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Showing posts from January, 2024

International Women's Day

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस International Women's Day  सुन्दर नहीं सशक्त नारी  "चूड़ी, बिंदी, लाली, हार-श्रृंगार यही तो रूप है एक नारी का। इस श्रृंगार के साथ ही जिसकी सूरत चमकती हो और जो  गोरी उजली भी हो वही तो एक सुन्दर नारी है।"  कुछ ऐसा ही एक नारी के विषय में सोचा और समझा जाता है। समाज ने हमेशा से उसके रूप और रंग से उसे जाना है और उसी के अनुसार ही उसकी सुंदरता के मानक भी तय कर दिये हैं। जबकि आप कैसे दिखाई देते हैं  से आवश्यक है कि आप कैसे है!! ये अवश्य है कि श्रृंगार तो नारी के लिए ही बने हैं जो उसे सुन्दर दिखाते है लेकिन असल में नारी की सुंदरता उसके बाहरी श्रृंगार से कहीं अधिक उसके मन से होती है और हर एक नारी मन से सुन्दर होती है।  वही मन जो बचपन में निर्मल और चंचल होता है, यौवन में भावुक और उसके बाद सुकोमल भावनाओं का सागर बन जाता है।  इसी नारी में सौम्यता के गुणों के साथ साथ शक्ति का समावेश हो जाए तो तब वह केवल सुन्दर नहीं, एक सशक्त नारी भी है और इस नारी की शक्ति है ज्ञान। इसलिए श्रृंगार नहीं अपितु ज्ञान की शक्ति एक महिला को विशेष बनाती है।   ज्...

शॉपिंग की लत Shopping addiction

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शॉपिंग की लत 'सेल सेल सेल...छूट छूट छूट...'   ऐसा सुनना अब बहुत सामान्य हो गया है। ये इतने मनभावन शब्द हैं कि साल भर में जितनी बार भी सुने उतनी बार अच्छा लगता है। सच में, आज हम न जाने कितनी बार इन शब्दों को देखते और सुनते हैं। होली, दिवाली और नये साल पर तो छूट होती ही थी लेकिन अब चाहे 15 अगस्त हो या 26 जनवरी मुझे लगता है कि ये सेल वाला मौसम वर्ष भर किसी न किसी रूप में आता है।    ऑनलाइन बाजार तो सर्दी की सेल, गर्मी की सेल, बरसात की सेल, बसंत की सेल यहाँ तक कि सारी ऋृतुओं को सेल के रूप में परोस देता है और अब तो खास दिन की भी सेल होती है जैसे कि ब्लैक फ्राईडे सेल।  इन्ही सब के चलते हमारे अपने शॉपिंग के कीड़े भी सेल के लालच से बार बार बाहर निकलते रहते हैं। फिर धीरे धीरे ये हमारी आदत बन जाती है और बाद में लत।    क्या आपको भी लगता है कि बार बार की खरीदारी खासकर कि ऑनलाइन वाली ये भी एक लत जैसी ही है इसीलिए हम बार बार इन आकर्षक भीड़ में खो जाते हैं। चूंकि लत में भी किसी एक काम को करने की प्रबल इच्छा होती है तो बार बार आकर्षक फैशन की ओर भागन...

मायके का एक्स्ट्रा थैला

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मायके का एक्स्ट्रा थैला   ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है कि जब भी मायके जाओ तो एक बैग और आओ तो दुगुने से तिगुने बैग। ये हाल तब है जब कि मायके की दूरी घंटे भर की है। भले ही मायके कुछ घंटे के लिए जाना हो लेकिन साथ में एक झोला वापसी में न बंधे ऐसा मेरे साथ शायद ही कभी हुआ हो।      अपनी प्रतिदिन की व्यस्त दिनचर्या से इतर मायके में पूरा दिन कहाँ निकल गया पता ही नहीं चलता। पता तब ही चलता है जब अगले दिन या अगले पल वापसी होती है वो भी एक "एक्स्ट्रा थैले" के साथ। सच में शगुन के नाम पर ये थैले, पैकेट या पुड़िया के रूप में ये अनुपम भेंट 'एक्स्ट्रा' नहीं अपनी खास सखी लगती है। भले ही उनमें कुछ भी हो।    मुझे लगता है कि ये मेरा मायके से मोह होगा या फिर माँ बाबू जी का प्रेम लेकिन हर छोटी बड़ी चीजों का जो मुझे या मेरे परिवार को पसंद हो उनका उन झोलों में साथ आना तय हो जाता है। ये फल सब्जी मिठाई भाजी या फिर कुछ भी समान जो मायके से साथ आता है उसे अन्य चाहे कोई लालच समझे या कुछ और लेकिन बेटियों के लिए ये छोटे बड़े झोले खुशियों और प्रेम के बड़े बड़े प...