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Showing posts from December, 2021

जन्माष्टमी विशेष: कृष्ण भक्ति: प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक

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कृष्ण भक्ति:  प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक  भारत में मनाये जाने वाले विविध त्यौहार और पर्व  यहाँ की समृद्ध संस्कृति की पहचान है इसलिए भारत को पर्वों का देश कहा जाता है। वर्ष भर में समय समय पर आने वाले ये उत्सव हमें ऊर्जा से भर देते हैं। जीवन में भले ही समय कैसा भी हो लेकिन त्यौहार का समय हमारे नीरस और उदासीन जीवन को खुशियों से भर देता है। ऐसे ही जन्माष्टमी का त्यौहार एक ऐसा समय होता है जब मन प्रफुल्लित होता है और हम अपने कान्हा के जन्मोत्सव को पूरे जोश और प्रेम के साथ मनाते हैं।  नटखट कान्हा का रूप ही ऐसा है कि जिससे प्रेम होना स्वाभाविक है। उनकी लीलाएं जितनी पूजनीय है उतना ही मोहक उनका बाल रूप है। इसलिए जन्माष्टमी के पावन उत्सव में घर घर में हम कान्हा के उसी रूप का पूजन करते हैं जिससे हमें अपार सुख की अनुभूति होती है।  कान्हा का रूप ही ऐसा है जो मन को सुख और आनंद से भर देता है। कभी माखन खाते हुए, कभी जंगलों में गाय चराते हुए, कभी तिरछी कटी के साथ मुरली बजाते हुए तो कभी गोपियों के साथ हंसी ठिठोली करते हुए तो कभी शेषनाग के फन पर नृत्य करते ...

मीठी मीठी रस से भरी...जलेबी

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मीठी मीठी रस से भरी...जलेबी    जरा से बादल हुए नहीं कि "शाम को जलेबी लेते आना" का फरमान पहले सुनने को मिल जाता है। मेरे घर का यही हाल है, बच्चे हों या बड़े सभी को जलेबी खाने का मन अपने आप बन जाता है। चाहे बरसात का मौसम हो या फिर ठंड का, गरमा गर्म जलेबी का ख्याल आना तो बड़ा ही समान्य है वो भी उनका जो उत्तर प्रदेश से जुड़े हों।     पता तो होगा ही भले ही मालपुआ और गुलगुले उत्तर प्रदेश की पारंपरिक और पुरानी मिठाई हो लेकिन जलेबी को 'यू पी वाले' अपना राजकीय मिठाई मानते हैं और मेरे यहां तो नाता बरेली से है जहां लौकी की लौज से लेकर मूंगदाल की रसभरी और लड्डू तो प्रसिद्ध हैं ही साथ ही परवल की मिठाई की मिठास भी बरेली वालों की जुबान पर हमेशा रहती है। ये अलग बात है कि देहरादून में भरवां परवल या परवल की मिठाई मिलना बहुत ही मुश्किल है लेकिन जलेबी का यहीं नहीं बल्कि पूरे भारत के बड़े बाजारों से लेकर छोटे चौक चौराहों में मिलना बड़ा सुगम है खास तौर से उत्तर भारत में।   आपने भी तो देखा होगा जलेबी बनते हुए जब हलवाई खमीर उठे इस मैदे के घोल को कपड़े के एक पोटल...

पेट तो अपना है....

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पेट तो अपना है....   शाही दावतों का दौर शुरू हो चुका है। जन्मदिन की पार्टी तो अमूमन हर महीने ही हो रही हैं लेकिन आजकल के मौसम में कहीं सगाई तो किसी की शादी की दावत चल रही है। साथ ही किसी की शादी की सालगिरह का भोज हो रहा है और अब तो क्रिसमस और नए साल की दावतों का आयोजन भी आरंभ हो चुका है।    रंग बिरंगे जूस से लेकर सूप और कॉफी के अनगिनत ग्लास हैं तो इंडियन और कॉन्टिनेंटल वाले सलाद के थाल भी सजे हैं। साथ ही साथ गरमा गर्म इंडियन और चाइनीज स्नैक्स की बहार तो है ही। वहीं खाने में तरह तरह के व्यंजन से तो पूरा माहौल ही खुशनुमा से अधिक खानेनुमा हो जाता है और तो और सर्दियों की इन दावतों में मीठे के काउंटर भी तो तरह तरह की मिठाइयों, आइसक्रीम और बेकरी उत्पाद से खचाखच भरे रहते हैं। अब ऐसी दावत में बिना खाए कोई कैसे रह सकता है, वो भी इस मौसम में!!   क्या करें, ये मौसम ही कुछ ऐसा है कि भूख भी अधिक लगती है, खाना भी अधिक खाया जाता है और सारे समारोह की दावतें भी इन्हीं मौसम में हो रही हैं इसलिए खुद को इन दावतों से दूर रख पाना मुश्किल है लेकिन कुछ नियंत्रण तो ज...

मेरे ब्रदर की दुल्हन (गढ़वाली विवाह के रीति रिवाज)

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मेरे ब्रदर की दुल्हन (गढ़वाली विवाह के रीति रिवाज)    कल यानी 21 नवंबर को मैं आई और आज बड़ी दीदी क्योंकि माइके में भाई की शादी है और घर में रौनक तो बेटियों से ही होती है। इसलिए कुछ दिन पहले आना तो बनता ही है। इसबार जिया को घर ही छोड़ना पड़ा क्योंकि जैसे यहां की रौनक बेटियां हैं वैसे ही वहां की रौनक जिया है। दादा दादी की लाडली और अपने पापा की प्यारी है जिया इसलिए मेरे घरवाले अपने से दूर भेजते हुए हमेशा कंजूसी करते हैं।   28 की शादी है लेकिन घर में मांगलिक कार्य का आरंभ 26 से शुरू है। कपड़े लत्ते, मिठाई पिठाई, पूजा पाठ सब काम का शुभारंभ हम सब बड़े आनंद से मिलजुलकर कर रहे हैं। यहां ऋषिकेश सिर्फ मेरा मायका ही नहीं है अपितु मायके की पूरी बारात है। हमारे घर के साथ ही मेरे तीन भाई का परिवार भी है और मेरी तीनों बहनें भी ऋषिकेश में ही हैं इसलिए मेरे लिए मायके आना हमेशा से ही किसी उत्सव में भाग लेने जैसा रहता है और जब दो बहनें एक साथ एक जगह हो तो अन्य बहनों का मन कहां मानने वाला होता है इसलिए क्रमश: बड़ी दीदी के बाद छोटी दीदी और उसके बाद मेरी छोटी बहन भी अपने छोटे बच्च...