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Showing posts from October, 2023

चूरमा Mothers Day Special Short Story

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Mother's Day Special... Short Story (लघु कथा) चूरमा... क्या बात है यशोदा मौसी,, कल सुबह तो पापड़ सुखा रही थी और आज सुबह निम्बू का अचार भी बना कर तैयार कर दिया तुमने। अपनी झोली को भी कैरी से भर रखा है क्या?? लगता है अब तुम आम पन्ना की तैयारी कर रही हो?? (गीता ने अपने आंगन की दीवार से झाँकते हुए कहा)  यशोदा ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाई । लेकिन मौसी आज तो मंगलवार है। आज तो घर से चूरमे की मीठी मीठी महक आनी चाहिए और तुम कैरी के व्यंजन बना रही हो। लगता है तुम भूल गई हो कि आज सत्संग का दिन है। अरे नहीं-नहीं, सब याद है मुझे।   तो फिर!! अकेली जान के लिए इतना सारा अचार-पापड़। लगता है आज शाम के सत्संग में आपके हाथ का बना स्वादिष्ट चूरमा नहीं यही अचार और पापड़ मिलेगे। धत्त पगली! "चूरमा नहीं,,,मेरे गोपाल का भोग!!" और सुन आज मै न जा पाउंगी सत्संग में।  क्या हुआ  मौसी?? सब खैरियत तो है। इतने बरसों में आपने कभी भी मंगल का सत्संग नहीं छोड़ा और न ही चूरमे का भोग। सब ठीक तो है न??   सब खैरियत से है गीता रानी, आज तो मै और भी ठीक हो गई हूँ। (यशोदा तो जैसे आज नई ऊर्जा से भर गई थी, ...

महिलाएं बच्चों को प्रकृति के साथ कैसे जोड़ें

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महिलाएं बच्चों को प्रकृति के साथ कैसे जोड़ें How to connect children with nature...      ये तो आप सभी मानते ही हैं कि बच्चा सबसे पहले अपने घर परिवार से सीखता है और उस परिवार में भी बच्चों के प्रति एक माँ का दायित्व अन्य की तुलना में अधिक माना जाता है। इसीलिए एक माँ ही अपने बच्चे की प्रथम मित्र और शिक्षिका दोनों होती है।      अब जिस प्रकार से माँ और बच्चे का संबंध बहुत ही महत्वपूर्ण है इसी तरह से हर मनुष्य का एक और महत्वपूर्ण संबंध है जो होता है प्रकृति माँ से। प्रकृति माँ के बिना भी मनुष्य की कल्पना करना असंभव है। ये प्रकृति माँ ही हैं जो हमें बचपन से इस सुंदर दुनिया का आभास कराती है।    अपनी आने वाली पीढी़ को भी एक सुंदर और स्वस्थ वातावरण देने के लिए अपने बच्चों को बचपन से ही प्रकृति माँ से जुड़ने की प्रेरणा हमें समय समय पर देनी चाहिए। इसके लिए बच्चों की आयु वर्ग के अनुसार आप नए नए विकल्प खोज सकती हैं जो बच्चों को प्रकृति माँ से जुड़ने की प्रेरणा दे।   जिसका आरंभ हमें सबसे पहले प्रकृति शब्द के स्थान पर प्रकृ...

स्वदेशी खादी

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स्वदेशी खादी     नये नये कपड़े पहनने की चाह हमेशा से ही हर दिल में रहती है तभी तो चाहे कितने भी कपड़े हो लेकिन हमारे लिए हमेशा कम ही होते हैं। खासकर कि महिलाएं, जिनके पास घर में कपड़ों के ढ़ेरों विकल्प होते हैं लेकिन समय पर एक भी विकल्प नहीं भाता!! आज बाजार में रंग, फैब्रिक, डिजाइन सब तरह के विकल्प उपलब्ध हैं इसीलिए तो वस्त्र उद्योग आज चरम पर है।     2800 ईसा पूर्व से ही वस्त्रों के विकास की जो झलक सिंधू घाटी सभ्यता से मिली उसने यह सिद्ध कर दिया कि वस्त्र उद्योग भारत के प्राचीन उद्योगों में से एक है। धीरे धीरे समय बीतता गया और तकनीकी ज्ञान के साथ वस्त्र उद्योग भी आगे बढ़ता गया।    भले ही तकनीक और अपने प्रयोगों से तरह तरह के कपड़े बन रहे हैं लेकिन आज भी हाथ से बने हुए कपड़ों का अपना एक विशिष्ट स्थान है। जैसे कि खादी। खादी एक ऐसा स्वदेशी वस्त्र है जो हाथ से कते हुए सूत से बनाया जाता है और जो हमें भारतीयता से जोड़ता है। जिस समय भारत अपनी आजादी के लिए लड़ रहा था। उस समय खादी एक आंदोलन की तरह उभरा जो पूरे भारत में एकता की मिसाल की तरह फैल गया। म...