स्वाद भी संतुष्टि भी: बरसात में खास उत्तराखंडी रसोई से


  उत्तराखंड विशेष...
  बरसात के व्यंजन : स्वाद भी, संतुष्टि भी 

 जरा सी बारिश हुई नहीं और आँखों के आगे व्यंजन घूमने लग जाते हैं। तब तो लगता है कि झट से लजीज़ पकवान सामने आ जाएँ और हमारे उदर के साथ मन को भी भर जाएं। चाहे अदरक वाली चाय और प्याज की भजिया हो या गर्मा गर्म समोसे और जलेबी। एक मन तो गर्म भाप वाले मोमो के साथ तीखी लाल चटनी के लिए भटकता है तो कभी हमें ब्रेड पकौड़े और कचौड़ी की तलब भी लगती है। सच में, बरसात में तो गर्मा गर्म सूप और कॉफी पीने का भी एक अलग मज़ा होता है। ऐसे में लगता है कि ये बारिश इन व्यंजनों का लुत्फ़ उठाने के लिए ही आई है। फिर तो इनका ख्याल आते ही मुंह में पानी आना स्वभाविक हो जाता है। 
   चित्र आभार: श्री मती पूजा शर्मा, ऋषिकेश

  लेकिन यहाँ जब बरसात होने पर इतने सारे व्यंजन मुंह मे पानी देते हैं। वहीं पहाड़ में बनने वाले साधारण किन्तु पौष्टिक व्यंजन मन को स्वाद और संतुष्टि से भर देते है क्योंकि वहां का वातावरण ही कुछ ऐसा होता है जो खाने को और भी स्वादिष्ट बना देता है। 
  जी हाँ, पहाड़ में  चाहे झमाझम बारिश हो या रुनझुन फूहारें, एक अलग स्वरुप में प्रकृति आपके सामने होती है। सच मानें, जब पूरे पहाड़ ही हरियाली से लक दक बने हो, उनके ऊपर कोहरे की चादर लहरा लहराकर करवट ले रही हो और साथ ही बारिश की बूँदे दणमण-दणमण संगीत सुना रही हो तो रसोई में बने व्यंजन ही नहीं अपितु चूल्हे से उठते धुएँ की भी महक मन को आनंदित कर देती है। इस मौसम में तो उत्तराखंड में बनने वाले साधारण व्यंजन भी हम पहाड़ियों के लिए खास हो जाते हैं। चाहे, भूड़े हों, अरबी के पत्तों के पतौड़े (पत्युड़) हों या फिर भंगजीरे और जख्या से छोंके आलू के गुटके और उनके साथ मीठी चाय। तब ये पेट और मन दोनों को भूख से बड़ी राहत देते हैं।
   कंडली का साग, फाणा, चैंसू, झोली, कापा, काले भट्ट की चुरकानी, मूली थिंचवनी, रसा भात उत्तराखंड में बनने वाले ये सारे व्यंजन साधारण हैं, इनमें किसी विशेष पाक कला की या फिर विशेष मसालों की आवश्यकता नहीं होती है फिर भी ये प्रोटीन और पोषक तत्वों से भरी थाली होती है। उत्तराखंड के व्यंजन थाली कोई फैंसी थाली की तरह नहीं दिखाई देती। शायद तभी उत्तराखंड से बाहर अभी ये उतनी लोकप्रिय नहीं हैं लेकिन ये अवश्य है कि ये साधारण होने के साथ साथ पौष्टिक तत्वों से भरपूर है।
   चुंकि यहाँ कि भौगोलिक और आर्थिक स्थिति ही ऐसी रही है जिसमें खेती करना और अनाज उगाना करना हमेशा से एक संघर्ष की तरह ही रहा है। इसलिए साधारण उपलब्ध भोज्य पदार्थों से ही तरह तरह की विवधता के साथ खाना तैयार करना यहाँ की महिलाओं ने सीख लिया था इसलिए यहाँ बहुतायात में  मिलने वाली बिच्छू घास (गढ़वाल में कंडाली और कुमाओं में  सिसुन) और तिमलू का साग बना लिया। 
  पालक मेथी को उबाल कर आटे या बेसन के आलन (गाढ़ा घोल) के साथ धबड़ी बना दी। राई के पत्तों को उबाल कर उसके साथ बेसन भूनकर डाल दिया तो कफ़ली/ कापा बना दिया। अरबी पत्तों से पत्युड़, उसकी जड़ो से पिनालू सब्जी और पत्तों को पापड़ बोलकर ठूंगार कर दिया यहाँ तक कि उसके तनों से नाल बड़ी और भात बना दिया।
सूखी दाल को महीन पीसकर लोहे की काढाई पर धीमी आंच पर चैंसू पका दिया और दाल भीगी तो फाणा और डुबके बना दिये। मोटी दाल उबाली तो उसके रस से रसा भात का व्यंजन बनाया और बची दाल से भरी रोटी। 
 गेंहू तो प्राय: उपलब्ध ही नहीं होता था इसलिए मंडुए की रोटी और उससे बनी बाड़ी ही खायी जाती थी। मंडुए के साथ झंगोरे (समा के दाने) की खीर या पल्यो बनाया जाता था। मीठे के लिये लाल चावल से खुस्का बना लिया नहीं तो आटे की गुड़ झोली।
    हमारे पुरखों ने मोटा अनाज ही बोया और खाया था इसलिए उसी अनाज के साथ अपने व्यंजन बनाने सीख लिए और यही हमें भी विरासत में दिया। इसमें सबसे अच्छी बात यह रही कि उत्तराखंड में  बनने वाले व्यंजन सरल होते हैं। इनमें कोई प्याज, टमाटर या काजू की गाढ़ी ग्रेवी की आवश्यकता ही नहीं है। घर में उपलब्ध हरी मिर्च, अदरक, लहसुन, हिंग, जख्या, लौंग, नमक, हल्दी, धनिया इत्यादि साधारण मसाले से ही तैयार कर दिये जाते हैं। 
   बस इनमें पीसने के लिए सिलबट्टे का प्रयोग, बनाने के लिए लोहे की कढ़ाई का प्रयोग और पकाने के लिए चूल्हे की धीमी आंच का प्रयोग करने से खाने को एक अलग स्वाद मिलता है। 


  उत्तराखंड की पहचान उसकी संस्कृति, सभ्यता और परम्पराओं के साथ साथ उसके साधारण खानपान से भी है। समय के साथ आज हम मिट्टी के चूल्हों की जगह गैस चूल्हे का प्रयोग करते हैं लेकिन आज भी इनके बनने पर स्वाद के साथ संतुष्टि मिलती है। अब हम चाहे अपने पहाड़ों में रहे या फिर मैदानी इलाकों में लेकिन जब भी बरसात होती है तो अपने पहाड़ की छोटी सी रसोई से निकलती खुशबू तो उत्तराखंडी खाने की जरूर याद दिलाती है।
  तो आइये, बरसात में उत्तराखंड की रसोई से लें, स्वाद भी और संतुष्टि भी।

एक -Naari 
    

Comments

  1. A delightful journey into the rich and authentic flavors of Garhwal. This blog beautifully captures the essence of traditional Garhwali cuisine, offering both cultural depth and culinary inspiration.

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  2. Great ma'am big fan of your blogs and topic selections.

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  3. बहुत सुंदर लेख। भाषा में गढ़वाल के शब्दों का प्रयोग मन को भाया।

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