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Showing posts from August, 2020

नव वर्ष की तैयारी, मानसिक दृढ़ता के साथ

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नव वर्ष में नव संकल्प: मानसिक दृढ़ता New Year's Resolutions: Mental Strength/Resilience   यह साल जितनी तेजी से गुजरा उतनी ही तेजी के साथ नया साल आ रहा है। ऐसा लग रहा है कि एक साल तो जैसे एक दिन की तरह गुजर गया। मानो कल की ही तो बात थी और आज एक वर्ष भी बीत गया!   हर वर्ष की भांति इस वर्ष के अंतिम दिनों में हम यही कहते हैं कि 'साल कब गुजरा कुछ पता ही नहीं चला' लेकिन असल में अगर हम अपने को थोड़ा सा समय देकर साल के बीते दिनों पर नजर डालें तो तब हम समझ पाएंगे कि सच में इस एक वर्ष में बहुत कुछ हुआ बस हम पीछे को भुलाकर समय के साथ आगे बढ़ जाते हैं।    इस वर्ष भी सभी के अपने अलग अलग अनुभव रहे। किसी के लिए यह वर्ष सुखद था तो किसी के लिए यह वर्ष दुखों का सैलाब लेकर आया। सत्य भी है कि इस वर्ष का आरंभ प्रयागराज के महाकुंभ से हुआ जहां की पावन डुबकी से मन तृप्त हो गया था तो वहीं प्राकृतिक आपदाओं और आतंकी घटनाओं से मन विचलित भी था। इस वर्ष की ऐसी हृदय विदारक घटनाओं से मन भय और शंकाओं से घिरकर दुखी होने लगता है लेकिन आने वाले वर्ष की मंगल कामनाओं के लिए मन को मनाना ...

कोरोना से डर नहीं लगता साहब, लोगों के खौफ से लगता है"

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"कोरोना से डर नहीं लगता साहब, लोगों के खौफ से लगता है"        मुझे पता है कि "दबंग" फिल्म के डाएलॉग से मेल खाता हुआ ये शीर्षक इस फिल्म की तरह ख्याति प्राप्त नही कर सकता। क्योंकि आज के समय मे ये विषय बहुत ही "बोरिंग टाइप" है। कारण:-पिछले छः महीनों से हम अपने चारों ओर इसी का नाम सुन ही नही बल्कि इसके घातक प्रभाव को देख भी रहे हैं।  वैसे तो जैसे जैसे शहर में अनलॉक हो रहा है वैसे वैसे हमारे दिमाग से भी कोरोना का डर अनलॉक हो रहा है। लेकिन कोरोना के पीड़ित दिनों दिन बढ़ रहे हैं।       अब जिंदगी फिर से पटरी पर आने की कोशिश कर रही है। फिर भी इस समय में जो कुछ भी दिखा, उसे सोचे और लिखे बिना नही रहा गया, शायद कहीं न कहीं आप भी इसके बारे में कुछ ऐसा ही सोचते होंगे।      पहले बीमारी के नाम ने डराया फिर उससे होने वाली मौत ने, उसके बाद नौकरी छूटी और बाद में धंधा पानी भी चौपट हो गया। सभी जानते हैं इसके पीछे की वजह सिर्फ कोविड है। ये तो वो मुद्दे हैं जो हमे दिख रहे है एक मुद्दा है लोगो के डर का जो अंदर है लेकिन कहीं दुबका बैठा है। ये डर है हमा...

खोया पाया ... मेरा तौलिया

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बरसात के दिन हैं और मैं इस सुस्ती भरे दिन मे भी व्यस्त हूँ .. लकड़ी की अलमारी मे उथल पुथल कर दी पर कहीं दिखाई नहीं दिया , साथ पड़ी सेटी में भी टटोला ,लेकिन गायब था , फिर अपनी लोहे की विशाल अलमारी को भी ढंग से छान मारा , पर कहीं नहीं मिला, मेरा सुबह का साथी, मेरी नमी को सोखने वाला मेरा अपना प्यारा तौलिया ...  तीन दिन गुजर गए , मैंने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट घर में किसी से नहीं की... मुझे लगा की बारिश के दिन है तो शायद अभी इसे भी अपनी नमी का साथ छोड़ने मे वक़्त लगेगा । इसलिए दो रोज की सुबह तो मैंने अपने शरीर को एक पतले लेकिन कड़क गमछे के हवाले किया और तीसरे दिन फटे हालातों वाले भिखारी जैसे कपडे के ... लेकिन आज तो अपने मखमली यार को पा के ही रहूंगी, यही सोचकर सारे घर की तलाशी लिए जा रही हू कि तभी माँ ने देख लिया और पूछ ही लिया की "तू आज ऐसा क्या खोज" .,.. तो मैंने भी तपाक से बोला ... "मेरा तौलिया"फिर तो सब जैसे खोजी ही बन गए ... पीछे के गैलरी में देखा,,नहीं मिला, घर के आंगन में देखा नहीं मिला, बगल वाली गैलरी में झाँका तो कुछ उम्मीद स...

मेरी बेटी,,,, पगलाई सी

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मेरी बेटी,,,, पगलाई सी मेरी बेटी आज घबराई हुई सी लग रही है, ऑनलाइन के क्लास लेते लेते कुछ पगलाई लग रही है हंसती मुस्कुराती नाचती गाती थी जो मेरी गुड़िया आज लैपटॉप ओर मोबाइल के फेर में उलझाई लग रही है बैटरी प्रॉब्लम, नेटवर्क प्रॉब्लम कभी कभी माइक प्रॉब्लम, ऐ सी रुकावटों की परेशानियां अपनी मैडम को भी समझाए जा रही है हिस्ट्री जियोग्राफी साइंस अब तो खुद ही पढ़ती है एनक लगाकर कठिन प्रश्नों के उत्तर भी तो अब स्वयं बनाए जा रही है खुश रहूं मैं या अब मैं करूं चिंता ये पता नहीं मुझको साथी सहेली छूट गए अब गूगल ही से खेल रही है वर्चुअल होती दुनिया में मेरी बेटी अपने ही बचपन से पराई हो रही है ऑनलाइन के क्लास लेते लेते कुछ पगलाई लग रही है