चूरमा Mothers Day Special Short Story

बच्चों का लोकल गोवा बीच ( मालदेवता, देहरादून)
वैसे तो दिन रविवार का था लेकिन हलचल सुबह से ही होने लग गई थी। पूरे हफ्ते बच्चे प्रतीक्षा कर रहे थे आज के इस रविवार की क्योंकि उन्हें पिकनिक पर जो जाना था वो भी गोवा बीच पर। लेकिन बता दूं कि हम गोवा में नहीं रहते हैं और न ही इन छुट्टियों में गोवा गए हुए हैं। हम तो देहरादून में ही रहते हैं और इस कोरोना महामारी के चलते बहुत दिनों से घर से बाहर भी नहीं निकले। लेकिन अभी पिछले हफ्ते से ही बाहर निकलना आरंभ किया है वो भी थोड़ा डर डर कर और सावधानी के साथ।
अभी बच्चे छोटे हैं तो उन्हें कुछ भी बता दो तो वही धुन पकड़ लेते हैं। जैसे बच्चों को विकास ने थोड़ा गोवा बीच का गुब्बारा पकड़ा रखा है। जिया थोड़ी समझदार है तो उसे समझ में आ जाता है कि गोआ कहां है लेकिन छोटे जय को बस यही पता है कि गोवा में समुद्र होता है, वहां खूब सारा पानी होता है, लोग वहां बड़ी सी हैट पहनते हैं, ठंडा शरबत पीते हैं, गाने सुनते हैं और खूब मस्ती करते हैं और जय ने तो गोवा से जुड़ा एक गाना भी सुना हुआ है और इसीलिए ठंडी ठंडी ... भी मांगने लगता है और कहता है कि "मां, गोवा में तो यह भी पीते हैं और फोटो भी खींचते है।"
भोला जय! ये बच्चे भी न जो सुनते हैं, देखते हैं बस वही करते हैं और जब कुछ गलत करते या बोलते हैं तो शायद गलती हमारी ही होती है।
खैर, आज बहुत दिनों के बाद बच्चे बाहर कहीं घूमने के लिए निकल रहे थे। हालांकि पिछले रविवार को भी गाड़ी से एक लंबा चक्कर घूम कर आए थे जिससे कि बच्चे और मां बाबू जी भी थोड़ा बाहर की हवा पानी भी देख लें लेकिन तस्सली से जाना, बैठना और खाना पीना नहीं हुआ था। इसीलिए अन्य लोगों को देखकर बच्चों ने भी जिद्द पकड़ ली कि अगर हम बाजार, मॉल या किसी के घर नहीं जा पा रहे हैं तो कम से कम एक छोटी सी पिकनिक पर तो जा ही सकते हैं। तो बस होना क्या था, बच्चों को रविवार की प्रतीक्षा थी और मुझे काम समेटने की जल्दी।
वैसे तो देहरादून में बहुत से ऐसे मनोरंजक स्थल है जहां पानी के छोटे छोटे स्त्रोत बहते हैं, चाहे वो बरसाती नदी हो या बारहों मास बहने वाली नदी और इन स्थलों पर अन्य स्थानों के पर्यटक भी खूब आनंद लेते हैं। सहत्रधारा, गुच्छुपानी (रोबर्स केव), लच्छीवाला तो प्रसिद्ध हैं ही जहां पर पर्यटक पानी में साथ खूब मस्ती करते हैं लेकिन यहां पर बहुत से अन्य बरसाती स्त्रोत भी हैं जिन के बारे में मुख्यत: देहरादून के ही लोगों को पता होता है और वे खूब आनंद भी लेते हैं लेकिन यहां रहते हुए भी हम उन्हीं लोगों का हिस्सा हैं जो देहरादून तो आए लेकिन बस यहां के बाजार की चमक चांदनी, मसूरी और लीची तक ही सीमित रह गए!
खैर! फिर भी हम लोग आखिर एक बजे तो घर से निकल ही गए, अपने पिकनिक स्पॉट मालदेवता के लिए और हां, जाते जाते जिया और जय ने गोवा से लाई हुई अपनी टोपी भी पहन ली क्योंकि उन्हें यही अनुभव हो रहा था कि हम तो गोवा जा रहे हैं, नदी में नहाने और मस्ती करने।
मालदेवता की दूरी आईएसबीटी, देहरादून से 18 किमी है और यह देहरादून का एक पर्यटक स्थल है जो सौंग नदी के किनारे है। यह जगह देहरादून में रायपुर क्षेत्र के निकट श्रीपुर में है और यहां बहुत से स्थानीय पर्यटक पिकनिक के लिए भी आते हैं वैसे तो पहाड़ों से घिरे इस क्षेत्र में जगह जगह छोटे छोटे झरने हैं जहां पर पत्थरों के बीच से ही पानी की संकरी धाराएं बहती हैं लेकिन मालदेवता में जल प्रपात भी है। लोग यहां पर बहने वाली सौंग नदी में नहाते हैं और झरने में ढेर सारी मस्ती करते हैं लेकिन हम तो यहां पहली बार ही जा रहे थे।
पहली बार नई जगह जाने के उत्साह में हम लोग भी गाड़ी में मस्ती करते हुए करीब आधे घंटे में मालदेवता पहुंच गए लेकिन जैसे जैसे गाड़ी आगे बढ़ रही थी वैसे ही बहुत सी गाडियां वापस भी आ रही थी और हम लोग गाड़ी में बैठे सोच रहे थे कि यहां आज कितने लोग आए हुए हैं! लेकिन थोड़ी देर में ही हमारा ये भ्रम भी टूट गया जब हमनें मालदेवता का पुल पार किया क्योंकि जैसे ही बाएं हाथ की तरफ गाड़ी मोड़ी वैसे ही देखा कि वहां तो पुलिस खड़ी है और वे किसी को भी आगे जाने की अनुमति नहीं दे रही है क्योंकि वे कह रहे थे कि कोरोना के कारण पिकनिक स्पॉट अभी बंद हैं उनका ये बोलना हुआ ही और एक बार फिर से बच्चों की मस्ती में ब्रेक लग गया लेकिन विकास ने बच्चों के उत्साह की गाड़ी को चालू रखा और गाड़ी मोड़कर टिहरी झील वाले रास्ते पर ले गए जहां अन्य गाडियां भी जा रही थी।
मालदेवता से थोड़ा पीछे ही एक रास्ता धनौल्टी और टिहरी झील को जाता है वहां से प्रसिद्ध टिहरी झील 105 किमी दूर है। बस उसी मार्ग पर हम भी चल दिए।वहां भी पहाड़ी रास्ता था और नीचे नदी बहने की आवाज भी आ रही थी लेकिन सड़क के किनारे नीचे की ओर पूरा गांव बसा हुआ था।
कच्चा रास्ता आरंभ हो गया था लेकिन हम आगे नहीं बढ़े और वहीं किनारे पर गाड़ी लगा ली। बस कुछ कदम पर ही शांत और बिलकुल साफ चमचमाती नदी दिखाई दे रही थी और सूरज की किरणें पड़ने से तो ऐसा लग रहा था कि मानो नदी में तारे टिमटिमा रहे हों।
फिर क्या था बस बच्चे जिस मस्ती की प्रतीक्षा पूरे सप्ताह से कर रहे थे वो आरंभ हो गई और जय का गाना भी। मुझे भी तस्साली हुई की चलो बच्चों को अंत में उनको उनका गोवा बीच मिल गया और मां बाबू जी को भी पानी को देखकर चिंता थोड़ी कम हो गई क्योंकि पानी बिलकुल भी गहरा नही था जय के घुटने बराबर भी नहीं लेकिन जय और जिया दोनों ने भरपूर मस्ती की। वही गोवा वाली हैट पहनकर और अपना जूस पीकर दोनों ने ऐसा आनंद लिया कि जैसे सच में गोवा में समुद्र किनारे बैठे हों।
सच में बच्चे कितने मासूम होते हैं। सोच रही हूं कि हम ऐसे क्यों नहीं है कि छोटी छोटी चीजों में भी खूब सारा आनंद ढूंढ लें क्योंकि सब तो मन का ही खेल है।
बस अब थोड़ी ही देर में बच्चे अपने लोकल गोवा बीच से यथार्थ में थे और हम भी थकान से चूर अपने घर पहुंच चुके थे। शाम के 4:30 बज गए थे तो थोड़ा सुस्ताया जा सकता था इसीलिए सब शांत चित्त अपनी खटिया में लेट गए और मैं फिर से सोच में पड़ गई कि मालदेवता एक अच्छी जगह है जहां पर परिवार के साथ पिकनिक पर जाया जा सकता है जो प्रकृति का वास्तविक अनुभव कराती है वो भी बिना किसी प्रवेश शुल्क के (No entry fee)। हम लोग पहली बार ही यहां आए थे हालांकि मालदेवता के मुख्य स्थान से थोड़ा पहले ही रहे लेकिन नदी किनारे का आनंद खूब लिया। यहां से आगे और भी मनमोहक दृश्य हैं जहां पानी भी अच्छा और गहरा है। वहां भी परिवार के साथ जाया जा सकता है।
बस एक ही बात मन में आ रही है कि नदी किनारे एल्कोहल का सेवन नहीं होना चाहिए क्योंकि अन्य परिवार भी प्रकृति का आनंद लेने आते हैं और ऐसा करने से वे लोग भी असहज और असुरक्षित अनुभव करते हैं।
दूसरा, जंगल में आग नहीं जलानी चाहिए और नदी किनारे भी सावधानी बरतनी चाहिए।
तीसरा, घूमने तो जाएं लेकिन यहां वहां गंदगी न फैलाएं इस नदी और किनारे को साफ रखे।
चौथा, साहसिक होना अच्छा है लेकिन अति उत्साही होना खतरनाक भी होता है क्योंकि यहां कई बार दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं इसीलिए सावधानी बहुत आवश्यक है।
पांचवा, ईश्वर पर विश्वास करें कि वो जो करता है अच्छे के लिए ही करता है जैसे कि अच्छा ही हुआ कि हम लोग घर से ही थोड़ा देर में निकले नहीं तो सुबह पहुंचने पर पुलिस बाबू हमें वापस भेज देते और यह भी अच्छा हुआ कि टिहरी चंबा वाले मार्ग पर भी नहीं बैठे जहां पानी मटमैला और लोग भी थोड़ा संदेहजनक लग रहे थे इसीलिए अच्छा ही हुआ कि बच्चों का लोकल गोवा वाला सपना मालदेवता में जाकर सच हो गया इसीलिए अगर आपके बच्चे भी गोवा के बीच में मस्ती करने के लिए उत्सुक हैं और आप किसी कारणवश नहीं ले जा पा रहे हैं तो क्या हुआ, उन्हें मेरे बच्चों का लोकल गोवा मतलब कि मालदेवता घूमा के ले आइए।
एक - Naari
So lively and realistic description....your write up always gives words to my thoughts...very nice...
ReplyDeleteI always read your article or stories...they all are full of interest... This is also a nice piece...
ReplyDeleteVery good interesting way of telling stories
ReplyDeleteNicely narrated and engrossing.
DeleteWha! bahut khoob
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