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Showing posts from January, 2024

The Spirit of Uttarakhand’s Igas "Let’s Celebrate Another Diwali "

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  चलो मनाएं एक और दिवाली: उत्तराखंड की इगास    एक दिवाली की जगमगाहट अभी धुंधली ही हुई थी कि उत्तराखंड के पारंपरिक लोक पर्व इगास की चमक छाने लगी है। असल में यही गढ़वाल की दिवाली है जिसे इगास बग्वाल/ बूढ़ी दिवाली कहा जाता है। उत्तराखंड में 1 नवंबर 2025 को एक बार फिर से दिवाली ' इगास बग्वाल' के रूप में दिखाई देगी। इगास का अर्थ है एकादशी और बग्वाल का दिवाली इसीलिए दिवाली के 11वे दिन जो एकादशी आती है उस दिन गढ़वाल में एक और दिवाली इगास के रूप में मनाई जाती है।  दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में फिर से दिवाली क्यों मनाई जाती है:  भगवान राम जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 11वें दिन मिली थी इसलिए दिवाली 11वें दिन मनाई गई। वहीं गढ़वाल के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी अपनी सेना के साथ जब तिब्बत लड़ाई पर गए तब लंबे समय तक उनका कोई समाचार प्राप्त न हुआ। तब एकादशी के दिन माधो सिंह भंडारी सेना सहित तिब्बत पर विजय प्राप्त करके लौटे थे इसलिए उत्तराखंड में इस विजयोत्सव को लोग इगास को दिवाली की तरह मानते हैं।  शुभ दि...

शॉपिंग की लत Shopping addiction

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शॉपिंग की लत 'सेल सेल सेल...छूट छूट छूट...'   ऐसा सुनना अब बहुत सामान्य हो गया है। ये इतने मनभावन शब्द हैं कि साल भर में जितनी बार भी सुने उतनी बार अच्छा लगता है। सच में, आज हम न जाने कितनी बार इन शब्दों को देखते और सुनते हैं। होली, दिवाली और नये साल पर तो छूट होती ही थी लेकिन अब चाहे 15 अगस्त हो या 26 जनवरी मुझे लगता है कि ये सेल वाला मौसम वर्ष भर किसी न किसी रूप में आता है।    ऑनलाइन बाजार तो सर्दी की सेल, गर्मी की सेल, बरसात की सेल, बसंत की सेल यहाँ तक कि सारी ऋृतुओं को सेल के रूप में परोस देता है और अब तो खास दिन की भी सेल होती है जैसे कि ब्लैक फ्राईडे सेल।  इन्ही सब के चलते हमारे अपने शॉपिंग के कीड़े भी सेल के लालच से बार बार बाहर निकलते रहते हैं। फिर धीरे धीरे ये हमारी आदत बन जाती है और बाद में लत।    क्या आपको भी लगता है कि बार बार की खरीदारी खासकर कि ऑनलाइन वाली ये भी एक लत जैसी ही है इसीलिए हम बार बार इन आकर्षक भीड़ में खो जाते हैं। चूंकि लत में भी किसी एक काम को करने की प्रबल इच्छा होती है तो बार बार आकर्षक फैशन की ओर भागन...

मायके का एक्स्ट्रा थैला

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मायके का एक्स्ट्रा थैला   ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है कि जब भी मायके जाओ तो एक बैग और आओ तो दुगुने से तिगुने बैग। ये हाल तब है जब कि मायके की दूरी घंटे भर की है। भले ही मायके कुछ घंटे के लिए जाना हो लेकिन साथ में एक झोला वापसी में न बंधे ऐसा मेरे साथ शायद ही कभी हुआ हो।      अपनी प्रतिदिन की व्यस्त दिनचर्या से इतर मायके में पूरा दिन कहाँ निकल गया पता ही नहीं चलता। पता तब ही चलता है जब अगले दिन या अगले पल वापसी होती है वो भी एक "एक्स्ट्रा थैले" के साथ। सच में शगुन के नाम पर ये थैले, पैकेट या पुड़िया के रूप में ये अनुपम भेंट 'एक्स्ट्रा' नहीं अपनी खास सखी लगती है। भले ही उनमें कुछ भी हो।    मुझे लगता है कि ये मेरा मायके से मोह होगा या फिर माँ बाबू जी का प्रेम लेकिन हर छोटी बड़ी चीजों का जो मुझे या मेरे परिवार को पसंद हो उनका उन झोलों में साथ आना तय हो जाता है। ये फल सब्जी मिठाई भाजी या फिर कुछ भी समान जो मायके से साथ आता है उसे अन्य चाहे कोई लालच समझे या कुछ और लेकिन बेटियों के लिए ये छोटे बड़े झोले खुशियों और प्रेम के बड़े बड़े प...