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Showing posts from September, 2024

Teej Where Love Meets Devotion and Grace

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    तीज: सुहागनों का उत्सव (प्रेम, तप, समर्पण, श्रृंगार)       छाया: मोनिका ठाकुर, देहरादून   प्रकृति स्वयं माता पार्वती का एक रूप है इसलिए सावन माह में जहाँ हम भगवान् शिव की आराधना करते हैं  वहीं शिवा की पूजा का भी विशेष महत्व है। सावन माह में आने वाली तीज माता पार्वती को ही समर्पित पूजा है। इस दिन सुहागन महिलाएं  माता पार्वती से अपने सुहाग की लम्बी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं।  पार्वती का तप:  पौराणिक कथानुसार माता पार्वती आदिदेव शिव से विवाह करना चाहती थी लेकिन शिव उस समय विरक्त थे। नारद मुनि ने बचपन से ही माता के अंदर शिव नाम के बीज बौ दिये थे इसलिए माता शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप करने का निर्णय लिया।     शिव महापुराण के द्वितीय पार्वतीखंड के बाईसवें अध्याय के अनुसार माता पार्वती ने अपने राजसी वास्त्रों को त्यागकर मौंजी और मृगछाला पहनी और गंगोत्री के समीप श्रृंगी नामक तीर्थ पर शंकर जी का स्मरण कर तप करने के लिए चली। तपस्या के पहले वर्ष माता ने केवल फल का आहा...

साल में एक बार (short story)

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साल में एक बार (once in a year) मनीष कहाँ है?? वो चल रहा है न हमारे साथ?? . .. अशोक ने सरिता से उत्सुकता से पूछा अपने कमरे में और आप भी न! बार बार पूछने से उसका जवाब थोड़ी न बदलेगा। आपको पता तो है कि वो कहाँ मानता है ये सब। उसको पूजा पाठ, श्राद्ध सब दूसरी दुनिया की बातें लगती हैं।   हमारे साथ गया चलता तो गया जी का महत्व पता चलता कि वहाँ जाकर पिंडदान करने से 7 पीढी़ और 108 कुलों का उद्धार हो जाता है, मोक्ष मिलता है। वहाँ जाकर शायद मनीष के विचार भी बदल जाते और मुझे अपने बुढापे की तसल्ली भी हो जाती।  रहने दीजिये, आप मनु के साथ कोई जिद्द न करें... जिद्द नहीं है,,अधिकार है हमारा। (अशोक ने सरिता की बात काटते हुए कहा... )   कोई बच्चा थोड़ी न है वो जो जबरदस्ती उठा के ले चले अपने साथ। शादी होने जा रही है उसकी। बहु लेकर आ रहा है हमारा मनु।  (अशोक सिर झटकते हुए ) पता है, फ़िरंगन बहु।   सुनो जी, मैं मानती हूँ कि बहु अमरीका में पली बढ़ी हैं लेकिन जेनी को फ़िरंगन बहु कहना शोभा नही देता। आप चाहे जो भी बोलो लेकिन उसके दादा तो भारतीय ही हैं और सबसे अच...

कौन बदला: शिक्षा, शिष्य या शिक्षक!!

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कौन बदला: शिक्षा, शिष्य या शिक्षक !!   शिक्षा के माध्यम से ही ज्ञान मिलता है और ज्ञान से मानसिक चेतना। इसी मानसिक चेतना के विस्तार से एक साधारण मन भी एक जिज्ञासु बनता है जो नई दिशा, ज्ञान, नये विचार, नई सोच, नये उद्देश्य और नई तकनीक का जन्मदाता है। और इन्हीं सब सकारात्मक कड़ियों को जोड़कर ही एक नये शिक्षित समाज का निर्माण होता है।    शिक्षा से शिक्षित समाज तक की दूरी को पाटना हमारी अपनी जिम्मेदारी है लेकिन एक अच्छी शिक्षा से जुड़ने की जिम्मेदारी शिक्षक के कंधे पर ही है इसीलिए जैसे शिक्षा एक आवश्यकता है वैसे ही शिक्षक भी हमारे विकासक्रम की एक मूलभूत आवश्यकता है। हम सभी मानते हैं कि बिना शिक्षक के शिक्षा दिशाहीन है।    लेकिन आज हमारे सामने शिक्षा, शिष्य और शिक्षक संबंधित ऐसी बहुत सी अप्रिय घटनाएं घटित हो रही हैं जो हम सभी को सोचने में मजबूर कर देती हैं कि आज शिक्षा का स्तर क्या है?? ज्ञान का केंद्र कहे जाने वाले देश में आखिर कौन बदला?? शिक्षा, शिष्य या शिक्षक!!   बच्चों द्वारा की जाने वाली आत्महत्यायें उनके लिए पढाई का बोझ थी या फिर आगे बढ़ने...