प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव

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प्रतिस्पर्धा की चुनौती या दबाव    चूंकि अब कई परीक्षाओं का परिणाम आ रहा है तो बच्चों और अभिभावकों में हलचल होना स्वभाविक है। हाल ही में ऐसे ही एक परीक्षा जेईई (Joint Entrance Test/संयुक्त प्रवेश परीक्षा) जो देशभर में सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण इंजिनयरिंग परीक्षा है उसी का परिणाम घोषित हुआ है। इसी परीक्षा की एक खबर पढ़ी थी कि जेईई मेन में 56 बच्चों की 100 पर्सन्टाइल, है...कितने गर्व की बात है न। एक नहीं दो नहीं दस नहीं पूरे 56 बच्चों के अभिभावक फूले नहीं समा रहे होंगे।    56 बच्चों का एक साथ 100 परसेंटाइल लाना उनके परीक्षा में आये 100 अंक नहीं अपितु ये बताता है कि पूरी परीक्षा में बैठे सभी अभ्यार्थियों में से 56 बच्चे सबसे ऊपर हैं। इन 56 बच्चों का प्रदर्शन उन सभी से सौ गुना बेहतर है। अभी कहा जा सकता है कि हमारे देश का बच्चा लाखों में एक नहीं अपितु लाखों में सौ है।    किसी भी असमान्य उपलब्धि का समाज हमेशा से समर्थन करता है और ये सभी बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं इसलिए सभी बधाई के पात्र हैं। परसेंटेज जहाँ अंक बताता है वही परसेंटाइल उसकी गुणवत्ता बताता है।

कोविड 19 के साथ अनचाही यात्रा,,,डर के बिना ही जीत है।। (An unwanted journey with Covid 19)

कोविड के साथ अनचाही यात्रा,,,डर के बिना ही जीत है।।

20/04/2021


  लो आखिर तीन बाद पता चल ही गया कि मैं और विकास दोनों कोविड के शिकार हो गए हैं। मुझे तो पहले से ही पता था लेकिन विकास को फिर भी उम्मीद थी कि वायरल बुखार भी हो सकता है। मैं तो पहले से ही सोच रही थी कि कोरोना जिस तेजी से बढ़ रहा है तो आगे पीछे कभी न कभी होगा ही। वैसे, मैं बहुत दिलेर नहीं हूं, डर तो मुझे भी है और कोरोना नाम तो है ही डर का। फिर भी मुझे डर से अधिक तो चिंता हो रही थी कि घर में बच्चों या मां बाबू जी को किसी तरह का संक्रमण न हो और इसी डर और चिंता के चलते ही हम लोग पहले दिन से आइसोलेशन में आ गए।
अच्छा हुआ कि 17 अप्रैल की शाम को ही ऑक्सीमीटर, कुछ मास्क और सैनिटेजर की छोटी छोटी बोतलें भी ले ली और आज ये सभी चीजें बराबर काम आ रही हैं क्या करें,, इसी रात से बुखार जो आ रहा था। हालांकि गले में कुछ खराश तो सुबह से ही थी, शाम को हरारत हुई और रात होते होते  101° बुखार तक पहुंच गया।
  चूंकि घर में बच्चें और वृद्ध मां - बाबू जी हैं और कोरोना का संक्रमण भी तेज है तो निर्णय किया कि घर नहीं अपने ऑफिस में स्वयं को आइसोलेट कर लिया जाय तो बस जल्दीबाजी में जो हाथ आया बैग में भर लिया और रात में ही अपने ऑफिस आ गए थे। स्कूल कॉलेज तो वैसे भी 30 अप्रैल 2021 तक बंद कर दिए थे तो हमारे लिए यह जगह ही ठीक थी ।


    मन में ख्याल तो आ ही रहे थे कि कहीं हम भी कोरोना की चपेट में तो नहीं आ गए। यह कोरोना का डर और चिंता ही तो थी तभी तो पैरासिटामोल दवाई लेने के बाद भी न तो बुखार कम हुआ और न ही पूरी रात नींद आ पाई। सिर इतना भारी हो गया था कि आंखें भी नहीं खुल पा रही थी। शायद सुबह कब आंख लगी, पता ही नहीं चला।

  अगली सुबह तो बुखार थोड़ा कम था, इसलिए थोड़ी हिम्मत भी आ गई चूंकि ऑफिस में कोई नहीं था तो अपना नाश्ता, साफ सफाई और दवाई भी स्वयं ही लेनी थी और बस जल्दी से नाश्ता करके दिन की खिचड़ी भी भीगा दी।और चादर भी धोने के लिए डाल दी। दिमाग में तो बस यही आ रहा था कि जब तक थोड़ा बुखार कम है काम निपटा लें क्या करें "हम औरतें भी ना"।।
    क्योंकि अभी सिर्फ अंदाजा लगाया जा रहा था कि कोरोना हो सकता है और आगे हमारा शरीर कितना साथ देगा इसका भी कुछ पता नहीं। मैंने तो खुद को तैयार कर लिया था कि बस अब अपनी प्रतिरोध क्षमता का ध्यान देना है, ज्यादा सोचना नहीं है कोरोना के बारे में।
दिमाग में सोच लिया था कि अब डरना नहीं है लड़ना है कोरोना से। इसलिए बस मैं तो तैयार थी लेकिन विकास थोड़ा परेशान थे कितने वीडियो, न्यूज सब देख डाले कोरोना से संबंधित और मुझे विकास को ऐसे देखकर कोफ्त हो रही थी। लेकिन क्या करें लड़ने की हिम्मत नहीं थी मेरी, बुखार से हालत जो खराब हो रही थी।
   अगले दिन 19 अप्रैल को ही कोविड टेस्ट के लिए निकल पड़े। बाहर आकर पता चला कि सच में कोविड से स्थिति बहुत बदत्तर बनी हुई है। सुबह 7:30 बजे भी पैथलैब के बाहर इतनी भीड़ थी कि लग रहा था कि अगर कोरोना न भी हो तो यहां आकर हो ही जायेगा। आधे मिनट के टेस्ट के लिए 4 घंटे का इंतजार करना पड़ा। हाल तो इतना बुरा था कि धूप और गर्मी से दो लोग तो चक्कर खाकर गिर पड़े। अब इसे किसकी गलती कहूं, सरकार की कि जब टेस्ट की संख्या बढ़ रही है तो सेंटर भी बढ़ाए, सेंटर ही क्यों, जब इतने मरीज बढ़ रहे हैं तो ऑक्सीजन और बेड की क्षमता भी बढ़ानी चाहिए,( हम लोग बाद का इंतजार क्यों करते हैं??) कुछ पैथ लैब की भी जिम्मेदारी  बनती है कि वो लोग व्यवस्था ठीक से नहीं कर पा रहे या फिर हम लोग जो अपनी आदत से मजबूर होते हैं, भीड़ बढ़ाने में।
   मुझे तो लगता है जो भी सरकारी कदम है जैसे मास्क का प्रयोग और भीड़ में सख्ती बरतना, स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था, सभी ठीक है।।फिर भी इसके अलावा सभी को मल्टीविटामिन और विटामिन सी की गोलियां  दे देनी चाहिए, फल और सब्जियों के दाम कम करके अत्यधिक सेवन को बढ़ावा देना चाहिए, अपने श्वसन तंत्र को मजबूत करने के लिए योग का प्रचार करना चाहिए, ( सरकार क्या कुछ ऐसा भी कर सकती है???)
    बुखार तो आ ही रहा था इसलिय कोरोना की मेडिसिन किट ले ली गई और अपना इलाज शुरू कर लिया। हमसे ज्यादा परेशान तो घर वाले थे, बार बार फोन करके लगातार हाल चाल पूछा जा रहा था। जय को तो बस ऑफिस के बाथरूम का बाथ टब देखने में रुचि थी लेकिन जिया को हमारी सेहत से। अपने साढ़े तीन साल के बेटे को पहली बार अपने से अलग छोड़ा। सच में, मां होने के नाते बच्चों से दूर होना, मतलब कि आप शरीर से यहां हो दिल दिमाग सब उन्हीं के पास है। लेकिन हां, तसल्ली है, क्योंकि घर पर मां है जो मेरे से ज्यादा बच्चों का ध्यान रखती हैं। 


   विकास और मैंने सामाजिक दूरी बना रखी है लेकिन काम मिलकर कर रहे हैं। जब जिसकी हिम्मत खड़े होने की हो रही है वो थोड़ा काम कर रहा है और इसी के साथ 20 तारीख को सुबह ही निश्चित हो गया कि हम corona positive हैं। अपना तो कुछ नहीं क्योंकि कोविड की दवाई लेना हमनें 19 से ही शुरू कर दिया था लेकिन  डर और चिंता तो बच्चों और मां बाबू जी की थी। मन में उधेड़बुन चली जा रही थी, बस माता रानी से प्रार्थना किए जा रहे थे कि घर में कोई संक्रमण न हो नहीं तो हमारा ऑफिस में quarantine होना व्यर्थ हो जाएगा।
   विकास ने जब से सोशल साइट पर कोविड पॉजिटिव का स्टेटस लगाया है, तब से तो लग रहा है कि मैं किसी क्वारेंटिन सेंटर में नहीं बल्कि कॉल सेंटर में हूं। फोन पर फोन घनघना रहे थे। पहले तो सिर्फ घरवाले परेशान थे अब लग रहा था कि सारे रिश्तेदार और शुभचिंतक भी परेशान हो गए।
  इसी रात को दस बजे घर से फोन आता है और मन में डर  की घंटी फिर से बजने लग गई। मां ने बताया कि जय थोड़ा गर्म लग रहा है शायद बुखार आ रहा है, बस यही बोलना हुआ और हमनें घर में सबको मास्क पहनने और आपस में दूरी बनाने के लिए बोल दिया। समझदार जिया को दवाई के बारे में बता दिया गया और पूरी रात विकास और मैं डर और चिंता से सो नहीं पाए। अगले दिन सुबह उठते ही जय की खबर ली और पता चला कि जय बिलकुल ठीक है लेकिन सावधानी के लिए सबको मास्क लगाना होगा और इसी के साथ मल्टीविटामिन सिरप भी शुरू कर दिया।
  अपना बुखार सब भूल कर अब सिर्फ घर की चिंता सता रही थी। हर आधे एक घंटे में फोन पर हाल पूछा जा रहा था और वहां से बोला जा रहा था कि हम लोग सही है तुम लोग अपना ध्यान रखो और यहां से हम लोग उन्हें यही सलाह दिए जा रहे थे। इस बीमारी ने तो सच में, हाथ बांध दिए है सभी के। चाह के भी आप कुछ नहीं कर सकते। ऐसे में लग रहा था कि अगर मैं वहां होती तो सामने रहकर तसल्ली मिल जाती। सच में, एक जरा सी लापरवाही और सावधानी में हुई चूक से बहुत कुछ बदल गया है। इस कोरोना के कारण एक परिवार होते हुए भी अलग अलग रहना पड़ रहा है। खैर, जय को 24 घंटे में बुखार नहीं आया जो एक राहत वाली बात थी और इसी के साथ मैं और विकास ने भी चैन की नींद ली।
   अगली सुबह 7 बजे फिर घंटी बजती है और दिल फिर बैठ जाता है और इस बार जिया बताती है कि उसको 101 बुखार है। बस अब टेंशन बढ़ गई। बाबू जी को अलग रहने के लिय बोला गया। जिया को दवाई बता दी गई और 24 घंटे की निगरानी में आराम करने के लिए कहा गया। मुझे पता है जितना परेशान हम यहां हो रहे थे उस से कहीं अधिक मां हो रही थी। मां बेचारी बाबू जी को देखे, जय को देखे, जिया का हाल देखे, घर को देखे या फिर हमें। सब काम बिना किसी थकान के करें जा रही थीं और हमें भी हिम्मत दे रही थीं। सच कहा है किसी ने कि ईश्वर अगर धरती पर है तो मां के रूप में ही है।
   मैं अपना बुखार भूल गई थी अब तो सिर्फ घर और बच्चों की चिंता हो रही थी। शाम होते होते बाबू जी को भी बुखार आ गया। अब तो लग गया था कि कोरोना हमारे घर तक आ गया है। बस अब सबका कोविड टेस्ट करवाने की ठान ली और घर पर जांच की सुविधा भी मिल गई। बस बुखार तो सबको एक बार आया और गया लेकिन कोरोना का डर और चिंता ने हमारे अंदर घर कर लिया, इसीलिए टेस्ट जरूरी था और माता की कृपा से अगले दिन सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई और इसी के साथ हमारे मन के अंदर के सारे नकारात्मक भाव भी गायब हो गए और सभी ने राहत की सांस ली।
   अब विश्वास हो गया था कि हम भी अब जल्दी ठीक हो जाएंगे लेकिन शरीर का ताप तो सामान्य आ ही नहीं रहा था। पिले चार पांच दिन तो हिम्मत ठीक थी, लेकिन धीरे धीरे लग रहा है कि कोविड मेरे शरीर को तोड़ रहा है। कभी तेज तो कभी कम लेकिन लगातार बुखार से कमजोरी आ रही है, आंखे भारी और सिर में दर्द से चक्कर आ रहे है। लेकिन अगले ही पल विकास फिर से साथ होने की हिम्मत बांध देते हैं और फिर से हम दोनों covid fight के लिए तैयार हो जाते हैं।
  बीते दिनों न गाने सुने न ही कोई किताब पढ़ी क्योंकि कोरोना से आए बुखार ने मेरी सारी इच्छाएं जो तोड़ दी थी। घरवाले और रिश्तेदार सब हिम्मत दे रहे थे कि 'बस एक और दिन है बुखार का, उसके बाद हम लोग बिलकुल खतरे से बाहर हैं' और उनकी इन्हीं बातों से ही हमें ऑक्सीजन मिल जा रही थी। हम लोग घड़ी घड़ी ऑक्सीजन चेक करते है और बुखार भी। जैसे ही ऑक्सीजन 94 पर आता, डीप ब्रेथिंग शुरू कर देते और बुखार की दवाई तो हर 6-7 घंटे में लेनी होती ही है, हां! कीवी और नारियल पानी का सेवन और प्राणायाम भी पूरे दिनचर्या का एक जरूरी हिस्सा होता है। 


    अरे हां, बाहर की महंगाई भी कोरोना की तरह बढ़ रही है। 30 रुपए का मिलने वाला कीवी 55 और 60 रुपए प्रति पीस मिल रहा है और 50रुपए का नारियल पानी अब बड़ी मुश्किल से 85 से लेकर 100रुपए तक बिक रहा है। एक बीमार इंसान के लिए कितना मुश्किल है इन चीजों का सेवन भी। खैर, इन चीजों की हमें बिलकुल कमी नहीं पड़ी क्योंकि कभी दीदी तो कभी पापा ने पूरा स्टॉक रखवा दिया था। सोच रही थी एक तो कोरोना की महामारी और ऊपर से मंहगाई की मार। इस धरती पर कहीं पर कुछ तो रहम मिले।  अस्पताल में बेड नहीं है, कहीं ऑक्सीजन तो कहीं इंजेक्शन नहीं है, कोई बिना खाए रो रहा है तो कोई खा के रो रहा है, किसी के पास पैसा है लेकिन अभी किसी काम नहीं आ पा रहा है, अधिकतर लोग परेशान है लेकिन हम लोग कोरोना के शिकार होते हुए भी थोड़ा ठीक है क्योंकि हमारे पास बहुत अच्छे लोग हैं जो हमें लगातार हिम्मत दे रहे हैं और चाहे घर हो या ऑफिस दोनों जगह हर तरीके का जरूरत का समान पहुंचा देते हैं। आधा तो इंसान तभी ठीक हो जाता है जब आस पास के लोग सकारात्मक हो और इसी के फलस्वरूप 8 दिन के लगातार बुखार के बाद आज 26 तारीख को मेरा बुखार भी टूट गया। इतने दिनों के बाद शरीर का ताप 98.6 आया और अब विश्वास भी हो गया कि कोविड से छुट्टी का समय आ गया है लेकिन कमजोरी से छुटकारा मिलना अभी मुश्किल लग रहा है।
   पहले तो शाम को सूप भी बना लिया जाता था और खाना भी लेकिन अब हिम्मत नहीं हो रही है। इसीलिए कभी दीदी तो कभी चाची तो कभी आंटी के यहां से खाना आने पर बहुत बड़ी राहत मिल रही है। अब तो बात करते हुए भी सांस फूल जा रही है, यहां तक कि एक करवट से दूसरी करवट बदलने पर सांस जल्दी चढ़ रही है। कोविड है तो खांसी भी होगी लेकिन हल्की है इसीलिए भाप अभी भी बराबर ले रहे हैं।
   27 अप्रैल 2021 से अब हमारा रिकवरी मोड शुरू हो चुका है। कमजोरी तो है लेकिन वो भी धीरे धीरे चली जाएगी। इन दिनों कितने ही लोगों के बारे में सुना जो कोविड के शिकार हो गए, किसी को बुखार तो किसी को सिर्फ खांसी है। यह किसी के लिए मामूली और किसी के लिए जानलेवा सिद्ध हो चुकी है। बस एक चीज सबके साथ आम है वो है कोरोना नाम का डर। इसीलिए अब जिसको हराना है वो है डर और चिंता। बुखार कम करने के लिए दवाई है और आक्सीजन को पूरा करने के लिए प्रणायाम और डीप ब्रेथिंग का व्यायाम सहायक है साथ ही साथ पेट के बल लेटने पर भी ऑक्सीजन को बढ़ाया जा सकता है। जरा सी लापरवाही से कोरोना तो कभी भी हो सकता है और किसी को भी हो सकता है और 8 - 10 दिन के बाद ये शरीर से चला भी जाएगा, हां, ये शरीर को नुकसान भी पहुंचाएगा, इसीलिए अपने शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ा के रखें, योग करते रहें, गुनगुना पानी का सेवन करते रहें, दिन में 4- 5 बार भाप लें। वैसे तो यह सभी को पता है लेकिन फिर भी हम कहां मानते हैं इसीलिए एक बार फिर से,,, बेवजह घर से बाहर न जाएं, बाहर मास्क लगा के रहें, साफ सफाई का ध्यान रखें, कोविड के कोई भी लक्षण  प्रकट होने पर तुरंत आइसोलेशन में जाएं, बस एक दूसरे की हिम्मत बांधते रहें और सामाजिक दूरी के साथ भी एक दूसरे की सहायता करते रहें।
     लेकिन क्या आपके साथ भी ऐसा होता है कि जब जाने की ज्यादा जल्दी हो तो किन्हीं कारणों से देर हो ही जाती है, जैसा हमारे साथ हुआ?? आज जब घर जाने के लिए कार की चाबी खोजी गई तो पता चला कि शायद जल्दीबाजी में हम गाड़ी से चाबी निकालना ही भूल गए थे जिससे बैटरी डिस्चार्ज हो गई और अब गाड़ी को धक्का देकर भी स्टार्ट नहीं किया जा सका। बस फिर क्या, कहीं से बैटरी को चार्ज किया गया और तब जाकर हम घर को निकल सके हैं। चलो कोई नहीं, हर एक क्षण से सबक लेते रहना कुछ गलत नहीं हैं।

   आज 30 अप्रैल को हम लोग भी अपने घर लौट रहे हैं, अपने परिवार के पास। बच्चों से अलग ये 14 दिन भारी थे लेकिन ये भी बीत गए और ऐसा लग रहा है कि अब नए दिनों की शुरुआत हो रही है। रास्ते में जो पैथलैब दिखी उसमें भीड़ वैसे ही थी जैसे पहले थी लेकिन अब उसमें शामियाना लगा हुआ है जिससे लोगों को गर्मी से कुछ राहत मिले और बल्लियां भी लगीं थी शायद भीड़ को नियंत्रित करने के लिए। अच्छा लगा कि चलो कुछ सकारात्मक कोशिश तो हो रही है। इन्ही दिनों कुछ दुखद समाचार भी मिले हैं, उन सभी के लिए श्रद्धांजलि है और ईश्वर से यही प्रार्थना है आप कोविड के शिकार न हो और अगर हो भी गए तो बस याद रखें कि यह भी एक समय है, गुजर जाएगा, बस हिम्मत रखें और सकारात्मक सोचें।


एक - Naari
  


  

Comments

  1. Experiencing the same thing..good both of you recovered and are now fine . Best thing was that you did not panic..great piece of writing ...

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  2. its required lot of efforts to sharing these sequences, Thank you so much, no words to describe, we are speechless and the way explain , many of us will be beneficial. thank you

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  3. I wish ki sab thik ho jaye aur hum sabhi phir se normal life ko jee paye.

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