शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति

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शिव पार्वती: एक आदर्श दंपति  हिंदू धर्म में कृष्ण और राधा का प्रेम सर्वोपरि माना जाता है किंतु शिव पार्वती का स्थान दाम्पत्य में सर्वश्रेठ है। उनका स्थान सभी देवी देवताओं से ऊपर माना गया है। वैसे तो सभी देवी देवता एक समान है किंतु फिर भी पिता का स्थान तो सबसे ऊँचा होता है और भगवान शिव तो परमपिता हैं और माता पार्वती जगत जननी।    यह तो सभी मानते ही हैं कि हम सभी भगवान की संतान है इसलिए हमारे लिए देवी देवताओं का स्थान हमेशा ही पूजनीय और उच्च होता है किंतु अगर व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो एक पुत्र के लिए माता और पिता का स्थान उच्च तभी बनता है जब वह अपने माता पिता को एक आदर्श मानता हो। उनके माता पिता के कर्तव्यों से अलग उन दोनों को एक आदर्श पति पत्नी के रूप में भी देखता हो और उनके गुणों का अनुसरण भी करता हो।     भगवान शिव और माता पार्वती हमारे ईष्ट माता पिता इसीलिए हैं क्योंकि हिंदू धर्म में शिव और पार्वती पति पत्नी के रूप में एक आदर्श दंपति हैं। हमारे पौराणिक कथाएं हो या कोई ग्रंथ शिव पार्वती प्रसंग में भगवान में भी एक सामान्य स्त्री पुरुष जैसा व्यवहार भी दिखाई देगा। जैसे शिव

पर्यावरण नियम सुरक्षित और स्वस्थ भविष्य के लिए (Environmental rules for a safe and healthy future)

पर्यावरण नियम: Reduce, Re-use and Recycle


  पिछले हफ्ते एक दिन फोन देखकर बहुत खुशी मिल रही थी क्योंकि हर कोई अपनी फोटो लगा रहा था। वैसे तो अपने दोस्त और बंधुओंकी फोटो देखकर हमेशा अच्छा ही लगता है लेकिन इन फोटो में एक खास बात यह थी कि हर किसी की फोटो में प्रकृति की रक्षा का संदेश था। 

   सच में,  बहुत अच्छा लगता है जब किसी को देखती हूं कि वो अपनी बागवानी में पौधों के बीच में है, कोई फूलों के साथ है, कोई बेलों की देखभाल में लगा हुआ है, किसी ने घर के आंगन में पौधा लगाया तो किसी ने छत पर किचन गार्डन बनाया। सच में, ऐसा लगा कि सभी को पर्यावरण की चिंता है तभी तो सभी लोग प्रेरित कर रहे हैं कि धरती को बचाओ और पेड़ पौधे लगाओ।  
    यह दिन था 5 जून का जिसे हम सभी विश्व पर्यावरण दिवस (world environment Day) के रूप में मनाते है। पर्यावरण दिवस अपने आसपास के पर्यावरण को स्वस्थ, सुरक्षित और संरक्षण रखने के लिए एक जागरूक अभियान है। इस वर्ष का विषय ही पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली है जिसे संयुक्त राष्ट्र ने एक दशक तक 2021- 2030 तक मनाने का लक्ष्य रखा है।      


      पारिस्थितिकी तंत्र में सभी जीव जंतु, पेड़ पौधे, मानव जाति और प्रकृति आती है। दसवीं, बारहवीं कक्षा में शायद पढ़ा भी होगा की सभी जीव जैविक और अजैविक पर्यावरण से एक दूसरे से संबंधित हैं।
    अधिकतर लोगों को पता है कि धीरे धीरे पर्यावरण को क्षति पहुंच रहा है और इसे संयुक्त राष्ट्र ने मानव जाति के लिए 3 खतरों में बताया है।

1.जलवायु परिवर्तन ( Climate Change)
2. प्रकृति क्षरण (Nature Erosion)
3. प्रदूषण (Pollution)

  इन तीन खतरों को अगर अनदेखा किया जाएगा तो भविष्य में मानव के लिए पृथ्वी पर रहना काल्पनिक होगा। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र ने इस चुनौती का सामना करने के लिए 2030 तक कम से कम 1अरब हेक्टेयर की क्षरित भूमि की बहाली( restoration of degraded land )और वैश्विक औसत तापमान को 2 डिग्री कम करने का लक्ष्य रखा है। इसी कारण इसे एक दशक में पूरा करने का लक्ष्य रखा है।

चिंता का विषय: जंगल का नष्ट होना Concern: Destruction of the forest

    लक्ष्य बड़ा तो है क्योंकि औसतन 4.7 मिलियन हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र तो प्रतिवर्ष नष्ट हो जाता है यहां तक कि 10 जून 2021 की खबर में आया था की उत्तराखंड में जून माह में अभी तक 3.25 हेक्टेयर वन संपदा जल कर नष्ट हो चुकी है लेकिन अगर प्रत्येक देश और प्रत्येक नागरिक पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे तो इस लक्ष्य को पूरा किया भी जा सकता है।
   हम अपने प्राकृतिक धरोहरों का तेजी से दोहन कर रहे हैं और यह भी जानते हैं कि जितना तेजी से इसका उपभोग कर रहे हैं उतनी तेजी से इसकी भरपाई नहीं की जा सकती। (एक पेड़ काटने पर मिनट या घंटे लगते हैं लेकिन एक पौधे का पेड़ बनने में वर्षो का समय लगता है) और हम दुनिया के 80% तक जंगल खो चुके हैं।

   धरती पर जंगल है तो जीवन भी है। इस पारिस्थितिकी तंत्र में पादप भी हैं और यहां आश्रित पशु पक्षी भी और वायुमंडल भी। जंगल ही जैव विविधता को बनाए रखते है और जब इन्ही जंगलों का कटान होता है तो पूरा तंत्र बिगड़ जाता है। वन ही तो वर्षा लाते हैं और वन से ही वायुमंडल संतुलित रहता है। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने का मुख्य कारण जंगल का नष्ट होना है। पूरी दुनिया में हर तीन सेकंड में हम बहुत सारे जंगल खो देते है, और इसी के चलते पिछली सदी में, हमने अपनी आधी आर्द्रभूमि को भी खो दिया है


  पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कारण जनसंख्या भी है, तकनीकी विकास भी और उद्योग भी क्योंकि इनसे ही जंगल कट रहे है और विभिन्न प्रकार का प्रदूषण हो रहा है।
   

चिंता का विषय: प्लास्टिक का बढ़ना एक प्रदूषण 

Concern: the increase of plastic it's a pollution

    प्लास्टिक स्वयं एक प्रदूषण है जो आज के समय में हर किसी के घर में भी आसानी से दिखता है। यह सस्ता और आसानी से मिल तो जाता है लेकिन पर्यावरण में आसानी से समाता नहीं है इसे समाप्त होने में 500 से1000 वर्ष लग जाते है। प्लास्टिक नॉन बायोडिग्रेडेबल पदार्थ है इसमें ऐसे जहरीले रसायन होते हैं जो जलाने या फेंकने पर जहरीले तत्व छोड़ते हैं।


    एक बात गौर करें कि हम अपने पूरे दिन में कितनी बार प्लास्टिक या पॉलिथीन का उपयोग करते हैं। सुबह उठकर ब्रश हो या बाल्टी हो, मग हो, बोतल हो, डिब्बा हो, अनाज रखने का समान हो, ग्लास हो, दूध का पैकेट हो, दाल अनाज का पैकेट हो, चिप्स का पैकेट हो, टॉफी हो, चॉकलेट हो, ब्रेड हो, बंद हो, बिस्कुट हो, कप हो, प्लेट हो, बच्चों का टिफिन हो, पेंसिल बॉक्स हो, स्ट्रा हो, पाइप हो, नल हो, दूध की बॉटल हो, यहां तक की कंघी, शैंपू और क्रीम की बोतल हो और कितनी दवाई की बोतल भी सब के सब प्लास्टिक से बने है। सोचें तो हमारी रोजमर्रा के जीवन में भी प्लास्टिक बसा हुआ है और हम घर में भी इसी प्रदूषण के साथ रह रहे हैं। (आपको भी शायद याद होगा पहले तो नहाने के लिए भी पीतल, लोहे या स्टील की बाल्टी होती थी और मग की जगह लौटा, पहले दूध भी कांच की बोतल में आता था और शरबत की बोतल भी,)यह माने की हमारे घर से ही लगभग 50% ऐसा प्लास्टिक कचरा जाता है जिसे बस एक बार में उपयोग किया जाता है।  (इस प्लास्टिक को पूरी तरह बंद भी तो नहीं किया जा सकता क्योंकि बहुत से जरूरी समान भी इससे बनते हैं, मेडिकल उपकरण जैसे सामान भी तो इसका ही एक रूप है।)
   इसी प्लास्टिक में गर्म वस्तुएं रखना तो और भी खतरनाक है क्योंकि प्लास्टिक में गर्म तरल या गर्म खाद्य पदार्थ रखने से इसके माइक्रो अणु खाने में मिलकर हमारे शरीर को नुकसान पंहुचाते हैं। (कुछ के अनुसार तो छत पर रखी पानी की प्लास्टिक टंकी को भी टीन शेड के नीचे रखना चाहिए। अभी इसपर कोई प्रमाणित शोध नहीं हुआ है।)


  वैसे तो भारत में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक (single use plastic)पर प्रतिबंध है लेकिन इसके अतिरिक्त केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार,एक दिन में लगभग 26,000 टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से 10,000 टन से अधिक का संग्रह (recycling) भी नहीं हो पाता।
  ये कहां जाता है?? या तो जमीन के अंदर धंसता है या फिर पानी पर तैरता है। कहीं न कहीं किसी छोर से होता हुआ इन्हीं नदी नालों और पानी में बह जाता है और समुद्र के ऊपर तैरता रहता है।


किसी प्लास्टिक का  छोटे से छोटा टुकड़ा भी अपने आप समाप्त नहीं होता है और यही छोटे टुकड़े हानिकारक भी होते हैं क्योंकि इन्हें इकठ्ठा करके रिसाइकिल करना ही एक बड़ी चुनौती है।

चिंता का विषय: महासागरों का दूषित होना Concern: contamination of the oceans (ocean pollution)

    बहुत दुख हुआ जब पढ़ा की महासागर के ऊपर ही एक कचरे का विशाल द्वीप बना हुआ है जो भारत, यूरोप और मैक्सिको का एक संयुक्त आकार है और इस कचरे में सबसे अधिक प्लास्टिक होता है।
    हाल इतने बुरे हैं कि जमीन को खोदेंगे तो प्लास्टिक मिलेगा और समुद्र में देखेंगे तो प्लास्टिक दिखेगा। हम अपनी जमीन की गुणवत्ता भी खराब कर रहे हैं और पानी की भी साथ ही साथ वायु की भी। जिससे मनुष्य ही नही जंगली जानवरों समेत समुद्री जीवों के लिए भी खतरा बढ़ गया है। जानवरों के पेट में पॉलिथीन बैग चले जाते हैं, समुद्री जीवों के गले में स्ट्रा फंस जाते है और बोतल के ढक्कन घुस जाते हैं। यह माने की जाने अनजाने में हम कचरा नहीं फैला रहे कई जीवन भी नष्ट कर रहे हैं। प्रति वर्ष 10 लाख से अधिक समुद्री पक्षियों और एक लाख से अधिक समुद्री जीवों की मौत का कारण यही प्लास्टिक ही है


     इन्हीं सागर और महासागरों के पादपों से ही तो आधी ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है और साथ ही साथ जीवनदायी दवाई भी, अर्थव्यवस्था भी चलती है और समुद्री जीवों का पारिस्थितिकी तंत्र भी लेकिन फिर भी हमारे द्वारा ही तो यहां भी प्रदूषण हो रहा है। इन्हीं चिंता को गंभीरता से लेते हुए 8 जून को विश्व महासागर दिवस (World Ocean Day) की घोषणा हुई जिसका उद्देश्य महासागरों का संरक्षण है।
  एक रिपोर्ट के अनुसार तो भारत की सबसे पवित्र नदी माने जाने वाली गंगा में 80% शहरी कचरा (urban waste) जाता है। यहां तक की गंगा जी में बहाए अधजले शवों या मरे जंतुओं से भी धीरे धीरे पानी सेप्टिक हो रहा हैएक और रिपोर्ट में बताया की 'नदी के मुख्य भाग पर बसे 97 शहर हर दिन 2.9 अरब लीटर प्रदूषित जल छोड़ते हैं, जबकि इन्हें साफ करने की वर्तमान क्षमता केवल 1.6 अरब लीटर प्रतिदिन है।'


(सोचती हूं कि ईश्वर ने इतनी सुंदर पृथ्वी दी और हम मानव ने उसे धुंए और कचरे का गोला बना दिया।)

चिंता का विषय: मानव के लिए घातक बनता प्रदूषण Concern: Pollution becoming fatal to humans

  जब पारिस्थितिकी तंत्र में किसी भी प्रकार का असंतुलन होगा तो कठिनाइयां सभी के लिए होंगी। बिना कुछ सोचे समझे जो विकास हो रहा है वो ही विनाश का कारण भी है। अंधाधुंध वन कटान से मृदा अपरदन (soil erosion) तो होता ही है साथ ही साथ वातावरण में गैसों का भी असंतुलन बढ़ता है। एक तरफ जल प्रदूषण होता है तो एक तरफ वायु प्रदूषण। इन सभी का परिणाम हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। बढ़ती गाड़ियों से, शोर से, रेडियोधर्मी पदार्थ से हर जगह किसी न किसी प्रकार के प्रदूषण की चिंता बनी हुई है।
   आंकड़ों के अनुसार तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रदूषण के कारण ही हर वर्ष नौ मिलियन (90 लाख) से अधिक लोग मारे जाते हैं।
  इसी प्रदूषण के चलते ही 5 साल से कम आयु के 30 लाख से अधिक बच्चे मर जाते हैं।


   एक और सोचने वाली बात है की विश्व की केवल 5% जनसंख्या वाली अमेरिका ही दुनिया के 30% कचरे के लिए जिम्मेदार है यानी यूनाइटेड स्टेट पहले पायदान पर आता है और इसे हम विकसित देश कहते हैं। सबसे अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन वाले देश में भी यह दूसरे नंबर पर आता है।
    पहले पायदान पर चीन है जो सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन करता है हालांकि चीन भी अब पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशील हो गया है तभी तो हरित ऊर्जा में भी आगे बढ़ गया है। पूरे विश्व के आधे से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन चीन के पास हैं और यहां पर 99% बस भी इलैक्ट्रिक है।

पर्यावरण सुरक्षा के लिए शासन प्रशासन की जिम्मेदारी Responsibility of government administration for environmental protection

  पर्यावरण से संबंधित बहुत से गंभीर विषय है जिनके बारे में सोचना और कार्य करना बहुत आवश्यक है। शासन प्रशासन से लेकर एक आम नागरिक को कुछ तो जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 19 नवंबर 1986 से लागू है इसके साथ ही साथ जंगल से जुड़े कानून भी बनाए गए है लेकिन क्या जितने पेड़ विकास के नाम पर या उद्योग के कारण काटे जाते हैं क्या उनसे अधिक पेड़ भी लगाए जाते हैं?? क्या उनकी देखभाल भी होती है??


सरकार को ऐसे कड़े कानून या नियम बनाए जाने की आवश्यकता है जिसका पालन भी हो,जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित कानून का प्रावधान हो‌, कार्बन उत्सर्जित उद्योग की सब्सिडी न हो, ‌चाहेबांध हो या सड़क या कोई भी अन्य परियोजना वैज्ञानिक और पर्यावरणविदों से मिलकर ही बनी हो,‌रिड्यूस, रियूज और रिसाइकिल (Reduce, Re-use and Recycle) का जागरूक अभियान चलाए, पॉलिथीन से संबंधित किसी भी उद्योग को उसके कचरा निस्तारण की जिम्मेदारी भी दी जाए और देखा भी जाए कि किस सीमा तक वो अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे है। कोई भी कंपनी अपने उत्पाद को बढ़ावा देने के साथ सामाजिक जिम्मेदारी को भी बढ़ावा दे, जैसे दूध, बिस्कुट या अन्य समान के साथ उसके कचरे का सही निपटान की जानकारी हो

किसी भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार लोगों का सख्त चालान हो और भी बहुत कुछ है जो शायद सरकार कर भी रही होगी या कर सकती है। 


   (देहरादून में पॉलिथीन के विरोध में बहुत बड़ी मानव श्रंखला बनाई गई थी लेकिन अभी भी बाजार में पॉलिथीन का मिलना बहुत आम है। अब ये कहां बन रही हैं, कहां से शहरों तक पहुंच रही है? इसका कोई हिसाब नहीं है और न ही किसी को कोई चिंता क्योंकि हमारे लिए तो यह घरों में कूड़ा कचरा फेंकने के काम आ ही जाती है इसीलिए हमें भी पर्यावरण के प्रति थोड़ा और संवेदनशील होना पड़ेगा) 


पर्यावरण सुरक्षा के 20 आसान नियम 20 easy rules for environmental protection

 

  हम आम लोग भी पर्यावरण से प्रेम तो करते हैं और कर भी रहे हैं जैसे, आसपास साफ सफाई करके, पेड़ पौधे लगाकर, सीएनजी का प्रयोग करके, सौर ऊर्जा के प्रयोग से और भी कुछ है जिसे हम दैनिक जीवन में बदलाव करके इन आने वाले 10 सालों में कुछ सहयोग दे सकते हैं। शायद थोड़ी परेशानी या उलझन होगी लेकिन फिर हमारी आदत में शामिल भी हो जाएगा,,,जैसे

1. जहां दिखे खाली, वहां भर दो हरियाली: प्रकृति के साथ जुड़कर धरती को हरा भरा बनाया जा सकता है। जितना हो सके पेड़ पौधों को जगह दे।

2. प्लास्टिक का उपयोग न करें और है तो उसे दोबारा उपयोग करते रहे और फिर रिसाइकिल के लिए भेजे। यहां वहां न फेंके। (Reduse, Reuse, Recycle)। घर में जितना हो ग्लास या चीनी मिट्टी के डब्बों या जार का प्रयोग करें। (शायद ये प्लास्टिक से महंगे पड़े लेकिन सेहत से अधिक कीमती नहीं)
3. बाजार जाते समय कपड़े का बना थैला उपयोग करें, पॉलीबैग को मना करें।
4. दूध का पैकेट खोलते समय छोटा कट लगाएं या पैकेट के कोने को काटकर उसी के अंदर डाल दे। ऐसे ही किसी भी बैग का छोटे से छोटा टुकड़ा भी अलग न फेंके क्योंकि इनको एकत्रित करना और फिर रिसाइकिल करना बहुत कठिन काम है।
5. डिस्पोजेबल कटलरी से दूरी बना लें, लकड़ी या पत्तों से बने उत्पाद उपयोग करें।
6. घर से बाहर निकलते हुए अपनी पानी की बोतल या ग्लास(स्टील या अन्य) साथ में रखें।
7. प्लास्टिक के स्ट्रा का त्याग करें। कोल्डड्रिंक, जूस या अन्य पेय के लिए सीधे ग्लास का उपयोग। नारियल पानी को भी ग्लास में डाला जा सकता है नहीं तो पेपर या बैंबू से बने स्ट्रा का प्रयोग करें।
8. खुले में कूड़ा बिलकुल न जलाएं। कहीं भी जाएं लेकिन कूड़ा कूड़ेदान में ही डाले।

9. उपयोग में आने वाली बैटरी में कैडमियम, लेड और मर्करी का घातक मिश्रण होता है जो प्रदूषण के तत्व हैं इसलिए जितना हो सके रिचार्जेबल बैटरी का उपयोग करें।
10. गीले टिश्यू पेपर के बदले गीले रूमाल का प्रयोग करें इनके रेशे में भी एक रसायन होता है जो मिट्टी को दूषित करता है।
11. कम से कम भारत में तो टॉयलेट पेपर का प्रयोग नहीं होना चाहिए या फिर उसके स्थान पर बाजार में रियूजेबल क्लॉथ (resuable cloth) का प्रयोग करें। टॉयलेट पेपर के लिए ही प्रति वर्ष एक करोड़ से अधिक पेड़ काटे जाते हैं। टिश्यू पेपर के स्थान पर सूती कपड़ा काम में लाया जा सकता है।
12. इकोफ्रेंडली (ecofriendly)माइक्रोबीड-मुक्त मेकअप का सामान ले। ब्लश और फाउंडेशन क्रीम में प्लास्टिक के माइक्रोबीड्स हो सकते हैं जो हानिकारक हैं। यहां तक की सनस्क्रीम (ऑक्सीबेनज़ोन, ऑक्टिनॉक्सेट, और ऑक्टोक्रिलीन)और टूथपेस्ट, फेस वॉश, डिटर्जेंट में प्लास्टिक के माइक्रोबीड होते हैं जो पानी के साथ धुलकर जमीन या समुद्र को दूषित करते हैं।पॉलीइथाइलीन, नायलॉन, पॉलीप्रोपाइलीन, या पॉलीमेथाइल मेथैक्रिलेट की जांच कर लें। हर्बल उत्पाद उपयोग में ला सकते हैं।
13. महिलाएं आम कॉमर्शियल सैनिटरी पैड के स्थान पर बायोडेग्रेडबल, कपड़े के पैड या सिलिकॉन के कप का प्रयोग करें। आम पैड में डायोक्सिन, फ्यूरन, पेस्टिसाइड और अन्य विघटनकारी रसायन होते हैं जो महिलाओं की सेहत के साथ ही पर्यावरण के लिए भी घातक है। यह कचरा 600 साल तक ऐसे ही रहता है।


    ऑनलाइन बाजार में बहुत अच्छे विकल्प हैं। एक बार ढूंढा जा सकता है और मैंने भी एक विकल्प की ऑनलाइन खरीदारी कर ली है। (पैडकेयर लैब मशीन ने उपयोग किए गए सैनिटरी नैपकिन को रीसाइक्लिंग करने की मशीन बना दी है जो 10 घंटोंमें 1500 पैड रिसाइकिल करेगी अब सरकार इस पर कहां तक काम करेगी, इसपर शायद अभी समय लगेगा।)
14. पुरुष डिस्पोजेबल रेजर के स्थान पर अधिक चलने वाले या स्टील के रेजर का प्रयोग करें क्योंकि प्लास्टिक के बीच धातु होने से इन्हें रिसाइकिल करना थोड़ा मुश्किल होता है। साथ ही नॉन एरोसोल शेविंग क्रीम का प्रयोग करें।
15. चिपकने वाली टेप (adhesive tape) का बिलकुल काम प्रयोग हो या इसके स्थान पर गोंद का प्रयोग करें।
16. हालांकि सीएफएल और एलईडी बल्ब को पर्यावरण के अनुकूल बताया गया है किंतु इसका प्रयोग भी कम करें।
17. बहुत जल्दी फोन, लैपटॉप, गैजेट्स को न बदले। इनके उत्पादन में अत्यधिक कार्बन उत्सर्जित होती है। (कनाडा के मैकमास्टर विश्वविद्यालय के अनुसार, स्मार्ट फोन और डेटा केंद्रों में 2040 तक तकनीकी उद्योग का सबसे बड़ा कार्बन पदचिह्न होगा।)
18. जागरूक रहे और अन्य को भी पर्यावरण के संबंध में जागरूक करे।
19. जीरो वेस्टेज (zero waste) का नियम अपनाएं।

20. एक और बात है जो मैने पढ़ी है लेकिन उसके लिए आप स्वयं ही निर्णय लें,,

   शाकाहारी लोग मांसाहारी लोगों से 50% तक कम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन करते हैं और वह प्रतिदिन 1100 गैलन पानी बचाता है साथ ही 1 वर्ष के लिए 1 व्यक्ति को खिलाने के लिए आवश्यक भूमि:
शाकाहारी (Vegan which excludes all meat and animal products like egg and dairy too) - 1/6 एकड़, शाकाहारी(vegetarian excludes only meat) - 3x शाकाहारी (vegan)
मांस खाने वाला (non vegetarian) - 18x शाकाहारी (vegan) की आवश्यकता होती है।

(शुद्ध शाकाहारी vegan बनना मेरे लिए भी थोड़ा मुश्किल है क्योंकि मुझे भी मांस मछली पसंद है लेकिन यह पढ़कर शायद कुछ सोचा जा सकता है! शायद मांसाहार थोड़ा कम करके या फिर भविष्य में शाकाहारी vegetarian बनकर।)

  


   सबसे जरूरी बात हमेशा ध्यान रखें,,,उपयोग कम करें, दोबारा करें और रिसाइकिल करें। (R 3:  Reduce, Re-use and Recycle)


एक -Naari

Comments

  1. बहुत ही सम सामयिक लेख। अत्यधिक सुंदर अभिव्यक्ति

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  2. We all should go for eco-friendly products... Interesting facts and useful information... Thanks

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