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Showing posts from January, 2024

Teej Where Love Meets Devotion and Grace

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    तीज: सुहागनों का उत्सव (प्रेम, तप, समर्पण, श्रृंगार)       छाया: मोनिका ठाकुर, देहरादून   प्रकृति स्वयं माता पार्वती का एक रूप है इसलिए सावन माह में जहाँ हम भगवान् शिव की आराधना करते हैं  वहीं शिवा की पूजा का भी विशेष महत्व है। सावन माह में आने वाली तीज माता पार्वती को ही समर्पित पूजा है। इस दिन सुहागन महिलाएं  माता पार्वती से अपने सुहाग की लम्बी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं।  पार्वती का तप:  पौराणिक कथानुसार माता पार्वती आदिदेव शिव से विवाह करना चाहती थी लेकिन शिव उस समय विरक्त थे। नारद मुनि ने बचपन से ही माता के अंदर शिव नाम के बीज बौ दिये थे इसलिए माता शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप करने का निर्णय लिया।     शिव महापुराण के द्वितीय पार्वतीखंड के बाईसवें अध्याय के अनुसार माता पार्वती ने अपने राजसी वास्त्रों को त्यागकर मौंजी और मृगछाला पहनी और गंगोत्री के समीप श्रृंगी नामक तीर्थ पर शंकर जी का स्मरण कर तप करने के लिए चली। तपस्या के पहले वर्ष माता ने केवल फल का आहा...

शॉपिंग की लत Shopping addiction

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शॉपिंग की लत 'सेल सेल सेल...छूट छूट छूट...'   ऐसा सुनना अब बहुत सामान्य हो गया है। ये इतने मनभावन शब्द हैं कि साल भर में जितनी बार भी सुने उतनी बार अच्छा लगता है। सच में, आज हम न जाने कितनी बार इन शब्दों को देखते और सुनते हैं। होली, दिवाली और नये साल पर तो छूट होती ही थी लेकिन अब चाहे 15 अगस्त हो या 26 जनवरी मुझे लगता है कि ये सेल वाला मौसम वर्ष भर किसी न किसी रूप में आता है।    ऑनलाइन बाजार तो सर्दी की सेल, गर्मी की सेल, बरसात की सेल, बसंत की सेल यहाँ तक कि सारी ऋृतुओं को सेल के रूप में परोस देता है और अब तो खास दिन की भी सेल होती है जैसे कि ब्लैक फ्राईडे सेल।  इन्ही सब के चलते हमारे अपने शॉपिंग के कीड़े भी सेल के लालच से बार बार बाहर निकलते रहते हैं। फिर धीरे धीरे ये हमारी आदत बन जाती है और बाद में लत।    क्या आपको भी लगता है कि बार बार की खरीदारी खासकर कि ऑनलाइन वाली ये भी एक लत जैसी ही है इसीलिए हम बार बार इन आकर्षक भीड़ में खो जाते हैं। चूंकि लत में भी किसी एक काम को करने की प्रबल इच्छा होती है तो बार बार आकर्षक फैशन की ओर भागन...

मायके का एक्स्ट्रा थैला

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मायके का एक्स्ट्रा थैला   ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है कि जब भी मायके जाओ तो एक बैग और आओ तो दुगुने से तिगुने बैग। ये हाल तब है जब कि मायके की दूरी घंटे भर की है। भले ही मायके कुछ घंटे के लिए जाना हो लेकिन साथ में एक झोला वापसी में न बंधे ऐसा मेरे साथ शायद ही कभी हुआ हो।      अपनी प्रतिदिन की व्यस्त दिनचर्या से इतर मायके में पूरा दिन कहाँ निकल गया पता ही नहीं चलता। पता तब ही चलता है जब अगले दिन या अगले पल वापसी होती है वो भी एक "एक्स्ट्रा थैले" के साथ। सच में शगुन के नाम पर ये थैले, पैकेट या पुड़िया के रूप में ये अनुपम भेंट 'एक्स्ट्रा' नहीं अपनी खास सखी लगती है। भले ही उनमें कुछ भी हो।    मुझे लगता है कि ये मेरा मायके से मोह होगा या फिर माँ बाबू जी का प्रेम लेकिन हर छोटी बड़ी चीजों का जो मुझे या मेरे परिवार को पसंद हो उनका उन झोलों में साथ आना तय हो जाता है। ये फल सब्जी मिठाई भाजी या फिर कुछ भी समान जो मायके से साथ आता है उसे अन्य चाहे कोई लालच समझे या कुछ और लेकिन बेटियों के लिए ये छोटे बड़े झोले खुशियों और प्रेम के बड़े बड़े प...