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Showing posts from July, 2023

शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

संरक्षण: प्रकृति और मानव का (World Nature Conservation Day)

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28 July: world nature conservation day विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस चलो एक ऐसा दिन तो है जहाँ हम प्रकृति के संरक्षण के बारे में भी सोचते हैं। नहीं तो हमें प्रकृति के उपयोग के स्थान पर केवल दोहन करने से ही फुर्सत नहीं मिल पा रही थी।    कितने स्वार्थी हो गए हैं न हम!! केवल अपना अपना सोचते सोचते कितने जंगल काट दिये, कितने पशु पक्षी का अस्तित्व खतरे में डाल दिया, कितनी नदियों को खनन से खोखला कर दिया और धरती के गर्भ में प्लास्टिक नाम का कचरा भर दिया। यही नहीं यहाँ तक कि अनियंत्रित चहलकदमी से ग्लेशियर पिघला दिये और तरह तरह के प्रदूषण से अपनी सुरक्षा छतरी यानी कि ओजोन परत को भी छलनी कर दिया। तभी तो मौसम में कभी अति गर्मी तो कभी गर्मियों में सर्दी, सर्दियों में गरम, बरसात में सूखा और कभी तीनों मौसम एक साथ। इससे समझ जाएं कि पृथ्वी का मिजाज़ बदल रहा है।     अब इतना सब कुछ करने के बाद भी अगर हम अभी भी प्रकृति के संरक्षण के बारे में नहीं सोचेंगे तो तय मानिये कि आने वाला समय प्रकृति के लिए नहीं मानव जाति के लिए कठिन होगा जिसके गम्भीर परिणाम आगे दिखाई दे...

सावन में कल्याणकारी शिव नाम...

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सावन में कल्याणकारी: शिव नाम  शिव का श्रवण और मनन तो हमेशा ही करना चाहिए लेकिन श्रावण मास में शिव नाम लेना आवश्यक हो जाता है क्योंकि बिना शिव नाम के यह मास कठिन होता है। वैसे देखा जाए तो सावन केवल एक बरसात का मौसम ही है लेकिन शिव नाम से जुड़कर ही यह मास केवल एक मौसम नहीं अपितु पवित्र माह बन जाता है जिससे कि इसकी महत्ता बढ़ जाती है।       सावन मास में शिव नाम का सुमिरन मात्र ही शिव के सम्मुख होने का आभास देगा। यह समय शिव और प्रकृति के मिलन का है और प्रकृति तो स्वयं देवी है साथ ही चंहु ओर का वातावरण भी हमें प्रकृति की ओर ले जाता है इसलिए यह मिलन काल एक अद्भुत समय होता है शिव को प्राप्त करने का एवं स्वयं के कल्याण का।    यह माना जाता है कि सावन में शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव नाम लिया जाता है किंतु मानव हित के लिए भी शिव नाम आवश्यक है,  चित्त को शांत, एकाग्र, आगे बढ़ने और लक्ष्य प्राप्ति के लिए भी शिव नाम आवश्यक है जैसे कि ... इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए :     सावन ऋतु बड़ी ही आनंददायी होती है किंतु साथ ही यह मौस...

सावन नये रूप में!!

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सावन नये रूप में!!   सावन में हम काले बादलों से घिरे आसमान को देखते हैं। जल से भरी बूंदों को सूखी मिट्टी पर पड़ते ही ढेर होते हुए देखते हैं, फिर इन्हीं बूंदों की तेज धार को नदियों में मिलते देखते हैं। अगर पहाड़ी पर नज़र घुमाएं तो पहाडों की तली पर फैले सफेद कोहरे को देखते हैं, नहाते हुए पेड़ पौधों की शाखों को झूमते हुए देखते हैं। साथ ही देखते हैं धरती के अंदर छुपे जीवों को भी, जो अपने अस्तित्व को जताने के लिए धरती से बाहर निकलते हैं।      ऐसा लगता है जैसे इस मौसम में प्रकृति का कण कण, धरती आसमान, नदी पहाड़, पेड़ पौधें, पशु पक्षी सब के सब नहा धोकर शुद्ध हो गए हैं और अब बस एक नये रूप में आगे बढ़ने की तैयारी में है। प्रकृति के ऐसे सौंदर्य को देखकर लगता है कि पूरे वर्ष का यौवन काल सावन माह ही होता है। प्रकृति तो अपने चरम में होती ही है लेकिन साथ ही मानव को भी तैयार करती है। जिस प्रकार से प्रकृति अपने नये रूप में आती है ठीक इसी प्रकार से मनुष्य के लिए भी सावन माह अपने को एक नये रूप में तैयार करने का समय होता है। यह समय होता है मानसिक शुद्धि, शारीरिक...

महिलाओं का अवकाश: मायका

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महिलाओं का अवकाश: मायका    महिलाएं हमेशा से ही बिना रुके बिना थके घर परिवार को संभालती हैं। मौसम चाहे जैसा भी हो, दिन चाहे कोई भी हो, उनकी छुट्टी नहीं होती लेकिन हाँ, बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों में कुछ दिन का अवकाश उन्हें भी मिलता है...उनके मायके में। अब इन छुट्टियों में वें कहीं और गई कि नहीं ये तो आवश्यक नहीं लेकिन अधिकांश महिलाएं अपने मायके का एक फेरा तो अवश्य लगा आई होंगी।  बच्चों की गर्मियों की छुट्टियां खत्म हो चुकी हैं और अब विद्यालय खुल चुके हैं। साथ ही साथ महिलाओं के भी सुबह के दैनिक कार्यक्रम बंध गए हैं। वैसे तो महिलायें हमेशा ही अपने काम में बंधी ही रहती हैं, उनके लिए कभी छुट्टी तो नहीं बनती है, हाँ लेकिन बच्चों की छुट्टियों से मिले दो चार दिन मायके में गुजारने का अर्थ है, पूरी छुट्टियों का वसूल हो जाना और पूरे वर्ष भर के लिए चार्ज हो जाना।    घर के काम, बच्चों की पढ़ाई, परिवार की देखरेख और जाने तरह तरह के तनाव के बीच मायके में बिताए दो चार दिन भी महिलाओं के लिए एक चार्जर की तरह काम करते हैं जो पूरे वर्ष भर के लिए उनको चार्ज कर द...