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Showing posts from November, 2024

Teej Where Love Meets Devotion and Grace

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    तीज: सुहागनों का उत्सव (प्रेम, तप, समर्पण, श्रृंगार)       छाया: मोनिका ठाकुर, देहरादून   प्रकृति स्वयं माता पार्वती का एक रूप है इसलिए सावन माह में जहाँ हम भगवान् शिव की आराधना करते हैं  वहीं शिवा की पूजा का भी विशेष महत्व है। सावन माह में आने वाली तीज माता पार्वती को ही समर्पित पूजा है। इस दिन सुहागन महिलाएं  माता पार्वती से अपने सुहाग की लम्बी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं।  पार्वती का तप:  पौराणिक कथानुसार माता पार्वती आदिदेव शिव से विवाह करना चाहती थी लेकिन शिव उस समय विरक्त थे। नारद मुनि ने बचपन से ही माता के अंदर शिव नाम के बीज बौ दिये थे इसलिए माता शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप करने का निर्णय लिया।     शिव महापुराण के द्वितीय पार्वतीखंड के बाईसवें अध्याय के अनुसार माता पार्वती ने अपने राजसी वास्त्रों को त्यागकर मौंजी और मृगछाला पहनी और गंगोत्री के समीप श्रृंगी नामक तीर्थ पर शंकर जी का स्मरण कर तप करने के लिए चली। तपस्या के पहले वर्ष माता ने केवल फल का आहा...

इगास: उत्तराखंड की दिवाली (Igas: The Diwali of Uttarakhand)

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   इगास: उत्तराखंड की दिवाली  9 नवम्बर 2024 से उत्तराखंड की रजत जयंती वर्ष (25 वर्ष) का आरंभ हो रहा है। इस विशेष अवसर पर हम सिर्फ अपने राज्य की स्थापना का ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, सपनों और अटूट जज़्बे का जश्न मना रहे हैं। मन में उल्लास है और विश्वास भी कि उत्तराखंड विकास के पथ पर निरंतर अग्रसर रहेगा और अपनी अनोखी संस्कृति और परंपराओं को भी संरक्षित रखेगा। आआज का लेख इसी संस्कृति के साथ जुड़ा है, उत्तराखंड का लोकपर्व इगास।     अभी तो दिवाली समाप्त हुई है लेकिन उतराखंडियों के लिए दिवाली की जगमगाहट फिर से आ रही है। शुभ दिन, इगास के साथ।    नवरात्रि से शुभ दिनों का आगमन आरंभ हो जाता है। पहले माँ जगदंबा के दरबार में मन पवित्र होता है उसके बाद प्रभु राम का गुणगान। सच मानो तो त्योहारों की झड़ी लग जाती है और मन में खुशियोँ की फुलझड़ी तो जैसे कभी खत्म ही नहीं होती बस जगमगाती ही रहती है। ऐसे में लगता है कि दिवाली की खुशियाँ कभी समाप्त ही न हो।   जैसे कि दिवाली तो चली गई लेकिन इस फुलझड़ी की जगमगाहट उत्तराखंड में इगास तक रहती है। इगास उत्तराखं...