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Showing posts from July, 2025

The Spirit of Uttarakhand’s Igas "Let’s Celebrate Another Diwali "

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  चलो मनाएं एक और दिवाली: उत्तराखंड की इगास    एक दिवाली की जगमगाहट अभी धुंधली ही हुई थी कि उत्तराखंड के पारंपरिक लोक पर्व इगास की चमक छाने लगी है। असल में यही गढ़वाल की दिवाली है जिसे इगास बग्वाल/ बूढ़ी दिवाली कहा जाता है। उत्तराखंड में 1 नवंबर 2025 को एक बार फिर से दिवाली ' इगास बग्वाल' के रूप में दिखाई देगी। इगास का अर्थ है एकादशी और बग्वाल का दिवाली इसीलिए दिवाली के 11वे दिन जो एकादशी आती है उस दिन गढ़वाल में एक और दिवाली इगास के रूप में मनाई जाती है।  दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में फिर से दिवाली क्यों मनाई जाती है:  भगवान राम जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 11वें दिन मिली थी इसलिए दिवाली 11वें दिन मनाई गई। वहीं गढ़वाल के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी अपनी सेना के साथ जब तिब्बत लड़ाई पर गए तब लंबे समय तक उनका कोई समाचार प्राप्त न हुआ। तब एकादशी के दिन माधो सिंह भंडारी सेना सहित तिब्बत पर विजय प्राप्त करके लौटे थे इसलिए उत्तराखंड में इस विजयोत्सव को लोग इगास को दिवाली की तरह मानते हैं।  शुभ दि...

Teej Where Love Meets Devotion and Grace

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    तीज: सुहागनों का उत्सव (प्रेम, तप, समर्पण, श्रृंगार)       छाया: मोनिका ठाकुर, देहरादून   प्रकृति स्वयं माता पार्वती का एक रूप है इसलिए सावन माह में जहाँ हम भगवान् शिव की आराधना करते हैं  वहीं शिवा की पूजा का भी विशेष महत्व है। सावन माह में आने वाली तीज माता पार्वती को ही समर्पित पूजा है। इस दिन सुहागन महिलाएं  माता पार्वती से अपने सुहाग की लम्बी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं।  पार्वती का तप:  पौराणिक कथानुसार माता पार्वती आदिदेव शिव से विवाह करना चाहती थी लेकिन शिव उस समय विरक्त थे। नारद मुनि ने बचपन से ही माता के अंदर शिव नाम के बीज बौ दिये थे इसलिए माता शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप करने का निर्णय लिया।     शिव महापुराण के द्वितीय पार्वतीखंड के बाईसवें अध्याय के अनुसार माता पार्वती ने अपने राजसी वास्त्रों को त्यागकर मौंजी और मृगछाला पहनी और गंगोत्री के समीप श्रृंगी नामक तीर्थ पर शंकर जी का स्मरण कर तप करने के लिए चली। तपस्या के पहले वर्ष माता ने केवल फल का आहा...

सावन: शिवनाम: आत्मकल्याण

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 शिवनाम: कल्याण के लिए हिन्दू सभ्यता और संस्कृति में सावन का आना मतलब कि एक नई ऊर्जा का संचार होना है। इसकी हरियाली नव जीवन का द्योतक है जो हमें शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक रूप से नया जीवन देती है। जहाँ इसे प्रेम और वृद्धि का समय माना जाता है वहीं सावन को  आत्म शुद्धि करने का समय भी माना जाता है जिसका अर्थ है हमें मानसिक, आत्मिक और अध्यात्मिक रूप से दृढ़ता मिलना।      चुंकि शिव सगुण भी हैं और निर्गुण भी, पालनकर्ता भी और संहारकर्ता भी, संसारिक भी है और विरक्त भी, शांत भी है तो रुद्र भी। हर स्थिति परिस्थिति में भगवान शिव को एक संतुलन बनाए रखते है। इसलिए भगवान शिव की आराधना से हमें जीवन में संतुलित रहने की शक्ति मिलती हैं।  सावन मास में भगवान शिव की साधना, पूजा, अर्चना, स्तुति, पाठ, अभिषेक एवं उनके नाम मात्र के जप से ही घर में सुख, समृद्धि, शांति और शक्ति की प्राप्ति होती है इसलिए हिन्दुओं में सावन के शुभ माह में महादेव शिव को पूजा जाता है। लेकिन  सत्य यही है कि केवल सावन माह मे ही नहीं अपितु हर क्षण, हर समय, हर काल में शिव नाम सर्वदा हितकारी है। ...

स्वाद भी संतुष्टि भी: बरसात में खास उत्तराखंडी रसोई से

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  उत्तराखंड विशेष...   बरसात के व्यंजन : स्वाद भी, संतुष्टि भी   जरा सी बारिश हुई नहीं और आँखों के आगे व्यंजन घूमने लग जाते हैं। तब तो लगता है कि झट से लजीज़ पकवान सामने आ जाएँ और हमारे उदर के साथ मन को भी भर जाएं। चाहे अदरक वाली चाय और प्याज की भजिया हो या गर्मा गर्म समोसे और जलेबी। एक मन तो गर्म भाप वाले मोमो के साथ तीखी लाल चटनी के लिए भटकता है तो कभी हमें ब्रेड पकौड़े और कचौड़ी की तलब भी लगती है। सच में, बरसात में तो गर्मा गर्म सूप और कॉफी पीने का भी एक अलग मज़ा होता है। ऐसे में लगता है कि ये बारिश इन व्यंजनों का लुत्फ़ उठाने के लिए ही आई है। फिर तो इनका ख्याल आते ही मुंह में पानी आना स्वभाविक हो जाता है।     चित्र आभार: श्री मती पूजा शर्मा, ऋषिकेश   लेकिन यहाँ जब बरसात होने पर इतने सारे व्यंजन मुंह मे पानी देते हैं। वहीं पहाड़ में बनने वाले साधारण किन्तु पौष्टिक व्यंजन मन को स्वाद और संतुष्टि से भर देते है क्योंकि वहां का वातावरण ही कुछ ऐसा होता है जो खाने को और भी स्वादिष्ट बना देता है।    जी हाँ, पहा...

सावन और शिव

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नटखट सावन और शांत शिव      सावन के नटखट रूप पल पल बदलते हैं, कभी दनदनाती तेज बारिश, कभी भीनी भीनी बौछार। कभी काला आसमान तो कभी इसी आसमान में इंद्रधनुष के रंग। कभी चटख धूप और उमस की गर्मी तो कभी हवाओं की ठंडक। इस चंचलता के साथ भी सावन और शिव का गहरा सम्बन्ध है। जहाँ सावन इतना चंचल है वही पर शिव नाम उतना ही शांत और स्थिर।    सावन की प्रकृति ही ऐसी है जो उसे स्थिर नहीं रहने देती। ये स्वरूप मनुष्य को भी प्रभावित करता है। हम भी तो प्रकृति माँ के पुत्र है इसीलिए सावन की चंचलता हमारी प्रकृति में  भी आना स्वभाविक है।ये चंचलता प्रकृति का एक स्वरूप है और प्रकृति जो स्वयं पार्वती मां हैं उनकी चंचलता तो केवल परमपिता शिव ही संभाल सकते है इसलिए सावन में शिव की स्तुति मानव कल्याण करती है। सावन में शिव के भजन, कीर्तन, पूजन, मनन, चिंतन और शिव नाम भगवान शिव के समीप होने के आनंद देता है।    सावन में मन हरियाली की तरंगों में डोलता रहता है वही मन शिव की उपासना से शांत भी होता है। सावन में विशेषकर शिव की भक्ति की जाती है ताकि हमारा ध्यान, हमारी ...