बाबा केदारनाथ! आप यहीं इस पावन भूमि में हमेशा विराजमान रहें और हम मानवों को अपनी शरण में लेकर मोक्ष प्रदान करें।
जय बाबा केदारनाथ!!
एक - Naari
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
जय श्री बद्रीनाथ
ReplyDeleteBhole nath ki mahima aur manav ko di hui barbaadi dono ka hi samadhan bohot khub kiya apne.Bohot khub.
ReplyDeleteबिल्क़ुल सही लिखा,,,जय बाबा केदारनाथ की
ReplyDeleteJai Baba Bhole Nath ki ......
ReplyDeleteAccha laga pad kar, bahut saari baate ko GK ki bhi thi. Good👏👏
ReplyDeleteBahut Sundar rqchana. Sadhuwad
ReplyDeleteI admire this article for the well-researched content and excellent wording. jaganath temple puri. I got so involved in this material that I couldn’t stop reading. I am impressed with your work and skill. Thank you so much.
ReplyDelete