शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

करवा चौथ में चूड़ियों का संसार...

करवा चौथ में चूड़ियों का संसार...
   
   रंग बिरंगी चूड़ियों के संसार में एक बार अगर महिलाएं घुस जाएं तो उनका वहां से बाहर आना बहुत मुश्किल हो जाता है क्योंकि ये पहले से ही हमेशा आकर्षण का केंद्र रही हैं। महिलाओं के लिए ये चूड़ियां केवल श्रृंगार ही नहीं अपितु सुहाग का प्रतीक भी हैं। 
   कलाइयों की शोभा इन्हीं सुंदर सुंदर चूड़ियों से होती है जो वैदिक काल से ही स्त्रियों की पसंद है लेकिन चूड़ियों को सुहाग का प्रतीक मध्यकालीन से माना गया। तभी तो करवाचौथ में चूड़ियां खूबसूरती बढ़ाने के साथ सुहाग का द्योतक भी होता है। 
    हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की खुदाई से जो प्रमाण प्राप्त हुए हैं उनसे ज्ञात होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपनी कलाई में धातु से बना कंगन जैसा कोई आभूषण पहनते थे। 
   लाल, हरी, नीली, गुलाबी, पीली या सुनहरी किसी भी रंग की चूड़ियां हो बस कलाइयों में जाते ही सब रंग एक से बढ़कर एक लगते हैं।
    चूड़ी बिना श्रृंगार अधूरा और श्रृंगार बिना करवा चौथ अधूरा। करवाचौथ के त्योहार में सुहागिन स्त्रियां केवल स्वयं ही नई नई चूड़ियां ही नहीं पहनती अपितु अन्य सुहागिन स्त्रियों को यही रंग बिरंगी चूड़ियां भेंट स्वरूप देती हैं और मानती हैं कि जितनी सुहागिनों को श्रृंगार का सामान दिया जाता है उतने गुना उनका सौभाग्य बना रहता है।
  माना जाता है कि उत्तर प्रदेश के फीरोजाबाद की चूड़ियां सबसे अधिक प्रसिद्धि प्राप्त है लेकिन पुरातत्ववेत्ताओं की मानी जाए तो दक्षिण के बहमनी सुल्तानों के द्वारा सबसे पहले कांच की चूड़ियां (1347 से 1525ई.) बनाई गई थी।
   फिरोजाबाद की लाल मिट्टी के कारण ही वहां पर चूड़ी निर्माण अधिक होने लगा। काफी अधिक मात्रा में मिलने के कारण चूड़ी निर्माण का काम वहां काफी फला-फूला। यहां लोग पहले धातुओं जैसे जस्ता, तांबा, शीशा आदि धातुओं को जलाते थे और तब उनकी भस्म से चूड़ियों का निर्माण करते थे। एक विशेष प्रकार की भट्टी में इन्हें पकाया और बनाया जाता था जिसे चाल मिट्टी कहते थे। पहले तो चूड़ियां साधारण और मोटी होती थी लेकिन अब आधुनिक मशीनों के साथ आयातित कांच के साथ सुंदर सुंदर डिजाइन के साथ उच्च गुणवत्ता वाली चूड़ियां निखर के आई हैं।  
   चूड़ियों की बात हो तो केवल कांच ही नहीं राजस्थान की लाख की चूड़ियां भी महिलाओं का दिल चुराती हैं। लाख की चूड़ियां भी प्रसिद्धि पाई हुई हैं इन्हें ‘लहठी’ भी कहा जाता है। राजस्थान की ही एक चूड़ी जिसे बगड़ी कहा जाता है ग्रामीण अंचल में प्रसिद्ध थी। ये नारियल के खोपरे को पानी में भिगोकर, घिसकर गोलाई में काटकर बनाई जाती थी। इन्हें मुख्यत: बंजारा जाति के लोग पहनना पसंद करते हैं।
  हैदराबाद में पत्थरों से निर्मित चूड़ी भी बनती हैं जिन्हें पहनना भी महिलाएं पसंद करती हैं और बंगाल में शंख निर्मित चूड़ी तो स्वास्थ्य से जुड़ी होती हैं। इन्हें इस विश्वास के साथ पहनते हैं कि इन्हें पहनने से कैल्शियम की कमी पूरी होती है क्योंकि शंख में कैल्शियम होता है और साथ ही खून और पित्त की बीमारियां भी दूर होती हैं।
  चूड़ियां चाहे फिरोजाबाद की कांच की हो या राजस्थान की लाख की या हैदराबाद के पत्थर की या फिर शंख निर्मित बंगाल की, लकड़ी की या फिर किसी भी धातु की। महिलाओं के लिए हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहती हैं। इसलिए करवाचौथ में चूड़ियों की सजीली दुकानों में महिलाओं का गुम होना बड़ा ही आम है। 

एक- Naari

Comments

  1. बहुत सुंदर जानकारी👏👏

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  2. Sahi kaha hai aapne. chudiyan hamesha se auraton ke liye khaas hoti hai. Karwachauth mei to lagta hai ki saare rang ki chudiyan khareed le.

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