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Showing posts from August, 2022

The Spirit of Uttarakhand’s Igas "Let’s Celebrate Another Diwali "

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  चलो मनाएं एक और दिवाली: उत्तराखंड की इगास    एक दिवाली की जगमगाहट अभी धुंधली ही हुई थी कि उत्तराखंड के पारंपरिक लोक पर्व इगास की चमक छाने लगी है। असल में यही गढ़वाल की दिवाली है जिसे इगास बग्वाल/ बूढ़ी दिवाली कहा जाता है। उत्तराखंड में 1 नवंबर 2025 को एक बार फिर से दिवाली ' इगास बग्वाल' के रूप में दिखाई देगी। इगास का अर्थ है एकादशी और बग्वाल का दिवाली इसीलिए दिवाली के 11वे दिन जो एकादशी आती है उस दिन गढ़वाल में एक और दिवाली इगास के रूप में मनाई जाती है।  दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में फिर से दिवाली क्यों मनाई जाती है:  भगवान राम जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 11वें दिन मिली थी इसलिए दिवाली 11वें दिन मनाई गई। वहीं गढ़वाल के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी अपनी सेना के साथ जब तिब्बत लड़ाई पर गए तब लंबे समय तक उनका कोई समाचार प्राप्त न हुआ। तब एकादशी के दिन माधो सिंह भंडारी सेना सहित तिब्बत पर विजय प्राप्त करके लौटे थे इसलिए उत्तराखंड में इस विजयोत्सव को लोग इगास को दिवाली की तरह मानते हैं।  शुभ दि...

रंग बिरंगी बिंदी

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बिंदिया चमकेगी....    आज किसी ने कहा कि आप पर बिंदी बहुत खूब लगती है तो मैंने हंस कर जवाब दिया कि मुझ पर ही नहीं हर नारी पर बिंदी खूब फबती है। और इसके साथ ही याद आया एक किस्सा जो बिंदी पर ही था। इसलिए आज का लेख... बिंदीया विशेष...     बहुत साल पहले लगभग इसी तरह का मौसम था। बारिश, धूप और उमस के बीच में झूझते हुए पास ही की एक दुकान में थी। जहाँ तीज की खरीदारी के समय मुझसे किसी ने कहा था कि तुम बिंदी क्यों नहीं लगाती हो। साथ ही ताना भी दिया था कि आजकल औरतें बिंदी लगाने में शर्म करती हैं और सोचती है कि दुनिया को जरा बेवकूफ बनाया जाए।     अब मेरा बिंदी लगाने या नही लगाने का कारण कुछ भी हो सकता है लेकिन उस समय बुरा तो बहुत लगा था। लेकिन अपनी प्रकृति थोड़ी,,,'छोड़ परे और मट्टी पा ' जैसी है इसलिए बिना किसी ओर ध्यान दिए मैं आगे बढ़ गई। आज सोचती हूँ कि उन्होंने बात भले ही अलग अंदाज से बोली हो लेकिन बिंदी तो हर किसी के माथे की शोभा बढ़ाती है। इसीलिए तो मैं अपनी पारंपरिक परिधान के साथ हमेशा बिंदी लगाती हूँ।    बिंदीया भारतीय नारी की पहचा...

अमृत महोत्सव में जन्माष्टमी

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अमृत महोत्सव में जन्माष्टमी देश को कृष्ण चाहिए...     भारत अपनी समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक गौरव और विवधता में एकता के लिए जाना जाता है। यहाँ पर्व त्यौहार, गीत संगीत मेले समय समय पर आकर हमें आपस में जोड़ते रहते हैं और इस बार अगस्त का जो यह समय है वो तो लगता है अपने साथ पर्वों की गठरी बांधे आया है। रक्षा बंधन आया, घी संक्रांत आया, ७६वां स्वतंत्रता दिवस आया और साथ ही श्री कृष्ण जन्माष्टमी भी। अब इन सब त्योहारों के चलते तो बस एक ही विचार आता है कि हमारे लोक पर्व हो या राष्ट्रीय पर्व सभी के लिए उल्लास, ख़ुशी, उमंग और सम्मान एक जैसा ही है। हमारे सारे पर्व ही भारत कि संस्कृति और सभ्यता को समेटे हैं।    भारत को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो चुके हैं और इसकी ख़ुशी इस वर्ष के स्वतंत्रता दिवस पर सभी के चेहरों से लेकर घर तक नज़र आई। सरकार ने तो इन 75 वर्षों कि खुशी आज़ादी का अमृत महोत्सव नाम से मार्च 2021 से ही आरम्भ कर दी थी लेकिन हर हिन्दुस्तानी के लिए ये महोत्सव तो 15 अगस्त 1947 से ही आरम्भ हो गया था क्योंकि हमें आज़ादी यूं ही नहीं मिली। इसके लिए हमारे स्वतंत्रता सैनानियो...

Happy Independence Day

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15 अगस्त: आजादी का अमृत महोत्सव  जरा याद करो कुर्बानी....  आज याद आया दिन कुर्बानी का गांधी पटेल बलिदानी का आज़ाद भगत वीर सैनानी का झांसी वाली मर्दानी का  आज याद आया दिन कुर्बानी का...  वो वक़्त था जंग ए आज़ादी का खुदी बोस की जवानी का नेता जी हिंदुस्तानी का बिस्मिल, अशफ़ाक़ की कहानी का आज याद आया दिन कुर्बानी का...  एक प्रतिज्ञा तुम भी कर लो सर न झुके कभी हिंदुस्तान का कोई गरीब भूखा न सोए न बहे लहू किसी इंसान का बिगुल बजा दो दुनिया में अब वक्त नहीं किसी मेहरबानी का आज याद आया दिन कुर्बानी का...  नई खोज से बनो केसरी प्रेम का ओढ़ो सफेदा धरती का सीना सींचो आज देश बनाओ हरियाली का पढ़ो लिखो, चाहे खेलो कूदो पहले तिलक करो इस माटी का  फिर करो नमन अपनी माँ भवानी का आज याद आया दिन कुर्बानी का...  गांधी पटेल बलिदानी का आज़ाद भगत वीर सैनानी का झांसी वाली मर्दानी का  आज याद आया दिन कुर्बानी का....  एक -Naari

Old Days...Old Friends

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    पुराने दोस्त इत्र की तरह होते हैं जितने पुराने होते हैं उतने ज्यादा महकते हैं। उनके साथ बिताए पल तो वापिस नहीं आ सकते लेकिन उन पलों की महक जरूर ली जा सकती है इसीलिए तो... आज वहीं पुराने दिन,,मैं वही पुराना यार ढूँढता हूँ उम्र को थाम ले जो...वो बचपन वाला यार ढूँढता हूँ। प्यारी से मुस्कुराहट में,  उन कोमल सी गलबाहों में,  छोटे से नदी तालाबों में, बड़े चौक-चौबारों में,  घास की घाटी में  या ऊँची किसी अटारी में...  आज वही पुराने दिन,,मैं वही पुराना यार ढूँढता हूँ।  कुंडी खड़काते मोहल्लों में,  बेवजह भागते गलियों में,  दौड़ लगाते बंजर मैदानों में या...  गिरते संभलते उन शाखाओं में,,,  आज वही पुराने दिन,,मैं वही पुराना यार ढूँढता हूँ।  बे लगाम झूलों की पींगो में,  कागज की नौका-जहाजों में,  क्रिकेट के टूटे बल्लों में या...  गप्पों की हवाइयों में,,,  आज वही पुराने दिन,,मैं वही पुराना यार ढूँढता हूँ।  बेतुके वाले शेरों में,  फालतू भरी शायरी में,  भाड़े की रंगीन कॉमिक्सों में, साबू, च...