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Showing posts from October, 2022

चूरमा Mothers Day Special Short Story

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Mother's Day Special... Short Story (लघु कथा) चूरमा... क्या बात है यशोदा मौसी,, कल सुबह तो पापड़ सुखा रही थी और आज सुबह निम्बू का अचार भी बना कर तैयार कर दिया तुमने। अपनी झोली को भी कैरी से भर रखा है क्या?? लगता है अब तुम आम पन्ना की तैयारी कर रही हो?? (गीता ने अपने आंगन की दीवार से झाँकते हुए कहा)  यशोदा ने मुस्कुराते हुए गर्दन हिलाई । लेकिन मौसी आज तो मंगलवार है। आज तो घर से चूरमे की मीठी मीठी महक आनी चाहिए और तुम कैरी के व्यंजन बना रही हो। लगता है तुम भूल गई हो कि आज सत्संग का दिन है। अरे नहीं-नहीं, सब याद है मुझे।   तो फिर!! अकेली जान के लिए इतना सारा अचार-पापड़। लगता है आज शाम के सत्संग में आपके हाथ का बना स्वादिष्ट चूरमा नहीं यही अचार और पापड़ मिलेगे। धत्त पगली! "चूरमा नहीं,,,मेरे गोपाल का भोग!!" और सुन आज मै न जा पाउंगी सत्संग में।  क्या हुआ  मौसी?? सब खैरियत तो है। इतने बरसों में आपने कभी भी मंगल का सत्संग नहीं छोड़ा और न ही चूरमे का भोग। सब ठीक तो है न??   सब खैरियत से है गीता रानी, आज तो मै और भी ठीक हो गई हूँ। (यशोदा तो जैसे आज नई ऊर्जा से भर गई थी, ...

टैटू बनाना सही या गलत!!

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टैटू बनाना सही या गलत!! (Tattoo is right or wrong)     "आखिर जरूरत क्या है...ईश्वर की दी हुई देह में छेड़ छाड़ की अच्छा खासा तो शरीर है त्वचा है फिर ये एक पतली सुई से शरीर को गुदवाना और नीली लाल स्याही से चित्रकारी करना उचित है क्या?? ऐसी क्या आफत आई कि टैटू के कारण दर्द को सहा जाए!! "   ये सब तभी लिखा जब जीवन का एक अनुभव अपने शरीर को गुदवाते जिसे आज के समय में टैटू कहते के रूप में ले रही थी। मुझे लग रहा था कि कहीं मैंने गलत निर्णय तो नहीं ले लिया!! बस इतना ही सोचा और लिखा क्योंकि शरीर में सुइयों की चुभन का दर्द तो था ही और साथ में मशीन की गर्र-गर्र की आवाज ने दिमाग को शून्य कर दिया था। उसके बाद तो बस यही सोचा कि अब जब ओखल में सिर रख दिया तो मूसल से क्या डरना..!!'   और अब जब टैटू आर्टिस्ट (प्रकाश शाही) ने अपना काम आरंभ कर दिया था तो अब बचा नहीं जा सकता क्योंकि गुदवाने का कार्यक्रम अब चल चुका था।    छोटे भाई के टैटू देखकर इच्छा तो बहुत समय से थी कि एक बार इसका भी अनुभव लिया जाए क्योंकि उसके हाथ, गर्दन और कंधे में भी टैटू हैं.. .इ...

100th Special: Thank You

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100th Special: Thank You & Happy Diwali         आज का लेख मेरे लिए बहुत खास है क्योंकि ये 100वां लेख है और वो भी सबसे खास त्यौहार दिवाली के साथ। भले ही ये आंकडा बहुत बड़ा न हो लेकिन 'शतक' की तो अपनी पहचान है। कितने लोग मेरा लेख पढ़ते हैं या नहीं भी पढ़ते, कितने लोग मुझे जानते हैं और कितने नहीं भी जानते लेकिन उन सभी की शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद।    पिछले लगभग दो ढाई सालों से अच्छा बुरा जो भी मन किया बस वो लिख दिया। न कोई विषय विशेष न कोई व्यक्ति विशेष, बस जैसा लगा वैसा लिख दिया लेकिन एक चीज थी जो बड़ी ही सामान्य थी वो थी संतुष्टि। हर एक पोस्ट के बाद एक तसल्ली मिलती थी, एक खुशी होती थी कि मैंने अपने लिए समय निकालकर कुछ तो लिखा है. भले ही इसके लिए हफ्ते दो हफ्ते का समय लगा हो!   लिखने का सफर भी कोरोना काल से ही आरंभ हुआ है जो बहुत लंबा तो नहीं है लेकिन न भूलने वाला है। यह समय सभी के लिए बहुत कठिन और कष्टदायी था लेकिन इस कठिन समय ने बहुत कुछ सिखाया भी।    कोरोना के समय लॉक डाउन में जहाँ सभी परेशान थे वहीं सुकून ...

बालमन का दशहरा

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   बालमन का दशहरा     बाल मन पढ़ना बहुत ही कठिन है या यूँ कहो कि उसको समझना अपने बस की बात नहीं है। सुबह से लेकर रात तक तरह तरह के रूप देखने को मिलते हैं। गुस्सा, जिद्द, लाड, प्यार, लड़ाई, बचपना, सयानापन, मस्ती, नादानी और न जाने क्या क्या रूप घड़ी घड़ी देखने को मिलते हैं और इन सभी रूपों से निपटने के लिए मेरा तो धैर्य कितनी बार टूट जाता है लेकिन अगले ही पल दिल को तसल्ली देती हूँ कि ये सब केवल कुछ साल तक ही है। उसके बाद तो बचपन हवा हो जायेगा और फिर बस जिंदगी किसी न किसी रेस में भागती दौड़ती मिलेगी और तब बचपन के यही दिन और रूप याद आयेंगे।      नटखट कम शैतान जय ऐसा ही है जो दिन भर नाक में दम करके रखता है। घड़ी घड़ी उसकी मनमानी चलती रहती है, जिद्द चलती रहती है इसलिए उसे डाँट भी मिलती है और मार भी लेकिन कभी कभी उसके बाल मन की कल्पनाओं से आश्चर्य भी होता है और लाड भी। जैसे आजकल वो राम लीला की कल्पनाओं में उड़ान भर रहा है। अब घर में तो आजकल न रामायण देखी जा रही है और न ही पढ़ी जा रही है लेकिन जय स्कूल से सीख कर जरूर आया है क्योंकि वो स्कूल से राव...