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Showing posts from October, 2020

जन्माष्टमी विशेष: कृष्ण भक्ति: प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक

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कृष्ण भक्ति:  प्रेम्, सुख, आनंद का प्रतीक  भारत में मनाये जाने वाले विविध त्यौहार और पर्व  यहाँ की समृद्ध संस्कृति की पहचान है इसलिए भारत को पर्वों का देश कहा जाता है। वर्ष भर में समय समय पर आने वाले ये उत्सव हमें ऊर्जा से भर देते हैं। जीवन में भले ही समय कैसा भी हो लेकिन त्यौहार का समय हमारे नीरस और उदासीन जीवन को खुशियों से भर देता है। ऐसे ही जन्माष्टमी का त्यौहार एक ऐसा समय होता है जब मन प्रफुल्लित होता है और हम अपने कान्हा के जन्मोत्सव को पूरे जोश और प्रेम के साथ मनाते हैं।  नटखट कान्हा का रूप ही ऐसा है कि जिससे प्रेम होना स्वाभाविक है। उनकी लीलाएं जितनी पूजनीय है उतना ही मोहक उनका बाल रूप है। इसलिए जन्माष्टमी के पावन उत्सव में घर घर में हम कान्हा के उसी रूप का पूजन करते हैं जिससे हमें अपार सुख की अनुभूति होती है।  कान्हा का रूप ही ऐसा है जो मन को सुख और आनंद से भर देता है। कभी माखन खाते हुए, कभी जंगलों में गाय चराते हुए, कभी तिरछी कटी के साथ मुरली बजाते हुए तो कभी गोपियों के साथ हंसी ठिठोली करते हुए तो कभी शेषनाग के फन पर नृत्य करते ...

क्या आदमी और औरत समान हैं?

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         वैसे तो मैं 'क्रांतिवीर की कलमवाली बाई' नहीं हूँ जो अपने हक के लिए लडूं।क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर हमेशा अपनी कृपा बनाई है। हां, ये जरूर है कि कभी कभी अपने से और कभी ईश्वर से कुछ शिकायत करने का फिर भी सोच ही लेती हूँ।      ये आदमी लोग भी ना अपना 'enjoyment' कर ही लेते हैं चाहे किसी का जन्मदिन हो या फिर किसी का मरणदिन। चाहे किसी की शादी हो या फिर किसी की बर्बादी। 'Situation' चाहे कोई भी हो, कैसी भी हो, बस कुछ ना कुछ जुगाड़ तो कर ही लेते है अपने थकान को दूर करने का।    ऐसा गुण ईश्वर ने हम औरतों को क्यों नही दिया कि हर हालात में भी हम अपने लिए समय निकाल ले। चाहे लाख कष्ट हो जिंदगी में, अनगिनत तनाव हो, घर परिवार की चिंता हो, या सामने कोई बड़ा सा दुखों का पहाड़ क्यों ना हो, लेकिन आदमी फिर भी समय निकालता है अपने लिए, फिर चाहे दोस्त के साथ हो, पत्नी के साथ हो, दारू के साथ हो, सोशल साइट के साथ हो या फिर क्रिकेट मैच के साथ हो।     लेकिन हम औरतों के हिस्से में समय निकालने के लिए सिर्फ और सिर्फ घर परिवार, बच्चे, शिक...

नवरात्र में शक्ति पूजन और उसके बाद....

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               साल में दो बार आने वाले नवरात्र हर किसी को कितनी सकारात्मकता और ऊर्जा दे जाते हैं, इसका अनुभव तो आपने भी किया होगा। नवरात्र चाहे चैत्र के हो या शारदीय, हर छः माह में आने वाले ये नौ दिन आगे आने वाले दिनों के लिए हमे नई आशा और ऊर्जा से भर देते हैं। इन नौ दिनों का समय चाहे कोई भी हो किंतु एक बात बड़ी ही सामान्य है और वह ये है कि इन नौ दिनों के बाद आपको मौसम बदला बदला सा मिलेगा। जैसे चैत्र के नवरात्र के साथ ग्रीष्म ऋतु का आना और शारदीय नवरात्र के साथ शरद ऋतु का आना। ऐसा लगता है कि ईश्वर हमें संदेशा देता है कि हम इन नौ दिनों में ध्यान, तप, सात्विकता से  तैयार हो जाए प्रकृति के अनुरूप अपने को ढालने के लिए।      पूरे साल भर भले ही ईश्वर के आगे ना खड़े हों लेकिन नवरात्री में तो कोई विरला ही होगा जो माता के आगे हाथ जोड़े खड़ा ना मिला हो। हर किसी का शीश झुका होता है एक मूर्ति, एक फोटो, एक कागज के सामने और अगर कहीं भी नहीं गए तो भी मन ही मन तो माँ का सुमिरन तो होता ही है। कहने का अभिप्राय सिर्फ यही है कि ह...

जिद्दी बेलें...

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जिद्दी बेलें     आज एक बार फिर मुझे अपने घर के पीछे वाली गैलेरी में जाना पड़ा। आज फ़िर से ये लहरा लहरा कर मुझे चिड़ा रहीं हैं। अभी एक हफ्ते पहले ही तो ये मिलीं थी मुझसे। अकड़ीं अकड़ीं सी पतले छरहरे बदन वाली आगे से गोल घुंडिनुमा ताज लिए बढ़ी चले जा रही थी मेरी दीवार पर,ये जिद्दी बेल। इन्हे देख कर लग रहा था की जैसे कोई दुश्मन मेरे किले पर चढ़ाई कर रहा हो और कब्जा करना चाह रहा हो ।      आपको तो याद होगा कि  'खोया पाया तौलिया' में मैंने बताया था कि मेरे घर के पीछे एक गैलेरी है और उसी गैलेरी के पीछे एक खाली प्लॉट है जहाँ हमारे एक पड़ोसी अपनी क्यारी बनाते हैं और बागवानी करते हैं। इसी गैलेरी में घर का कुछ सामान भी है, जैसे कुछ लकड़ी के गुटके, घर बनाते हुए बची हुई फर्श की  टाईल्स, LPG गैस, और मेरी वाशिंग मशीन। और समान को छोड़ भी दे लेकिन वाशिंग मशीन की सहायता तो मुझे हर हफ्ते चाहिए होती है और कभी कभी एक हफ्ते में दो बार भी मैं इसकी सेवाएं ले लेती हूँ।   अभी एक हफ्ते पहले की ही बात है, सुबह वाशिंग मशीन में कपड़े डाले, और कुछ ही देर में मैंने कु...

पहाड़ी लूण/पिस्यूं लूण

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पहाड़ी लूण          ये लेख आपको उत्तराखंड के देसी नमक का तीखा स्वाद बताएगा, अगर आपने इस नमक का स्वाद नही लिया तो एक बार पढ़ कर स्वाद जरूर लें।।    वैसे इन दो शब्दों से तो हर किसी को पता ही चल गया होगा की यह 'लूण' एक नमक है, क्योंकि नमक को कई लोग लूण से भी जानते हैं लेकिन कुछ लोगों के लिए ये पिस्यूं लूण कुछ अलग हो सकता है।     ये दो शब्द उन लोगों के कानों के लिए तो बिल्कुल भी नया नही है जिनका संबंध पहाड़ से है। पहाड़ी लूण का मतलब, पहाड़ में पाया जाने वाला नमक ही है, पहले ये साधारण नमक, डलो में मिलता था इसे यहाँ के गढ़वाली लोग 'गारू लूण' कहते थे लेकिन मैं जिस नमक के विषय में बताना चाह रही हूँ वह कोई मामूली नमक नही अपितु " पिस्यूं लूण " है।            अब तो पिस्यूं लूण का मतलब वही समझ सकता है जिसने 'उत्तराखंड का नमक' खाया हो। और इसका तो सिर्फ नाम ही काफी है मुँह में पानी लाने को, क्योंकि इसको सुनते ही, पहाड़ी खीरा, बड़े बड़े लिम्बा, चकोतरा, गाजर, मूली, कच्मोली, मंडुआ रोटी और ना ...