थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं... भाग -3

Image
थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं... भाग - 3    पिछले लेख में हमारे पास नैनीताल घूमने का केवल आधा दिन था जिसे हमने खूब अच्छे से व्यतीत किया और कहा था कि आगे का रास्ता लंबा नहीं है क्योंकि अब हमें नैनीताल से कैंची धाम जाना था। 10 मार्च की सुबह हम अब नैनीताल के पहाड़ी मार्ग से आगे कुमाऊँ की पहाड़ियों के और निकट जा रहे थे।   कैंची धाम:     कैंची धाम जिसे नीम करौरी आश्रम के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह कुमाऊँ के सुरम्य, शांत वातावरण के मध्य कैंची गाँव में स्थित एक अध्यात्मिक आश्रम है जिसे संत नीम करौरी बाबा जी ने बनाया था। बाबा जी स्वयं हनुमान जी के बहुत बड़े उपासक थे इसलिए इनके कई भक्त इन्हें चमत्कारी मानते हैं एवं हनुमान जी की तरह ही पूजते हैं।          कैंची धाम, 10 मार्च 2024    नैनीताल से कैंची धाम की दूरी 20 किलोमीटर के आसपास है जो कि 40-50 मिनट में पूरी की जा सकती है लेकिन कई बार ये दूरी घंटे भर से कई अधिक भी हो जाती है क्योंकि कैंची धाम एक लोकप्रिय धाम है तो दर्शनार्थी हमेशा बने रहते हैं और दूसरा यह नैनीताल अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित है और यह मार्ग आगे चलकर कुमाऊँ क

थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग-2

थोड़ा कुमाऊँ घूम आते हैं...भाग- 2


  पिछले लेख में हम हरिद्वार स्थित चंडी देवी के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे यानी कि उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल से अब कुमाऊँ मंडल की सीमाओं में प्रवेश कर रहे थे बता दें कि उत्तराखंड के इस एक मंडल को दूसरे से जोड़ने के लिए बीच में उत्तर प्रदेश की सीमाओं को भी छूना पड़ता है इसलिए आपको अपने आप बोली भाषा या भूगोल या वातावरण की विविधताओं का ज्ञान होता रहेगा। 
   कुमाऊँ में अल्मोडा, नैनीताल, रानीखेत, मुक्तेश्वर, काशीपुर, रुद्रपुर, पिथौरागढ, पंत नगर, हल्दवानी जैसे बहुत से प्रसिद्ध स्थान हैं लेकिन इस बार हम केवल नैनीताल नगर और नैनीताल जिले में स्थित बाबा नीम करौली के दर्शन करेंगे और साथ ही जिम कार्बेट की सफ़ारी का अनुभव लेंगे। 

 225 किलोमीटर का सफर हमें लगभग पांच से साढ़े पांच घंटों में पूरा करना था जिसमें दो बच्चों के साथ दो ब्रेक लेने ही थे। अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे बच्चे भी अपनी आपसी खींचतान में थोड़ा ढ़ीले पड़ रहे थे। इसलिए बच्चों की खींचतान से राहत मिलते ही कभी कभी मैं पुरानी यादों के सफर में भी घूम रही थी। 
   कुमाऊँ की मेरी ये तीसरी यात्रा थी। पहली वर्ष 2009 में की थी जिसमें मैं अपने साथियों के साथ जिम कार्बेट की सफ़ारी में थी। उस समय हम ढिकुली में ठहरे थे और वहीं से जंगल सफ़ारी करने निकले थे। ये मेरे जीवन के शानदार पलों में से एक थे जिसे मैं जीवन भर याद रखूंगी। बहुत ही मज़ेदार ट्रिप था। सच में, दोस्तों के साथ घूमने का और पूरी मस्ती करने का तो अपना एक अलग मज़ा है जिसे आप भी मानते होंगे। 
     जनवरी 2009 : अमित और चित्रा के साथ

   दूसरी यात्रा वर्ष 2012 में विकास और नन्हीं जिया के साथ की थी। उस समय की कुमाऊँ यात्रा और भी रोचक थी क्योंकि हम कुमाऊँ के मैदानी इलाकों से इतर लुभावने पहाड़ों और खूबसूरत दृश्यों को देख रहे थे। नैनीताल में नौकायन का आनंद लिया तो रानीखेत जो कुमाऊँ रेजिडेंट का मुख्यालय है उनके घास के गोल्फ मैदान और मनमोहक पहाड़ी छटा में खो गए थे। 
  
    अब नैनीताल और रानीखेत तो अपने सुंदर दृश्यों के लिए लोकप्रिय हैं लेकिन इनसे और भी आगे बढ़कर अपने अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है अल्मोड़ा जिले में स्थित एक छोटा सा हिल स्टेशन, शीतलाखेत। हम यहाँ शीतलाखेत में कुमाऊँ मंडल विकास निगम के एक सुव्यवस्थित गेस्ट हाउस में ठहरे थे।       अक्टूबर 2012: शीतलाखेत सूर्योदय KMVN

   यहाँ से आभास होगा कि हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं बहुत ही पास हैं। उन सुंदर चोटियों के बीच, सुबह सुबह का सूर्योदय आज भी आँखों में चमक रहा है। अपने कमरे की खिड़की से झाँकता हुआ वो अद्भुत और विहंगम दृश्य आज भी अपनी ओर खींच रहा है। आज भी उस हिमालयी सूर्योदय को याद करके उतनी ही ताजगी, ऊर्जा और रोमांच का अनुभव हो रहा है जितना की उस समय हुआ था। शीतलाखेत से फिर हम चीड़ और देवदार के शांत जंगलों के मध्य स्थित श्री बिनसर महादेव मन्दिर एवं गर्जिया माता के दर्शन  के लिए भी गए थे। अद्भुत अनुभव जुड़े थे उस समय की कुमाऊँ यात्रा में। पर्वत, घाटी, जंगल, पशु, पक्षी, जल धाराएँ, कला, संस्कृति और भी बहुत कुछ था। जिसे देखने और जानने के लिए फिर से कुमाऊँ अवश्य जाना चाहिए। 
    नैनीताल, रानीखेत अक्टूबर 2012

  ऐसे ही कब नैनीताल आ गया, पता ही नहीं चला। हम दिन के साढ़े तीन बजे नैनीताल पहुँच गए और नैनीताल में हमारे ठहरने का प्रबन्ध श्री विकास बहुगुणा (एडवोकेट, नैनीताल हाई कोर्ट) एवं श्री अनिल डबराल (एडवोकेट, नैनीताल हाई कोर्ट) जी द्वारा किया गया था। हम मल्लीताल (ऊपरी हिस्से) में स्थित राज्य संपत्ति विभाग के प्रतिष्ठित नैनीताल क्लब में ठहरे थे जिसे राज्य सरकार द्वारा संचालित किया जाता है। 
  एक बड़े से स्वागत कक्ष में जाकर हमने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और फिर हमें अपनी जगह मिल गई। चूंकि हम पांच लोग थे तो हमारे लिए उस कमरे की व्यवस्था थी जहाँ दो कमरे आपस में जुड़े थे जिसे हम होटल की भाषा में इंटरकनेक्टिंग रूम (आपस में जुड़े हुए) कह सकते हैं। गेस्ट हाउस के हर कमरे के बाहर हरा भरा लॉन था जहाँ पर सूरज की धूप ऊँचे पेड़ों से आँख मिचौली कर रही थी। नैनीताल स्वयं पहाडों से घिरी है तो मोहक दृश्य अपने आप इस गेस्ट हाउस से भी दिखाई दे जायेंगे। यहाँ वीआईपी कॉटेज भी है जो विशिष्ट मंत्रीगण या अन्य प्रमुखों के लिए हैं। वहाँ की सुंदरता का अंदाजा आस पास की सफाई से लगाया जा सकता है। 
     नैनीताल क्लब हाउस, 9 मार्च 2024

  सफर की थकान तो थी ही लेकिन यहाँ की शांति और वातावरण हमारी थकान को अपने में समेट रहा था लेकिन जब आपके साथ बच्चे हों तो आप चाह कर भी शांति का आनंद नहीं ले पाते क्योंकि उनकी ऊर्जा आपको चलायमान रखती है। और हाँ, आने वाले चुनावों की गर्मी भी तो किसे शांत रख पाती है। इतने शांत वातावरण में भी अपने अपने नेताओं के समर्थन में लोगों के मतभेद साफ सुनाई दे रहे थे। (चलो अच्छा भी है एक ही जगह पर काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों को अपने नेता चुनने की बुद्धि और वोट की शक्ति तो है जहाँ वो बिना किसी अफसर की जी हज़ूरी किये बिना इसका प्रयोग कर सकते हैं। (नहीं तो पता नहीं कब, कौन सा आदेश शासन से आ जाए जहाँ संस्थाएँ अपना नेता पहले ही चुन लें) वैसे ये वोट की शक्ति सभी के पास है इसका सोच समझ कर प्रयोग करें। ) 

  जहाँ जिया आस पास की फूलों की क्यारियों का जायजा ले रही थी वहीं जय बाहर की खूबसूरती देखकर अपने अंदर के शाहरुख खान को बाहर ला रहा था। साथ ही हरिद्वार में जो लेज़र लाइट ली थी उसे पेड़, पौधे, दीवार सब पर चमकाना था और जैसे ही मौका मिले तो अपनी जिया दीदी की आँखों पर भी। बच्चों को भी घूमने की जल्दी थी और हमें भी समय से काम लेना था क्योंकि हमारे पास नैनीताल घूमने का केवल आज का दिन ही था जो इतने सुंदर जगह के लिए बहुत ही कम था। इसलिए हल्का चाय नाश्ते के बाद ही गेस्ट हाउस से बाहर निकलने लगे। 

 हम अभी मल्ली ताल थे और हमें प्रसिद्ध नैनी झील देखनी थी, नौकायन (बोटिंग) का आनंद लेना था। साथ ही नैना देवी मन्दिर के दर्शन करने थे फिर तल्ली ताल तक जाना था और हाँ, मल्ली ताल से तल्ली ताल को जोड़ने वाली सड़क/मार्ग, मॉल रोड़ पर घूमना भी तो शामिल था। जिसके एक तरफ तरह-तरह की दुकाने और एक तरफ झील है।  
   चूंकि नैनीताल एक हिल स्टेशन है तो यहाँ ठंडा अधिक होता है इसलिए बच्चों के लिए शाम या रात को घूमना उनके स्वास्थ्य को चुनौती देना हो सकता है। हम बहुत अच्छे समय पर नैनीताल आये थे। इस समय न गर्मी थी और न ही बहुत अधिक ठंडा तो शाम को घूमने में कोई परेशानी नहीं हुई। इस मौसम में बच्चों के साथ यहाँ आना हमारे लिए एक अच्छा निर्णय था।
  गेस्ट हाउस से नीचे एक संकरी रोड़ सीधे मॉल रोड़ की ओर जा रही थी। मल्ली ताल में ही दाएँ ओर बड़ा सा समतल खेल मैदान दिखाई दे रहा था। और उसी के पास नैनीताल बोट हाउस क्लब भी। इसी समय झील में तैरती छोटी छोटी नौकाओं को देखकर जिया और जय दोनों ही बड़े उत्साही हो गए। माँ भी पहली बार नैनीताल देख रही थी इसलिए झील में नौकायन करना उनके लिए भी रोमांचक था। वैसे आप जितनी बार भी नैनीताल आयें बिना नौकायन के यात्रा अधूरी है। इसका अनुभव हर बार आपको रोमांचक लगता है लेकिन जिया बहुत ही कोमल है उसके लिए नौकायन (बोटिंग) एक साहसिक और खतरनाक खेल था जिसे वो दूर से ही देखना चाहती थी। बड़ी ही हिम्मत देने के बाद जिया अपनी दादी के साथ नाव में बैठ पाई। वहीं जय की हालत भी थोड़ी पतली थी जितना शेर अपनी शरारतों में है उतना ही फिसड्डी साहसिक कार्यो के लिए है।लेकिन जब नैनीताल आये हैं तो बच्चों को बोटिंग का अनुभव कराना ही था। इसलिए झील में नौकायन का निर्णय लिया जिसका शुल्क शायद आठ सौ या साढ़े आठ सौ के आस पास था। अब दो नावों में सवार होकर हम नैनी झील पर बहने वाली ठंडी हवाओं का आनंद ले रहे थे। जय तो अब मज़े में था और जिया भी अपने डर पर काबू करके धीरे धीरे सहज हो रही थी क्योंकि अब झील में अपने आस पास और लोग भी दिखाई दे रहे थे। जय भी अब अपनी पूरी फॉर्म में आ चुका था और अपनी गप्पों से लगातार अपने नाव वाले भैया का मन बहला रहा था। उसकी अनोखी बातों के चक्कर में हम तो उनका नाम भी भूल गए जबकि हमारी पिछली नैनीताल यात्रा के नावचालक 'श्री सुदामा जी' थे जिन्होंने हमें दो दिन झील की यात्रा कराई थी। 

 नौकाचालक:अक्टूबर 2012                     मार्च 2024

  नैनी झील का पानी दूर से तो हरा दिखाई दिया लेकिन सामने से पानी बिल्कुल साफ था जिस पर नाव की परछाई भी और बादलों की परछाई भी साफ दिख रही थी। झील इतनी गहरी थी कि मन बोल पड़ा कि आस पास के पहाड़ी, वृक्ष के साथ साथ बादल भी इस झील में समा रहे हैं। प्रकृति का अद्भुत आनंद प्राप्त हो रहा था। सोच रही थी कि इससे प्रकृति को समझने का अवसर मिला है और कुछ सीखने का भी। (शांत, गहरी, गंभीरता वाली झील ने अपने अंदर एक पूरा पारिस्थितिकी तंत्र पाला होगा न! तभी तो रंग बिरंगी मछलियाँ उस झील में तैरती होंगी।)

  लेकिन इन सबके बीच बुरा तब लगता है जब प्रकृति माँ की गोद में बैठे कुछ लोग नशे का सेवन करें। जी हाँ, बहुत बुरा लगा जब नौका चालक ने बताया कि ये झील तो हमारे लिए माँ है क्योंकि ये हमें रोजी रोटी देती है ( जिसकी सत्यता उनके हाथों के छालों ने हमें बता दी थी) साथ ही यह प्राकृतिक झील है जिसके पानी की पूर्ति पूरे नगर को की जाती है। यहाँ कई बार ऐसे असमाजिक तत्व भी आ जाते हैं जो झील और उसका वातावरण गंदा करते हैं। कुछ नशे में भी होते हैं जिन्हें नौकायन कराना खतरे से खाली नहीं होता इसीलिए हर सैलानी के लिए सुरक्षा जैकेट पहनना अनिवार्य होता है साथ ही झील में किसी भी प्रकार का कूड़ा न डालने का निर्देश भी सभी को दिया जाता है। उन्होंने बताया कि शायद इसी के चलते अब नौकायन का समय भी सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक ही सीमित कर दिया गया है। वैसे पहले (1970 तक)नौकायन का लुत्फ़ केवल वही लोग ले सकते थे जो नैनीताल बोटिंग क्लब के सदस्य हुआ करते थे लेकिन आज कोई भी सैलानी पर्यटक शुल्क देकर नौकायन का आनंद ले सकते हैं। 

  नौकायन मॉल रोड़ के दोनों छोर से की जा सकती है। हम मल्ली ताल वाले छोर पर थे और यहीं से नैना देवी मन्दिर का मार्ग भी है। दूरी पूछने पर बड़ा ही सटीक सा उत्तर मिला कि "सीधे जाओगे तो तीन मिनट और शॉपिंग करते जाओगो तो तीन घंटे भी कम होंगे।" चूंकि हम नैनीताल में हैं तो नैना देवी के दर्शन करे बिना यात्रा अधूरी ही है। मान्यता है कि नैनीताल का नाम नैना देवी और ताल (झील) के नाम पर रखा गया है। नैना देवी माता पार्वती का ही स्वरूप है। यह एक प्राचीन शक्तिपीठ है जिसके बारे में कहा जाता है कि जब देवी सती ने राजा दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपने को समर्पित कर दिया था तो भगवान् शिव बहुत आहत हुए और माता सती का शव लेकर पूरे ब्रह्मांड में विचरण करने लगे। उसी समय इस स्थान पर माता का बायां नैन (आँख) यहाँ गिरे इसीलिए इस स्थान पर भगवती को नैना देवी के नाम से पूजा जाता है और यह भी मनोकामना सिद्धपीठ है साथ ही आँखों (नैनों) के रोगों को दूर करने के लिए भी माँ नैना देवी को विशेषत: पूजा जाता है। इसी मन्दिर में जाने के लिए हम छोटे छोटे फड़ / पटरी वाली दुकानों के बीच से आगे बढ़ते गए और माता के दर्शन किये। यहाँ लगभग सभी पर्यटक दर्शनों के लिए आते हैं और पूरी श्रद्धा से माता का प्रसाद और आशीर्वाद लेते हैं। 
 यहीं तिब्बती बाज़ार भी है जिसमें ऊनी वस्त्र, हैंडी क्राफ्ट का समान और खाना भी मिलता है। सच में, दूरी बहुत कम थी लेकिन बच्चों के साथ साथ अपनी नज़रें भी उन दुकानों से चुराना आसान नहीं था तभी तो मिनट कब घंटों में बदल गए पता ही नहीं चला। खासकर कि जय को तो हर फैन्सी दुकान से कुछ न कुछ लेना होता था। इस समय लग रहा था कि बाजार जाते समय बच्चों की आँखों में घोड़ों की आँखों की तरह पट्टी (horse blinders) लगा देनी चाहिए जहाँ वो केवल रास्ता देख सकें, दाएं बाएं की दुकाने नहीं। 
   अंधेरा हो चला था लेकिन केवल आसमान में, यहाँ शहर में पूरी रौनक थी। जगमगाती रंगीन रोशनियों से मॉल रोड़ पूरे जोश में था। हर चीज़ की दुकान थी, कपड़े, खाना, खिलौने, मोमबत्ती, इत्र लगभग सब कुछ। हाथ के बुने हुए टोपी, मोजा, मफलर थे तो कहीं पर जैकेट, कहीं पर गर्म सूट सलवार, स्टाल और पश्मीना शॉल भी। चटपटी चाट, भुट्टा, चॉकलेट कॉफी, छोटे छोटे खेल खिलौनों के ठैले भी थे तो कैंडी और स्नैक्स की बड़ी दुकान भी साथ ही बच्चों के खेलने का पूरा गेमिंग ज़ोन भी। एक डाक पेटी/पत्र पेटी भी थी जिसे देखकर बच्चे स्वयं बोल उठे कि 'एक फोटो तो ले लो'। सही तो है, हमने इसका उपयोग किया, बच्चे इसकी फोटो ले रहे हैं और भविष्य के बच्चे तो फोटो में ही देखेंगे। 
 

रोशनी से जगमगाते, मद्धम संगीत के साथ रेस्त्रां में पकने वाले लज़ीज़ पकवानों की खूशबू भी अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। एक दुकान पर तरह तरह की सुंदर आकृतियों वाली मोमबत्तियां भी आकर्षण का केंद्र थी इस दुकान पर सुगंधित इत्र भी मिल रहे थे जहाँ जिया भी अपने को रोक नहीं पाई। 
 अब जैसे जैसे रात बढ़ रही थी वैसे ही हमारी भूख भी बढ़ रही थी और साथ में थकान भी इसलिए मॉल रोड़ का पूरा विचरण न करके वापसी कर ली और रेस्त्रां मचान में बैठकर सुंदर टिम टिमाती रोशनी निहारते हुए जमकर खाना खाया और अपनी भूख मिटाई।     नैना झील रात में
     
     अब बिना किसी देरी के वापस अपने गेस्ट हाउस पहुँच गए। सुबह से हम चलायमान थे, थकान से चूर अब हम सभी की हिम्मत बोल चुकी थी लेकिन पता नहीं जय के पास भगवान ने अलग से कौन सी बैटरी दी है जो रात में भी उसे ऊर्जा देती है! उसको रात के 11 बजे भी अपनी लेज़र लाइट चमकानी थी और अपने नये लिए हेडफोन को ब्लूटूथ से जोड़ना था और गाने सुनना था। बड़ी मुश्किल से जय को मनाया गया और सुलाया गया तब कहीं जाकर कमरे में शांति हुई। थकान से सब सो रहे थे लेकिन मैं नहीं क्योंकी मेरी आँखों में दूसरी जगह नींद आना थोड़ा मुश्किल होता है। और जब नींद नहीं आती तो दिमाग चलता रहता है या यूँ कहे कि दिमाग चलता रहता है इसलिए नींद नहीं आती। सोच रही थी कि इतने वर्ष पहले और आज के नैनीताल में क्या अंतर था?? इतने कम समय में हमने क्या देखा?? क्या नैनीताल रुकने का निर्णय सही था??क्या माँ को नैनीताल अच्छा लगा होगा?? सुबह एक बार और बोटिंग की जा सकती है?? क्या विकास कल सुबह थोड़ी और खरीदारी करने देंगे?? अगले दो दिन बच्चों की तबियत ठीक रहेगी , खासकर कि जय क्योंकि उसे बहुत जल्दी खाँसी हो जाती है?? कल सुबह कितने बजे उठना है, नाश्ता करने का समय क्या होगा?? कितने बजे तक यहाँ से निकल पाएंगे?? और ख़र्चे का हिसाब!! और न जाने क्या क्या दिमाग में चल रहा था। फिर ऐसे ही करते करते नींद के झोंके आये और गये। इसी के साथ सुबह की तेज किरणें भी आ गई और साथ ही चाय भी। गेस्ट हाउस के डाइनिंग हॉल में नाश्ता लग चुका था। लकड़ी की दीवारों के बीच बड़ी बड़ी काँच की खिड़कियां और बाहर देवदार के बड़े बड़े पेड़। यहाँ बैठ कर मन में स्वयं अधिकारी होने का भाव आ रहा था। दृश्य अच्छा था लेकिन थोड़ा सा और व्यवसायिक तरीके से काम लिया जाए तो पूरे गेस्ट हाउस में हाउसकीपिंग की ट्रेनिंग यहाँ चार चाँद लगा सकती है। जिससे सरकारी रंग में थोड़ा व्यवसायिक/वाणिज्यिक (कमर्शियल) का तड़का भी लग जायेगा और सर्विस का स्तर भी ऊँचा हो जायेगा। 


    लगभग दस बजे के बीच हम नैनीताल क्लब से रवाना हो चुके थे। यहाँ ठहरने का अनुभव बहुत अच्छा था। चूंकि हम उत्तराखंडी हैं तो यहाँ के सभी कर्मचारी अपने भाई बंधु ही लगे। दूसरा नैनीताल पुराने बसे नगरों में से एक है। इसलिए सड़के थोड़ी संकरी हैं जहाँ अधिक पर्यटक आने से जाम की स्थिति भी बन जाती है।( वैसे एक व्यवस्था अच्छी है कि एक मुख्य सड़क से नगर में प्रवेश है तो से दूसरी सड़क से जाने की व्यवस्था। ) ऐसे में नैनीताल क्लब एक साफ सुथरा और शांति भरा खुला स्थान है जहाँ गाड़ी आराम से पार्क की जा सकती है और फिर बाज़ार घूमा जा सकता है। हालांकि यह एक सरकारी अतिथि गृह है जिसमें मुख्यत: सरकारी लोग ही ठहरते हैं लेकिन इस बार हमने भी इसका अनुभव लिया जो हमारे लिए बहुत खास था। इसलिए श्री विकास बहुगुणा जी का पुन: धन्यवाद। 

  वैसे नैनीताल के लिए एक दिन बहुत ही कम हैं। यहाँ बहुत कुछ है देखने और करने के लिए। पिछले 12 सालों में बहुत कुछ है नया देखने को। यहाँ सुंदर दृश्य देखने के लिए ट्रैकिंग भी है और एडवेंचर पार्क भी। स्नो पॉइंट, चईना पीक, कैव्स, और अन्य सात ताल भी। मैंने पिछली नैनीताल की यात्रा में मुख्यत स्थानों का भ्रमण कर लिया था और इस बार के एक दिन में भी नैनीताल का खूब आनंद लिया। 
      अक्टूबर 2012

    अब दिल को तसल्ली दी और नैनीताल से आगे बढ़कर अल्मोड़ा मार्ग की पहाड़ियों पर बनी घुमावदार सड़कों पर हम जा रहे थे। आगे का सफर अधिक लंबा नहीं था लेकिन मेरा लेख बहुत लंबा हो चुका है। उम्मीद थी कि इस बार पूरी यात्रा का उल्लेख कर दूँगी लेकिन यात्रा यादों से बनती है और यादें संजोने में समय तो लगतय है और हाँ , मन भी तो ढेर सारे विचारों से भरा रहता है इसलिए आगे फिर मिलते हैं कुमाऊँ की अगली यात्रा में.... 

 

     

एक -Naari

  

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

उत्तराखंडी अनाज.....झंगोरा (Jhangora: Indian Barnyard Millet)

उत्तराखंड का मंडुआ/ कोदा/ क्वादु/ चुन

मेरे ब्रदर की दुल्हन (गढ़वाली विवाह के रीति रिवाज)