बसंत पंचमी: विद्यारंभ संस्कार
अब बसंत आ रहा है और बसंत का आगमन हमेशा से मन में खुशियों की दस्तक देता है क्योंकि इसे वृद्धि का मौसम भी कहा जाता है। इसमें यही कामना की जाती है कि जिस प्रकार बसंत के मौसम में प्रकृति की वृद्धि होती है ऐसे ही जीवन में खुशियों की वृद्धि होती रहे।
प्रकृति माँ की चहुँ ओर फैली रंग बिरंगी ओढ़नी से हमारे मन, मस्तिष्क में सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। इन्हीं प्रभावों से मिली ऊर्जा को एक नई दिशा में ले जाने के लिए ही तो बसंत पंचमी का दिन निर्धारित किया है जो पर्व के रूप में हम मना रहे हैं।
बसंत पंचमी भी प्रकृति माँ पर आधारित है और माँ स्वयं देवी है तो इस दिन देवी का वंदन होना निश्चित है। इस दिन हम माँ सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं जिन्हें हम ज्ञान, विद्या,स्वर, संगीत की देवी मानते हैं। इस दिन से किसी भी कार्य का आरंभ करना शुभ माना जाता है इसीलिए हिंदु संस्कृति में किसी भी संस्कार करने के लिए यह दिन उत्तम माना जाता है। इस दिन जनेऊ संस्कार, कर्ण छेदन संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार और विद्यारंभ संस्कार भी किये जाते हैं।
बसंत पंचमी में पीला रंग है खास
पीले रंग का महत्व
बसंत पंचमी के दिन पीले रंग को महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन खान पान से लेकर वस्त्र तक पीला पहनना शुभ होता है। असल में खान पान में पीला रंग का अर्थ हल्दी और केसर के प्रयोग से है चूंकि इस समय से मौसम में परिवर्तन आरंभ हो रहे होते हैं तो ऐसे में कई बार स्वास्थ्य में दुष्प्रभाव पड़ते है। ऐसे में हल्दी और केसर अपने आयुर्वेदिक गुणों के कारण हमारे अंदरूनी स्वास्थ्य को सुदृढ करने में सहायक होते हैं।
इस दिन पीले रंग का वस्त्र पहनना भी शुभ माना जाता है। सूर्य की रोशनी पीले वस्त्रों पर पढ़ने से और शरीर में सूर्य जैसा तेज यानी ऊर्जा का प्रवाह होता है जो हमारे पाचन तंत्र, रक्त तंत्र को अच्छा करती है और साथ ही आँखों के लिए भी लाभदायक होती है। पीला रंग शांति और सौम्यता का प्रतीक है जिससे कि मन में एकाग्रता बढ़ती है। पीले वस्त्रों के प्रयोग से मन के कुविचार दूर होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होता है जो हमारे बौद्धिक विकास को बढ़ाता है।
बसंत पंचमी में विद्यारंभ संस्कार:
इसीलिए इस दिन से विद्यारंभ संस्कार सबसे महत्वपूर्ण होता है। चूंकि यह दिन ही विद्या और ज्ञान की देवी सरस्वती जी की प्रार्थना का है इसलिए इस दिन से बच्चों की विद्या का आरंभ करना शुभ होता है। अब भले ही आज बच्चों को 2 से 3 वर्ष की आयु में ही कलम पकड़ा दी जाती है लेकिन विद्यारंभ 5 वर्ष की आयु में किया जाना उचित रहता है क्योंकि इस समय से ही मस्तिष्क की कोशिकाएं पढ़ने लिखने के लिए उपयुक्त होती हैं। समय के साथ ही बौद्धिक विकास का आरंभ होता है इसीलिए विद्यारंभ संस्कार बालक के पांच वर्ष में होने वाला संस्कार है। बसंत पंचमी के दिन बच्चों को पीले वस्त्र पहनाकर भगवान गणेश और माता सरस्वती की वंदना कराई जाती है और पूजा अर्चना के बाद कॉपी, पेंसिल और पीले मीठे चावल का भोग दिया जाता है।
अब जैसे बच्चों का विद्यारंभ संस्कार बसंत पंचमी से होता है उसी तरह से में केवल बच्चों को ही नहीं अपितु हम सभी को पढ़ने या लिखने के क्रम से जुड़ना चाहिए। आज जहाँ हम समय और तकनीक के फेर में कहीं न कहीं उलझे जा रहे हैं वहीं बसंत पंचमी के दिन से पढ़ने का आरंभ हमें कहीं न कहीं इस भागती दौड़ते जीवन में एक ठहराव देगा जो हमारे बौद्धिक विकास और सकारात्मक ऊर्जा का स्तर बढ़ायेगा। दिन के 10-15 मिनट पढ़ने की आदत आपको और आपके परिवार को खासकर कि घर के बच्चों पर एक सकारात्मक प्रभाव डालेगी और ज्ञान की ओर लेकर जायेगी।
तो आइये अपनी बुद्धि वृद्धि के लिए इस बसंत पंचमी के अवसर पर माता सरस्वती का ध्यान करें और अपनी विद्यारंभ का श्रीगणेश करते हैं।
एक- Naari
Nice
ReplyDeleteBohot badiya
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