Posts

Showing posts from December, 2023

The Spirit of Uttarakhand’s Igas "Let’s Celebrate Another Diwali "

Image
  चलो मनाएं एक और दिवाली: उत्तराखंड की इगास    एक दिवाली की जगमगाहट अभी धुंधली ही हुई थी कि उत्तराखंड के पारंपरिक लोक पर्व इगास की चमक छाने लगी है। असल में यही गढ़वाल की दिवाली है जिसे इगास बग्वाल/ बूढ़ी दिवाली कहा जाता है। उत्तराखंड में 1 नवंबर 2025 को एक बार फिर से दिवाली ' इगास बग्वाल' के रूप में दिखाई देगी। इगास का अर्थ है एकादशी और बग्वाल का दिवाली इसीलिए दिवाली के 11वे दिन जो एकादशी आती है उस दिन गढ़वाल में एक और दिवाली इगास के रूप में मनाई जाती है।  दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में फिर से दिवाली क्यों मनाई जाती है:  भगवान राम जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 11वें दिन मिली थी इसलिए दिवाली 11वें दिन मनाई गई। वहीं गढ़वाल के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी अपनी सेना के साथ जब तिब्बत लड़ाई पर गए तब लंबे समय तक उनका कोई समाचार प्राप्त न हुआ। तब एकादशी के दिन माधो सिंह भंडारी सेना सहित तिब्बत पर विजय प्राप्त करके लौटे थे इसलिए उत्तराखंड में इस विजयोत्सव को लोग इगास को दिवाली की तरह मानते हैं।  शुभ दि...

सर्दी...शादी...स्वेटर..

Image
    सर्दी...शादी...स्वेटर..     शादियों का मौसम है और वो भी सर्दियों में। दुल्हा, दुल्हन बरात, मेहंदी, हल्दी, फेरे, विदाई, दावत, ढेर सारी जगमगाती रोशनी और उन रोशनियों में चमकते चेहरे।    अब दुल्हा दुल्हन के चेहरे की चमक का तो कोई जवाब ही नहीं है। ये उनकी खुशियों की प्राकृतिक चमक है जो उनके चेहरों से अधिक उनकी आँखों में होती है। साथ ही परिवारजन और शुभचिंतकों की खुशियों में भी कोई कमी नहीं होती खासकर कि महिलाओं और युवतियों की जिनकी खुशियों में इतनी गर्माहट होती है कि चाहे कितनी भी ठंड हो बिना स्वेटर या किसी भी गर्म कपड़ों के हर शादी चल जाती है।     जहाँ आदमी और लड़के लोग सूट, स्वेटर, जैकेट, शाल पहने उनके इस साहस को देखकर हैरान होते हैं तो वहीं वृद्ध माताएं तरह तरह के ज्ञान देकर उन्हें घुडाकानें से भी नहीं चूकती। लेकिन क्या करें शादी की चकाचौंध की जो गर्माहट होती है वो बहुत ही नर्म और मखमली होती है  जिसके बीच सच में ठंडक गायब हो जाती है जिसे केवल महिलाएं ही समझ सकती है। और अगर आप उन्हें समझना चाहते हैं तो उसके लिए आप...

प्रकृति: सुनो तो सही!!

Image
प्रकृति: सुनो तो सही!!       ऐसा लगता है कि रह रह कर प्रकृति कुछ न कुछ बताने की कोशिश कर रही है या कुछ कहने की और अगर हम न सुने तो फिर ये हमें समय समय पर चेतावनी भी दे रही है कि 'मुझे मत छेड़ो। अगर मुझे छेड़ोगे तो मैं किसी न किसी रूप में अपना बदला लूंगी।' और एक हम लोग हैं जो इन संकेतों को समझ नहीं रहे हैं या यूँ कहा जाए कि इन चेतावनियों को हल्के में ले रहे हैं और फिर से उसी राह में आगे बढ़ जा रहे हैं। ऊपर से अपनी गलतियों को नज़रंदाज कर प्राकृतिक आपदा के नाम पर प्रकृति माँ को ही दोष दे रहे हैं।  क्यों!! मानो या न मानो लेकिन सिलक्यारा टनल का हादसा अभी एक ताजा उधारण है विकास vs विनाश का। ये अवश्य है कि 17 दिन बाद इस सुरंग से सभी मजदूर सकुशल आ गए ये एक बहुत बड़ी जीत है।   हमने इस बचाव कार्य के लिए तरह तरह की तकनीक का उपयोग किया जिसमें हम सफल हुए और आज हम सभी उत्साहित भी हैं कि बिना किसी जन हानि के हमने इस विपदा को काट दिया ये बहुत अच्छी बात है। लेकिन हम ये मानने के लिए क्यों तैयार नहीं हैं कि प्राकृतिक आपदा विपदाओं के सामने हम हमेशा हार...