उत्तरकाशी यात्रा: तीन घंटों में तीन तीर्थ
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उत्तरकाशी यात्रा: तीन घंटों में तीन तीर्थ
लक्ष्य लेकर काम करो तो जरूर पूरा होता है।।
देहरादून से उत्तरकाशी की दूरी लगभग 145 किमी है और हमें एक ही दिन में लौटा फेरी करनी थी इसीलिए सुबह 6 बजे निकलने की सोची ताकि 11 या 11:30 बजे तक उत्तरकाशी पहुंचा जा सके और हम सुबह 6:15 बजे के आसपास तैयार भी हो गए लेकिन जैसे ही गाड़ी में बैठने को हुए तो देखा कि आगे का टायर तो पंचर है। अब बाकी का काम तो विकास का ही था तो बिना देरी किए विकास मैकेनिक के किरदार में आ गए। वैसे मैकेनिक ही क्या वो तो घर या ऑफिस के भी छोटे मोटे काम करते हुए कभी इलेक्ट्रीशियन तो कभी प्लंबर भी बन जाते हैं।
मैकेनिक तो जैसे भी हो लेकिन सुबह सुबह उस इंसान की वर्जिश तगड़ी हो गई जिसने कभी कसरत का 'क' भी न जाना हो। खैर! 45 मिनट के बाद आखिर घर से निकल ही गए। गाड़ी में बैठकर सोच रही थी कि अपना लक्ष्य तो बना लो लेकिन आगे आने वाली अनचाही और अप्रयाशित (unpridict) चुनौतियों का क्या??
आज के सफर में पिछले साल के दिसंबर की याद ताजा हो गई जब हम हर्षिल गए थे क्योंकि हमें रास्ता वही पकड़ना था तो उसी पेट्रोल पंप से गाड़ी का ईंधन भरा जहां उस समय भरा था। उस समय गाड़ी में समान और इंसान ऐसे भरे थे कि दोनोों एक दूसरे को धकेल रहे थे लेकिन आज गाड़ी में केवल विकास और मैं थे और समान के नाम पर केवल एक हैंडबैग। बिना बच्चों के न टॉफी न चॉकलेट न जूस न कचर पचर न कोई शोर गुल और न ही कोई मौज मस्ती का आनंद। बस उत्तरकाशी में 12 बजे तक पहुंचने की हमारी ललक।
8:15 बजे बाटाघाट में पहुंचे और उसी आदर्श रेस्टोरेंट में नाश्ता किया जहां हमनें पिछली यात्रा के दौरान किया था। वही सुंदर से दृश्य थे और बहुत दूर हिमालय की रेंज भी दिखाई दे रही थी। इस समय भी मुझे अपने बच्चों और यात्रा के साथियों की बहुत याद आई क्योंकि उस समय भी इस रेस्टोरेंट में हमारे सिवा कोई नहीं था फिर भी हमारे किकलाट (harsh and laud noise) से लग रहा था कि पूरा रेस्टोरेंट भरा हुआ है लेकिन आज यहां बिलकुल सुन्नपट (pin drop silence)था।
बाटाघाट से सुवाखोली पहुंचे और उसके बाद से रास्ता थोड़ा तंग होने लगा। खूबसूरत वादियों में चीड़ देवदार के पेड़ो से टकराकर सुबह की ताजी हवा जब गालों पर छू रही थी तो अक्टूबर की शुरुआती ठंड का अहसास अपने आप ही हो रहा था और जब साथ में पसंदीदा गानों का साथ हुआ तो फिर तो तंग रास्ता भी कब खत्म हो गया पता ही नहीं चला लेकिन हां, सुवाखोली से लेकर नगुण तक लगभग 5-7 किलोमीटर तक विकास की गाड़ी चलाते हुए थोड़ी ज्यादा सावधानी रखनी पड़ी।
ये तो सभी के लिए है कि पहाड़ में गाड़ी चलाते हुए बहुत ही सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि वहां पर तो हर एक मोड़ अंधा मोड़ ही होता है। न जाने कौन सी गाड़ी कब सामने आ जाए और जब सड़क भी संकरी हो तो दूसरी गाड़ी को पास देने में सावधानी तो रखनी ही होती है।
उसके बाद घुमावदार मोड़ तो थे लेकिन सड़क थोड़ी चौड़ी थी जहां जगह जगह पानी के स्त्रोत पहाड़ी से बह रहे थे।
सड़क पर बहुत से छोटे बड़े बच्चों की टोलियां भी थी जिन्हें देखकर याद आया कि विद्यालय खुल चुके हैं। कंधे पर बैग लेकिन हाथ में डंडी लेकर बहुत से बच्चे अपने घर के जानवर भी चरा रहे थे।
लड़कों की अपेक्षा लड़कियां अधिक दिखीं कारण का पता नहीं लेकिन लड़कियों ने वर्दी पहने दो चोटियों पर सफेद रिबन का फूल बनाकर अपने बाल बड़े ही सलीके से बनाए थे उन्हें देखकर अपने बचपन के दिन भी याद आ गए।
जैसे जैसे गाड़ी आगे बढ़ रही थी वैसे वैसे जगह की सुंदरता भी बढ़ रही थी और अब पहाड़ी के एक मोड़ पर चिन्यालीसौड़ की झील भी दिखाई देने लगी।
बस उसके बाद तो मां गंगा एयरस्ट्रिप चिन्यालीसौड़ की मक्खन जैसी सड़क पर जब गाड़ी चल रही थी तो लगा ही नहीं की हम किसी पहाड़ी क्षेत्र में हैं। लेकिन उसके बाद फिर से चिन्यालीसौड़ के बीच का कुछ भाग आज भी वैसा ही दिखा जैसा 10 महीने पहले था जेसीबी, क्रेन, रोड रोलर मशीन सब काम पर लगी हुई थी। सड़क का काम अब भी चल रहा था और शायद आगे लंबे समय तक ऐसे ही चले।
कुछ ही देर में आसमान में तेज गड़गड़ाहट के साथ दो फाइटर प्लेन भी दिखे तब पता चला कि चिन्यालीसौड़ में वायु सेना की हवाई पट्टी बनी है चूंकि चिन्यालीसौड़ से चीन सीमा की दूरी लगभग 125 किमी है इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से यहां वायु सेना का अभ्यास होता ही है। बस उसके बाद तो भागीरथी नदी के साथ साथ चलते हुए लगभग 1 घंटे में हम ज्ञानसु उत्तरकाशी पहुंच ही गए।
हमारे लिए उत्तरकाशी में एक दिन के लिए जाना और आना एक चुनौती था लेकिन उससे बड़ा अनुभव तो कुछ और भी मिलने वाला था। यहां हम भागवत कथा सुनने आए थे जो आज से पहले न मैंने और न ही विकास ने सुनी थी। यहां स्वर्गीय श्री लखीराम नौटियाल जी की एकोदिष्ट वार्षिक श्राद्ध पर भागवत कथा का आयोजन था। श्री लाखीराम नौटियाल जी एक शिक्षकविद् थे जिन्हें 1988 में तत्कालीन राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा जी द्वारा राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार भी प्राप्त है।
इन्होंने उत्तराखंड के बहुत से लोगों को शिक्षित किया जो आज बड़े बड़े पदों पर आसीन हैं। वृद्धावस्था होने पर भी उन्होंने अपने नियम धर्म कभी नहीं छोड़े। चाहे कोई भी मौसम हो या कोई भी जगह अपने स्नान ध्यान से लेकर पूजा पाठ तक हमेशा नियमित रहे। फिर ऐसी दिव्य आत्मा के एकोदिष्ट वार्षिक श्राद्ध पर भागवत कथा में सम्मिलित होना तो पुण्य का काम है। इसलिए 'एक दिन के लिए क्या जाना है?' सोचने के स्थान पर 'एक दिन के लिए तो जरूर जाना है' ऐसा विचार आना स्वाभाविक ही है और ऊपर से नौटियाल परिवार के द्वारा जो प्यार और सम्मान मिला उसके सामने दूरी, सड़क, थकान, चुनौती सब गायब थे।
इन तीन घंटों में हमनें तिगुना तीर्थ कर लिया। पहला तो उत्तरकाशी स्वयं एक तीर्थ स्थल है और दूसरा व्यास जी श्रद्धेय श्री शिवराम भट्ट जी ने कहा था कि भागवत कथा में जाना स्वयं अपने में एक तीर्थ करने के समान है।
और हां तीसरा तीर्थ भी यहीं था। उत्तरकाशी के न्यायधीश कहे जाने वाले कंडार देवता के दर्शन भी इसी मंडप में हो गए। हमारे लिए ये एक ऐसा सौभाग्य था जिसमें लगा कि भगवान स्वयं चलकर हमें दर्शन देने आए हो।
इच्छा बहुत थी कि शाम को कंडार देवता की डोली भी देखी जाए और उनकी ज्योतिषी के भी साक्षात दर्शन हो लेकिन हम सांसारिक लोग अपने चक्करों से कब मुक्त होंगे पता नहीं!! कल से नवरात्र आरंभ थे इसलिए वापस आना जरूरी था।
3: 45 के आस पास वापस देहरादून को निकल पड़े।
रास्ता वही था जहां नोलिया सौड़ के सुंदर समतल हरे खेत थे, चुप्पलिया डुंडा की चौड़ी सड़क थी तो वही चिन्यालीसौड़ की मरम्मत वाली सड़क फिर दूर से दिखता जोगथ का चमकीला सफेद पुल और आगे बस प्रकृति के सुंदर दृश्य इसलिए अब तो जैसे ये सभी हमारे मित्र बन गए थे लेकिन अब मौसम बदलने से अंधेरा भी जल्दी हो रहा था इसलिए अपनी यात्रा को थोड़ा विराम देते हुए इनके साथ रुकना ही उचित लगा।
मौका मिलेगा तो अगली यात्रा में उत्तरकाशी की नेलांग घाटी में स्थित गरतांग गली की 150 मीटर लंबी सीढ़ियों का रोमांचक सफर किया जाएगा।
एक - Naari
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Comments
beautiful nature description
ReplyDeleteEach line described so interestingly that i can't move around while reading your post.
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteJai Kandar Devta
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteGood👍
ReplyDeleteGood 👍
ReplyDeleteऐसा लगा जैसे हम भी तुम्हारे साथ यात्रा का आनंद उठा रहे हैं। Live description ....
ReplyDeleteयात्रा सही मायने में बोलू तो तीर्थ यात्रा का सुंदर विश्लेषण।
ReplyDeleteजिसके एक तरफ बाबा कांडार तो दूसरी ओर हरि महाराज विराजमान है,मध्य में जगत कल्याण के ध्यानस्थ स्वयं विश्वनाथ है। वरुणा और अस्सी के संगम को पंचकोसी से सिद्ध करता वरुणावत है जिसकी तलहटी में सर्वकल्याण के लिए माँ गंगा प्रवाहमान है। सच में हिमालय राज में विद्यमान यह देववास उत्तरकाशी/सौभ्यकाशी तीर्थ ही तो है।