थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

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थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2   पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा।     कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे।   225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी।     कुमाऊँ की मेरी ये तीसर

आयुर्वेद: विश्व की प्राचीन चिकित्सा पद्धति Ayurveda World's oldest medical system


आयुर्वेद: विश्व की प्राचीन चिकित्सा पद्धति  Ayurveda : World's oldest medical system

केवल रोग के लिए ही नहीं अपितु स्वस्थता के लिए भी....


   पिछले कुछ दिनों से समाचार पत्र, टीवी और सोशल साइट में बस आयुर्वेद और एलोपैथ की बाते हो रही है। कोई आयुर्वेद तो कोई एलोपैथ के गुण गा रहा है। जहां एलोपैथ के कुछ दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं तो वहीं आयुर्वेद को एक लंबी चिकित्सीय प्रक्रिया बताया जा रहा है। किसी के लिए एलोपैथ नवीन चिकित्सा पद्धति है और आयुर्वेद एक पुराना अंधविश्वास और किसी के लिए आयुर्वेद स्वस्थ जीवन का आधार है तो एलोपैथ केवल रसायनों का मिश्रण।
  इस महामारी के समय में इन दोनों ही चिकित्सा पद्धति से जुड़े लोगों का आपस में इस तरह से खींचतान करना क्या उचित है?? नहीं न!!

   इन सबके बीच कल जब बेटी के पूछने पर मैं एलोपैथी और आयुर्वेद की परिभाषा बताने लगी तो उसकी बातों से स्वयं भी थोड़ा उलझन में पड़ गई क्योंकि बच्चों के प्रश्न और उनकी जिज्ञासा बड़ों से अधिक होती है।
     वैसे तो आम चलन में इतना तो पता ही है कि अंग्रेजी दवाई और अंग्रेजी इलाज पद्धति एलोपैथ में आती है जैसे दर्द, बुखार की गोली या सिरप और ये प्रयोगशालाओं में मानवनिर्मित रसायनों के द्वारा बनी होती हैं जबकि देसी प्राकृतिक दवाई और उनके द्वारा किया गया उपचार को हम आयुर्वेद कहते हैं जैसे कि हम घर में चवायनप्रश खाते हैं, और आजकल तुलसी अदरक काली मिर्च का काढ़ा पीते है या फिर ग्रीन टी ये सभी आयुर्वेद की देन हैं और इन्हें वैद्यशाला में विभिन्न जड़ी बूटियों द्वारा तैयार किया जाता है।

   
  बीमारी में तेजी से राहत के लिए एलोपैथ और बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए आयुर्वेद।

   और इतना बताकर जब बेटी से कहा कि अब आयुर्वेदिक दवाएं और नुस्खे उपयोग करेंगे तो बेटी ने साफ मना कर दिया क्योंकि उसने हमेशा ही घर में बीमार होने पर एलोपैथिक दवा लेते हुए ही देखा है जिसे लेकर तुरंत आराम मिल जाता है इसीलिए उसे भी एलोपैथी दवाओं पर ही अधिक विश्वास हो गया है।
  हालांकि बेटी को बताया गया कि अगर बुखार आने पर जो दवा (पैरासिटामोल या अन्य )लेते हैं तो वो एक एलोपैथिक दवा है लेकिन जब तेज खांसी होती है तो हम लोग आयुर्वेदिक औषधि (सितोपलादी चूर्ण शहद के साथ और हनीटस सिरप) लेकर ठीक हो जाते हैं।

भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति का स्वयं आज के समय में इस प्रकार से संशय में रहना एक चिंता का विषय है क्योंकि यह सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति ही नहीं अपितु भारत की प्राचीन संस्कृति भी है इसीलिए थोड़ा आयुर्वेद को जानना भी आवश्यक है।

आयुर्वेद क्या है (What is Ayurveda )


   आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जो प्रकृति पर आधारित है। आयुर्वेद संस्कृत के दो शब्दों का मिलन है, पहला शब्द आयु और दूसरा वेद।
आयुर का अर्थ होता है, जीवन और वेद का अर्थ ज्ञान  तो इस प्रकार से जीवन का ज्ञान (Science of life) ही आयुर्वेद है।

आयुर्वेदयति बोधयति इति आयुर्वेदः।

(जो शास्त्र (विज्ञान) आयु (जीवन) का ज्ञान कराता है वही आयुर्वेद हैं।)


आयुर्वेद का उद्देश्य (Objective of Ayurveda)

  आयुर्वेद का उद्देश्य संसार में प्राणी का कल्याण करना है।

प्रयोजनं चास्य स्वस्थस्य स्वास्थ्यरक्षणं आतुरस्यविकारप्रशमनं च ॥ (चरकसंहिता)
(आयुर्वेद का उद्देश्य ही स्वस्थ प्राणी के स्वास्थ्य की रक्षा तथा रोगी की रोग को दूर करना है )


आयुर्वेद से लाभ (Benefits of Ayurveda)

1. रोग की रोकथाम के साथ उसके मूल कारण जानकर रोग का जड़ से उपचार
2. हर प्रकार के रोग का उपचार वो भी रोगी की मनोदशा जानकर
3. मानवनिर्मित रसायन की अपेक्षा आयुर्वेद एक प्रकृति आधारित चिकित्सा प्रणाली है जिससे दुष्प्रभाव (side effect) न के बराबर
4. स्वस्थ शरीर के साथ साथ स्वस्थ मन का विकास
5. आयुर्वेद प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है जो विश्वसनीय और प्रमाणिक है और जिसके पास उपचार का सबसे अधिक अनुभव है।
6.  सस्ता और लाभप्रद क्योंकि आयुर्वेद चिकित्सा में जड़ी-बूटियाँ एवं मसाले काम में लाये जाते हैं जो सरलता से उपलब्ध हो जाते हैं।


आयुर्विज्ञान: मानव विज्ञान के लिए तार्किक और व्यवस्थित प्रक्रिया
(Logical and systematic procedure for human science)

    आयुर्वेदिक चिकित्सा केवल जड़ी बूटी कूटने और फूल पत्तों का सेवन मात्र नहीं है। यह एक शास्त्र है जिसमें तरह तरह की बीमारियों का उपचार व्यवस्थित तरीके से किया जाता है।


    आयुर्वेद अपने आप में एक विज्ञान है जिसे हम आयुर्विज्ञान कहते हैं और इस विज्ञान में केवल रोगों का उपचार ही नहीं अपितु व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से निरोग रखने और आयु बढ़ाने का भी ज्ञान मिलता है।
  आज के समय के ही समानांतर अन्य चिकित्सा पद्धति की भांति मनुष्य के सभी अंग, रस और मन का संपूर्ण ज्ञान एक व्यवस्थित तरीके से बताया गया है।

    आयुर्वेद में केवल बीमारी की रोकथाम ही नहीं अपितु कारण और उनका जड़ से निवारण बताया जाता है और इस शास्त्र में रोग को तीन प्रमुख शाखा में अध्ययन करते है,,
1. हेतु ज्ञान: रोग के उत्पन्न होने का कारण की जानकारी
2. लिंग ज्ञान: रोग के विशेष लक्षणों की जानकारी
3. औषध ज्ञान: रोग के लिए उपयुक्त औषध निर्माण और प्रयोग की जानकारी
(परीक्षा ➡️ पहचान ➡️ औषधि)

    आयुर्वेद में रोगों का कारण शारीरिक और मानसिक दोनों माना गया है इसीलिए आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति
मनो-दैहिक होती है और यह विज्ञान भी आधुनिक चिकित्सा ज्ञान की भांति अपने में जटिल है।
   चूंकि आयुर्वेद प्रकृति के निकट है इसीलिए हमारा शरीर भी ब्राह्मण की भांति पांच तत्वों से मिलकर बना है जो जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि और वायु है।

आयुर्वेद के अनुसार किसी भी रोग दोष का निवारण इसी प्रकृति में छिपा हुआ है (देखा जाए तो जानवर भी तो अपना उपचार इन्हीं वनस्पतियों से स्वतः ही कर लेते हैं और हमारे पहाड़ी गांव में तो छोटे मोटे घाव और बीमारियां सब फूल पत्तों को कूटकर या उनके रस से ठीक हो जाते है ) और आयुर्वेद के अनुसार त्रिदोष के असंतुलन के कारण ही रोग उत्पन्न होते हैं। वात, पित्त और कफ ही त्रिदोष हैं। इन तीनों के संतुलन से व्यक्ति स्वस्थ और समदोष होता है और असंतुलन से अस्वस्थ।
वायु+आकाश = वात दोष
अग्नि+जल = पित्त दोष
पृथ्वी+जल = कफ दोष
    आयुर्वेद के मूल सिद्धांत भी हैं। दोष, धातु, मल और अग्नि इन्हीं चार मूल तत्वों के सिद्धांत से मानव का उपचार किया जाता है। हर दोष किसी न किसी अंग के विकार को बताता है  और आयुर्विज्ञान भी आधुनिक चिकित्सा पद्धति की भांति तंत्र में बंटा हुआ है। ये आठ भाग जो आज के समय के समानांतर है:
1.  कायचिकित्सा➡️ General medicine
2. शल्यतन्त्र ➡️ surgical
3. शालाक्यतन्त्र➡️ ENT
4. कुमारभृत्य तंत्र ➡️Pediatrics
5. रसायनतन्त्र ➡️ renjunvention and    Geriatrics
6. अगदतन्त्र ➡️Toxicology
7. भूतविद्या तन्त्र ➡️Psycho-therapy
8. वाजीकरण➡️ Virilification, Science of Aphrodisiac and Sexology

  और भी बहुत कुछ है आयुर्विज्ञान में जो आधुनिक चिकित्सा के अनुरूप ही है किंतु अभी भी बहुत से लोग आयुर्वेद को समानांतर तो क्या वैकल्पिक चिकित्सा भी नहीं मानते।

  अक्टूबर 2017 के एक आर्टिकल में लिखा था कि
यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा (University of Minnesota) के सेंटर फॉर स्पिरिचुअलिटी एंड हीलिंग (Center for Spirituality and Healing) के अनुसार इस परंपरा को पश्चिमी दुनिया में पिछले कुछ सालों में बहुत लोकप्रियता प्राप्त हुई है।


विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति
World's oldest medical system

  आयुर्वेद को भारत की ही नहीं अपितु विश्व की प्राचीन चिकित्सा पद्धति मानते हैं। यह एक समृद्ध और प्रभावकारी चिकित्सीय प्रणाली है जिसका उल्लेख हमारे वेदों में भी मिलता है। संसार की प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद में 67 पौधों का उल्लेख है जबकि अथर्ववेद और यजुर्वेद में क्रमश: 293 व 81 औषधीय पौधों का वर्णन है। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रंथों से आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध हो जाती है। कुछ धार्मिक विद्वान तो इसका आरंभ 5000 से भी लाखो वर्षों पूर्व का मानते है जबकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति को 2400 वर्ष पुराना कहा गया है और ग्रीस में रहने वाले हिप्पोक्रेट्स को आधुनिक चिकित्सा का जनक कहा गया है। (किंतु एलोपैथी शब्द का प्रयोग 1810 में होमोपैथी चिकित्सा पद्धति के जनक सैमुअल हानीमन (Samuel Hahnemann) ने किया (जो पहले एलोपैथिक चिकित्सक ही थे)ग्रीक शब्द एलोस (Allos)का अर्थ है, अलग या अन्य (different) और पैथॉज (Pathos) का अर्थ है पद्धति या विधि (method)

     सृष्टि के आरंभ के साथ ही आयुर्वेद का जन्म भी हुआ इसीलिए भारत में आयुर्वेद को देवताओं की चिकित्सा पद्धति भी कहा जाता है। आयुर्वेद के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं जो जुड़वा भाई थे इन्हें अश्वनिकुमारौ कहा इन्होंने ही राजा दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था। (अब सोच के लग रहा है कि उस समय भी आयुर्वेदिक पद्धति से सर्जरी की गई थी और बचपन में हम टीवी के सामने इस कथा को कोई जादू समझ रहे थे।) अश्विनीकुमारों के बाद आत्रेय और धनवंतरी फिर महर्षि चरक और सुश्रुत आचार्यों ने आयुर्वेद का विस्तृत वर्णन किया।
   सुश्रुत संहिता में तो शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का विस्तृत वर्णन मिलता है जिसका अर्थ है कि उस समय भी सर्जरी की जाती थी। एक लेख में मैंने पढ़ा था की शल्य क्रिया (सर्जरी) के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे और  300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज भी की। उस समय वे कॉस्मेटिक सर्जरी में भी निपुण थे। यहां तक की सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को भी विस्तार से बताया गया है। इसीलिए सुश्रुत को शल्य चिकित्सा के पितामह भी कहा जाता है।

     चलचित्र: गूगल साभार

    हालांकि आज के समय में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में शल्य चिकित्सा नहीं की जाती है किंतु पहले जड़ी बूटियों के द्वारा ही अंग और हड्डी को जोड़ दिया जाता था, नए दांत आ जाते थे, घायलों का उपचार किया जाता था यहां तक कि टूटी टांग के स्थान पर लोहे की टांग भी लगा दी जाती थी।

  सन् 800 ईं. में सुश्रुत संहिता का अनुवाद अरबी भाषा में 'किताबे सुश्रुत' नाम से भी हुआ है। अरब के प्रसिद्ध चिकित्सक टेजिस ने अपने ग्रंथों में सुश्रुत को शल्य-विज्ञान का आचार्य माना है।


एलोपैथ की तरफ क्यों है लोगों का अधिक झुकाव
Why people are more facinated towards allopathy

  आयुर्वेद भले ही भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति रही है किंतु अभी भी भारत के ही असंख्य लोग आयुर्वेद से अनभिज्ञ हैं। आज भी यहां के लोगों का रुझान मुख्यत एलोपैथी की ओर ही है और इसके कुछ कारण हैं,,,


वैक्सीन और शल्य चिकित्सा (Vaccine and Surgery)

    एलोपैथी की प्रसिद्धि का एक सबसे बड़ा कारण वैक्सीन और सर्जरी है। भारत में पहले एलोपैथी के डॉक्टर नहीं थे सिर्फ वैद्य जी की जड़ी बूटियों के द्वारा ही उपचार किया जाता था लेकिन जब विदेशी लोग चाहे पुर्तगाली हो या अंग्रेज भारत व्यापार के लिए आते थे तो अपने साथ एलोपैथिक डॉक्टर भी लाते थे। जब चेचक की बीमारी थी तो आयुर्वेद से भी उपचार किया जाता था किंतु चेचक की वैक्सीन आने पर लोगों का रुझान एलोपैथ पर बढ़ गया। फिर जब धीरे-धीरे अन्य बीमारियों की दवा और शल्य चिकित्सा भी होने लगी और आधारिक संरचना (infrastructure) भी बनने लगे तो लोग भी एलोपैथ की तरफ जुड़ने लगे और एलोपैथ पर विश्वास बढ़ता गया।

शीघ्र परिणाम (Fast Result)

   वैसे तो इसमें कोई शंका नहीं की सामान्यतः मेरे जैसे बहुत से लोग आज भी जब बुखार आता है तो सबसे पहले  पैरासिटामोल, क्रोसिन या अन्य एलोपैथिक दवाई ले लेते हैं। कम ही लोग होंगे जो बुखार आने पर गिलोय रस, ज्वर वटी या कोई अन्य आयुर्वेदिक दवाई लेते होंगे क्योंकि एलोपैथ जिसे हम आधुनिक चिकित्सा पद्धति भी कहते हैं  वह आयुर्वेद की अपेक्षा शीघ्र परिणाम देती है। एलोपैथी को एक्यूट बीमारियों के उपचार के लिए उपयुक्त मानते हैं। तीव्र बीमारी (acute desease, seviour deasease) में लक्षणों के आधार पर दवाई दी जाती है जिससे तुरंत राहत मिलती है और तुरंत आराम किसे नहीं चाहिए!
( एलोपैथ में जहां कुछ बीमारियों से निवारण मिलता है तो कुछ बीमारियों (मधुमेह, रक्तचाप, किडनी) में सिर्फ उसकी रोकथाम की जा सकती है लेकिन आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक रोग को जड़ से मिटाया जाता है। केवल लक्षणों के आधार पर ही नहीं अपितु मानसिक और शारीरिक प्रकृति के आधार पर भी आयुर्वेद में पुराने से पुराने और जीर्ण रोगों (Cronic Desease) का उपचार संभव होता है।)

नैदानिक उपकरण पर विश्वास (Trust in diagnostic tools)

   आधुनिक चिकित्सा पद्धति में तरह तरह के नैदानिक ​​उपकरण (diagnostic tools) उपलब्ध है, जैसे की अल्ट्रासाउंड, सी टी स्कैन, एक्स रे, ई सी जी और कई तरह के टेस्ट जिससे की समस्याओं का पता चल जाता है और चिकत्सक से साथ साथ रोगी को भी अपनी बीमारी का ज्ञात हो जाता है। इसीलिए लोग हर रोग के लिए विभिन्न प्रकार के टेस्ट पर आश्रित भी हो गए हैं। 
  ( ऐसा नहीं है कि आयुर्वेद में यह सब संभव नहीं होता होगा। निपुण आयुर्वेदाचार्य तो बिना किसी टेस्ट के सिर्फ हाथ की नाड़ी परीक्षण से ही रोग का पता लगा लेते हैं। इतना ही नहीं शारीरिक परीक्षण, मल, मूत्र, आंख, जिह्वा, स्पर्श, श्रावण, त्वचा यहां तक की रोगी की मानसिक परीक्षण भी किया जाता है। आयुर्वेद शास्त्र में
परीक्षा ➡️ पहचान ➡️ औषधि के रूप में ही उपचार किया जाता है।)

साक्ष्य-आधारित दवा (Evidence Based Medicine)


  आज के समय में सभी लोगों को प्रमाण की आवश्यकता होती है जो उन्हें टेस्ट के माध्यम से मिल जाते हैं और साथ ही साथ एलोपैथ में अनुसंधानों द्वारा लगातार परीक्षण होने के बाद वैज्ञानिक शोधपत्रों द्वारा, आंकड़ों द्वारा और साक्ष्य के आधार पर रोग की रोकथाम के लिए इलाज किया जाता है और इसी के कारण लोगों का एलोपैथ पर झुकाव बढ़ जाता है।
(आयुर्वेद के महत्व का सबसे बड़ा साक्ष्य तो हमारे प्राचीन वेद और ग्रंथ हैं। ऋग्वेद संहिता में आयुर्वेद का अति महत्व बताया है और चरक संहिता, सुश्रुत संहिता में आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद माना गया है। सभी परीक्षण प्रकृति प्रेरित ही होते हैं क्योंकि आयुर्वेद में यही माना जाता है कि मनुष्य प्रकृति से ही बना है और आज जो आयुर्वेदिक दवाएं बन रही हैं वो भी प्रमाण और तथ्यों के साथ बनाई जा रही हैं। )

घर में अंग्रेजी दवाओं का प्रचलन (Allopathic practice at home)

   जब हम बच्चें थे तब से अपने घर में एलोपैथ की दवाई प्रयोग करते हुए देखा और आज हम अपने बच्चों को भी यही दवाई दे रहे हैं और इसी तरीके से बच्चे भी आगे चलकर इन्हीं दवाओं पर निर्भर रहेंगे और इस प्रकार से एलोपैथिक दवाओं के बीच आयुर्वेद का महत्व समझ नहीं पाएंगे फिर पीढ़ी दर पीढ़ी उसी पद्धति का प्रचलन बढ़ता रहेगा।


(घर में सभी प्रकार की एलोपैथी दवाई तो रहती ही है जबकि भारतीय रसोई तो अपने आप में ही आयुर्वेदिक दवाओं का अच्छा स्रोत है। कभी इस रसोई से उपलब्ध नुस्खों का भी प्रयोग किया जा सकता है जैसे, जुकाम खांसी के लिए हल्दी वाले गर्म दूध का सेवन, गैस के लिए अजवाइन, हींग और काला नामक का सेवन, कब्ज के लिए मुनक्के और बेल का सेवन, अजवाइन की भाप से अस्थमा से राहत, दांत दर्द में लौंग तेल लगाने से में राहत, फैटी लीवर के लिए आंवला, नींबू और संतरे का सेवन इत्यादि और इनका कोई दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) भी नहीं होगा।)

आयुर्वेद के साथ मेरा अपना अनुभव (My own experience with Ayurveda)

    वैसे तो घर में एलोपैथी का ही चलन है। चाहे मां बाबू जी की बी पी की गोलियां हो या बच्चों के बुखार या पेट दर्द की या फिर स्वयं की मल्टीविटामिन लेकिन आयुर्वेद से संबंधित एक अनुभव तो मेरे पास भी है।
     जब 3 महीने के जय (मेरे बेटे) को बिना बुखार के केवल खांसी हुई तो पीडियाट्रिक (बाल रोग विशेषज्ञ) की सलाह से कफ सिरप दिया गया किंतु कोई आराम नहीं हुआ वो बढ़ती गई फिर नन्हें जय का एक्सरे किया तो पता चला कि जय को निमोनिया की शिकायत हो गई है और ईश्वर की कृपा से पीडियाट्रिक के द्वारा दी गई दवाईयों से जय ठीक भी हो गया लेकिन उसके बाद से जब भी उसे खांसी होती थी तो हर बार बिना डॉक्टर के पास गए रहा नहीं गया। शहर के चार प्रतिष्ठित बाल रोग विशेषज्ञ की सलाह भी ली लेकिन हर बार कफ सिरप, एंटीबायोटिक और निबुलाइज की आवश्यकता पड़ी। यहां तक कि कहा गया की अगर ऐसा ही चलता रहा तो शायद भविष्य में इन्हेलर की डोज से काम चलाना पड़े।
      फिर एक बार मायके जाना हुआ तो जय को फिर से खांसी होने लगी और सिर्फ कफ सिरप से आराम नहीं आ रहा था। मेरे दीदी का परिवार जो आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को अपनाता है, वे मुझे ऋषिकेश के आयुर्वेदिक धनवंतरी चिकित्सक के पास लेकर गए। वहां चिकित्सक ने जय की नाड़ी की जांच की और सिर्फ दो आयुर्वेदिक सिरप दिए जिसे मिलाकर पिलाना था।
     बस थोड़ा विश्वास और धीरज के साथ ही जय को उन्हीं आयुर्वेदिक सिरप से आराम मिल गया। ना ही निबुलाइजर की आवश्यकता पड़ी और ना ही किसी एंटीबायोटिक की। अब जय (3.6 वर्ष) को जब भी कभी मौसमी खांसी होती है तो बस एक ही आयुर्वेदिक सिरप से आराम मिल जाता है। 


(उस समय एलोपैथिक उपचार से ही जय के निमोनिया की रोकथाम की गई और जय फिर से स्वस्थ हो गया लेकिन आयुर्वेदिक उपचार से जय की खांसी कभी उस स्तर तक नहीं पहुंची कि अन्य दवाईयों का सहारा लेना पड़े और आज मेरे दोनों बच्चे स्वस्थ है।)


  इसीलिए किसी प्रकार की लड़ाई में न पड़कर हमें तो दोनों का धन्यवाद करना चाहिए की दोनों चिकित्सा पद्धति द्वारा हमारे बहुत से लोगों को जीवनदान मिला है और बहुत से लोग स्वस्थ भी हुए हैं।

   लेकिन कई बार इस प्रकार के तर्क वितर्क से हम आम लोगों को भी सोचने का एक मौका तो मिल ही गया कि आखिर  क्या सही है और किस सीमा तक सही है। जीवन को स्वस्थ बनाने के लिए आयुर्वेद आवश्यक है और स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी आपात के लिए एलोपैथ आवश्यक है।
     अब तो  सरकार भी एलोपैथ के साथ आयुर्वेद को भी बढ़ावा दे रही है। आयुष मंत्रालय के साथ साथ समाज के बुद्धिजीवी वर्ग भी आयुर्वेद को आगे प्रोत्साहित कर रहे हैं। अब तो देश ही नहीं विदेश में भी आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को लोग अपना रहे हैं देश दुनिया में हर्बल प्रोडक्ट की धूम मची है, तभी तो केवल भारत में ही आयुर्वेद का कुल कारोबार करीब 30,000 करोड़ रुपये मूल्य तक का पहुंच गया है।
     हालांकि अभी भी युवाओं की पसंद आधुनिक चिकित्सा के डॉक्टर बनना है कोई वैद्य या आचार्य नहीं तभी तो 2019 के आंकड़ों के अनुसार भारत में ऐलोपैथी के कुल डॉक्टर 12 लाख 1 हजार 354 है जबकि आयुर्वेद के चिकित्सकों की संख्या लगभग 4 लाख ही है।

   शरीर में कोई रोग उत्पन्न न हो ऐसा आज के समय में तो संभव नहीं लग रहा है कारण चाहे हमारी जीवनशैली हो या हमारा खान पान या फिर बाहरी वातावरण किंतु कुछ बदलाव करके जीवन को थोड़ा प्रकृति के निकट तो मोड़ सकते हैं जिससे किसी आपात स्थिति में पहुंचने से बचा जा सके।

    एलोपैथ और आयुर्वेद दोनों का ही अपना महत्व है लेकिन हां, बिना विश्वास के किसी भी पद्धति में इलाज संभव नहीं है। जहां आयुर्वेद में योग और प्राकृतिक चिकित्सा है वहीं एलोपैथ में वैक्सीन और जटिल सर्जरी भी हैं। इसी लिए दोनों का सामंजस्य बना कर प्रयोग करना ही उचित है। आयुर्वेद नवीन भारत की प्राचीन धरोहर है जिसका संरक्षण तभी हो सकता है जब उसका नियमित उपयोग भी  हो। 

    एक बार विचार अवश्य करें कि किस प्रकार से आयुर्वेद को अपने सामान्य जीवन में अपनाया जा सकता है क्योंकि आयुर्वेद का प्रयोग केवल रोग के उपचार के लिए ही नही अपितु रोग से दूर रहने के लिए भी होता है।


    इसलिए आज (5 जून2021) विश्व पर्यावरण दिवस  के दिन आयुर्वेद (प्रकृति) की ओर एक कदम आगे बढ़ाया जाए।


(नोट: यह मेरे अपने विचार और अनुभव है, कृपया किसी भी रोग, दवा या उचित स्वास्थ्य के लिए आप अपने आयुर्वेदिक/ एलोपैथिक/ होमोपैथिक/ यूनानी चिकित्सक या सिद्ध के चिकित्सकों का परामर्श अवश्य लें।)





एक - Naari

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