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Showing posts from September, 2025

The Spirit of Uttarakhand’s Igas "Let’s Celebrate Another Diwali "

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  चलो मनाएं एक और दिवाली: उत्तराखंड की इगास    एक दिवाली की जगमगाहट अभी धुंधली ही हुई थी कि उत्तराखंड के पारंपरिक लोक पर्व इगास की चमक छाने लगी है। असल में यही गढ़वाल की दिवाली है जिसे इगास बग्वाल/ बूढ़ी दिवाली कहा जाता है। उत्तराखंड में 1 नवंबर 2025 को एक बार फिर से दिवाली ' इगास बग्वाल' के रूप में दिखाई देगी। इगास का अर्थ है एकादशी और बग्वाल का दिवाली इसीलिए दिवाली के 11वे दिन जो एकादशी आती है उस दिन गढ़वाल में एक और दिवाली इगास के रूप में मनाई जाती है।  दिवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में फिर से दिवाली क्यों मनाई जाती है:  भगवान राम जी के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में 11वें दिन मिली थी इसलिए दिवाली 11वें दिन मनाई गई। वहीं गढ़वाल के वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी अपनी सेना के साथ जब तिब्बत लड़ाई पर गए तब लंबे समय तक उनका कोई समाचार प्राप्त न हुआ। तब एकादशी के दिन माधो सिंह भंडारी सेना सहित तिब्बत पर विजय प्राप्त करके लौटे थे इसलिए उत्तराखंड में इस विजयोत्सव को लोग इगास को दिवाली की तरह मानते हैं।  शुभ दि...

श्रद्धा से श्राद्ध

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  श्रद्धा से श्राद्ध...   हिंदू धर्म में श्राद्ध का अपना महत्व है। वर्ष में एक बार आने वाले पितृ पक्ष हमें अपने पितर/पितृ को नमन करने का अवसर देते हैं। यह हमें बताते हैं कि हमारे पूर्वज अब पितृ देव हैं इसलिए जैसे समय समय पर देवताओं का भाग दिया जाता है वैसे ही पितृ देवों का भाग भी अवश्य निकालना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि हम भले ही अपने जीवन में कितने भी व्यस्त रहे लेकिन श्राद्ध पक्ष में अपने पित्रों का श्राद्ध करना न भूलें।  माना जाता है कि पितृ पक्ष के इन सोलह दिनों में हमारे पूर्वज धरती में अपने वंशजों को देखने आते है और अपने कुल की वृद्धि को देखकर प्रसन्न होते हैं ऐसे में पूरी श्रद्धा से पितृ कार्य करने से हमारे पितर तृप्त होते हैं और अपना आशीर्वाद अपने वंशजों को देते हैं। इसलिए इन दिनों तिथि के हिसाब से अपने पूर्वजों के नाम से श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान से जहां पितृ संतुष्ट होते हैं वहीं घर परिवार में सुख शांति बनी रहती है।        ऐसे में कितने ही लोग अपने तर्क देते हुए कहते हैं कि व्यक्ति के जिंदा...