Unplanned Trip is better than planned ones...(अनियोजित यात्रा नियोजित यात्रा की तुलना में बेहतर है।)
देहरादून से ऋषिकेश की दूरी केवल 30- 35 किलोमीटर है और अब तो फ्लाईओवर बनने से इस दूरी का पता भी नहीं चलता। गाड़ी में बैठो और आधे पौने घंटे में ही ऋषिकेश पहुंच जाओ लेकिन फिर भी देहरादून से ऋषिकेश जाने के लिए भी पूरा प्लान करना पड़ता है।
मेरा घर भी तो ऋषिकेश में है लेकिन पता नहीं क्यों भाई की शादी के तीन महीने बाद ही नंबर लग पाया मायके जाने का और सभी से मिलने का भी। पिछले दो एक महीने से सोच रहे थे कि एक रात के लिए तो ऋषिकेश चल ही पड़ते हैं इसलिए हर छुट्टी पर यही सोचते लेकिन प्लान बनाते बनाते कब फेल हो जाता पता ही नहीं चलता और हर बार अगले वीकेंड (सप्ताहंत) पर जाने का फिर से मन ही मन प्लान बन जाता।
लेकिन वो कहते हैं न....You dont always needs a plan,,just go (आपको हमेशा एक योजना की आवश्यकता नहीं होती है, बस निकल जाएं) और ऐसे ही पिछले शनिवार तो बस बिना किसी प्लान के ही आखिर ऋषिकेश पहुंच ही गए।
हां हां, ये पता है कि किसी खास जगह तो नहीं गए और न ही किसी दूर की यात्रा पर निकले। यहीं पास ही तो था जैसे ही गाड़ी में बैठे और थोड़ी देर बाद ही ऋषिकेश का नटराज चौक सामने आ गया।
लेकिन सच कहूं, एक विवाहित महिला का अपने मायके जाना हमेशा से ही उत्साह और उमंग भरा होता है अब वो चाहे पास हो या दूर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए मेरे लिए तो ऋषिकेश जाना हमेशा से ही उत्सुकता का विषय रहता है और हो भी क्यों न क्योंकि ऋषिकेश में केवल मां बाबू जी ही नहीं यहां तो मेरे भाई और बहनों का परिवार भी तो रहता है।
इस शनिवार ताई जी और भाई से मिलने के लिए निकले लेकिन बड़ी दीदी के घर पर जाकर ही गाड़ी के ब्रेक लग गए और यहीं पर ही हम भाई बहनों का परिवार समेत जमावड़ा लग गया। पहले जैसे ही हलचल, बच्चों का वैसा ही शोर शराबा और हमारी वैसे ही गप्पें चल रही थी जैसे तीन महीने पहले आशु (छोटा भाई ) की शादी में हम लोगों का था। बस इस बार तनु (बड़ी दीदी की बेटी) का साथ नहीं था क्योंकि अब उसे अपना काम हैदराबाद से ही करना पड़ रहा है लेकिन बेटी की जगह आज नई ब्वारी (बहु) मोनिका साथ थी।
आपको पता तो होगा ही कि शाम को सभ्य समाज के सभ्य पुरुषों की गोष्ठी तो ऐसे माहौल में अलग ही चलती है तो उनका आनंद का कारण अलग वस्तुओं से था लेकिन हमारा आनंद तो अपनी अपनी सुनाने से ही मिल गया।
खाना पीना और हंसी मजाक के बाद रात को लोग अपने अपने घर को निकल गए लेकिन हम ठहरे रात के यात्री तो हम निकल पड़े रात्रि गश्त पर वो भी छोटे बच्चों जय और जिया के साथ।
पता नहीं क्या हो जाता है विकास को ऋषिकेश आते ही रात को खाना खाने के बाद पान खाने की और बच्चों को आइसक्रीम खिलाने के लिए निकल पड़ते हैं।( शायद इस नगरी में दिनभर ट्रैफिक से जूझते मुख्य बाजार को निहारने का मौका विकास को रात में ही मिलता होगा। )अब चाहे बहाना कोई भी हो और कोई भी बनाए लेकिन रात की यात्रा का लुत्फ तो सभी सवारी लेती ही है सो मैंने भी लिया ही।
पान खाने के लिए गाड़ी से रात में ऋषिकेश के तारघर से रेलवे रोड़ निकले फिर घाट रोड़ और फिर देहरादून रोड़ पर चल पड़े। लेकिन कहीं कोई दिखाई नहीं दिया। जहां हमेशा पान का खोखा अपनी रंग बिरंगी रोशनी के साथ दमकता रहता था वहां भी ताला लग चुका था। आधी रात होने वाली थी लेकिन धुन सवार थी पान की इसलिए रेलवे रोड़ से नटराज चौक फिर वापिस बस अड्डे की ओर मुड़े क्योंकि उम्मीद थी कि यहां तो पान जरूर ही मिलेगा लेकिन यहां भी खाली हाथ लौटना पड़ा।
बच्चे तो खुश थे क्योंकि आज बहुत दिनों बाद दिन के साथ साथ रात में भी घूमने को मिल रहा था लेकिन मैं बीच बीच में सोच रही थी कि इनके चक्करों में न पढ़कर घर पर ही रुक जाती लेकिन जब थोड़े थोड़े अंतराल पर जो हंसी ठहाका का माहौल होता उससे लगता कि नहीं यही समय अच्छा है।
हर सड़क पर गाड़ी घुमाई लेकिन पान की बड़ी दुकान से लेकर एक छोटा खोखा भी गायब था और हर विफलता पर मनु और आशु जो लगातार ऋषिकेश के अड्डों का चप्पा चप्पा जानने वाले तुर्रम खां बने हुए थे हर विफलता पर अपनी बगले झांक रहे थे। आखिर में दोनों मुनिकीरेती की ओर ले गए लेकिन वहां होटल और कुछ ढाबा तो खुले थे लेकिन पान की कोई दुकान नहीं थी। फिर अंत में गाड़ी को थोड़ी ही देर के बाद दांई ओर पूर्णानंद आश्रम की ओर जाने वाले मार्ग की तरफ मोड़ दिया गया और अब हमारे सामने एक अद्भुत दृश्य था एक पुल का जिसे जानकी सेतु के नाम से जाना जाता है।
जानकी सेतु पुल तीर्थनगरी में बहने वाली गंगा नदी के ऊपर बना है और जो स्वर्गाश्रम क्षेत्र को मुनि की रेती से जोड़ता है। जबसे लक्ष्मण झूला में आवागमन बंद किया तभी से राम झूला पर आवागमन का अधिक भार पड़ गया था लेकिन अब जानकी पुल से स्थानीय लोग और पर्यटकों को भी बहुत राहत मिली है। 14 साल लग गए इसकी स्वीकृति से लेकर लोकार्पण तक, लेकिन इसे देखकर पिछला कुछ भी याद नहीं रहता। जानकी सेतु की चौड़ाई - 3.90 मीटर है और यह पुल थ्री लेन में बंटा हुआ है। पैदल चलने के लिए मध्य भाग और दुपहिया वाहन के आवागमन के लिए एक किनारे का भाग। अब प्रवेश द्वार के ऊपर पूरे निर्देश दिए गए थे और तीसरे लेन में प्रवेश न करने को कहा था और साथ ही फोटो लेने की मनाही भी थी लेकिन ऐसी जगह आकार कोई बिना फोटो लिए कैसे रह सकता है!!
346 मीटर लंबे पुल में जगमगाती रोशनी के बीच कुछ लोग आधी रात के समय भी घूम रहे थे शायद हमारे जैसे ही पान खाने न सही हवा खाने निकले होंगे।।
एक साल हो चुका है जानकी सेतु को बने हुए लेकिन यहां आना ही नहीं हुआ और अब अचानक से बिना किसी प्लान के हम यहां थे और सामने के दृश्य से तो मुझे तो बहुत खुशी हो रही थी लग रहा था कि परिवार के सभी लोग साथ होते तो वो भी खुश हो जाते।
सोचते सोचते गाड़ी से बाहर उतरे तो हवा से एकदम ठिठुर गए लेकिन जैसे ही जानकी सेतु के पास आए तो दिन भर की थकान, उलझन, हताशा सब गायब थी। पता नहीं क्या था उस हवा में जो चुभन नहीं खुशी दे रही थी और हम सभी खुशी से झूम उठे। सेतु में थ्री लेन है जिसमे पैदल यात्री तो जाते ही हैं साथ ही दुपहिया वाहन भी। इसलिए बीच बीच में इक्का दुक्का वाहन भी जा रहे थे।
दिनभर यहां लोगों की हलचल होती रहती है लेकिन इस समय कुल मिलाकर सेतु पर आधी रात को हमारे अलावा केवल 7-8 लोग ही गुजर रहे थे। झूला पुल में दिन में ही हवा बहती है और हम तो रात में गंगा जी को पार कर रहे थे। इस समय तो सेतु के ऊपर जबरदस्त हवा बह रही थी लग रहा था कि अगर मजबूती से कदम नहीं जमाया तो लड़खड़ा कर गिर पड़ेंगे।
जिया तो मस्ती में थी और जय की हवा से बत्ती गुल थी इसलिए उसे पुल पर गोद में उठाना ही पड़ा। अब आजकल तो जब घर के अंदर ही तरह तरह की फोटो ले लेते हैं फिर यहां फोटो लेना तो बनता ही है इसलिए झट से सबके फोन भी निकल गए। फोटो लेने की कोशिश भी की लेकिन हवा के चलते हाथ हिल जाते और फोटो धुंधला आ जाता। इसलिए उस वातावरण का आनंद लेने में ही भलाई सूझी।
ऐसी जगह आकार सभी को एक अलग ही आनंद आ रहा था लेकिन मुझे खुशी के साथ कभी कभी डर का भाव भी आ रहा था।
चूंकि मैं पहाड़ी हूं तो बहुत सारी पहाड़, नदी, वन से जुड़ी बातें भी कभी कभी दिमाग में आ रही थी जैसे कि बड़े बुजुर्ग द्वारा कहा जाता है कि नदी नालों या झरने के पास किसी विशेष समय में नहीं जाना चाहिए क्योंकि उस समय वहां नकारात्मक ऊर्जाएं सक्रिय रहती हैं इसलिए ऊंची आवाज में भी बातें या हंसी ठिठोली से बचना चाहिए और हां कहते हैं कि बाल खुले भी नहीं रखने चाहिए लेकिन यहां तो सब के सब अपनी मस्ती में थे और हमारी नई ब्वारी (नई बहु) तो बाल खोलकर पूरी हीरोइन बनी थी।
सेतु के समाप्ति द्वार पर हनुमान जी की सुंदर चित्र भी बना हुआ था जिसे देखकर मैंने तो बस "जय हनुमान" बोलकर डर को दूर भगा दिया।
पुल पार करते ही दूसरी छोर पर स्वर्गाश्रम था और यहां भी शांति थी लेकिन हवा का बहाव थोड़ा कम था क्योंकि अब हम गंगा जी के बीच में नहीं एक किनारे पर थे। यहां अब भी कुछ लोग थे जो घूम रहे थे जिनकी संख्या बहुत कम थी। परमार्थ निकेतन के पास कुछ लोग जरूर थे जो गंगा जी को निहार रहे थे बाकी तो खाली सड़क, खाली दुकान और उन दुकानों के बाहर सोए हुए कुछ भिक्षुक और हां रास्ते में बैठे गाय बैल भी जो दिनभर घूम घाम के बाद थककर खाली जुगाली कर रहे थे। इन सबके बीच में हम अपनी यात्रा कर रहे थे और साथ ही साथ गाय माता की जय/ भगवान जी की जय भी सुन रहे थे जो जय घड़ी घड़ी बोल रहा था क्योंकि वहां जगह जगह भगवान की आकृतियां और मूर्तियां थी।
विकास जो पैदल चलने के कतई विपरीत हैं उस रात आराम से पैदल घूम रहे थे। थोड़ी देर के बाद हमें राम झूला भी दिखाई देने लगा। सच कहूं तो यहां बहुत बार आई हुई हूं लेकिन आधी रात में ये मुझे बिलकुल नया लगा, एकदम चमचमाता हुआ रोशनी से दमकता हुआ पुल। लगा ही नहीं कि ये वही राम झूला है जिसमें दिन में चलना भी बहुत मुश्किल होता है क्योंकि यहां इतनी भीड़ होती है कि झूला का आनंद लेने के बजाय जल्दी पार करने की सूझती थी।
राम झूला में चलते हुए भी लगातार हवा बह रही थी जो सच में पूरे पुल को झूले की तरह हिला रही थी। जानकी सेतु का पुल मजबूत लोहे के गार्डर से बना हुआ है इसलिए इस पुल में जाते हुए कोई डर नहीं लगता क्योंकि यह स्थिर है लेकिन लोहे की तारों से बने राम झूला पर गंगा जी पार करते हुए थोड़ी सिंहरन तो हो ही जाती है विशेषकर तब जब आप बीच पुल में नीचे विहंगम गंगा को बहते हुए देखते हो और तभी दुपहिया वाहन की खडखड़ से पुल में कंपन पैदा हो जाए।
आधी रात के बाद तो वैसे भी हर जगह सुनसान हो जाता है इसलिए शांति अपने आप हो जाती है लेकिन कुछ छीछोरे़ लोग तो इस निर्मल और शांत जगह पर भी अपनी फटफटिया पर इतनी रात को हुडदंग मचाते हुए निकले जिसे देखकर बहुत बुरा लगा। सोचा कि ऐसे फटफटिया बाइक और ऐसे लोगों पर तो केवल इस पावन क्षेत्र में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में पाबंदी लगा देनी चाहिए।
राम झूला पार करके अब बस गंगा जी के किनारे किनारे चल रहे थे। ऐसा लग रहा था कि हमारे साथ साथ गंगा जी भी निर्मल और शांत भाव से आगे बढ़ रही है और वहां बने घाटों पर चलते चलते हम फिर से जानकी सेतु की ओर बढ़ रहे थे। इस छोर लोग थोड़ा अधिक थे शायद यहां पर बसे होटल के कारण। जैसे जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे सब डर, शंका, किवदंती, कथाएं सब गायब हो रही थी क्योंकि कुछ लोग वहां बैठे अपने प्रियजन का जन्मदिन मना रहे थे, केक काट रहे थे, कुछ लोग शांत बैठे गंगा जी की लहरों के किनारे बैठे थे, कुछ लोग टहल रहे थे वहीं कुछ लोग तो आधी रात में भी नहा रहे थे और रात बहुत हो चली थी, बड़ी दीदी का भी फोन आ रहा था और अब बच्चों ने भी हथियार डाल दिए थे इसलिए अब कदमताल तेज बढ़ाते हुए अपनी गाड़ी के पास पहुंच गए। इस अनियोजित (unplanned) छोटी सी यात्रा में हम जानकी सेतु से होते हुए राम झूला और राम झूला पार करते हुए फिर से जानकी सेतु पहुंचे और इस तरह एक पूरा फेरा लगा लिया शायद लगभग तीन से चार किलोमीटर का।
रात के एक बजने वाला था और अब किसी को भी पान या आइसक्रीम का ख्याल नहीं आया और आता भी कैसे इतनी सुंदर और शांत जगह में आकर जो स्वयं आनंद का अनुभव होता है न वो किसी अन्य भौतिक वस्तुओं से नहीं हो सकता।
घर में लोग सो चुके थे इसलिए अब चुपचाप सोने में ही भलाई थी क्योंकि अगली सुबह मम्मी, ताई, भाई भाभी सबसे मिलना था और दिन में देहरादून घर वापस भी आना था।
विकास को पान और आइसक्रीम भले ही नहीं मिली लेकिन घूमने का आनंद पूरा मिला और साथ ही सोने से पहले कॉफी का भी। आशु और मन्नु ने आज हमें एक नई जगह का भ्रमण करा दिया जहां मैं पहले भी गई थी बस जानकी सेतु पर जाना नहीं हुआ था। इतनी सुंदर, शांत तीर्थनगरी ऋषिकेश को आज मैंने पहली बार ही अनुभव किया। समय चाहे जो भी हो गंगा जी के पास केवल सकारात्मक ऊर्जा का ही संचार होगा इसका अनुभव भी कर लिया है।
भले ही उन जगहों पर जहां आप पहले भी गए हों फिर भी अगर आपको भी ऐसा मौका मिले तो बिना किसी प्लान के ही छोटी छोटी यात्राओं पर निकल पड़े क्योंकि कहते हैं कि....unplanned trip is better than planned ones.(अनियोजित यात्रा नियोजित यात्रा की तुलना में बेहतर है।)
एक -Naari
Nice trip
ReplyDelete❤ touching story....
ReplyDeleteI always like your live stories...so lively description...
ReplyDeleteAfter all....
ReplyDeleteWhat we have are MEMORIES!
Miss you all❤
Wao awesome trip
ReplyDeleteHumme bhi le jaate😊
ReplyDeleteऋषिकेश🚩........ सकारात्मक ऊर्जा से भरा नगर 🚩
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