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छुट्टियों की तैयारी

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 छुट्टियों की तैयारी   बच्चों की छुट्टियां पड़ चुकी हैं और कितनों के घर में समान भी बंध गए। कुछ लोग गर्मी से राहत पाने के लिए कुछ दिन ही सही लेकिन कितने ही लोग पहाडों पर जा रहे है तो कोई नदी या बीच की ओर प्रस्थान कर रहे है। लेकिन अभी भी बहुत से इसी सोच में हैं कि "बच्चों को छुट्टियों में कहाँ घुमाएं?" ।    अब लगभग सभी अपनी अपनी तरह से किसी न किसी जगह पर घूमने का मन बनाते हैं और वहाँ जाकर खूब आनंद लेते हैं। लेकिन आप किसी भी जगह का लुत्फ़ उठाएं लेकिन छुट्टियों के दो चार दिन भी अगर बिना अपने घर, गांव या मायके में न गुज़रे तो छुट्टियां और मौसम दोनों अधूरे लगते हैं, खासकर कि महिलाओं और बच्चों को।       बचपन का घर    बच्चों के लिए तो जैसे ये एक ग्राष्मकालीन त्यौहार है जो वो अपने नाना नानी, दादा दादी,  भाई बहनों के साथ मिलकर मनाते हैं। ये वो जगह होती है जहाँ वो राजा बाबू बनकर स्वछंद रूप से खूब मस्ती करते हैं। वहीं महिलाओं के लिए ये सालाना किया जाने वाला कोई संस्कार है जिसे हर वर्ष निभाना आवश्यक लगता है। हालांकि काम काजी महिलाओं के संदर्भ में इसे निभाना एक बड़

थोड़ा खाएं पर ताज़ा खाएं।

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थोड़ा खाएं पर ताज़ा खाएं। हम सभी को ज्ञात है कि गर्मियों में खानपान जितना सादा, सुपाच्य और हल्का हो उतना ही अच्छा है और भोजन ताजा खाया जाए वो ही स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा है। किंतु फिर भी हम लोग कई बार अपनी आदतों या अपने आलस या फिर समय की कमी या फिर अन्य कारणों से बासी भोजन करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है।    क्योंकि ताज़े भोजन में हमें जो पोषक तत्व मिलते हैं वो बासी भोजन से नहीं मिलते। उनसे केवल पेट भरा जा सकता है, स्वस्थ शरीर नहीं। इसके उलट बासी खाने से कई प्रकार के उदर (पेट) रोग हो जाते हैं। इसलिए थोड़ा खाओ लेकिन ताज़ा खाओ। बासी खाना किसे माना जाए: बचा हुआ खाना (leftover food) कुछ समय के बाद बासी कहलाता है साथ ही हम कह सकते हैं कि पकाए हुए भोजन के 3 घंटे के बाद जो बचा हुए खाना हो उसे बासी मान लेना चाहिए। सुबह की बनाई सब्जी दोपहर में खाने पर बासी मानी जाती है। यानी की एक पहर के बाद भोजन बासी हो जाता है।   क्यों न करें बासी भोजन का सेवन:    ताजे भोजन करने से आवश्यक पोषक तत्व और विटामिंस शरीर को मिलते हैं जबकि इसी भोजन को गर्म करने से पोषक तत

मेरा सूरज

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मेरा सूरज रसोई से गुनगुनाने की आवाज़ आती है: "मेरा सूरज है तू, मेरा चंदा है तू, आ मेरी आँखों का तारा है तू.."  माँ..। माँ, मैं जा रहा हूँ। (सूरज अपने जूतों के फीते बाँधते हुए )  अरे लेकिन कहाँ,, आज संडे के दिन। वो भी इतनी सुबह सुबह। कम से कम, आज तो शांति से घर बैठ।   माँ तुम्हारे प्रेशर कुकर की सीटी भी तो संडे हो या मंडे, सुबह से शाम तक बजती रहती है। आप कभी शांत नहीं बैठ सकती क्या?  क्या बोलता रहता है। मैं तो बस पूछ रही हूँ।  तुम्हें पता तो है फिर भी हर बार टोकती हो। कितनी बार बताऊँ कि हर सन्डे की सुबह 6 - 9 हमारा क्रिकेट मैच होता है।  पता है लेकिन तु तो 12 बजे से पहले कभी घर आता ही नहीं है इसीलिए बोल रही हूँ कि आज तो तू 10 बजे तक हर हाल में घर पहुँच जाना नहीं तो नाश्ता नहीं मिलेगा और हाँ, पापा की डाँट अलग से मिलेगी। तुझे भी और मुझे भी।  ओह हो! हर बार पापा के नाम से डराती रहती हो। माँ आपका ज्ञान न संडे की सुबह से ही शुरू हो जाता है।   मेरे चंदा मेरे सूरज,,,तुझे पता है सुबह-सुबह मां की आवाज का कानों में जाना शुभ होता है। चल अभी गुस्सा मत कर और घर समय से आना ।  ओह ह

लीव नो ट्रेस (LEAVE NO TRACE)

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लीव नो ट्रेस (LEAVE NO TRACE)     उत्तराखंड में बारहों मास पर्यटन के अवसर हैं किंतु तीर्थ यात्रा यानी कि चार धाम यात्रा के समय (अप्रैल - अक्टूबर) पर्यटन अपने चरम पर होता है। सप्ताहांत वाला सिद्धांत (वीकेंड थ्योरी) अब केवल मेट्रो या महानगरों का ही नहीं अपितु हर स्थान के यात्री को भाता है तभी तो जहाँ अन्य दिन केवल भीड़ होती है वहीं वीकेंड पर कुछ स्थान पर कुंभ होता है।     जब से यातायात की सुविधा और तकनीकी ज्ञान ने अपनी उड़ान भरी है तभी से पर्यटन को भी नए पंख मिल गए हैं। इसीलिए उत्तराखंड में यात्रा के समय पर्यटकों की भीड़ होना अब सामान्य हो गया है। हजारों लाखों लोग इस समय उत्तराखंड की यात्रा पर निकलते हैं।    खैर! समय चाहे जो भी हो यात्रा तो सभी करते ही हैं और करनी भी चाहिए। और जब उत्तराखंड देव स्थान और अपने नैसर्गिक एवं प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर् है तो यहाँ यात्रियों/सैलानियों का आना सामान्य है।    अगर आप उत्तराखंड में किसी भी तरह की यात्रा या फिर कैंप करने की सोच रहे हैं तो Leave No Trace (LNT) लीव नो ट्रेस को अपनाएं। वैसे इस थ्योरी को बाहर के देशों में एक अभ्यास की तरह कि

तो चलिए मिलते हैं फिर...

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तो चलिए मिलते हैं फिर...    मुझे लगता था कि तुम कोई मिस्टर इंडिया की तरह हो जिसकी केवल आवाज ही सुनाई देती है लेकिन आज जब तुम से मिली तो लगा कि ये मिस्टर इंडिया चाहे कितना भी गायब रहे लेकिन है, सभी के साथ।  चलिए अब तो मुलाकात हो ही गई। उनसे ही जिसे कभी देखा नहीं था लेकिन हाँ सुना बहुत था।     बचपन से बहुत सी आवाजे़ कानों में गूंजती रहती थी। कभी गीत संगीत तो कभी सूचना, कभी चर्चा परिचर्चा और जानकारी भी। ऐसा लगता था कि उस छोर पर कोई अपना बैठा है जिसे हम एक एक धातु के डब्बे की सुइयों को ऊपर नीचे करके सुन रहे हैं। और अपने अलग अलग अंदाज़ से हम सभी के दिलों को आपस में जोड़ रहा है। सच कहूँ तो जनमानस के जीवन का एक अनूठा हिस्सा है, रेडियो। कल (28अप्रैल 23) उसी रेडियो यानी आकाशवाणी से मिली जहाँ मैंने अपना पहला आलेख प्रस्तुत किया।     आकाशवाणी में मेरा यह पहला अनुभव था जिसनें मुझे ध्वनियों के संसार का केंद्र बिंदु दिखाया। एक ध्वनिरोधी (साउंडप्रूफ) कमरे में केवल अपनी आवाज को सुनना अपने लिए तो बहुत अच्छा था लेकिन जब इसे लाखों लोगों ने सुनना हो!! तब तो थोड़ी घबराहट होना सामान्य

उत्तराखंड: चार धाम यात्रा के नियम

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उत्तराखंड: चार धाम/पहाड़ी यात्रा के नियम उत्तराखंड की चार धाम यात्रा का आरंभ हो चुका है। यह एक ऐसा समय है जब सनातन धर्म से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति इस यात्रा का अनुभव करना चाहता है। यह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा है जिसके लिए कहा जाता है कि मनुष्य को अपने जीवनकाल में एक बार तो अवश्य ही चार धाम यात्रा करनी चाहिए। लेकिन आज के समय में यह यात्रा केवल तीर्थ यात्रा ही नहीं अपितु बहुत लोगों के लिए रोमांचक, साहसिक, जिज्ञासा, रहस्य, शांति और ध्यान केंद्रित यात्रा है। किंतु आज के समय देखा गया है इससे भी आगे कुछ लोगों के लिए यह यात्रा केवल उनकी पिकनिक की भाँति है जहाँ वे खुलकर मौज,मस्ती मज़ा, मज़ाक, शरारत, उत्पात, माँस मदिरा, फूहड़ गीत संगीत और अय्याशी की यात्रा करते हैं।  सभी को यह ध्यान में रखना चाहिए कि उत्तराखंड की चार धाम यात्रा जप, तप और दान के लिए होती है। जहाँ पर किया गया पुण्य मोक्ष के द्वार खोलता है और यहाँ किया गया किसी भी प्रकार का गलत काम उस व्यक्ति को रोग, दोष और अनिष्ट का भागीदार बनाता है।    पहाड़ की इस तीर्थ यात्रा पर भले ही पहले केवल बुजुर्ग

प्रकृति और मानव

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प्रकृति और मानव  Nature and Human आखिर तुम्हारे दर्शन हो ही गए। लगभग तीन साढ़े तीन साल से इंतज़ार कर रही थी कि कब तुम्हारे दर्शन होंगे और एक तुम थे कि जिसे देखकर लग रहा था कि अपनी जिद्द में अड़े हो और मेरी प्रतिक्षा की परीक्षा ले रहे हो। खैर! जो भी था लेकिन अब तो मैंने भी मान लिया है कि "सब्र का फूल लाल होता है।"    अक्सर में यही सोचा करती थी कि जिसके लोग दीवाने हैं उसमें आखिर ऐसा है क्या?? क्योंकि मेरे लिए तो सभी फूल खुशी, प्यार, शांति का प्रतीक है लेकिन फिर भी दुनिया के 10 खूबसूरत फूलों में से एक फूल को अपने सामने खिलता हुआ देखना भला किसे पसंद नहीं। अब भले ही चाहे वो शुद्ध लिलि के स्थान पर उसका एक प्रतिरूप लाल लिलि (Amaryllis lily/ लाल कुमुदनी) क्यों न हो। इसके खिलने के साथ ही मेरा इंतज़ार खत्म हो गया और एक नई सीख भी दे गया।    इस एक छोटे से पौधे को तीन - साढ़े तीन साल पहले अपने ऑफिस के एक गमले में लगाया गया था। लेकिन साल भर बाद भी इसमें कोई अच्छी वृद्धि नहीं हो पाई थी। फिर माली को लगा कि जब इसमें कोई फूल नहीं आ रहा है तो इसे हटा कर इस गमले में कोई

जय श्रीराम

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जय श्री राम हनुमान जी का नाम राम नाम के बिना अधूरा है। अगर हनुमान जी का सुमिरन करना है तो भगवान राम का नाम उनकी भक्ति का पूरक है। इसलिए हनुमान  जन्मोत्सव पर... जय श्री राम।    कृष्ण जन्माष्टमी में घर घर में नन्हें मुन्ने बाल गोपाल कान्हा   जैसे भगवान कृष्ण का बाल रूप मनमोहक है वैसे ही बलशाली हनुमान अपने बाल हनुमान के रूप में सभी के प्रिय हैं तभी तो हर माता को अपने पुत्र में नटखट कान्हा और बाल हनुमान की छवि दिखाई देती है। और उसे उसी रूप में देखकर मन में अति उत्साही और आनंदित भी होती हैं और हो भी क्यों न, क्योंकि चाहे कान्हा हो या बाल हनुमान ये तो सभी के प्रिय है। वैसे ही राम भी जन जन के प्रिय हैं और घर घर में वंदनीय हैं। बस आज थोड़ा राम की छवि समाज में दिखना भी कम हो गया है। या कहें कि समाज में राम गायब होता नज़र आ रहा है। लेकिन अगर मानो तो राम हर जगह विद्यमान हैं,, “रमंते सर्वत्र इति रामः” (जो सब जगह व्याप्त है, वह राम है) क्योंकि जिसका मन सुंदर है उसके लिए हर जगह राम है।    अब भले ही राम का नाम आज कुछेक लोगों ने केवल अपने धर्म से जोड़ दिया है लेकिन वास्तविकता में राम का न

अलबेली बरेली

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  अलबेली बरेली     झुमका, सुरमा, बर्फी, जरी, बांस इन सबके साथ जो नाम सबसे पहले दिमाग में आता है वो है,,, बरेली। भले ही मेरा रिश्ता बरेली से बहुत पुराना न सही लेकिन दिखावटी दुनिया से परे यहाँ का आम जीवन मुझे बहुत खास लगता है और खासकर यहाँ बसने वाले हम से जुड़े लोग।   कहने को तो लोग अपने मायके को याद करते हैं लेकिन सच कहूँ तो मुझे अपना ससुराल यानी की बरेली याद आ रहा था।अब भले ही हम उत्तराखंडी हैं लेकिन पिता जी (ससुर जी) की कर्मभूमि बरेली ही रही है। इसलिए मेरे परिवार का अधिकांश जीवन बरेली में ही व्यतीत हुआ है।    अभी हाल में ही बरेली जाना हुआ। यात्रा बहुत छोटी थी हम पूरे 24 घंटे भी बरेली में रुक नहीं पाए इसीलिए अपने पुराने शहर से अधिक मिलने का मौका तक नहीं मिला। तभी तो लगा कि इस बार की यात्रा तो अधूरी रह गई। इसलिए आज का लेख अलबेली बरेली पर...     रामगंगा नदी के तट पर बसा बरेली नगर उत्तर प्रदेश के आठवां सबसे बड़ा शहर है। उत्तर प्रदेश ही नहीं अपितु भारत के महत्वपूर्ण और पुराने शहरों में से एक है बरेली। कहा जा सकता है कि हिंदू मुस्लिम सद्भावना की दृष्टि से भी बरेली एक महत्वपूर्ण