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Showing posts from April, 2021

शांत से विकराल होते पहाड़...

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शांत से विकराल होते पहाड़...   क्या हो गया है पहाड़ में?? शांत और स्थिरता के साथ खड़े पहाड़ों में इतनी उथल पुथल हो रही है कि लगता है पहाड़ दरक कर बस अब मैदान के साथ में समाने वाला है। क्या जम्मू, क्या उत्तराखंड और क्या हिमाचल! दोनों जगह एक सा हाल! कभी बादल फटने से तो कभी नदी के रौद्र् रूप ने तो कभी चट्टानों के टूटने या भू धंसाव से ऐसी तबाही हो रही है जिसे देखकर सभी का मन विचलित हो गया है। प्रकृति के विनाशकारी स्वरुप को देख कर मन भय और आतंक से भर गया है। इन्हें केवल आपदाओं के रूप में स्वीकार करना गलती है। असल में ये चेतावनी है और प्रकृति की इन चेतावनियों को समझना और स्वयं को संभालना दोनों जरूरी है।     ऐसा विकराल रूप देखकर सब जगह हाहाकार मच गया है कि कोई इसे कुदरत का कहर तो कोई प्रकृति का प्रलय तो कोई दैवीए आपदा कह रहा है लेकिन जिस तेजी के साथ ये घटनाएं बढ़ रही है उससे तो यह भली भांति समझा जा सकता है कि यह प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित आपदाएं हैं जो प्राकृतिक रूप से बरस पड़ी हैं।    और यह कोई नई बात नहीं है बहुत पहले से कितने भू वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और ...

कोविड 19 के साथ अनचाही यात्रा,,,डर के बिना ही जीत है।। (An unwanted journey with Covid 19)

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कोविड के साथ अनचाही यात्रा,,,डर के बिना ही जीत है।। 20/04/2021   लो आखिर तीन बाद पता चल ही गया कि मैं और विकास दोनों कोविड के शिकार हो गए हैं। मुझे तो पहले से ही पता था लेकिन विकास को फिर भी उम्मीद थी कि वायरल बुखार भी हो सकता है। मैं तो पहले से ही सोच रही थी कि कोरोना जिस तेजी से बढ़ रहा है तो आगे पीछे कभी न कभी होगा ही। वैसे, मैं बहुत दिलेर नहीं हूं, डर तो मुझे भी है और कोरोना नाम तो है ही डर का। फिर भी मुझे डर से अधिक तो चिंता हो रही थी कि घर में बच्चों या मां बाबू जी को किसी तरह का संक्रमण न हो और इसी डर और चिंता के चलते ही हम लोग पहले दिन से आइसोलेशन में आ गए। अच्छा हुआ कि 17 अप्रैल की शाम को ही ऑक्सीमीटर , कुछ मास्क और सैनिटेजर की छोटी छोटी बोतलें भी ले ली और आज ये सभी चीजें बराबर काम आ रही हैं क्या करें,, इसी रात से बुखार जो आ रहा था। हालांकि गले में कुछ खराश तो सुबह से ही थी, शाम को हरारत हुई और रात होते होते  101° बुखार तक पहुंच गया।   चूंकि घर में बच्चें और वृद्ध मां - बाबू जी हैं और कोरोना का संक्रमण भी तेज है तो निर्णय किया कि घर नहीं अपने ऑ...

नवरात्र... नौ दिन तपस्या के (Navratri… nine days of worship)

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नवरात्र... नौ दिन तपस्या के ( Navratri… nine days of worship)     " आज का लेख 'नवरात्र' लिखने का कारण मेरी बेटी है चूंकि नवरात्र का समय है मतलब कन्या पूजन का अवसर आ रहा है इसीलिए अपने घर की कन्या के द्वारा दिए गए शीर्षक को मैंने भी आशीर्वाद की भांति ले लिया। "       नवरात्र के दिन हैं और चारों ओर का वातावरण भी अपने आप सकारात्मक लग रहा है। सुबह उठते ही मंदिरों की घंटियां बजने लगती हैं तो शाम को घरों से ढोलक और मंजीरे की धुन सुनाई पड़ती है। लोगों के मस्तक कुमकुम व चंदन के टीके से सजे मिलते हैं और हाथ रक्षा सूत्र से, घर कपूर और धूपबत्ती से महकते हैं और आंगन की तुलसी नई चुनरी ओढ़े चहकती है और इसी के साथ घर क्या पास पड़ोस में भी ये नौ दिन उत्सव में बदल जाते हैं।    नवरात्र में तो वे लोग भी जय माता दी कहते हुए दिखाई देते हैं जिनके मुंह से कभी नमस्ते सुनाई नहीं देता होगा। सच में, नवरात्र आते ही लोगों के अंदर भाव बदल जाते हैं, विचार बदल जाते हैं और कर्म बदल जाते हैं। पता है न क्यों क्योंकि नवरात्र आना मतलब कि एक नए वातावरण में प्रवेश ...

योग,,,योग:कर्मसु कौशलम्।। Yoga,,,(Yoga is the skill in karma)

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योग:कर्मसु कौशलम्।। (Yoga is the skill in karma)      भारत के समृद्ध इतिहास को जानने पर पता चलता है कि देश कितने ही समृद्ध संस्कृतियों, ज्ञानियों, महापुरुषों की धरती रहा है। यहां शून्य की खोज हुई तो योग की अनंत क्रियाओं की भी। लगभग 5000 साल पुरानी शैली योग   को आज पूरे विश्व में कौन नहीं जानता। दुनियाभर में अपनी सिद्धता को प्रमाणित करता योग   के जन्मदाता भी भारत को ही माना जाता है। वैदिक काल से ही योग का वर्णन हमें मिल जाता है हालांकि पूर्व वैदिक काल से ही योग किया जाता है, ऐसा ज्ञान हमें महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों से भी मिलता है।      हमारे वेद, उपनिषद और भगवदगीता जैसे प्राचीन साहित्य में भी योग का उल्लेख मिलता है फिर इतनी प्राचीन योगशैली कितनी महत्वपूर्ण थी इसका अंदाजा तो हम इस बात से ही लगा सकते हैं कि ऋषि मुनियों के साथ इसे महावीर और बुद्ध जैसे महापुरुषों ने जगत कल्याण के लिए अपने अपने तरीके से विस्तार भी किया और आज विश्व में योग के कारण ही भारत ने अपनी अलग पहचान भी बना ली है तभी तो 21 जून को  विश्व योग दिवस...

हमें ईंधन चाहिए...होटल और पर्यटन।। We need Fuel,,,( Hotels and Tourism)

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  हमें ईंधन चाहिए... होटल और पर्यटन।।  We need Fuel...( Hotels and Tourism)   ( कोरोना संक्रमण एक बार फिर से तेज़ी से फैल रहा है और इसके साथ ही हमारे माथे पर भी बल पड़ गए हैं कि इस नए वित्तीय वर्ष (financial year) में भी कहीं पिछले साल के जैसा अंधेरा न छाए। होटल और पर्यटन अभी भी मुश्किल में हैं, और कह रहे हैं,,, हमें ईंधन चाहिए।। )     रास्ते में आगे बढ़ना है तो गाड़ी भी चाहिए और उसे दौड़ाने के लिए ईंधन भी। बिना ईंधन के गाड़ी बेकार है और अगर काफी समय तक उस गाड़ी में ईंधन न डाला जाए तो एक समय के बाद गाड़ी भी जंग खाकर खराब हो जायेगी। तब  हम किसी रेस में तो क्या अपनी चाल में भी चल नहीं पाएंगें। ऐसा ही कुछ हाल देश की अर्थव्यवस्था का भी हो रखा है। कई तरह के उद्योग तो तैयार हैं लेकिन उनको सुचारू रूप से चलाने के लिए (अतिथि)पैसा  रूपी ईंधन अभी पूरी तरह से उपलब्ध नहीं है। लाखों करोड़ों रुपयों से बने छोटे बड़े होटल और रेस्टोरेंट का रख रखाव और संरक्षण कोई आसान बात नहीं है, इसीलिए इनका चलना बहुत जरूरी है नहीं तो इन्हें भी एक प्रकार से जंग लग जाएगा। ...